किशनगढ़ के कांगे्रस विधायक नाथूराम सिनोदिया के पुत्र भंवर सिनोदिया की हत्या में मोटे तौर पर भले ही यह स्पष्ट हो चुका है कि मामला जमीन के सौदे से जुड़ा है और विवाद होने से लेकर अपहरण, हत्या व शव बरामदगी की पूरी कहानी साफ है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, वन मंत्री रामलाल जाट व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अपराध प्रदीप व्यास ने जिस प्रकार के बयान दिए हैं, उससे अहसास होता है कि मामला गंभीर और इन आरोपियों से इतर है।
ज्ञातव्य है कि विधायक सिनोदिया की ओर से दर्ज नामजद मुकदमे व पुलिस की स्वयं की छानबीन के आधार पर हत्या के आरोप में विवादित जमीन पर काबिज कैलाश थाकण व आपराधिक पृष्ठभूमि के सिकंदर को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि मुख्य आरोपी हिस्ट्रीशीटर बलवाराम उर्फ वल्लभराम जाट व कथित रूप से गोली चलाने वाले शहजाद की तलाश की जा रही है, बावजूद इसके सरकार जिस ढंग से बोल रही है, उससे ऐसा संदेश चला गया है कि मामला कुछ और है।
जरा गौर कीजिए मुख्यमंत्री के बयान पर। वे कह रहे हैं कि अपराधी कितना भी ताकतवर व प्रभावशाली क्यों न हो, कानून के शिकंजे से नहीं बच पाएगा। जांच का जिम्मा एसओजी को सौंपा गया है। इसी प्रकार वन मंत्री रामलाल जाट का कहना है कि तस्वीर साफ है, बस औपचारिकताओं की देरी है। हत्यारों को किसी भी कीमत पर नहीं बक्शा जाएगा। एक-दो दिन में हत्यारे पकड़ लिए जाएंगे। उन्होंने हत्यारों के पकड़े जाने से पहले शव न उठाने की जिद कर रहे सिनोदिया समर्थकों से कहा कि सब कुछ मीडिया के सामने मत पूछो, वरना पूरी जानकारी सामने आने पर अपराधियों को पकडऩे में समस्या आ सकती है। जांच एसओजी कर रही है, अब पुलिस का कोई लेना-देना नहीं है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अपराध प्रदीप व्यास ने भी मीडिया से कहा कि कुछ बिंदु तफ्तीश के चलते उजागर नहीं किए जा सकते।
सवाल ये उठता है कि जब पुलिस ने पूरा मामला खोल दिया है, पूरी कहानी साफ है और आरोपियों के नाम भी उजागर हो चुके हैं, तो ऐसी कौन सी वजह है कि सरकार को जांच पुलिस से छीन कर एसओजी को सौंपनी पड़ी। जब आरोपियों को पूरा पता लग चुका है तो इस बात पर जोर देने की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है कि अपराधी कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो उसे बक्शा नहीं जाएगा। सवाल ये भी है कि ऐसी कौन सी जानकारी रामलाल जाट के पास है, जिसे वे मीडिया के सामने उजागर नहीं करना चाहते थे और मीडिया को पता लग जाने पर बाकी बचे दो आरोपियों को पकडऩे में समस्या आ सकती है। जांच अधिकारी व्यास भी तफ्तीश जारी रहने का बहाना बना कर कुछ छिपा रहे हैं। उधर गृह मंत्री शांति धारीवाल ने तो विधानसभा में अपने स्पष्टीकरण में एक आरोपी बलवाराम को भाजपा का कार्यकर्ता बता दिया, हालांकि विपक्ष की नेता वसुंधरा राजे ने इसका यह कह कर विरोध किया कि अपराधी तो अपराधी होता है, इस मामले को दलगत राजनीति से दूर रख कर चर्चा की जाए। इन सब बयानों से ऐसा संदेश जा रहा है कि अब तक जो कहानी सामने आई है, उससे इतर भी कुछ और है, जिसका सरकार को पता है और वह एसओजी जांच के बहाने उसे फिलहाल छिपाने की कोशिश कर रही है। कहीं उसे स्थानीय पुलिस पर दबाव में आ जाने का खतरा है, इस कारण मामले को सीधे अपने हाथ में रखने के लिए ही एसओजी को तो जांच नहीं सौंपी गई है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई ऐसा सूत्र हाथ लगा है, जिसकी वजह से एक आरोपी के भाजपा कार्यकर्ता होने को आधार बना कर सरकार इसे राजनीतिक रूप देने का मानस रखती है? या फिर भाजपा कार्यकर्ता के बहाने किसी और को फंसाने के चक्कर में है? एक अखबार ने तो बाकायदा किसी भाजपा नेता की ओर इशारा ही कर दिया है। सच्चाई जो भी हो, अब तक सामने आये चारों आरोपियों के बयानों पर ही निर्भर करेगा कि असल कहानी क्या है, उससे पहले जितने मुंह उतनी बातें।
ज्ञातव्य है कि विधायक सिनोदिया की ओर से दर्ज नामजद मुकदमे व पुलिस की स्वयं की छानबीन के आधार पर हत्या के आरोप में विवादित जमीन पर काबिज कैलाश थाकण व आपराधिक पृष्ठभूमि के सिकंदर को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि मुख्य आरोपी हिस्ट्रीशीटर बलवाराम उर्फ वल्लभराम जाट व कथित रूप से गोली चलाने वाले शहजाद की तलाश की जा रही है, बावजूद इसके सरकार जिस ढंग से बोल रही है, उससे ऐसा संदेश चला गया है कि मामला कुछ और है।
जरा गौर कीजिए मुख्यमंत्री के बयान पर। वे कह रहे हैं कि अपराधी कितना भी ताकतवर व प्रभावशाली क्यों न हो, कानून के शिकंजे से नहीं बच पाएगा। जांच का जिम्मा एसओजी को सौंपा गया है। इसी प्रकार वन मंत्री रामलाल जाट का कहना है कि तस्वीर साफ है, बस औपचारिकताओं की देरी है। हत्यारों को किसी भी कीमत पर नहीं बक्शा जाएगा। एक-दो दिन में हत्यारे पकड़ लिए जाएंगे। उन्होंने हत्यारों के पकड़े जाने से पहले शव न उठाने की जिद कर रहे सिनोदिया समर्थकों से कहा कि सब कुछ मीडिया के सामने मत पूछो, वरना पूरी जानकारी सामने आने पर अपराधियों को पकडऩे में समस्या आ सकती है। जांच एसओजी कर रही है, अब पुलिस का कोई लेना-देना नहीं है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अपराध प्रदीप व्यास ने भी मीडिया से कहा कि कुछ बिंदु तफ्तीश के चलते उजागर नहीं किए जा सकते।
सवाल ये उठता है कि जब पुलिस ने पूरा मामला खोल दिया है, पूरी कहानी साफ है और आरोपियों के नाम भी उजागर हो चुके हैं, तो ऐसी कौन सी वजह है कि सरकार को जांच पुलिस से छीन कर एसओजी को सौंपनी पड़ी। जब आरोपियों को पूरा पता लग चुका है तो इस बात पर जोर देने की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है कि अपराधी कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो उसे बक्शा नहीं जाएगा। सवाल ये भी है कि ऐसी कौन सी जानकारी रामलाल जाट के पास है, जिसे वे मीडिया के सामने उजागर नहीं करना चाहते थे और मीडिया को पता लग जाने पर बाकी बचे दो आरोपियों को पकडऩे में समस्या आ सकती है। जांच अधिकारी व्यास भी तफ्तीश जारी रहने का बहाना बना कर कुछ छिपा रहे हैं। उधर गृह मंत्री शांति धारीवाल ने तो विधानसभा में अपने स्पष्टीकरण में एक आरोपी बलवाराम को भाजपा का कार्यकर्ता बता दिया, हालांकि विपक्ष की नेता वसुंधरा राजे ने इसका यह कह कर विरोध किया कि अपराधी तो अपराधी होता है, इस मामले को दलगत राजनीति से दूर रख कर चर्चा की जाए। इन सब बयानों से ऐसा संदेश जा रहा है कि अब तक जो कहानी सामने आई है, उससे इतर भी कुछ और है, जिसका सरकार को पता है और वह एसओजी जांच के बहाने उसे फिलहाल छिपाने की कोशिश कर रही है। कहीं उसे स्थानीय पुलिस पर दबाव में आ जाने का खतरा है, इस कारण मामले को सीधे अपने हाथ में रखने के लिए ही एसओजी को तो जांच नहीं सौंपी गई है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई ऐसा सूत्र हाथ लगा है, जिसकी वजह से एक आरोपी के भाजपा कार्यकर्ता होने को आधार बना कर सरकार इसे राजनीतिक रूप देने का मानस रखती है? या फिर भाजपा कार्यकर्ता के बहाने किसी और को फंसाने के चक्कर में है? एक अखबार ने तो बाकायदा किसी भाजपा नेता की ओर इशारा ही कर दिया है। सच्चाई जो भी हो, अब तक सामने आये चारों आरोपियों के बयानों पर ही निर्भर करेगा कि असल कहानी क्या है, उससे पहले जितने मुंह उतनी बातें।
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