विविध रंग -रंजित प्रकृति को
कर विरंचि ने राखा
नव पल्लव का भार लिए
है झुक आयी हर शाखा ।
प्राप्तयौवना तन्वी की ज्यों
देह लचक जाती है ,
मंद पवन के झोंकों पर
हर शाखा बल खाती है ।
घर आँगन में फाग
क़ि भ्रमरों का संगीत वनों में ,
है निमग्न प्रकृति चतुर्दिक
मुग्धा के स्वप्नों में ।
अहो भ्रमर, मैं संग तुम्हारे
बौरों की झूलों पर ,
चिपक चिपक जाता
करता मंडराया मैं फूलों पर ।
और कभी पत्तों में छिपकर
बैठ पास कोयल के ,
गाया करता मैं भी कतिपय
गीत प्रीति के पल के ।
19.3.11
होली की शुभकामनाएं एवं छंद
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1 comment:
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
jai baba banaras...
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