तीन साल का बच्चा
सुबह पार्क में टहल रहा था | एक मुझसे भी वृद्ध सज्जन अपने तीन साल के नाती को लेकर आये थे | कहना होगा कि दरअसल बच्चा ही उन्हें टहला रहा था , क्योंकि वह उन्हें उँगली खींच कर टहलने के लिए बने मार्ग से इतर झाड़ियों की ओर ले जा रहा था | झाडी के उस पार कुछ बच्चे गेंद उछाल-उछाल कर खेल रहे थे | बच्चा वहीं जाने के लिए वृद्ध को घसीट रहा था |
यही हाल नक्सलवादियों का है | वे भी प्रौढ़ , समझदार और मनुष्यता के रास्तों के चिर - जानकार हैं | पर वे क्या करें ? प्रेम और आसक्ति से मजबूर हैं | यह जो तीन साल का बच्चा , तीन गुणे बीस साल का प्रजातान्त्रिक बचकानापन है ,वह उन्हें जंगलों की ओर खींच रहा है |
सब ठीक हो जायगा | बच्चा बड़ा हो जायगा |
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