अध्यक्ष बनाने वाले की जयजयकार,नेताओं के जंगी स्वागत के तक सीमित हो चुकी युवा राजनीति को बाहर लाना होगा नवनीत को
बीते दिनों विधानसभा में आसन्दी पर आसीन अध्यक्षीय पैनल की सदस्य नीता पटेरिया के साथ हुयी घटना को लेकर जिले में इंका और भाजपा में भारी चर्चा है। विधानसभा में आसन्दी से सरकार और मुख्यमन्त्री के पक्ष में आसन्दी से की गई नीता की टिप्णी और उसे फिर वापस लेने से चर्चायें जारी हैं। कांग्रेसी इसे अनुभव की कमी बता रहें हैं तो भाजपायी इसे शिवराज की नज़र में नम्बंर बढ़ाने की होड़ मान रहें हैं। जिले की युवा राजनीति में भी अब उबाल आना शुरू हो गया हैं। भाजपा ने अपने युवा मोर्चे की कमान ठाकुर नवनीत सिंह के हाथों में सौम्प दी है। युवक कांग्रेस के चुनाव भी राहुल गान्धी की अगुवायी में हों रहें है। प्रदेश में इनकी शुरुआत भी हो चुकी हैं। बीते दिनों हुई राजेश बरकड़े की मृत्यु को लेकर तरह तरह की बयान बाजी हो रही हैं। विधानसभा में सरकार ने उसके कजZ माफ करने और उसे सहायता राशि देने से भी इंकार कर दिया हैं। विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ने विधानसभा में प्रश्न उठवाकर अपना वायदा भी पूरा कर लिया और पीड़ित परिवार को कोई मदद भी नहीं मिली। दूसरी तरफ भाजपा विधायक नीता पटेरिया के कथित बयान को लेकर आक्रोशित गौगपा ने अपना बन्द आयोजित कर डाला। हालांकि इस बन्द को बहुत हद तक सफलता नहीं मिल पायी लेकिन उन्होंने अपना विरोध तो दर्ज कराया ही। गौगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम भी इस आन्दोलन में शामिल हुये।
लाल बत्ती का फैसला होने तक जारी रहेगी नीता की नम्बंर लेने की होड़?-बीते दिनों विधानसभा में आसन्दी पर आसीन अध्यक्षीय पैनल की सदस्य नीता पटेरिया के साथ हुयी घटना को लेकर जिले में इंका और भाजपा में भारी चर्चा है। उल्लेखनीय है कि विस में इंका के पूर्व मन्त्री अजय सिंह किसानों की समस्याओं को लेकर अपना व्यक्तव्य दे रहे थे। इसी दौरान उन्होंने पाला पीड़ित किसानों के लिये मुख्यमन्त्री द्वारा किये जाने वाले उपवास को लेकर कुछ टिप्पणी कर डाली। इस पर विधानसभा की आसन्दी पर विराजमान भाजपा विधायक नीता पटेरिया से रहा नहीं गया और उन्होंने सरकार और मुख्यमन्त्री के पक्ष में कुछ टिप्पणियां कर डालीं। इसपर विपक्ष ने हंगामा मचाया और अन्तत: आसन्दी को खुद अपने द्वारा की गई टिप्पणियों को कार्यवाही से विलोपित करने के आदेश देना पड़े। यह समाचार जबसे अखबारों में सुर्खियों से छपा हैं तभी से स्थानीय स्ता इसे लेकर कांग्रेसियों और भाजपाइयों में चर्चा जारी हैं। जहां एक ओर कांग्रेसी यह कहते देखे जा रहें हैं कि संर्वधानिक पदों का दायित्व निभाना इतना आसान नहीं हैं। इसमें नेता का अनुभव काम आता है। वे अनपे नेता हरवंश सिंह का उदाहरण देते हुये यह कहते नहीं थकते हैं कि लगभग दो वर्ष का उनका उपाध्यक्ष पद का कार्यकाल बीत चुका हैं लेकिन उन पर आज तक भाजपा भी एक भी आरोप नहीं लगा पायें हैं जिसमें संवैधानिक पद की गरिमा को ठेस लगी हो। जबकि भाजपा की नीता पटेरिया को कुछ समय के लिये ही यह मौका मिला और उन्हें खुद की अपनी बात को ही विलोपित कराना पड़ गया। दूसरी ओर भाजपा के लोग यह कह रहें हैं कि ऐसा कुछ नहीं हैं। दरअसल नीता जी को शिवराज से नम्बंर लेना था इसलिये उन्होंने ऐसा कुछ किया होगा वरना वे भी देश के सर्वोच्च सदन लोकसभा में अपना एक कार्यकाल पूरा करने के बाद विधायक बनीं हैं। उन्हें जो नम्बंर बढ़ाने के लिये कहना था वे कह चुकीं थीं। अपनी ही टिप्पणी वापस लेने से इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। भाजपाइयों का यह भी दावा हैं कि भले ही प्रदेश महिला मोर्चे की अध्यक्ष बन गईं हों लेकिन नम्बंर लेने की यह होड़ तब तक जारी रहेगी जब तक कि लाल बत्ती का फैसला ना हो जाये।
सोच समझ कर अपनी पारी की श्ुारुआत करना होगा नवनीत सिंह को -जिले की युवा राजनीति में भी अब उबाल आना शुरू हो गया हैं। भाजपा ने अपने युवा मोर्चे की कमान ठाकुर नवनीत सिंह के हाथों में सौम्प दी है। युवक कांग्रेस के चुनाव भी राहुल गान्धी की अगुवायी में हों रहें है। प्रदेश मेंइनकी शुरुआत भी हो चुकी हैं। देखना हैं कि राहुल गान्धी के इस नये तरीके से कराये जा रहे चुनाव में कार्यकत्ताZओं के बीच से कोई नया नेता आता हैं या फिर किसी नेता के ड्राइंग रूम से अध्यक्ष निकल कर आता है जैसा कि कांग्रेस में होता आया हैं। वैसे भी बीते कुछ सालों से जिले में युवा राजनीति बहुत सीमित दायरे में सिमट कर रह गई है। जिसने अध्यक्ष बनाया हो उसकी जय जय कार करो, अपने कार्यकाल में यदि कोई राष्ट्रीय या प्रदेश पदाधिकारी आये तो उसका झंके मंके के साथ स्वागत करों और अपने आका द्वारा दिये गये आदेश का आंख मून्द कर पालन करो चाहे वह पार्टी के हित में हो या ना हो। जिले में युवा राजनीति का यदि यही अञ्जाम रहा तो किसी भी पार्टी में दूसरी लाइन का नेतृत्व विकसित नहीं हो पायेगा। जो भविष्य में राजनैतिक दलों के लिये नुकसानदायक रहेगा। भाजपा की युवा रानीति में अभी नवनीत को अपनी पारी की शुरुआत करना हैं। अब उन्हें किस लाइन पर चलना हैंर्षोर्षो यह तो उन्हें तय करना हैं लेकिन उनसे लोगों को यह अपेक्षा जरूर हैं उनकी राजनीति बधायी और बनाने वाले नेताओं के आभार मानने वाले विज्ञापन तथा खुद के लेटर पेड छापवाने तक ही सीमित नहीं रहेगी वरन जमीनी धरातल पर भी कुछ दिखेगी। यदि ऐसा कुछ वे कर पाते हैं तब तो उनकी पार्टी को भी लाभ होगा वरना नूरा कुश्ती और मस्टररोल पर रहने के आरोप उनकी पार्टी में बड़े बड़े नेताओं पर चस्पा होते रहें हें और आज वे उसी का परिणाम गुमनामी में जाकर भुगत रहें है।
सभी ने सेंकी युवा आदिवासी किसान की चिता पर राजनैतिक रोटी-बीते दिनों हुई राजेश बरकड़े की मृत्यु को लेकर तरह तरह की बयान बाजी हो रही हैं। जहां एक ओर विपक्षी दल इसे आत्महत्या बता रहें हैं वहीं दूसरी ओर प्रशासन और सत्ता पक्ष इसे आत्म हत्या मानने को तैयार नहीं हैं। विधानसभा में सरकार ने उसके कजZ माफ करने और उसे सहायता राशि देने से भी इंकार कर दिया हैं। विस उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ने विधानसभा में प्रश्न उठवाकर अपना वायदा भी पूरा कर लिया और पीड़ित परिवार को कोई मदद भी नहीं मिली। सदन में मांग पूरी ना होने पर सड़क पर कोई कारगर कार्यवाही करने की योजना भी नहीं बनायी गई। दूसरी तरफ भाजपा विधायक नीता पटेरिया के कथित बयान को लेकर आक्रोशित गौगपा ने अपना बन्द आयोजित कर डाला। हालांकि इस बन्द को बहुत हद तक सफलता नहीं मिल पायी लेकिन उन्होंने अपना विरोध तो दर्ज कराया ही। गौगपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरासिंह मरकाम भी इस आन्दोलन में शामिल हुये। हालांकि आदोलन के कुछ दिन पहले विधायक नीता पटेरिया की ओर से जिला भाजपा ने खंड़न जारी किया था कि उन्होंने आदिवासियों के खिलाफ ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की थी जैसा कि प्रचारित किया जा रहा हैं। लेकिन यह खंड़न इतने विलम्ब से आया कि तब लोग इस बात पर विश्वास कर चुके थे कि जैसा प्रकाशित हो रहा हैं वैसा कहा गया होगा। लेकिन इस सबके बावजूद भी एक सवाल तो अभी अनुत्तरित ही हैं कि आखिर एक युवा आदिवासी कृषक की अकाल मृत्यु क्यों हुयीर्षोर्षो वह तात्कालिक असफलता से हुयी या पिछली लगातार असफलताओं से हुयीर्षोर्षो या प्राकृतिक आपदा की राहत राशि के वितरण में हुये विलम्ब से हुयीर्षोर्षोइस पर ना जाकर यदि कहीं कोई चूक हुयी हैं तो उसे स्वीकार कर भविष्य में सुधारने का संकल्प लेते कोई नहीं दिख रहा हैं। इस मृत्यु पर नेताओं और राजनैतिक दलों की भूमिका सबके सामने ही हैं। सभी ने युवा आदिवासी की चिता पर रोटी सेंकने में कोई संकोच नहीं किया। किसानों की आत्म हत्या का सिलसिला प्रदेश में जारी हैं और उसके कारण तलाशउसे रोकने के कोई कारगर उपाय करते कोई नहीं दिख रहा हैं। सरकार अपने ऊपर से बला टालने में लगी दिखती हैं और विपक्ष उसे सदन में उठाकर अपने कत्तZव्यों की इतिश्री कर लेता हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो किसान मरते रहेंगें और सियासी दल अपना उल्लू सीधा करते रहेंगें।
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