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13.4.11

राष्ट्र के सजग प्रहरी कौन ?


राष्ट्र के सजग प्रहरी कौन ?
दिनांक - 12-4-2011
आज हमारे देश की जनता लोकपाल विधेयक पर अन्ना हजारे जी का आमरण अनसन  को लेकर बहुत हर्षो-उल्लासित है। लेकिन आज अन्ना हजारे जी का आमरण अनसन हमारे सामने कुछ एक ज्वलंत प्रश्न छोड़ गए हैं। अन्ना हजारे जी का आमरण अनसन लोकपाल विधेयक को केन्द्र सरकार से पारीत कराने के लिए था। पहले तो केन्द्र सरकार द्वारा मसौदा तैयार किया जएगा फिर उसे संसद पटल पर रखा जाएगा। यह विधेयक पूरे राष्ट्र मे लागू होगा लेकिन इस लोकपाल विधेयक को क्या सभी राज्य सरकारें भी उतने ही शक्ति से अपने राज्यो मे लागू करेंगी ? दूसरी बात यह है कि इस लोकपाल विधेयक बिल को संसद से मंजूरी देने वाले लोग वही जन प्रतिनिध नेता ही होगें जिन्हे हम लोगों ने अपना बहु मूल्य वोट देकर संसद तक पहुंचाया है। यदि यह जन प्रतिनिधी जनता के प्रति इतने ईमानदारी से अपना काम कर रहे होते तो क्या इस विधेयक को पास कराने के मुद्दे पर अनना हजारे जी के साथ सैकड़ो लोगों को आमरण अनसन पर बैठना पड़ता ? कदापि नही। फिर भी जो बिल आज 42 बर्षो तक संसद से इन्हीं सांसदो ने पास नही होने दिया। यह सांसद लोग क्या इस बिल को इतने आसानी से पारित करने के लिए अपना सर्मथन वोट देंगे ? अगर इस विधेयक के समर्थन में संसद मे वोट नही पड़े या कम पड़े तब उस हालात मे भी क्या इस बिल को पास कर लागू किया जाएगा ? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। तिसरी बात यह है कि महिला आरक्षण विधेयक जैसे कई अन्य बिल भी संसद से आज दिन तक पास नही हो पाए, क्या उसके लिए एक बार फिर अलग से कीसी दूसरे व्यक्ति को , महिला समाज से किसी महिला को या अनना हजारे जी, स्वंम आमरण अनसन पर बैठेंगे। विधेयक के पास हो जाने से नये कानून बनने बनाने से भी महत्व पूर्ण इस कानून का क्रियान्वयन है। इस तरह के कानून पहले से बने हैं, जिससे भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है, इसके अलावा भी अन्य बहुत से कानून बने हैं। लेकिन उन कानूनो के साथ क्या हुआ कानून बन कर कानूनी किताबों मे कैद होकर रह गई। क्या उन कानूनो को सुचारु रुप से लागू करने और अमल मे लाने के लिए किसी ने संघर्ष या आमरण अनसन किया ? वल्कि आम जनता का कोई भी काम नौकरशाह लोग बिना घूस लिए नही करने के आदी हो चूके हैं। ऐसी अवस्था मे हम ऐसे लोगों से यह कैसे उम्मीद करें कि इस कानून के पास हो जाने और अमल मे आने के बाद यही नौकरशाह कुछ न कुछ तकनीकी गलतियां निकाल कर साधारण जनता के कामो मे तरह-तरह की बाधाएं पैदा नही करेंगे। इस परिपेक्ष मे यह कहना पड़ता है कि जब तक हम खुद नही सुधरेंगें तब तक हमारा समाज एवं जनमानस नही सुधरेगा। शायद इसका मुख्य कारण हमारे देश की जनता का जागरुक न होना, समाज के अधिक्तर लोगों को इस के बारे मे जानकारी का न होना या कम होना तो है ही। क्यों कि हमारे याहाँ कोइ भी नियम कानून बनने के बाद हमारे देश मे उसका प्रचार-प्रसार सुचारु रुप से नही किया जाता है। साथ ही साथ हम लोग अपने नेताओ पर भरोसा कर उस कानून को लागू करने या किसी भी समस्या को हल करने की जिम्मेदारी उन पर डाल कर निश्चिंत हो जाने साथ ही साथ उस ओर से अपनी आंखे हमेश के लिए बंद कर लेते हैं, और देर सवेर उसे भूल ही जाते हैं। इस बात की क्या गारंन्टी है कि इस कानून का भी ऐसा हश्र नही होगा। यह कानून बन जाने के बाद इस कानून का सही ढंग से क्रियान्वयन हो भी रहा है, या नही। इसके लिए जनता की ओर से जो प्रतिनिधी चुने गए बह लोग जनता के प्रति ईमानदारी से काम कर रहे हैं या नही यह कौन देखेगा व तय करेगा ? यह कानून और इसके लागू हो जाने के बाद क्या देश पूरी तरह से भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा ऐसा दावा कौन कर सकता है ? शायद कोई भी नही। इससे पहले एक कानून सूचना पाने के अधिकार मे सूचना आयोग का गठन हुआ पर आम जनता आज भी सूचना पाने के अधिकारी न बन सके। ऐसे हजारो कानूनो के  बन जाने से समाज का कोई भी भला नही हो सकता है।  जिस प्रकार राज्य का काम निगरानी रखना है, तो राज्य पर पर भी कोई निगरानी रखने वाला अवश्य होना चाहिए। हमारे देश मे यह काम केन्द्रीय सतर्कता आयोग का है, लेकिन अभी-अभी हाल मे ही इस आयोग के आयुक्त पीजे थाँमस का नियुक्ति को लेकर बहुत हो हल्ला मचा आखिर क्यों ? क्यो की उनकी नियुक्ति भी केन्द्र सरकार ने अपने  माफिक किया था। यह निश्चित है कि यदी सरकार द्वारा इस कनून को बनाया गया तो क्या सरकार खुद अपने उपर इस कानून की इतनी शक्ति का प्रहार सह पाएगी ? ऐसा कभी नही और देर-सवेर बह अपने आप को बचाने के लिए इस मे अनेको रास्ते निकाल ही लेगी क्यो की कनून बनने से पहले ही उससे अपने आप को बचाने का रास्ता निकाल लेने की परमपरा हमारे समाज मे पहले से ही बनी हुई है। ऐसी परिस्थिती में हमारे देश के जनता का जागरुक नही होना और उनमे प्रवल इच्छा शक्ति का न होना ही इसका मुख्य कारण है। अक्सर यह देखने मे आता है कि बिना जनता के जागरुक हुए इस तरह के कानून का लाभ और खुद जनता की भलाई कदापि संभव नही है।

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