Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

22.2.12

आजकल

नहीं दिखता है आसमां में चांद आजकल
खो गर्इं हैं हमारी शांम आजकल
दौड़ भाग की इस दुनिया में
हर रोज मरता है गरीब आजकल
बन्द रखी हूं दरवाजा नहीं खोला करती
तन्हा रहती हूं अपनों से भी नहीं बोला करती
अन्जान सी दिखती हूं अब अपने ही घर में
खो गई हूं भटकती रहती हूं दिन रात आजकल
सो जाती हूं और सपने भी देखती हूं
पर खो जाते हैं मेरे सपने भी आजक

3 comments:

Smita said...

nice :)

Dr Om Prakash Pandey said...

maine is aaine ko todne kee thaanee hai
mujhe dara naheen paayegaa ab patthar koi ;
chaand kuchh aur bhee seenon mein dhadkaa kartaa hai
apanaa mat maan le ek baar hee chhookar koi .

vidya said...

बहुत खूब...