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25.2.12

सवर्ण विरोधी संविधान ?

मैं एक लेखक हूँ और संवेदना मेरी प्रकृति है । मैं साहित्य का छात्र रहा हूँ और एक महान लेखक शिवपूजन सहाय के इस कथन (कहानी का प्लाट ) से सहमत हूँ कि अमीरी की कब्र पर पनपी हुयी गरीबी बड़ी जहरीली होती है । इस भयंकर भौतिकवादी युग में गरीब सवर्णों की व्यथा बड़ी भयावह है पर उन्हें कोई नहीं पूछता है । क्या ब्राह्मण , भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, सैय्यद एवं पठान इत्यादि सब के सब अमीर ही हैं ? अगर नहीं तो फिर उनके अन्दर जो गरीब हैं उनकी सहायता के लिए कोई नीति या कानून क्यों नहीं बनता ? क्या इस देश का संविधान सवर्ण विरोधी है ?
क्या कोई नेता उनकी पीड़ा सामने रखता है ? अवसरवादी उन नेताओं को धिक्कार जो सवर्णों की पीड़ा से अवगत होते हुए भी उनकी तरफ से सिर्फ इस लिए नहीं बोलते कि सवर्णों की मतसंख्या कम है । यह प्रजातंत्र है या बहुमत की तानाशाही ? ऐसे प्रजातंत्र पर थू जो किसी गरीब सवर्ण के प्रति हृदयहीन व्यवहार करता है ।
लेखक के रूप में मैंने अपने उपन्यास 'दी रिबर्थ ऑफ़ महात्मा ' में बहुत कुछ लिखा था और उसकी एक प्रति वाजपेयीजी और एक सोनियाजी को भेजा भी था । आज इस ब्लॉग के माध्यम से यह जानना चाहता हूँ कि क्या आप लोगों में से किसी को उन सवर्ण गरीबों से कोई सहानुभूति है जो बिलकुल गरीब और उपेक्षित हैं ?

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