उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव के दौरान चुनाव आयोग को नाराज करने के एक के बाद एक मामले सामने आने से दो ही बातें समझ में आती हैं, या तो कांग्रेस के नेता वाकई आचार संहिता को नहीं जानते और मासूम हैं अथवा संयोग से गलती कर रहे हैं और या फिर जानबूझ कर ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं, ताकि आयोग नाराज हो और कांग्रेस मीडिया में चर्चा में बनी रहे। संभव है कि कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, गृह राज्य मंत्री प्रकाश जायसवाल व बेनीप्रसाद शर्मा के पास बयान देने का ठोस तार्किक आधार हो अथवा अपने बयान को अलग संदर्भ में कह कर बचने की कोशिश करें, मगर उनका जो रवैया दिखाई दे रहा था, वह साफ तौर पर आयोग को चिढ़ाने जैसा ही था। वे आयोग पर ऐसे गुर्रा रहे थे मानो उन्हें उसका कोई डर ही नहीं है। असल बात तो यह नजर आती है कि उन्होंने इतनी अधिक सीमा लांघी कि आयोग को नोटिस देना ही पड़ा। उनके बयानों से यह कहीं से भी नहीं दिखाई देता कि उन्हें इस बात का अहसास ही नहीं था कि उनके बयान पर आयोग ऐतराज जाहिर करते हुए नोटिस दे देगा। कम से कम ऐसा तो कत्तई नहीं लगा कि उनसे गलती हो गई अथवा जुबान फिसल गई थी, ठोक बजा कर जो बयान दे रहे थे। बयान आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे थे या नहीं, इस में नहीं पड़ें, तब भी होना जाना क्या है? फांसी तो होनी नहीं है। हद से हद यही कहना है कि उनका मकसद आचार संहिता का उल्लंघन करना नहीं था, वे आयोग का सम्मान करते हैं अथवा आयोग के सामने पेश हो कर खेद प्रकट कर देने से मामला रफा-दफा हो जाएगा। वैसे भी इस प्रकार की विवादास्पद बयानबाजी का मतलब चुनाव पूरे होने तक है। उसके बाद पूछता कौन है कि आपने ऐसा कैसे कह दिया? असल में ऐसा प्रतीत होता कि कांग्रेस की यह सोची समझी चाल है। वह चुनाव की सरगरमी के दौरान मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करने की फिराक में है, ताकि वहीं छायी रहे। वह असल मुद्दों से जनता का ध्यान हटाना चाहती है साथ ही अपने मकसद में कामयाब भी होना चाहती है। मुस्लिम आरक्षण का ही मामला लीजिए। माना कि इस पर बाद में माफीनामे अथवा खेद प्रकट करने की स्थिति आती है, मगर जिस मकसद से बयान दिया वह तो मुसलमानों को कम्युनिकेट हो ही गया। आयोग लाख माफी मंगवा ले, मगर उसे डीकम्युनिकेट कैसे करवा पाएगा। तब तक तो वोट ही पड़ चुके होंगे। मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस के आला मंत्रियों ने चुनाव आयोग पर वार पर वार करने की योजना चल ही रही थी कि कांग्रेस युवराज राहुल गांधी ने कानपुर में जानबूझ कर रोड शो किया और पूरे 24 घंटे तक वे मीडिया की सुर्खियां बने रहे। इतना ही नहीं, राहुल का सपा का घोषणा पत्र फाडऩे वाला नाटक भी साफ तौर पर मीडिया में सुर्खी पाने के लिए था। इससे मीडिया ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दल भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। जाहिर तौर पर इससे भाजपा को बड़ी तकलीफ हुई होगी। मीडिया में छाये रहने के गुर तो भाजपाइयों को ही आते हैं। इस मामले में उनका कोई सानी नहीं। मगर पहली बार कांग्रेस के इस प्रकार मीडिया पर बने रहने से भाजपाई सकते में हैं। इसी बीच आयोग को कमजोर करने का मुद्दा उभर आया। आयोग ने जब इस प्रकार की किसी भी कोशिश का नाकाम करने की बात कही तो सरकार की ओर से कहा गया कि ऐसा कोई विचार ही नहीं था। ऐसे में भाजपा के दिग्गज अरुण जेटली ने मोर्चा संभाला और कांग्रेस को सीरियल अपराधी करार दे दिया, मगर मीडिया ने उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी। पूरा प्रकरण मीडिया मैनेजमेंट से जुड़ा हुआ नजर आया।
-tejwanig@gmail.com
28.2.12
मीडिया में छाने को ले रहे हैं आयोग से पंगा
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1 comment:
ab jab rahul ji kuch kar rahe hain to aap hi kya sabhi unhe kuch n kuch kah rahe hain ve n kuch karen to bhi yahi position hai lagta hai ki unke man me bhi yahi bhav hoga jo mere man me hai-
''vo katl bhi karte hain to charcha nahi hoti ,
ham aah bhi bharte hain to ho jate hain badnam.''
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