दोस्तों, रिकॉर्ड तो रिकॉर्ड होता है।रिकॉर्ड चाहे सबसे ज्यादा रन बनाने का हो या सबसे अधिक बार शून्य पर आउट होने का, रिकॉर्ड बनाने वाले पर तो सभी की निगाहें रहती ही हैं।फिर चाहे रिकॉर्ड देश के इतिहास में पहली बार किसी कानून मंत्री का कानून के उल्लंघन का ही क्यों न हो।आखिर रिकॉर्ड तो रिकॉर्ड होता है।
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ।जी हाँ, मैं कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की ही बात कर रहा हूँ।एक तो पहले ही वह मुस्लिमों को ओबीसी के 27% कोटे के तहत 9% सब-कोटा देने का वादा कर चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के दोषी पाए गए थे, जो कि किसी भी कानून मंत्री के लिए शर्म की बात है।उसके बाद अपने उस बयान पर अफसोस जताने के बजाए आज़मगढ़ में एक चुनावी रैली के दौरान उन्होंने फिर से अपना वही वादा दोहरा दिया।इस बार तो उन्होंने हद ही कर दी।इस बार उन्होंने एक कदम आगे बढ़ते हुए चुनाव आयोग को खुली चुनौती दे डाली।उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग चाहे उन्हें फाँसी पर लटका दे पर वह मुस्लिमों को उनका हक दिला कर रहेंगे।शायद कानून मंत्री भूल गए थे कि चुनाव आयोग ने उन पर शौक से कार्रवाई नहीं की थी, बल्कि वो चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के दोषी पाए गए थे।फिर भी अफसोस जाहिर करने के बजाए कानून मंत्री एक गंदी राजनीति के तहत मुस्लिमों का वोट लेने के लिए चुनाव आयोग को ही चुनौती दे बैठे।यह देश में पहला मौका है जब कोई कानून मंत्री ही कानून पर लात मार रहा है, कानून को चुनौती दे रहा है।कानून मंत्री के मुँह से ऐसी बातें बिल्कुल ही अशोभनीय हैं।वह कानून मंत्री हैं तो क्या हुआ।क्या वह कानून से ऊपर हैं?
खैर, मंत्रीजी के बयानों को देखते हुए, एक बात तो देखने को मिली कि आज अपने देश में जातिवाद और धर्म-आधारित गंदी राजनीति चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था पर भी भारी है।गौरतलब है कि इससे पहले भी सलमान खुर्शीद चुनाव आयोग को हद में रहने कि हिदायत दे चुके हैं।उन्होंने कहा था कि सभी संस्था सरकार के ही निगरानी में चलती हैं और चुनाव आयोग भी कोई अपवाद नहीं है।माना कि सभी संस्था सरकार के ही मातहत काम करती हैं लेकिन अगर एक कानून मंत्री खुलेआम किसी संवैधानिक संस्था को चुनौती दे डाले तब तो संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता खतरे में आ जाएगी।
चुनाव आयोग को कानून मंत्री पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए थी ताकि फिर कभी कोई मंत्री किसी संवैधानिक संस्था की स्वायत्तता को चोट न पहुँचाए।लेकिन चुनाव आयोग का ढीला रवैया देखकर तो लगता है कि संवैधानिक संस्थाओं का वजूद ही खतरे में है।आखिर कहाँ गुम हो गया वो चुनाव आयोग जो कभी टी. एन. शेषन के वक्त हुआ करता था?आज संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता खतरे में है और आज देश को दूसरे टी.एन. शेषन की जरूरत है, जोकि संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता बरकरार रख सके।
राहुल गाँधी हर जगह संवैधानिक लोकपाल का ढोल पीटते चलते हैं।जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि उनका यह विचार तो अच्छा है पर कानून मंत्री का रवैया देखकर तो आपका यह विचार हास्यास्पद लगता है।आज आपके कानून मंत्री ने चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था को चुनौती दे डाली, कल को आपका कोई मंत्री संवैधानिक लोकपाल को भी चुनौती दे डालेगा।राहुल जी! पहले यह तो सुनिश्चित कर लीजिए कि आपके कानून मंत्री संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता के बारे में जानते भी हैं या नहीं, वरना आपका यह विचार व्यर्थ है।
इस गंभीर मुद्दे पर आखिर कांग्रेस के दो 'स्टार प्रवक्ता', दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल कहाँ चुप रहने वाले थे।दिग्विजय सिंह ने कहा कि सलमान खुर्शीद ने कुछ गलत नहीं कहा बल्कि उन्होंने वही कहा जो कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा है, कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में भी मुस्लिम आरक्षण वाली बात लिखी है।माना कि कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम आरक्षण वाली बात लिखी है लेकिन जब सलमान खुर्शीद को चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में फटकार लगाई गई उसके बाद तो उन्हें वह बात नहीं दोहरानी चाहिए थी।जिस तरह से सलमान खुर्शीद ने पूरे आत्मविश्वास के साथ खुलेआम धर्म-आधारित गंदी राजनीति के तहत चुनाव आयोग को चुनौती दे डाली, क्या वह भी कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा है?क्या वह भी कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में लिखा है?कपिल सिब्बल ने कहा कि खुर्शीद ने जो भी बोला है वो सोच-समझकर बोला है।जी हाँ, बिल्कुल ठीक कहा आपने सिब्बल जी।कौन सा मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र है, कहाँ जाकर धर्म-आधारित गंदी राजनीति के तहत मुस्लिमों को आरक्षण का लालच देकर उनका वोट लूटना है?यह सब कोई बिना सोचे-समझे कैसे कर सकता है!
कांग्रेस पार्टी शुरू से ही खुद को कानून मंत्री के बयानों से अलग करती नजर आई।जब खुर्शीद ने अपनी पत्नी की चुनावी रैली में मुस्लिम आरक्षण की बात कही थी तब कांग्रेस ने कहा था कि आरक्षण का वादा उनकी निजी राय है न कि पार्टी की।वाह! बहुत खूब।आपका कानून मंत्री मुस्लिमों को 9% सब-कोटा देने की बात कर रहा है और आप कहते हैं कि यह उनकी निजी राय है।किसी खास धर्म को आरक्षण देने ऐसा बड़ा फैसला क्या निजी हो सकता है?क्या कानून मंत्री मुस्लिमों को निजी तौर पर आरक्षण देंगे?कांग्रेस अपने इस बयान से क्या साबित करना चाहती है ?यही कि देश कानून मंत्री की निजी संपत्ति है और वह जिसे चाहे उसे निजी तौर पर आरक्षण दे देंगे?कांग्रेस के गैरजिम्मेदाराना बयान से तो ऐसा ही लगता है।इस बार भी जब चुनाव आयोग ने खुर्शीद की शिकायत करते हुए राष्ट्रपति को पत्र लिखा(जोकि राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्रवाई के लिए भेज दिया), तब कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जनार्दन द्विवेदी और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सलमान खुर्शीद ने ठीक नहीं किया।उन्होंने यह भी कहा कि जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्तियों को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।यह बात आपलोग किसे सुना रहे हैं? अगर देश की जनता को सुना रहे हैं तो पहले जाकर अपने कानून मंत्री को समझाईए जो चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के दोषी पाए जाने के बावजूद भी अफसोस जाहिर करने के बजाए कानून को ही चुनौती दे रहे हैं।कांग्रेस ने भी क्या चुनावी दाँव खेला है!बहुत खूब।एक तरफ तो सलमान खुर्शीद के माध्यम से मुस्लिमों को 9% सब-कोटा देने का वादा कर एक गंदी राजनीतिक दाँव खेली है और फिर इस मामले से पार्टी को अलग करके देश को बेवकूफ़ बना रहे हैं।
अंततः सलमान खुर्शीद ने चुनाव आयोग से माफी माँग ली है।उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले पर उन्हें अफसोस है और भविष्य में वह ऐसा नहीं करेंगे।उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग के फैसलों की अवहेलना करना उनका मकसद नहीं था और वह चुनाव आयोग के फैसलों का सम्मान करते हैं।वाह! खुर्शीद साहब सम्मान देने का आपका क्या तरीका है!भरी सभा में चुनाव आयोग को ललकारते हैं और फिर कहते हैं कि चुनाव आयोग का सम्मान करते हैं।जब एक बार आपको चुनाव आयोग ने चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में फटकार लगाई उसके बाद आपने फिर वही गंदी राजनीतिक दाँव चली, उस वक्त आपका यह सम्मान कहाँ था।माना कि एक बार आपसे गलती हो गई लेकिन फिर दोबारा जानबूझकर वही बातें दोहराना तो गलती नहीं समझी जाएगी।आपने माफी माँगी क्योंकि आपने सोचा होगा कि मुस्लिम आरक्षण का दाँव तो आप दो मर्तबा चल ही चुके हैं, मुस्लिमों को दो चुनावी सभाओं में बेवकूफ़ बना ही चुके हैं इसलिए अब माफी माँगने में क्या हर्ज है।आपने चुनाव आयोग से माफी तो माँगी एक पत्र लिखकर लेकिन चुनाव आयोग की खिल्ली उड़ाई थी भरी रैली में।अगर सचमुच आपको अपने बयानों पर अफसोस है तो फिर से किसी चुनावी रैली में जनता के सामने चुनाव आयोग से माफी मांगिए।जिस तरह से आपने जनता के सामने खुलेआम एक गंदी राजनीति के तहत चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था की स्वायत्तता को चोट पहुँचाई थी, उसी तरह जनता के सामने कहिए कि आप और आपके बयान गलत थे और चुनाव आयोग सही था।जनता के सामने कहिए कि आप चुनाव आयोग का सम्मान करते हैं और भविष्य में चुनाव आयोग के निर्देशों की अवहेलना नहीं करेंगे।मैं यह सब कानून मंत्री को अपमानित करने के लिए नहीं कह रहा हूँ बल्कि इसलिए कह रहा हूँ कि अगर सचमुच उन्हें अपनी गलती का अहसास है तो उन्हें अपनी गलती जनता के सामने स्वीकारनी चाहिए।यह पूरा मामला उन्होंने जनता के सामने शुरू किया था तो इसे खत्म करने की पहल भी वो जनता के सामने ही करें।अगर वो जनता के सामने चुनाव आयोग की खुलेआम खिल्ली उड़ा सकते हैं तो उसी जनता के सामने अपनी गलती क्यों नहीं मान सकते?
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ।जी हाँ, मैं कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की ही बात कर रहा हूँ।एक तो पहले ही वह मुस्लिमों को ओबीसी के 27% कोटे के तहत 9% सब-कोटा देने का वादा कर चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के दोषी पाए गए थे, जो कि किसी भी कानून मंत्री के लिए शर्म की बात है।उसके बाद अपने उस बयान पर अफसोस जताने के बजाए आज़मगढ़ में एक चुनावी रैली के दौरान उन्होंने फिर से अपना वही वादा दोहरा दिया।इस बार तो उन्होंने हद ही कर दी।इस बार उन्होंने एक कदम आगे बढ़ते हुए चुनाव आयोग को खुली चुनौती दे डाली।उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग चाहे उन्हें फाँसी पर लटका दे पर वह मुस्लिमों को उनका हक दिला कर रहेंगे।शायद कानून मंत्री भूल गए थे कि चुनाव आयोग ने उन पर शौक से कार्रवाई नहीं की थी, बल्कि वो चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के दोषी पाए गए थे।फिर भी अफसोस जाहिर करने के बजाए कानून मंत्री एक गंदी राजनीति के तहत मुस्लिमों का वोट लेने के लिए चुनाव आयोग को ही चुनौती दे बैठे।यह देश में पहला मौका है जब कोई कानून मंत्री ही कानून पर लात मार रहा है, कानून को चुनौती दे रहा है।कानून मंत्री के मुँह से ऐसी बातें बिल्कुल ही अशोभनीय हैं।वह कानून मंत्री हैं तो क्या हुआ।क्या वह कानून से ऊपर हैं?
खैर, मंत्रीजी के बयानों को देखते हुए, एक बात तो देखने को मिली कि आज अपने देश में जातिवाद और धर्म-आधारित गंदी राजनीति चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था पर भी भारी है।गौरतलब है कि इससे पहले भी सलमान खुर्शीद चुनाव आयोग को हद में रहने कि हिदायत दे चुके हैं।उन्होंने कहा था कि सभी संस्था सरकार के ही निगरानी में चलती हैं और चुनाव आयोग भी कोई अपवाद नहीं है।माना कि सभी संस्था सरकार के ही मातहत काम करती हैं लेकिन अगर एक कानून मंत्री खुलेआम किसी संवैधानिक संस्था को चुनौती दे डाले तब तो संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता खतरे में आ जाएगी।
चुनाव आयोग को कानून मंत्री पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए थी ताकि फिर कभी कोई मंत्री किसी संवैधानिक संस्था की स्वायत्तता को चोट न पहुँचाए।लेकिन चुनाव आयोग का ढीला रवैया देखकर तो लगता है कि संवैधानिक संस्थाओं का वजूद ही खतरे में है।आखिर कहाँ गुम हो गया वो चुनाव आयोग जो कभी टी. एन. शेषन के वक्त हुआ करता था?आज संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता खतरे में है और आज देश को दूसरे टी.एन. शेषन की जरूरत है, जोकि संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता बरकरार रख सके।
राहुल गाँधी हर जगह संवैधानिक लोकपाल का ढोल पीटते चलते हैं।जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि उनका यह विचार तो अच्छा है पर कानून मंत्री का रवैया देखकर तो आपका यह विचार हास्यास्पद लगता है।आज आपके कानून मंत्री ने चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था को चुनौती दे डाली, कल को आपका कोई मंत्री संवैधानिक लोकपाल को भी चुनौती दे डालेगा।राहुल जी! पहले यह तो सुनिश्चित कर लीजिए कि आपके कानून मंत्री संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता के बारे में जानते भी हैं या नहीं, वरना आपका यह विचार व्यर्थ है।
इस गंभीर मुद्दे पर आखिर कांग्रेस के दो 'स्टार प्रवक्ता', दिग्विजय सिंह और कपिल सिब्बल कहाँ चुप रहने वाले थे।दिग्विजय सिंह ने कहा कि सलमान खुर्शीद ने कुछ गलत नहीं कहा बल्कि उन्होंने वही कहा जो कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा है, कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में भी मुस्लिम आरक्षण वाली बात लिखी है।माना कि कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम आरक्षण वाली बात लिखी है लेकिन जब सलमान खुर्शीद को चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में फटकार लगाई गई उसके बाद तो उन्हें वह बात नहीं दोहरानी चाहिए थी।जिस तरह से सलमान खुर्शीद ने पूरे आत्मविश्वास के साथ खुलेआम धर्म-आधारित गंदी राजनीति के तहत चुनाव आयोग को चुनौती दे डाली, क्या वह भी कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा है?क्या वह भी कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र में लिखा है?कपिल सिब्बल ने कहा कि खुर्शीद ने जो भी बोला है वो सोच-समझकर बोला है।जी हाँ, बिल्कुल ठीक कहा आपने सिब्बल जी।कौन सा मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र है, कहाँ जाकर धर्म-आधारित गंदी राजनीति के तहत मुस्लिमों को आरक्षण का लालच देकर उनका वोट लूटना है?यह सब कोई बिना सोचे-समझे कैसे कर सकता है!
कांग्रेस पार्टी शुरू से ही खुद को कानून मंत्री के बयानों से अलग करती नजर आई।जब खुर्शीद ने अपनी पत्नी की चुनावी रैली में मुस्लिम आरक्षण की बात कही थी तब कांग्रेस ने कहा था कि आरक्षण का वादा उनकी निजी राय है न कि पार्टी की।वाह! बहुत खूब।आपका कानून मंत्री मुस्लिमों को 9% सब-कोटा देने की बात कर रहा है और आप कहते हैं कि यह उनकी निजी राय है।किसी खास धर्म को आरक्षण देने ऐसा बड़ा फैसला क्या निजी हो सकता है?क्या कानून मंत्री मुस्लिमों को निजी तौर पर आरक्षण देंगे?कांग्रेस अपने इस बयान से क्या साबित करना चाहती है ?यही कि देश कानून मंत्री की निजी संपत्ति है और वह जिसे चाहे उसे निजी तौर पर आरक्षण दे देंगे?कांग्रेस के गैरजिम्मेदाराना बयान से तो ऐसा ही लगता है।इस बार भी जब चुनाव आयोग ने खुर्शीद की शिकायत करते हुए राष्ट्रपति को पत्र लिखा(जोकि राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्रवाई के लिए भेज दिया), तब कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जनार्दन द्विवेदी और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सलमान खुर्शीद ने ठीक नहीं किया।उन्होंने यह भी कहा कि जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्तियों को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।यह बात आपलोग किसे सुना रहे हैं? अगर देश की जनता को सुना रहे हैं तो पहले जाकर अपने कानून मंत्री को समझाईए जो चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के दोषी पाए जाने के बावजूद भी अफसोस जाहिर करने के बजाए कानून को ही चुनौती दे रहे हैं।कांग्रेस ने भी क्या चुनावी दाँव खेला है!बहुत खूब।एक तरफ तो सलमान खुर्शीद के माध्यम से मुस्लिमों को 9% सब-कोटा देने का वादा कर एक गंदी राजनीतिक दाँव खेली है और फिर इस मामले से पार्टी को अलग करके देश को बेवकूफ़ बना रहे हैं।
अंततः सलमान खुर्शीद ने चुनाव आयोग से माफी माँग ली है।उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले पर उन्हें अफसोस है और भविष्य में वह ऐसा नहीं करेंगे।उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग के फैसलों की अवहेलना करना उनका मकसद नहीं था और वह चुनाव आयोग के फैसलों का सम्मान करते हैं।वाह! खुर्शीद साहब सम्मान देने का आपका क्या तरीका है!भरी सभा में चुनाव आयोग को ललकारते हैं और फिर कहते हैं कि चुनाव आयोग का सम्मान करते हैं।जब एक बार आपको चुनाव आयोग ने चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में फटकार लगाई उसके बाद आपने फिर वही गंदी राजनीतिक दाँव चली, उस वक्त आपका यह सम्मान कहाँ था।माना कि एक बार आपसे गलती हो गई लेकिन फिर दोबारा जानबूझकर वही बातें दोहराना तो गलती नहीं समझी जाएगी।आपने माफी माँगी क्योंकि आपने सोचा होगा कि मुस्लिम आरक्षण का दाँव तो आप दो मर्तबा चल ही चुके हैं, मुस्लिमों को दो चुनावी सभाओं में बेवकूफ़ बना ही चुके हैं इसलिए अब माफी माँगने में क्या हर्ज है।आपने चुनाव आयोग से माफी तो माँगी एक पत्र लिखकर लेकिन चुनाव आयोग की खिल्ली उड़ाई थी भरी रैली में।अगर सचमुच आपको अपने बयानों पर अफसोस है तो फिर से किसी चुनावी रैली में जनता के सामने चुनाव आयोग से माफी मांगिए।जिस तरह से आपने जनता के सामने खुलेआम एक गंदी राजनीति के तहत चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक संस्था की स्वायत्तता को चोट पहुँचाई थी, उसी तरह जनता के सामने कहिए कि आप और आपके बयान गलत थे और चुनाव आयोग सही था।जनता के सामने कहिए कि आप चुनाव आयोग का सम्मान करते हैं और भविष्य में चुनाव आयोग के निर्देशों की अवहेलना नहीं करेंगे।मैं यह सब कानून मंत्री को अपमानित करने के लिए नहीं कह रहा हूँ बल्कि इसलिए कह रहा हूँ कि अगर सचमुच उन्हें अपनी गलती का अहसास है तो उन्हें अपनी गलती जनता के सामने स्वीकारनी चाहिए।यह पूरा मामला उन्होंने जनता के सामने शुरू किया था तो इसे खत्म करने की पहल भी वो जनता के सामने ही करें।अगर वो जनता के सामने चुनाव आयोग की खुलेआम खिल्ली उड़ा सकते हैं तो उसी जनता के सामने अपनी गलती क्यों नहीं मान सकते?
1 comment:
kINTU YEH BHI VICHARNIA HAI KI AAYOG NE BHI RASTRAPATI KO SHIKAYAT KI, COURT KO NAHI, POLICE ME BHI fir DARJ NAHI KARAIE.
KYA ANYA KISI PARTY KE DWARA YEH KIYA JATA TO AAYOG KA KYA RUKH HOTA?dIGGI TO VAISE BHI BESHARANM HAI,AUR SIBBAL,dIWEDI YA ANYA KOE SAB EK JAISE HI HAE.
YAHAN TAK PRIYANKA GANDHI TAK ES BAT KA SAMARTHAN KAR RAHI HAI,PM AUR SONIA CHUP HE,TO ANDAJ LAGAYA JA SAKTA HE KI SALMAN KHURSHEED PAR PARTY KA PURA HATH HE.
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