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13.12.12

अफजल...खुश तो बहुत होगा आज !


13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद पर बेखौफ आतंकी हमला करते हैं...और लोकतंत्र के मंदिर में खून की होली खेलते हैं। हमले का मुख्य आरोपी अफजल गुरु कानून के शिकंजे में भी आ जाता है...और घटना के 4 साल बाद 2005 में देश का सर्वोच्च न्यायालय मुख्य आरोपी अफजल गुरु की फांसी पर मुहर भी लगा देता है...लेकिन इसके बाद भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वाले को फांसी नहीं दी जाती है। अफजल की फांसी पर मुहर लगने के बाद सात साल में सरकार अफजल की फांसी पर कोई फैसला नहीं ले पाती है। सात साल से अफजल की फाइल दिल्ली सरकार, गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन के बीच झूल रही है। फांसी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद 2005 से 2012 तक के सात साल अपने आप में कई सवाल खड़े करते हैं कि आखिर क्यों अफजल गुरु की फांसी पर सरकार और राष्ट्रपति भवन कोई फैसला क्यों नहीं ले पाया। दिल्ली में पिछले 14 सालों से कांग्रेस की सरकार है तो केन्द्र की सत्ता 2004 के बाद से कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के पास है तो वहीं राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहले प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और अब प्रणव मुखर्जी आसीन है...लेकिन अफजल की फांसी की फांस को खत्म करने के लिए किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। ये हाल उस अफजल का है जो संसद पर हमले का आरोपी है और इसी संसद में सारे मंत्री और सांसद बैठते हैं तो इसके बाजू में राष्ट्रपति भवन है। फांसी पर मुहर लगने के सात साल बाद भी अफजल फांसी न हुई न सही...देशवासियों को उम्मीद है कि देर सबेर अफजल का किस्सा जरूर खत्म होगा...लेकिन 11वीं बरसी पर जब संसद पर हमले में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी और शहीदों के परिजन उन्हें याद कर आंसू बहा रहे थे तो ऐसे में एक केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ये बयान देते हैं कि अफजल को फांसी की बजाए उम्रकैद हो तो सोचिए क्या गुजरी होगी उन लोगों पर जिन्होंने अपनों को इस हमले में खोया है। बेनी बाबू शहीदों के परिजनों का दर्द न बांट सको कोई बात नहीं कम से कम उनके जख्मों में नमक तो मत छिड़को...ये बात शायद आप भूल गए कि ये वही अफजल है जिसने उस संसद में अपने साथियों के साथ हमला किया था जहां आप जैसे महानुभाव (जिन्हें जनता जाने क्यों चुन लेती है) बैठते हैं। खैर आप ये दर्द समझते तो ऐसा बयान नहीं देते...वो भी संसद पर हमले के आरोपी पर क्योंकि जो लोग शहीद हुए उनमें आपका कोई अपना नहीं था न। वैसे भी आप को आदत है विवादों में रहने की...महंगाई बढ़ती है तो आप खुश होते हैं...सलमान खुर्शीद 71 लाख का घालमेल करते हैं...तो आप कहते हैं कि 71 लाख का घालमेल कोई बड़ी बात नहीं...यहां तक तो ठीक था...लेकिन आपने तो हद ही कर दी 11वीं बरसी पर आप अफजल की फांसी पर सवाल खड़ा कर देते हैं। बेनी बाबू आपके इस बयान से देश की जनता तो नहीं लेकिन अफजल गुरु जरूर बहुत खुश होगा। अब ये आपका बड़बोलापन था या आपके बहाने कांग्रेस का ये शिगूफा छोड़ने की कोशिश कि अफजल के मामले में सरकार का रूख नरम है और इस बहाने जनता का मिजाज भांप लिया जाए और अल्पसंख्यक वोटों को साध लिया जाए तो ये आपकी और आपकी पार्टी की बड़ी भूल होगी...क्योंकि हिंदुस्तान की जनता चाहे वो किसी भी जाति या समुदाय से हो भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी आपकी सरकार और नेताओं को तो एक बार को माफ कर दे लेकिन देश की संप्रभुता पर हमला करने वाले अफजल जैसे आतंकी और इनकी पैरवी करने वाले आप जैसे नेताओं को कभी माफ नहीं करेगी। उम्मीद करते हैं कि अफजल के मामले में सरकार नींद से जागेगी और देश की संप्रभुता पर चोट करने वाले को उसके अंजाम तक पहुंचाने में अब औऱ देर नहीं करेगी...और सही मायने में यही संसद हमले में शहीद हुए जांबाजों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। सभी शहीदों को 11वीं बरसी पर मेरा नमन औऱ विनम्र श्रद्धांजलि।

deepaktiwari555@gmail.com

1 comment:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अफजल गुरू को जल्द से जल्द फांसी होनी चाहिए,,

आप फालोवर बने तो हार्दिक खुशी होगी,,,,


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