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4.2.13

धर्म विहीन होने से

धर्म विहीन होने से , चलिए मान लेते हैं , हम अनैतिक हो जायेंगे | लेकिन यह भी तो देखें कि आज ही नैतिकता कितने पानी में है ? फिर इतने सारे भगवानों और धर्मो का अतिरिक्त बोझ क्यों  ढोयें ? सीधे सीधे नैतिक या अनैतिक ही न हो लें ?

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