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12.2.13


ऐसा कुछ करें कि फिर लहराये गंगा जमुनी तहजीब की पताका
धीरे धीरे अब शहर का माहौल सुधरते जा रहा हैं। फिजां में अमन चैन एक बार फिर से दिखने लगा हैं। उम्मीद की जा रही हैं कि जल्दी ही लोगों को कर्फ्यू से निजात मिल जायेगी। 
बीते दिनों ग्राम छपारा में एक अर्ध विक्षिप्त अनुसूचित जाति के युवक के साथ घटित घृणित घटना प्रकाश में आयी थी। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद तत्काल ही समुचित धाराओं के तहत आरोपियों को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश कर दिया गया था। कोर्ट ने 15 दिन के रिमांड़ पर उन्हें जेल भी भेज दिया था।
छपारा में एक अनुसूचित जाति के युवक के साथ जो कुछ घटा उसकी जितनी भी निंदा की जाये वह कम हैं। समाज के पिछड़े तबके के एक युवक के साथ ऐसा होना हमें किसी बर्बर युग की याद दिला देता हैं। 
इस घटना को लेकर विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने 6 फरवरी को छपारा और सिवनी में बंद का आव्हान कर दिया। किसी भी घटना के विरोध में जब कोई आंदोलन किया जाता हैं तो यहीं मांग ज्ञापन में की जाती है कि दोषियों तो तत्काल गिरफ्तार करो और उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही करो।
सामान्य तौर पर यह धारणा है कि विहिप और बजरंग दल प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भाजपा के हमसफर ही हैं। फिर एक ऐसी घटना , जिसमें दोषियों के खिलाफ कार्यवाही हो चुकी थी, के खिलाफ बंद का आयोजन करने वालों को सत्ता दल के स्थानीय नेता,जन प्रतिनिधि या प्रशासनिक प्रमुख यह बात क्यों नहीं समझा पाये कि इस बंद का अब कोई औचित्य नहीं हैं? 
दिनांक 5 फरवरी की रात को इस बंद की घोषणा कर दी गयी थी। उसके बाद 6 फरवरी को शहर में जो कुछ हुआ उसने कई सवाल पैदा कर दिये हैं। प्रतिबंधात्मक कार्यवाही के रूप में दोनों ही पक्षों के निगरानी शुदा लोगों को हिरासत में क्यों नहीं लिया गया? मामले की संवेदनशीलता को देखते हुये 5 फरवरी की रात को ही अतिरिक्त पुलिस बल क्यों नहीं बुलाया गया? दिनांक 6 फरवरी को सुबह से ही प्रतिबंधात्क धारा 144 क्यों नहीं लगायी गयी? दोपहर लगभग 3 बजेे धारा 144 लगने के बाद भी दोनों ही पक्षों के बड़े बड़े समूह क्यों एकत्रित होने दिये गये? सापं्रदायिक सदभाव से जुड़े इस मामले में धार्मिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं सुनिश्चित की गयी? जिसके कारण ही 7 फरवरी की रात तक हालात ऐसे बिगड़ गये कि शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। सामाजिक और घार्मिक क्षेत्रों में काम करने वाले संगठनों ने अमन चैन लाने के प्रयास क्यों नहीं किये? या प्रशासन द्वारा उनकी सेवायें लेने में परहेज किया गया?
शहर में कर्फ्यू भी लगा तो ऐसा कि ना तो 8 फरवरी को लोगों को अखबार पढ़ने को मिले और ना ही पानी तथा दूध आदि अति आवश्यक चीजें ही लोगों को मिल पायीं। प्रेस को भी मात्र दो घंटे के लिये ही पास जारी किये गये। जिससे अखबार छपने और बंटने के काम में भी व्यवधान पैदा हो गया। जिले का नेतृत्व और हमारे सभी राजनैतिक दलों के जनप्रतिनिधि भी इस सारे मामले में ना जाने क्यों मूक दर्शक ही बने रहे। 
कभी हमारा जिला समूचे प्रदेश में गंगा जमुनी तहजीब के लिये मशहूर था। सन साठ के दशक में जब जबलपुर में ऊषा भार्गव कांड़ हुआ था और प्रदेश के कई जिले सांप्रदायिक आग की लपेट में आ गये थे तक हमारा सिवनी जिला शांति के टापू के रूप में पूरे प्रदेश में चिन्हित हुआ था। फिर ना जाने अगले दस सालों में क्या हो गया कि हर 21 सालों में सिवनी ऐसे कर्फ्यू की चपेट में आ जाता है जैसे कि हर 14 साल में कुंभ का मेला भरता हो। सबसे पहला सांप्रदायिक दंगा 22 नवम्बर 1971 को हुआ था जब शहर में पहली बार कर्फ्यू लगा था। इसके बाद 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में ढहाये गये विवादित ढांचे के कारण शहर जो कर्फ्यू की चपेट में आया तो उसका दंश लोगों को 19 दिनों तक भोगना पड़ा था। इसके 21 साल बाद ही फिर 7 फरवरी 2013 को छपारा की एक अमानवीय घटना के कारण शहर में कर्फ्यू लगा जो अभी भी रात में लागू हैं। आज अब आवश्यक्ता इस बात की है कि सभी राजनैतिक दल,प्रशानिक अधिकारी,जनप्रतिनिधि,सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र का नेतृत्व वाले और अमन चैन पसंद सभी नागरिक मिल जुल कर ऐसा कुछ करें कि भविष्य में ऐसा बदनुमा दाग हमारे माथे पर कभी ना लगे और एक बार फिर हमारे जिले की गंगा जमुनी संस्कृति की पताका पूरे प्रदेश में फहर सके।

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