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5.2.13

टोडरिया का जाना जैसे एक स्तंभ का ढहना



बहुत ज्यादा तो नहीं, लेकिन कम से कम सात साल उनके साथ काम करने का अवसर मिला। यह तब की बात है जब वे अमर उजाला हिमाचल के प्रदेश प्रभारी थे। वे शिमला में बैठते थे और मैं उन दिनों शिमला के दूर दराज के इलाके रोहड़ू में। वही रोहडू़ जहां से इससे पहले हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह चुनाव लड़ा करते। इस लिहाज से रोहड़ू प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र होता था। तब हमने देखा कि खबरों को किस तरह से सिर्फ शब्दजाल से रोचक बनाया जा सकता है। उनकी खबर लिखने की शैली बिरली थी। वे घटना का इतना सजीव वर्णन करते कि पाठक को लगता जैसे वह स्वयं ही घटना को अपनी आखों के सामने होता देख रहा हो। यही शैली हिमाचल के पाठकों को पसंद आई। जब आदरणीय दिनेश जुयाल ने मुझे रामपुर बुशहर पटका तो रोहडू, के साथ रामपुर और पूरा किन्नौर भी मेरे हिस्से आ गया। कुछ हिस्सा कुल्लू का भी अपने दायित्व क्षेत्र में आया। एक दिन श्री टोडरिया का पत्र प्राप्त हुआ। लिखा था पूरे हिमाचल की खबरें शिमला के माध्यम से जाती हैं सिर्फ रामपुर की खबरें सीधे चंडीगढ़ जाती है। इसलिए नई व्यवस्था के तहत अब रामपुर की खबरें भी शिमला के माध्यम से ही जाएगी। उन्होंने पहली फाइल की समय सीमा दोपहर बाद एक बजकर 55 मिनट रखी। मुझे कोर्ट केस के सिलसिले में सुदंरनगर जाना था सो कार्यालय की जिम्मेदारी रामप्रसाद मरालू को सौंप दी। अगले दिन में मंडी कोर्ट से निपट कर मंडी कार्यालय में पहुंचा तो रामप्रसाद का एक पत्र फैक्स किया। पत्र में लिखा था आपकी फाईल पिछले निर्देश के बावजूद पूरे पांच मिनट देरी से दोपहर बाद दो बजे पहुंची है। भविष्य में ख्याल रखें। इस पत्र से साफ हो गया कि टोडरिया जी समय के कितने पाबंद थे। हिमाचल में अमर उजाला की यात्रा के दौरान उनसे न जाने क्यों मधुर संबंध नहीं बन सके। मैंने अमर उजाला से संबंध तोड़ दिए उधर कुछ दिन बाद टोडरिया जी ने भी अमर उजाला से संबंध तोड़ कर दैनिक भास्कर के साथ नई पारी शुरू की। एक दिन भाई राकेश खंडूड़ी जी का संदेश मिला कि टोडरिया जी मुझसे मिलना चाहते हैं। मैं मिला तो उन्होंने कहा ...पिछली बातों को भूल जाओ और अब मैं तुम्हें तुम्हारे तेवरों का शहर देना चाहता हूं। सोलन!... मैंने कहा ठीक है, हम दोनों एक बार फिर एक साथ नई पारी शुरू करने को मैदान में उतर गए। खूब मजे आए काम करने के उनके साथ, लेकिन अच्छी खबर पर उनके एसएमएस दिल को बड़ी तसल्ली देते। लगता इतना बड़ा पत्रकार हमारी खबर को सराह रहा है। लेकिन जब वे किसी गलत खबर पर फटकारते तो घिग्घी बंध जाती, कुछ समय बाद वे भास्कर को अलविदा कह कर देहरादून चले आए और फिर उनका सानिध्य प्राप्त नहीं हुआ। आज सुबह उनके देहावसान की खबर भाई मदन लखेड़ा के माध्यम से मिली तो विश्वास ही नहीं हुआ। लगा जैसे पत्रकारिता का एक बड़ा स्तंभ अचानक ढह गया हो। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
                                                                                                                                  तेजपाल नेगी
                                                                                                                                  समाचार संपादक
                                                                                                                                    उत्तरांचल दीप


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