उत्तर प्रदेश 20 साल में भी गुजरात नहीं बन सकता - नरेन्द्र मोदी, गोरखपुर (23-01-2014)
वास्तव में उत्तर प्रदेश गुजरात तो क्या, महाराष्ट्र, तमिल नाडू, आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश आदि भी नहीं बन सकता !
मोदी ने आज गोरखपुर रैली में जो कहा और जो उनका आशय था वह वाकई में काबिले - गौर था । मुलायम और मुलायम के जवाबी कीर्तन में उलझे बिना जो पहलू मेरे जेहन में घूम गया उसमें मेरे हाई स्कूल काल से आज तक की तस्वीर में कोई खास अन्तर नहीं नजर आता ।
बताते चलूं कि जब देश मंडल - कमंडल की आग में जल रहा था लगभग उसी समय के आस - पास मैं हाई - स्कूल का अभ्यर्थी था । मेरे आस - पास बहुत कम ही सहपाठी इस ’लफड़े’ में पड़ कर अपना समय खराब करना चाहते थे । @ abhigyan gurha जैसे कुछ बिरले ही थे जिन्होने ने अपनी ’कारस्तानियों’ से मेरा घ्यान अपनी ओर खींचा । या यह भी हो सकता है कि ’मेरे स्कूल’ में यह आन्दोलन ज्यादा ठीक से चल न पाया हो या न चलने दिया गया हो ।
खैर, जो भी हो । एक विचार जो मुझे याद आ रहा है वो यह था कि हमें IIT - JEE, CBSE, CPMT आदि की प्रतियोगिता में सफल होकर ’बाहर’ निकलना है । ’बाहर’ से ज्यादातर का मतलब देश के बाहर होता था । हमें इस मंडल - कमंडल के चक्कर में नहीं पड़ना है । और अपना कैरियर बनाना है । और करियर उत्तर प्रदेश में तो नहीं बनता है । कमोवेश, यह विचार मेरे सहपाथियों से कहीं ज्यादा उनके अभिभावकों में भी प्रबल था ।
आज, जब देखता हूँ तो पाता हूं तो वाकई कई सहपाठी अपने उपक्रम में सफल हुए । जो भारत के भारत बाहर नहीं जा सके या नहीं गये उन्होनें भारत के ही ज्यादा विकासित बड़े शहरों (दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, हैदराबाद आदि) में अपना ठिया जमाया । और अपने करियर में कामयाबी हासिल की ।
उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय में भी मिले बहुतायत सहपाठियों के लिये उत्तर प्रदेश में कोई लक्ष्य नहीं था । कई तो छोटी- बड़ी पढ़ाई के लिये भी उत्तर प्रदेश से बाहर गये । और कालान्तर में लौट कर नहीं आये । पंकज उद्धास का गीत "चिठ्ठी आई है - आई है" कई बार सुना पर वास्तव जीवन में इसका कोई प्रभाव यदा - कदा ही दीखता है ।
आज लगभग दो दशक के बाद भी हालात में कोई खास परिवर्तन नहीं हैं । न तो उत्तर प्रदेश Education Destination है, न Business Destination, और न ही Investment Destination. आज भी कोई अभिभावक अपने पाल्यों के लिये जब बेहतरी की कामना करतें हैं तो उत्तर - प्रदेश शायद ही उनके विचारों में होता है । यहाँ तक कि प्रदेश के UP-Board के स्कूलों की संख्या लगातार घट रही है । कई स्कूल यू.पी. बोर्ड की मान्यता त्याग कर CBSE की मान्यता ले रहे हैं । एक - आध उदाहरण उत्तर प्रदेश सरकार से UP - Board के स्कूल के लिये मिलने वाली grant-in-aid को त्याग कर भी CBSE से जुड़ने के मिल जायेंगे । मुलायम सिंह यादव के पाल्य और मौजूदा मुख्यमन्त्री अखिलेश भी आस्ट्रेलिया से एम.बी.ए. कर के आये हैं । अब, करियर के रूप में तैयार राजनैतिक जमींन पर खेती कर रहे हैं ।
हाल - फिलहाल भी कई नौनिहालों को अपने लक्ष्यों की खोज और प्राप्ति में प्रदेश से बाहर जाते देखा है । यहां तक कि जिनके पास अपने स्थापित व्यापार हैं वो भी प्रदेश की सीमा से बाहर ही नयीं जमीन तलाश रहे हैं । जो ज्यादा सक्षम हैं वो अपने व्यापार को प्रदेश से बाहर ले जाने को अकुला रहे हैं ।
भारतीय अर्थशास्त्र में BI-MA-R-U राज्यों की अवधारणा है । जिसमें Bihar, Madhya - Pradesh, Rajasthan और Uttar Pradesh को शामिल किया गया है । ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है और अपने नाम के अनुरूप यह राज्य आर्थिक रूप से बीमार माने जाते हैं । प्रतिभा पलायन की बात करना बहुत बेमानी लगती है जब की सच्चाई के धरातल पर राज्य के नीति - निर्माताओं के पास जातीय - समीकरणों का तो सटीक आंकड़ा है । पर आर्थिक दर्शन के नाम पर सन्नाटा पसरा है । चुनावी नारों और वादों से पेट नहीं भरता ।
तो अगर कोई राज ठाकरे महाराष्ट्र में हमें हेय दृष्टि से देखता है तो उसे बुरा कहने से पहले अपने अन्दर भी झांक कर देखना चाहिये कि क्या कमी रह गयी कि वहां पिट कर भी हमारे लोग वापस नहीं आना चाहते हैं । आशय यह कि Blue Collored और White Collored दोनों प्रकार के आर्थिक सम्भावनाएं उपलब्ध कराने में यह राज्य विफल रहा है । और ’स्वदेस’ भी शाहरुख खान सिर्फ फिल्मों में रचते हैं वो भी अपने मेहताना प्राप्त करने के लिये ।
(नोट : इस विचार के कोई राजनैतिक अर्थ न निकाले जाये । यह विशुद्ध आर्थिक विचार है । यह विचार किसी भी राजनैतिक विचार - धारा का समर्थन और विरोध नहीं करता ।)
वास्तव में उत्तर प्रदेश गुजरात तो क्या, महाराष्ट्र, तमिल नाडू, आन्ध्र प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश आदि भी नहीं बन सकता !
मोदी ने आज गोरखपुर रैली में जो कहा और जो उनका आशय था वह वाकई में काबिले - गौर था । मुलायम और मुलायम के जवाबी कीर्तन में उलझे बिना जो पहलू मेरे जेहन में घूम गया उसमें मेरे हाई स्कूल काल से आज तक की तस्वीर में कोई खास अन्तर नहीं नजर आता ।
बताते चलूं कि जब देश मंडल - कमंडल की आग में जल रहा था लगभग उसी समय के आस - पास मैं हाई - स्कूल का अभ्यर्थी था । मेरे आस - पास बहुत कम ही सहपाठी इस ’लफड़े’ में पड़ कर अपना समय खराब करना चाहते थे । @ abhigyan gurha जैसे कुछ बिरले ही थे जिन्होने ने अपनी ’कारस्तानियों’ से मेरा घ्यान अपनी ओर खींचा । या यह भी हो सकता है कि ’मेरे स्कूल’ में यह आन्दोलन ज्यादा ठीक से चल न पाया हो या न चलने दिया गया हो ।
खैर, जो भी हो । एक विचार जो मुझे याद आ रहा है वो यह था कि हमें IIT - JEE, CBSE, CPMT आदि की प्रतियोगिता में सफल होकर ’बाहर’ निकलना है । ’बाहर’ से ज्यादातर का मतलब देश के बाहर होता था । हमें इस मंडल - कमंडल के चक्कर में नहीं पड़ना है । और अपना कैरियर बनाना है । और करियर उत्तर प्रदेश में तो नहीं बनता है । कमोवेश, यह विचार मेरे सहपाथियों से कहीं ज्यादा उनके अभिभावकों में भी प्रबल था ।
आज, जब देखता हूँ तो पाता हूं तो वाकई कई सहपाठी अपने उपक्रम में सफल हुए । जो भारत के भारत बाहर नहीं जा सके या नहीं गये उन्होनें भारत के ही ज्यादा विकासित बड़े शहरों (दिल्ली, मुम्बई, बंगलौर, हैदराबाद आदि) में अपना ठिया जमाया । और अपने करियर में कामयाबी हासिल की ।
उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय में भी मिले बहुतायत सहपाठियों के लिये उत्तर प्रदेश में कोई लक्ष्य नहीं था । कई तो छोटी- बड़ी पढ़ाई के लिये भी उत्तर प्रदेश से बाहर गये । और कालान्तर में लौट कर नहीं आये । पंकज उद्धास का गीत "चिठ्ठी आई है - आई है" कई बार सुना पर वास्तव जीवन में इसका कोई प्रभाव यदा - कदा ही दीखता है ।
आज लगभग दो दशक के बाद भी हालात में कोई खास परिवर्तन नहीं हैं । न तो उत्तर प्रदेश Education Destination है, न Business Destination, और न ही Investment Destination. आज भी कोई अभिभावक अपने पाल्यों के लिये जब बेहतरी की कामना करतें हैं तो उत्तर - प्रदेश शायद ही उनके विचारों में होता है । यहाँ तक कि प्रदेश के UP-Board के स्कूलों की संख्या लगातार घट रही है । कई स्कूल यू.पी. बोर्ड की मान्यता त्याग कर CBSE की मान्यता ले रहे हैं । एक - आध उदाहरण उत्तर प्रदेश सरकार से UP - Board के स्कूल के लिये मिलने वाली grant-in-aid को त्याग कर भी CBSE से जुड़ने के मिल जायेंगे । मुलायम सिंह यादव के पाल्य और मौजूदा मुख्यमन्त्री अखिलेश भी आस्ट्रेलिया से एम.बी.ए. कर के आये हैं । अब, करियर के रूप में तैयार राजनैतिक जमींन पर खेती कर रहे हैं ।
हाल - फिलहाल भी कई नौनिहालों को अपने लक्ष्यों की खोज और प्राप्ति में प्रदेश से बाहर जाते देखा है । यहां तक कि जिनके पास अपने स्थापित व्यापार हैं वो भी प्रदेश की सीमा से बाहर ही नयीं जमीन तलाश रहे हैं । जो ज्यादा सक्षम हैं वो अपने व्यापार को प्रदेश से बाहर ले जाने को अकुला रहे हैं ।
भारतीय अर्थशास्त्र में BI-MA-R-U राज्यों की अवधारणा है । जिसमें Bihar, Madhya - Pradesh, Rajasthan और Uttar Pradesh को शामिल किया गया है । ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है और अपने नाम के अनुरूप यह राज्य आर्थिक रूप से बीमार माने जाते हैं । प्रतिभा पलायन की बात करना बहुत बेमानी लगती है जब की सच्चाई के धरातल पर राज्य के नीति - निर्माताओं के पास जातीय - समीकरणों का तो सटीक आंकड़ा है । पर आर्थिक दर्शन के नाम पर सन्नाटा पसरा है । चुनावी नारों और वादों से पेट नहीं भरता ।
तो अगर कोई राज ठाकरे महाराष्ट्र में हमें हेय दृष्टि से देखता है तो उसे बुरा कहने से पहले अपने अन्दर भी झांक कर देखना चाहिये कि क्या कमी रह गयी कि वहां पिट कर भी हमारे लोग वापस नहीं आना चाहते हैं । आशय यह कि Blue Collored और White Collored दोनों प्रकार के आर्थिक सम्भावनाएं उपलब्ध कराने में यह राज्य विफल रहा है । और ’स्वदेस’ भी शाहरुख खान सिर्फ फिल्मों में रचते हैं वो भी अपने मेहताना प्राप्त करने के लिये ।
(नोट : इस विचार के कोई राजनैतिक अर्थ न निकाले जाये । यह विशुद्ध आर्थिक विचार है । यह विचार किसी भी राजनैतिक विचार - धारा का समर्थन और विरोध नहीं करता ।)
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