दिल्ली के हालत को देखकर सन 1 9 9 1 के हालात याद आते हैं जब बीजेपी
की लहर थी और यदि तब चुनाव हो जाते तो शायद बीजेपी सत्ता में आ जाती लेकिन
कांग्रेस ने अपने समर्थन की बैसाखी से चन्द्र शेखर को पी एम् बना दिया था
और सब कुछ धरा का धरा रह गया और फिर इक्कीस मई को राजीव गांधी की हत्या
के बाद एक दूसरी लहर चली कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की , और बीजेपी
वहीँ की वहीं रह गयी। उस दौरान कांग्रेस ने जो रचा बुना उसे फिर से
दोहरा दिया है । दिल्ली में बीजेपी की मजबूरी थी कि उसे समर्थन हासिल नहीं
था और यदि वह सरकार बनाती तो विश्वास मत हासिल नहीं ही कर पाती । तो फिर
वही हुआ कि अपनी तो दुर्गति हुई ही कांग्रेस की , लेकिन बीजेपी को सत्ता
से बाहर रखने का सुख उसे जरूर मिल गया। लेकिन इतना कम नहीं है , उसे आप से
गालियां भी खानी पड़ रही हैं और दोनों एक दूसरे के खिलाफ मीडिया में बोल
भी रहे हैं और आप भी साथ साथ कह रही है कि सरकार तो हम बना रहे हैं लेकिन
कांग्रेस का समर्थन नहीं ले रहे । कांग्रेस के एक नेता ने तो केजरीवाल को
सब्सिडी के मुद्दे पर बिजली कंपनियों का दलाल तक कह डाला । लेकिन आप और
कांग्रेस इसलिए चल रहे हैं क्योंकि बीजेपी को दूर रखना है । आप से गाली खा
रही है कांग्रेस लेकिन समर्थन दिए भी जा रही है और गाली भी खाये जा रही है
क्योंकि उसे यह तो पता है कि बीजेपी को सत्ता से बाहर रख कर जो सुख मिलेगा
वह गाली खाने के दुःख को कम कर देगा । साथ ही उसे यह भी पता है कि उसके
समर्थन से आप भी थोडा सॉफ्ट कार्नर तो उसके प्रति रखेगी ही क्योंकि अन्यथा
दिल्ली के घोटालों का पर्दाफाश होने से लोकसभा चुनाव में कई और घोटालों का
जिक्र होगा और मर चुकी सी कांग्रेस को और बड़ा झटका लगते देर नहीं लगेगी
इसलिए कांग्रेस ने आपको समर्थन तो दिया है लेकिन सोच में है कि किसी तरह
लोकसभा चुनाव निपट जाएँ और केजरीवाल लोकसभा में भी अपने कैंडिडेट खड़े कर के
मोदी राग को कम कर सकें । लेकिन यदि अरविन्द को मिलने वाले मत कांग्रेस ,
बसपा , सपा के खाते से छिटक कर आप के साथ चले गए और मोदी को इसका फायदा
मिल गया तो क्या होगा इसके बारे में कुछ अंदाजा शायद ही कांग्रेस ने लगाया होगा । राहुल को तो मोदी लहर ने निपटा दिया लेकिन अब केजरीवाल के सहारे मोदी को निपटाने की जो रणनीति कांग्रेस ने बनायी है कहीं
उसके गले ही न पड़ जाए । मोदी को निपटाने के चक्कर में ही कमाल फारुकी
जैसे लोग भी अब आप में शामिल हो रहे हैं । यदि अन्ना ने कोई लाईन अरविन्द
के पक्ष में बोल दी तो इसका जरूर जबर्दस्त असर चुनावों में देखने को मिल
सकता है जिसकी कल्पना भी मोदी ने नहीं की होगी लेकिन यदि चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ तो सब कुछ बदलने में भी देर नहीं लगेगी । लेकिन दिक्कत यह है कि अरविन्द इतना सब कैसे संभालेंगे ? वैसे अभी दिल्ली में हैं और देखना है कि पांच माह में अरविन्द क्या करते हैं ?
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां ,मोतीचूर , वाया रायवाला देहरादून
डॉ द्विजेन्द्र , हरिपुर कलां ,मोतीचूर , वाया रायवाला देहरादून
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