लकीर पीटता लोकतंत्र
देश का लोकतंत्र लकीर पीटने में व्यस्त है शायद नेता समझते हैं कि लकीर पीटने से
लोकतंत्र चलता है और मजबूत बनता है।
दोष निकालने,ढूंढने और दोषों के दर्शन और अध्ययन करने में पूरी राजनीति गले
तक डूबी है। कोई दल किसी दल केअच्छे काम की प्रशंसा नहीं कर पाता क्योंकि
प्रशंसा से दूसरे दल कहीं प्रेरणा न ले लें या कहीं विरोधी दल की प्रशंसा से उसकी जमीन
खिसक न जाये। सब केंकडावृति में मशगुल हैं। इस तू -तू,मैं-मैं में देश कि जनता पीस
रही है,मूक दर्शक है या फिर किसी के साथ मिलकर कुछ देर अपना टाइम व्यतीत
करती है और फिर अपने लम्बे दर्द तथा संघर्ष में डूब जाती है।
क्यों पीटते हैं लकीर नेता लोग - 1947 से लेकर अब तक विश्व बदल चूका है ,विकास
के नए आयाम तय कर रहा है और हम प्राथमिक सुविधा भी उपलब्ध जनता को नहीं
करा पा रहे हैं यह बात हर नेता अच्छी तरह से जानता है ,लोग कहीं उनसे इस बारे में
कटु सवाल कर ना ले इसलिये लकीर पीटने को खाल बचाने का माकूल उपाय मानते हैं।
जो दर्द गुजर गया,जो घाव भर गये,जो यंत्रणा भोग ली गयी उसे गाहे बगाहे हरा
करने से क्या मुस्लिम ,हिन्दू ,सिक्ख या ईसाई क़ौम का भला हो जायेगा ?गुजर चुके
भयानक इतिहास को कोई सिरफिरी विचारधारा फिर हरी करती है उसे पोषण देती है
उसका उद्देश्य क्या है ?क्या उससे देश का भला होगा या किसी भी क़ौम का भला होगा ?
फिर भयानक पलों को याद करवाना राज धर्म क्यों बन रहा है। क्या फिर भारतीयों को
लड़वाने का इरादा है या उनमें नफरत की आग को जलाना है। राजनीति चमकाने के
रास्ते और भी चुने जा सकते हैं मगर सब लकीर पीटना चाहते हैं ताकि जनता पुराने
दुःख को याद कर उन्हें वोट दे दे।
कैसे निपटे भारतीय लकीर के फकीर से -आज तक ये लोग लकीर पीटते रहे और
हम आपस में लड़ते हुए ,एक दूजे से काल्पनिक भय रख कर इन्हे वोट करते रहे और
लोकतंत्र को जीवित रखते गये ,इससे हमें उपहार में मिला कौमवाद,गरीबी ,असुविधा ,
भ्रष्टाचार,आश्वासन,अशिक्षा और गिड़गिड़ाता हुआ जीवन। इस कुचक्र को तोड़ने के
लिए क्या करें ? आईये एक चित्रकार के पास चल उसके चित्र को देखते हैं जो एक
लम्बे कागज पर कुछ शेर बनाकर उनके गले में पाटिये लटका रहा है पहले के गले में
हिन्दू ,दूसरे के मुस्लिम ,तीसरे के सिक्ख ,चौथे के ईसाई ,पाँचवे के बौद्ध ,छठवें के
पारसी,सातवे के पिछड़ा ,आठवें के अगड़ा ? अब इस चित्र को देख कर इनका नाम
करण कर दीजिये यानि शेर ,यही ना ! पहले सब भारतीय बन जाइये ,सबमे समान
ताकत और समान अधिकार हों और हम सब अपनी ऊर्जा का उपयोग जो उपहार हमे
अभी तक नेताओं ने दिए हैं उन्हें वापस लौटाने में करे , फिर देखो देश कैसे बदलता है।
देश नारों से नहीं बदलेगा ,देश बदलने के लिए हर भारतीय को एक होना पड़ेगा फिर
राजनीती की धारा खुद ब खुद बदल जायेगी। प्रेम और विकास ,समानता और सद्भाव
की राजनीती होगी।
देश का लोकतंत्र लकीर पीटने में व्यस्त है शायद नेता समझते हैं कि लकीर पीटने से
लोकतंत्र चलता है और मजबूत बनता है।
दोष निकालने,ढूंढने और दोषों के दर्शन और अध्ययन करने में पूरी राजनीति गले
तक डूबी है। कोई दल किसी दल केअच्छे काम की प्रशंसा नहीं कर पाता क्योंकि
प्रशंसा से दूसरे दल कहीं प्रेरणा न ले लें या कहीं विरोधी दल की प्रशंसा से उसकी जमीन
खिसक न जाये। सब केंकडावृति में मशगुल हैं। इस तू -तू,मैं-मैं में देश कि जनता पीस
रही है,मूक दर्शक है या फिर किसी के साथ मिलकर कुछ देर अपना टाइम व्यतीत
करती है और फिर अपने लम्बे दर्द तथा संघर्ष में डूब जाती है।
क्यों पीटते हैं लकीर नेता लोग - 1947 से लेकर अब तक विश्व बदल चूका है ,विकास
के नए आयाम तय कर रहा है और हम प्राथमिक सुविधा भी उपलब्ध जनता को नहीं
करा पा रहे हैं यह बात हर नेता अच्छी तरह से जानता है ,लोग कहीं उनसे इस बारे में
कटु सवाल कर ना ले इसलिये लकीर पीटने को खाल बचाने का माकूल उपाय मानते हैं।
जो दर्द गुजर गया,जो घाव भर गये,जो यंत्रणा भोग ली गयी उसे गाहे बगाहे हरा
करने से क्या मुस्लिम ,हिन्दू ,सिक्ख या ईसाई क़ौम का भला हो जायेगा ?गुजर चुके
भयानक इतिहास को कोई सिरफिरी विचारधारा फिर हरी करती है उसे पोषण देती है
उसका उद्देश्य क्या है ?क्या उससे देश का भला होगा या किसी भी क़ौम का भला होगा ?
फिर भयानक पलों को याद करवाना राज धर्म क्यों बन रहा है। क्या फिर भारतीयों को
लड़वाने का इरादा है या उनमें नफरत की आग को जलाना है। राजनीति चमकाने के
रास्ते और भी चुने जा सकते हैं मगर सब लकीर पीटना चाहते हैं ताकि जनता पुराने
दुःख को याद कर उन्हें वोट दे दे।
कैसे निपटे भारतीय लकीर के फकीर से -आज तक ये लोग लकीर पीटते रहे और
हम आपस में लड़ते हुए ,एक दूजे से काल्पनिक भय रख कर इन्हे वोट करते रहे और
लोकतंत्र को जीवित रखते गये ,इससे हमें उपहार में मिला कौमवाद,गरीबी ,असुविधा ,
भ्रष्टाचार,आश्वासन,अशिक्षा और गिड़गिड़ाता हुआ जीवन। इस कुचक्र को तोड़ने के
लिए क्या करें ? आईये एक चित्रकार के पास चल उसके चित्र को देखते हैं जो एक
लम्बे कागज पर कुछ शेर बनाकर उनके गले में पाटिये लटका रहा है पहले के गले में
हिन्दू ,दूसरे के मुस्लिम ,तीसरे के सिक्ख ,चौथे के ईसाई ,पाँचवे के बौद्ध ,छठवें के
पारसी,सातवे के पिछड़ा ,आठवें के अगड़ा ? अब इस चित्र को देख कर इनका नाम
करण कर दीजिये यानि शेर ,यही ना ! पहले सब भारतीय बन जाइये ,सबमे समान
ताकत और समान अधिकार हों और हम सब अपनी ऊर्जा का उपयोग जो उपहार हमे
अभी तक नेताओं ने दिए हैं उन्हें वापस लौटाने में करे , फिर देखो देश कैसे बदलता है।
देश नारों से नहीं बदलेगा ,देश बदलने के लिए हर भारतीय को एक होना पड़ेगा फिर
राजनीती की धारा खुद ब खुद बदल जायेगी। प्रेम और विकास ,समानता और सद्भाव
की राजनीती होगी।
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