विकसित होते गुजरात के पंख हैं "हम "
भारत के टुच्चे राजनीतिज्ञ वर्तमान और भविष्य को नहीं देख पा रहे हैं उन्हें केवल
दिखाई देता है सालों पहले हुआ गुजरात का दँगा ,अतीत के उस पन्ने को बार -बार
खोल कर वो देश के सामने रखते रहते हैं जैसे वह दँगा अभी तक चल रहा हो!!
क्या गुजरात झूठे मिडिया ,उल्लू गुणों वाले राजनीतिज्ञों,स्वार्थी NGO से
निराश हुआ ?नहीं। गुजरात पर दैविक और लोक सृजित आपदायें आयी और
हर बार गुजरात स्वयं के बल से बाहर निकला ,कैसे ?सब लोग पूछते हैं यह हुआ
कैसे ?इसके पीछे परिपक्व नेतृत्व कि मेहनत है।
गुजरात के टूटे हुये दिलों में एक नयी आशा का संचार हुआ जब यहाँ के नेतृत्व
ने एक महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने बड़ी कुशलता से हिंदुओं से "ह "लिया और
मुस्लिमों से "म "और फिर इन दोनों को नेक नियत से जोड़ कर "हम "बना दिया।
यह बात बहुत से बुद्धिजीवियों के गले नहीं उतरी होगी क्योंकि उन्होंने इस प्रयोग
को देखा नहीं था और आज तक समझा भी नहीं है। वो तो बस एक रट लगा के बैठे
हैं कि यहाँ का विकास बड़बोलापन है। वो लोग झूठ बोल कर खुद भी सच को समझ
नहीं पा रहे हैं और देश के अवाम को भी गुमराह कर रहे हैं। गुजरात में बारह साल
से कोई दँगा क्यों नही हुआ ,टुच्चे नेता गुजरात में आपाधापी देखना चाहते हैं पर
"हम "के कारण उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। गुजरात के नेतृत्व ने बड़े धीरज
से विकास के आकाश में "ह "और "म "के दोनों पंखों से मुक्त आकाश में उड़ान
भरी और देखते ही देखते गुजरात विकास की बुलंदियों को छूने लगा।
आज जब देश के अधिकाँश नेता तुष्टिकरण की खोटी कुनीति से बाहर कुछ
नहीं देख पा रहे हैं वहीं गुजरात ने समता कि नीति में विश्वास कर सबको प्रगति
का समान अवसर प्रदान किया ,समता की नीति से दोनों समुदायों का द्वेष खत्म
हुआ और हर गुजराती पुरे दम ख़म के साथ विकास के पथ पर ,कुछ अच्छा कर
गुजरने के लिये दौड़ने लगा और परिणाम यह आया कि गुजरात विश्व के नक़्शे
पर छा गया।
एक के मुँह से छीनकर दूसरे के मुँह में ग्रास डालने कि कुनीति जैसे ही खत्म हुयी
वैसे ही अलग-अलग मजहब ,अलग-अलग प्रान्त के लोगों ने एक दूसरे के हाथ
मजबूती से थाम लिये और चल पड़े विकास की राह पर।
आज वोट बैंक की राजनीती के युग में , जातिवाद और धर्मवाद की राजनीति
के युग में, पक्षपात और तुष्टिकरण के युग में "हम " की संस्कृति दुर्लभ है।
आज "हम" ने गुजरात को स्थिर सरकार दी और बदले में नेतृत्व ने विकास के
नए रास्ते बनाएँ। आज हम गुजराती आगे बढ़ रहे हैं ,दंगे फसाद ,लड़ाई -झगड़े
सब भूल गए क्योंकि अब हमारे हाथों में काम है हम निकम्मे नहीं रहे। हमारा
काम "हम "अकेले अकेले पूरा नहीं कर सकते इसलिये पुरुषार्थ ने हमें मिलजुल
कर रहने को बाध्य कर दिया।
भारत के टुच्चे राजनीतिज्ञ वर्तमान और भविष्य को नहीं देख पा रहे हैं उन्हें केवल
दिखाई देता है सालों पहले हुआ गुजरात का दँगा ,अतीत के उस पन्ने को बार -बार
खोल कर वो देश के सामने रखते रहते हैं जैसे वह दँगा अभी तक चल रहा हो!!
क्या गुजरात झूठे मिडिया ,उल्लू गुणों वाले राजनीतिज्ञों,स्वार्थी NGO से
निराश हुआ ?नहीं। गुजरात पर दैविक और लोक सृजित आपदायें आयी और
हर बार गुजरात स्वयं के बल से बाहर निकला ,कैसे ?सब लोग पूछते हैं यह हुआ
कैसे ?इसके पीछे परिपक्व नेतृत्व कि मेहनत है।
गुजरात के टूटे हुये दिलों में एक नयी आशा का संचार हुआ जब यहाँ के नेतृत्व
ने एक महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने बड़ी कुशलता से हिंदुओं से "ह "लिया और
मुस्लिमों से "म "और फिर इन दोनों को नेक नियत से जोड़ कर "हम "बना दिया।
यह बात बहुत से बुद्धिजीवियों के गले नहीं उतरी होगी क्योंकि उन्होंने इस प्रयोग
को देखा नहीं था और आज तक समझा भी नहीं है। वो तो बस एक रट लगा के बैठे
हैं कि यहाँ का विकास बड़बोलापन है। वो लोग झूठ बोल कर खुद भी सच को समझ
नहीं पा रहे हैं और देश के अवाम को भी गुमराह कर रहे हैं। गुजरात में बारह साल
से कोई दँगा क्यों नही हुआ ,टुच्चे नेता गुजरात में आपाधापी देखना चाहते हैं पर
"हम "के कारण उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। गुजरात के नेतृत्व ने बड़े धीरज
से विकास के आकाश में "ह "और "म "के दोनों पंखों से मुक्त आकाश में उड़ान
भरी और देखते ही देखते गुजरात विकास की बुलंदियों को छूने लगा।
आज जब देश के अधिकाँश नेता तुष्टिकरण की खोटी कुनीति से बाहर कुछ
नहीं देख पा रहे हैं वहीं गुजरात ने समता कि नीति में विश्वास कर सबको प्रगति
का समान अवसर प्रदान किया ,समता की नीति से दोनों समुदायों का द्वेष खत्म
हुआ और हर गुजराती पुरे दम ख़म के साथ विकास के पथ पर ,कुछ अच्छा कर
गुजरने के लिये दौड़ने लगा और परिणाम यह आया कि गुजरात विश्व के नक़्शे
पर छा गया।
एक के मुँह से छीनकर दूसरे के मुँह में ग्रास डालने कि कुनीति जैसे ही खत्म हुयी
वैसे ही अलग-अलग मजहब ,अलग-अलग प्रान्त के लोगों ने एक दूसरे के हाथ
मजबूती से थाम लिये और चल पड़े विकास की राह पर।
आज वोट बैंक की राजनीती के युग में , जातिवाद और धर्मवाद की राजनीति
के युग में, पक्षपात और तुष्टिकरण के युग में "हम " की संस्कृति दुर्लभ है।
आज "हम" ने गुजरात को स्थिर सरकार दी और बदले में नेतृत्व ने विकास के
नए रास्ते बनाएँ। आज हम गुजराती आगे बढ़ रहे हैं ,दंगे फसाद ,लड़ाई -झगड़े
सब भूल गए क्योंकि अब हमारे हाथों में काम है हम निकम्मे नहीं रहे। हमारा
काम "हम "अकेले अकेले पूरा नहीं कर सकते इसलिये पुरुषार्थ ने हमें मिलजुल
कर रहने को बाध्य कर दिया।
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