- अमेरिका में फेल हो चुकी बराज योजना को गंगा में लागू करना चाहती है सरकार
- एलएस कॉलेज में दो दिवसीय गंगा सेमिनार शुरू
मुजफ्फरपुर। एलएस कॉलेज में गुरुवार को ‘गंगा बेसीन : संरक्षण एवं चुनौतियां’ विषय दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने किया।
इस दौरान प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. भतर झुनझुनवाला ने कहा कि केंद्र सरकार ने गंगा पर बैराज की श्रृंखला बनाने की विध्वंसकारी योजना बना रही है। ताकि आयातित कोयले को बिजलीघरों तक गंगा के जल मार्ग से पहुंचाया जा सके। कुछ औद्योगिक घरानों का फायदा पहुंचाकर गंगा को नष्ट करने की योजना है। इसके लिए गंगा में गहराई की जरूरत है। जबकि गंगा में कई जगह पर गहराई मात्र छह फीट है। इसलिए यहां पर 16 से 22 बराज बनाने की योजना है। लेकिन असलिय यह है कि इससे गंगा नष्ट हो जाएगी।
उनहोंने अमेरिका की सबसे बड़ी नदी मिस्सीसिपी का उदाहरण देकर बताया कि वहां पर बैराज की श्रृंखला बनाने की वजह से नदी और वहां के इलाकों में तबाही आ गई है।
मिस्सीसिपी नदी पर बराज की श्रृंखला बनाने से पहले वहां के आस-पास मिट्टी ऊंची थी। मैंग्रोव का जंगल था। जंगल खत्म हो गए। अमेरिकी सरकार के यूएस गवर्नमेंट एकाउंटेबलिटी ऑफिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि बराज की श्रृंखला से नदी की जैविकता पर प्रभाव पड़ा है। इलाकों में बाढ़ आ गई।
उन्होंने कहा कि बराज बनने से पहले मिस्सीसिपी नदी बालू लेकर आती थी और समुद्र में डालती थी। समुद्र का भोजन बालू है। नदी के माध्यम से बालू जाने से यह भूमि का कटान नहीं करती है। वहां बैराजों में सिल्ट जमने लगा और पानी जंगलों में फैलने लगा। पांच हजार वर्ग किलोमीटर जमीन समुद्र में घिर चुकी है। तटिय क्षेत्र को बालू नहीं मिलने से ऐसा हुआ। नदी का तल ऊंचा होने से इसकी सहायक नदियों में भी जलस्तर बढ़ गया।
डॉ. झुनझुनवाला ने कहा कि अमेरिका में फेल हो चुकी व्यवस्था को सरकार गंगा नदी में लागू करना चाहती है। ताकि सस्ते में कोयला की ढुलाई हो सके। ऐसा हुआ तो गंगा 16 तालाबों में तब्दील हो जाएगी। उन्होंने कहा कि बराज से नुकसान का सबसे बड़ा उदाहरण फरक्का बराज है। दुनिया में सबसे ज्यादा सिल्ट चीन की पीली नदी और भारत की गंगा में उत्पन्न होता है। फरक्का बराज से गंगा की गति धीमी हो जाती है और उसके साथ आ रहा सिल्ट जम जाता है। इसके बाद जलस्तर ऊंचा होता है और डूब क्षेत्र बढ़ रहा है। अब ड्रेनेज से पानी निकालने की कोशिश चल रही है, ताकि नहर में पानी भेजा जा सके।
पहले गंगा बालू को समुद्र तक ले जाती थी, लेकिन फरक्का बराज से उसकी क्षमता का ह्रास हो गया है। सिल्ट न जाने से पश्चिम बंगाल में समुद्र किनारे बड़ा क्षेत्र डूबता जा रहा है। उन्होंने कहा कि फरक्का बराज से कुछ फायदा हुआ है लेकिन नुकसान बेहद ज्यादा है। उन्होंने कहा कि कठोर निर्णय लेकर फरक्का बराज को तोड़ देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर गंगा पर बराज की श्रृंखला बनी तो गंगा की सहायक नदियों में भी बराज बनाना होगा। इससे यहां की नदियां उफनाएंगी और बा़ढ का जबरदस्त खतरा ज्यादा बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि मौसम वैज्ञानिकों की रिपोर्ट है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से बरसात के तीन महीने का पानी इकट्ठा अगस्त में ही बरसने की परंपर बढ़ेगी। ऐसे में बराज की श्रृंखला हुई तो नदी की पानी संग्रहण की क्षमता घट जाएगी और बढ़ के भयावह रूप को देखना होगा।
उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को बड़े जहाज के लिए बराज बनाने की जगह इसमें छोटे जहाज से माल ढुलाई करना चाहिए। सोलर पावर की लागत कम होने वाली है, ऐसे में कोयला आधारित बिजलीघरों की जगह सोलर पावर का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
उन्होंने कुछ उदाहरण देकर बताया कि नदी से पानी को नहरों में भेजने के लिए इसपर बराज बनाने की आवश्यकता नहीं है।
समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने कहा कि जब तक हम कचरा पैदा करने वाले विकास के रास्ते को नहीं, छोड़ेंगे, तब तक गंगा को प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सकता है। सारे विकास की दृष्टि को बदलने की जरुरत है। विज्ञान का इस्तेमाल कर प्रकृति पर नियंत्रण करने की कोशिश में हम गलत दिशा में जा रहे हैं। इससे प्रकृति का अधिक से अधिक दोहन हो रहा है और गंगा नष्ट हो रही है। उन्होंने कहा कि धार्मिक अंधता की वजह से भी गंगा प्रदूषित हो रही है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली में यमुना गंदा नाला बन गया है। बड़े नगर के लिए गंगा से पानी निकाला जा रहा है। हिमालय से निकलने वाली पानी धीरे-धीरे कम हो रहा है। बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों का कचरा गंगा में डाला जा रहा है।
सेमिनार के संयोजक अनिल प्रकाश ने कहा कि ढ़ाई सौ साल से विकास की अवधारणा है कि प्रकृति को दास मानकर उसका अधिकतर दोहन किया जाए। इस गलत दृष्टिकोण की वजह से महाप्रलय का खतरा है और यह दुनिया भर के वैज्ञानिकों की सर्वमान्य राय है। गंगा हम जब बोलते हैं तो उससे जुड़ी सभी नदियां हैं, हिमालय और पूरा इको सिस्टम भी है। एक फरक्का बराज बना और इससे आठ राज्यों में हिल्सा जैसी कई मछलियां गंगा से गायब हो गईं। बीस लाख मछुआरों की रोजी उजर गई।
उन्होंने कहा कि अब गंगा को छोटे छोटे तालाबों में तब्दील करने, पिकनिक स्पॉट बनाने, रिजॉट बनाने, गंगा के किनारे स्मार्ट सिटी बनाने, धर्म के नाम पर अनैतिक काम करने के मंसूबे पर को सफल नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक सेमिनार है।
जिस तरह से मां का दूध बच्चे के लिए संसाधन नहीं होता है, वैसे ही खेत और नदी हमारे लिए संसाधन नहीं हो सकती है। नदियां खत्म करेंगे तो मानव जाति और जीव जगत पर संकट आ जाएगा।
जल आंदोलनों से जुड़े पश्चिम बंगाल के विजय सरकार कहा कि विकास के बहाने हम महाप्रलय के रास्ते पर चल पड़े हैं। उन्होंने बताया कि कोलकाता से एक साइकिल यात्रा गंगोत्री से गंगासागर तक जाएगी। इसके माध्यम से गंगा के आस-पास बसी जिंदगी की युक्ति भी जानेंगे और गंगा पर बन रही गलत नीतियों के बारे में जागरूक किया जाएगा।
सामाजिक कार्यकर्ता रंजीव ने कहा कि उनका मानना है कि बिहार में गंगा नहीं है। गंगा को टिहरी डैम में बांध दिया गया है। बिहार में जो गंगा दिखती है वह इसकी सहायक नदियों का पानी है। उन्होंने कहा कि यही मौका है विचार करने का कि हमें कैसा विकास चाहिए।
रंजीव ने कहा कि वर्ष 2000 से बिहार लगातार क्लाइमेट चेंज से पीडि़त हैं। लेकिन आज तक बिहार सरकार ने इसे ध्यान में रखकर नीतियां नहीं बनाई है। जब उत्तराखंड में बादल फटा तो इससे हम पीडि़त हुए। यहां गंगा का पानी कई महीने तक उल्टी दिशा में जाती है। टिहरी और फरक्का बराज से गंगा को रोक दिया गया, यह अविरल नहीं है।
एसएस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. भुजनंदन प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रीय सेमिनार ने गंगा पर आ रही चुनौतियों पर माकूल जवाब देने के लिए बौद्धिक रूप से धनी बनाया है।
कार्यक्रम के आयोजक व एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव ने कहा कि अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि गंगा को लेकर इस तरह का मंथन इसके रखवालों को एक दिशा देगा। प्रथम सत्र का धन्यवाद ज्ञापन प्रो. नित्यानंद शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन विजय कुमार चौधरी ने किया।
द्वितीय सत्र
भागीरथ से गंगा ने कहा था – मैं संसार की सबसे अभिशप्त नदी बनने जा रही हूं
दूसरे सत्र में गंगा से आस-पास बीमारी व कृषि पर चर्चा
मुजफ्फरपुर। एलएसए कॉलेज में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे सत्र में पूर्व डीजीपी रामचंद्र खान ने कहा कि पुराणों में गंगा के प्रदूषित होने की आशंका भी जताई गई थी। जब भागीरथ, गंगा को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना कर रहे थे, तब गंगा ने कहा था- ‘ मैं संसार की सबसे दुखी, सबसे अभिशप्त रखने वाली नदी बनने वाली हूं। जिस देश में तुम मुझे लेकर आए हो, उसकी सारी गंदगी मुझ में गिराई जाएगी और फिर मेरा उद्धार करने वाला कोई नहीं होगा। जब तक मैं समुद्र में जाती रहूंगी तब तक अभिशप्त रहूंगी।‘
रामचंद्र खान ने कहा कि अब यह सच साबित हो रहा है। गंगा लगातार प्रदूषित होती जा रही है और इसके लिए बनने वाली योजना बेहद चिंताजनक हैं।
उन्होंने कहा कि अमेरिका में डैम को तोड़ा जा रहा है और भारत में नया बनाने की कोशिश चल रही है। अमेरिकी उदाहरण को भी समझना चाहिए।
चिकित्सक डॉ. प्रगति सिंह ने कहा कि गंगा से उनका व्यतिगत लगाव रहा है। उन्होंने कहा कि हम स्वयं दोषी हैं गंगा को प्रदूषित करने में। आस्था के नाम पर फूल मालाएं, मूर्तियां व अधजले शव प्रवाहित कर देते हैं। गंगा को बचाने पर लोगों का ध्यान ज्यादा नहीं जाता है। एक संकल्प लेना पड़ेगा कि हमें खुद भी प्रयास करें कि गंदा न करें।
उन्होंने कहा कि गंगा के प्रदूषण से बहुत सी बीमारियां फैल रही हैं और इसके इलाज में खर्च बेहद ज्यादा हो रहा है। इसलिए गंगा का ऐसा स्वरूप ऐसा बनाएं कि गंगा में प्रवाहित होने वाले कचरे को दूर हो सके।
कृषि वैज्ञानिक व राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गोपाल जी त्रिवेदी ने कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। हमें प्रकृति के साथ रहने की आदत डालना पड़ेगा। हम चाहते हैं कि प्रकृति को मुट्ठी में बंद कर दें, यह नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतवर्ष में गंगा के आस-पास सबसे ज्यादा उत्पादकता थी। यहां की खेती नदियों की मिट्टी पर होती थी। फसल इतनी अच्छी होती थी। नदियों को जोड़ने का बांध बनाने का या अन्य योजना बनाकर इसे खत्म किया जा रहा है।
टिहरी में बांध बना दिया है। ऐसी आशंका है कि जैसे उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में बाढ़ आ गया, वैसे बारिश हुई तो पूरा बिहार और यूपी डूब जाएगा।
कार्यक्रम में खगडि़या से आए चंद्रशेखर ने भी विचार व्यक्त किए।