Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

30.9.14

पल्लू कांड़ को  राजनैतिक चश्मों से क्यों ना देखा जाये लेकिन सामाजिक रूप से उचित ठहराना संभव दिखायी नहीं देता 
विगत दिनों 17 सितम्बर को स्थानीय पॉलेटेक्निक कालेज के मैदान में कृषि महोत्सव का शासकीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में प्रभारी मंत्री गौरीशंकर बिसेन सहित कई जनप्रतिनिधि,भाजपा नेता और प्रशासकीय अधिकारी मंच पर मौजूद थे। यह भी एक संयोग ही था कि इसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन भी था। मंच पर मौजूद सिवनी के निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय ने अपने हाथों में लगी कालिख पौंछने के लिये उनके बाजू में खड़ी भाजपा की पूर्व सांसद,विधायक एवं प्रदेश महिला मोर्चे की अध्यक्ष और प्रदेश भाजपा की मंत्री नीता पटेरिया की साड़ी के पल्लू का चुपके से उपयोग कर लिया।  भाजपा ने इस घटना की निंदा करके चुप्पी साध ली जबकि कांग्रेस ने निंदा करने के साथ ही कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा। इस घटना की तीखी निंदा करने के साथ ही जिला ब्राम्हण समाज ने धरना का आयोजन किया। इसमें उन्होंने समाज के सभी वर्गों के लोगों को आमंत्रित किया। जब वे अपने लाये हुये लोगों के सामने सफायी दे रहे थे तब ये तमाम लोग उत्साहित होकर नारे लगा रहे थे कि मुनमुन भैया संघंर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। वैसे तो यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनमें से भला कितने लोगों को यह पता था कि मुनमुन  भैया तो मंच पर अपने हाथों में लगी कालिख को पौंछने के लिये नीता जी के पल्लू से संघर्ष कर रहे थे 
मोदी के जन्म दिन पर सार्वजनिक मंच पर हुआ भाजपा नेत्री का अपमान:-विगत दिनों 17 सितम्बर को स्थानीय पॉलेटेक्निक कालेज के मैदान में कृषि महोत्सव का शासकीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में प्रभारी मंत्री गौरीशंकर बिसेन सहित कई जनप्रतिनिधि,भाजपा नेता और प्रशासकीय अधिकारी मंच पर मौजूद थे। यह भी एक संयोग ही था कि इसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन भी था। इसी कार्यक्रम को कवर करने के लिये लगे वीडियो कैमरों में मंच की एक अशोभनीय घटना भी कैद हो गयी। मंच पर मौजूद सिवनी के निर्दलीय विधायक दिनेश मुनमुन राय ने अपने हाथों में लगी कालिख पौंछने के लिये उनके बाजू में खड़ी भाजपा की पूर्व सांसद,विधायक एवं प्रदेश महिला मोर्चे की अध्यक्ष और प्रदेश भाजपा की मंत्री नीता पटेरिया की साड़ी के पल्लू का चुपके से उपयोग कर लिया। चुपके से ऐसा करने के बाद जब उन्होंने पलट कर बाजू में देखा तो उनके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान सी दिख रही थी और उन्होंने चेहरे पर एक ऐसी हरकत करके सिर हिलाया जिसे समाज में अच्छा नहीं माना जाता है। सोशल मीडिया पर इस घटना के दो वीडियो ने चंद घंटों में ही हड़कंप मचा दिया। इसे सार्वजनिक शासकीय मंच पर एक महिला के साथ हुये अपमान से जोड़कर देखा गया और निंदा तथा आलोचना का दौर शुरू हो गया। नीता पटेरिया ने कहा कि उन्हें वाडियो देखने के बाद घटना का पता चला तो दूसरी तरफ मुनमुन राय ने कहा कि वे नीता पटेरिया को मां,बहन और भाभी मानते हैं और मंच पर हुआ वो हास्य विनोद के क्षण थे। फिर भी यदि बुरा लगा हो तो वे माफी मांगते है। दूसरे दिन नपा के सामने मुनमुन राय का भाजपा कार्यकर्त्ताओं ने पुतला जलाया और पुलिस में घटना की कंपलेंट की लेकिन नीता पटेरिया ने रिपोर्ट दर्ज नहीं करायी। इस घटना के समाचार राष्ट्रीय और प्रादेशिक चैनलों के साथ ही अखबारों की भी सुर्खी बनी और राजनैतिक हल्कों में एक भूचाल सा आ गया। 
कांग्रेस ने सौंपा ज्ञापन तो भाजपा ने की निंदा:- इस घटना को लेकर कांग्रेस और भाजपा ने विज्ञप्ति जारी कर घटना की निंदा की और इसे महिला अपमान के साथ के साथ जनादेश का अपमान भी निरूपित किया। लेकिन इसके बाद भाजपा ने चुप्पी साघ ली। कहा जाता है दूसरे वीडियों में जिला भाजपा अध्यक्ष वेदसिंह ठाकुर भी विवाद में आ गये थे। कांग्रेस नेताओं ने बाद में कलेंक्टर से मुलाकत कर ज्ञापन भी सौंपा और प्रदेश की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी कटघरें में खड़ा किया कि एक वरिष्ठ महिला नेत्री के साथ हुये अपमान पर सरकार और प्रशासन चुप्पी साधे हुये है। इसके अलावा भ कई संगठनों और दलों ने भी घटना की निंदा की और इसे महिला का अपमान निरूपित किया।
ब्राम्हण समाज ने दिश धरनाः- इस घटना की तीखी निंदा करने के साथ ही जिला ब्राम्हण समाज ने धरने का आयोजन किया। इसमें उन्होंने समाज के सभी वर्गों के लोगों को आमंत्रित किया। इसमें पूर्व विधायक एवं कांग्रेस नेत्री नेहा सिंह और विस प्रत्याशी राजकुमार पप्पू खुराना सहिीत कई नेताओं और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने हिस्सा लेकर धटना की निंदा कर कार्यवाही की मांग भी की। धरने के बाद नीता पटेरिया ने एस.पी. से भेंट करके एक ज्ञापन भी सौंपा और इस बात पर अपनी नाराजगी भी जताई कि मेरे बयान होने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी। हालांकि यहां यह उल्लेखनीय है कि पुलिस थाने में स्वयं नीता पटेरिश ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं करायी है। उन्होंने राज्य महिला आयोग में जरूर अपनी शिकायत दी है। 
मुनमुन ने भी किया शक्ति प्रदर्शन:- जिस दिन ब्राम्हण समाज के बैनर पर महिला अपमान के विरोध में धरना प्रदर्शन हो रहा था तो वहीं दूसरी तरफ चंद कदमों दूर विधायक मुनमुन राय अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे। जिले भर से आयी सैकड़ों गाड़िया ओर में लाये गये हजारों लोगों का उत्साह देखने लायक था। राजनैतिक विश्लेषकों की आंखों के सामने वह दिन आ गया जब तत्कालीन भाजपा सांसद नीता पटेरिया की रिपोर्ट पर तत्कालीन कांग्रेस विधायक स्व. हरवंश सिंह के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला धारा 307 के तहत कायम हुआ था तो उन्होंने न्याय रैली आयोजित की थी जिसमें ऐसी ही भीड़ जुटायी गयी थी। स्व. हरवंश सिंह ने न्याय रैली की थी तो अभी मुनमुन जनता से न्याय मांग रहे थे। अभी यदि रिपोर्ट पर पुलिस मामला कायम करती है तो वो भी धारा 354 का होता। जनता के सामने मुनमुन ने अपनी पुरानी मां,बहन और भाभी वाली सफायी देते हुये कांग्रेस और भाजपा नेताओं पर आरोप भी लगा डाला कि वे उनकी जीत  और लोकप्रियता से जलते है इसलिये धज्जी का सांप बना रहें हैं। जब वे अपने लाये हुये लोगों के सामने सफायी दे रहे थे तब ये तमाम लोग उत्साहित होकर नारे लगा रहे थे कि मुनमुन भैया संघंर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। वैसे तो यह भी नहीं कहा जा सकता है कि उनमें से भला कितने लोगों को यह पता था कि मुनमुन  भैया तो मंच पर अपने हाथों में लगी कालिख को पौंछने के लिये नीता जी के पल्लू से संघर्ष कर रहे थे और इस मामले में घिर जाने पर ही उन्हें यहां गाड़ियां भेज कर बुलाया गया था। कुछ लोग इस बात को लेकर भी लेकर आश्चर्यचकित है कि एक ही दिन लगभग एक ही जगह एक ही मुद्दे पर आयोजित होने वाले दो विपरीत आंदोलनों के लिये अनुमति कैसे दे दी गयी? यह भी बताया गया कि शक्ति प्रदर्शन के दूसरे ही दिन वे विदेश यात्रा पर चले गये हैं। बहरहाल उस दिन मंच पर घटित पल्लू कांड़ को कितने ही राजनैतिक चश्मों से क्यों ना देखा जाये?लेकिन सामाजिक रूप से इसे उचित ठहराना तो संभव दिखायी नहीं देता है। “मुसाफिर
 sABHAR Darpan Jhoot Na Bole
Seoni 
30 Sep 2014




















   



27.9.14

पाकिस्तान का रोना

पाकिस्तान का रोना 

पाकिस्तान को रोने की आदत हो चुकी है क्योंकि नासमझ बच्चा जब भी रोता
है तो समझदार लोग उसके हाथ में लॉलीपॉप थमा देते हैं,तब बच्चा समझता
है रो कर के मेने कुछ पाया और समझदार जानते हैं कि उसका लॉलीपॉप चूसना
ही बेहतर है ताकि वे लोग महत्वपूर्ण काम कर सके।

जब समझदार लोग अपने महत्वपूर्ण काम पुरे कर लेते हैं और बच्चा फिर रोने
लगता है तब उसे चाँटा मारकर चुप करा दिया जाता है या फिर गला फाड़ कर
रोने दिया जाता है और बच्चा दोनों ही परिस्थिति में अपनी औकात समझ मुँह
बंद कर लेता है।

पाकिस्तान का सँयुक्त राष्ट में जाकर कश्मीर पर रोना !! कोई ज़माना था जब
इस मातम मनाने के तरीके पर उसे समझदार पुचकारा करते थे मगर अब
उसके रोने हश्र उस हठीले बच्चे जैसा होगा जो चाँटा खा कर चुप होता है या
गला फाड़ कर रोने से गला दर्द करने लगता है और वह मौका पाकर स्वत: ही
रोना बंद कर देता है।

पाकिस्तान का कश्मीर पर रोने का हश्र क्या होगा ?आज विश्व को ताकतवर
भारत के सहयोग की आवश्यकता है खण्डहर हो चुके पाकिस्तान का सहारा
लेकर कोई भी भारत से रिश्ता खट्टा नहीं करेगा।

विश्व जानता है कि भारत अपना मसला खुद सुलझाने का माद्दा रखता है और
इस मसले पर टाँग फँसा कर कौन आफत मोल लेगा,इसलिए अब वो होने वाला
है जो भारत चाहता है। यह है शक्तिशाली भारत की नयी पहचान।   
   

25.9.14

बराज की श्रृंखला नष्‍ट कर देगी गंगा को


  • अमेरिका में फेल हो चुकी बराज योजना को गंगा में लागू करना चाहती है सरकार
  • एलएस कॉलेज में दो दिवसीय गंगा सेमिनार शुरू


मुजफ्फरपुर। एलएस कॉलेज में गुरुवार को ‘गंगा बेसीन : संरक्षण एवं चुनौतियां’ विषय दो दिवसीय राष्‍ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्‍हा ने किया।
इस दौरान प्रसिद्ध अर्थशास्‍त्री व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. भतर झुनझुनवाला ने कहा कि केंद्र सरकार ने गंगा पर बैराज की श्रृंखला बनाने की विध्‍वंसकारी योजना बना रही है। ताकि आयातित कोयले को बिजलीघरों तक गंगा के जल मार्ग से पहुंचाया जा सके। कुछ औद्योगिक घरानों का फायदा पहुंचाकर गंगा को नष्‍ट करने की योजना है। इसके लिए गंगा में गहराई की जरूरत है। जबकि गंगा में कई जगह पर गहराई मात्र छह फीट है। इसलिए यहां पर 16 से 22 बराज बनाने की योजना है। लेकिन असलिय यह है कि इससे गंगा नष्‍ट हो जाएगी।
उनहोंने अमेरिका की सबसे बड़ी नदी मिस्‍सीसिपी का उदाहरण देकर बताया कि वहां पर बैराज की श्रृंखला बनाने की वजह से नदी और वहां के इलाकों में तबाही आ गई है।
मिस्‍सीसिपी नदी पर बराज की श्रृंखला बनाने से पहले वहां के आस-पास मिट्टी ऊंची थी। मैंग्रोव का जंगल था। जंगल खत्‍म हो गए। अमेरिकी सरकार के यूएस गवर्नमेंट एकाउंटेबलिटी ऑफिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि बराज की श्रृंखला से नदी की जैविकता पर प्रभाव पड़ा है। इलाकों में बाढ़ आ गई।
उन्‍होंने कहा कि बराज बनने से पहले मिस्‍सीसिपी नदी बालू लेकर आती थी और समुद्र में डालती थी। समुद्र का भोजन बालू है। नदी के माध्‍यम से बालू जाने से यह भूमि का कटान नहीं करती है। वहां बैराजों में सिल्‍ट जमने लगा और पानी जंगलों में फैलने लगा। पांच हजार वर्ग किलोमीटर जमीन समुद्र में घिर चुकी है। तटिय क्षेत्र को बालू नहीं मिलने से ऐसा हुआ। नदी का तल ऊंचा होने से इसकी सहायक नदियों में भी जलस्‍तर बढ़ गया।
डॉ. झुनझुनवाला ने कहा कि अमेरिका में फेल हो चुकी व्‍यवस्था को सरकार गंगा नदी में लागू करना चाहती है। ताकि सस्‍ते में कोयला की ढुलाई हो सके। ऐसा हुआ तो गंगा 16 तालाबों में तब्‍दील हो जाएगी। उन्‍होंने कहा कि बराज से नुकसान का सबसे बड़ा उदाहरण फरक्‍का बराज है। दुनिया में सबसे ज्‍यादा सिल्‍ट चीन की पीली नदी और भारत की गंगा में उत्‍पन्‍न होता है। फरक्‍का बराज से गंगा की गति धीमी हो जाती है और उसके साथ आ रहा सिल्‍ट जम जाता है। इसके बाद जलस्‍तर ऊंचा होता है और डूब क्षेत्र बढ़ रहा है। अब ड्रेनेज से पानी निकालने की कोशिश चल रही है, ताकि नहर में पानी भेजा जा सके।
पहले गंगा बालू को समुद्र तक ले जाती थी, लेकिन फरक्‍का बराज से उसकी क्षमता का ह्रास हो गया है। सिल्‍ट न जाने से पश्चिम बंगाल में समुद्र किनारे बड़ा क्षेत्र डूबता जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि फरक्‍का बराज से कुछ फायदा हुआ है लेकिन नुकसान बेहद ज्‍यादा है। उन्‍होंने कहा कि कठोर निर्णय लेकर फरक्‍का बराज को तोड़ देना चाहिए।
उन्‍होंने कहा कि अगर गंगा पर बराज की श्रृंखला बनी तो गंगा की सहायक नदियों में भी बराज बनाना होगा। इससे यहां की नदियां उफनाएंगी और बा़ढ का जबरदस्‍त खतरा ज्‍यादा बढ़ेगा।
उन्‍होंने कहा कि मौसम वैज्ञानिकों की रिपोर्ट है कि क्‍लाइमेट चेंज की वजह से बरसात के तीन महीने का पानी इकट्ठा अगस्‍त में ही बरसने की परंपर बढ़ेगी। ऐसे में बराज की श्रृंखला हुई तो नदी की पानी संग्रहण की क्षमता घट जाएगी और बढ़ के भयावह रूप को देखना होगा।
उन्‍होंने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को बड़े जहाज के लिए बराज बनाने की जगह इसमें छोटे जहाज से माल ढुलाई करना चाहिए। सोलर पावर की लागत कम होने वाली है, ऐसे में कोयला आधारित बिजलीघरों की जगह सोलर पावर का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
उन्‍होंने कुछ उदाहरण देकर बताया कि नदी से पानी को नहरों में भेजने के लिए इसपर बराज बनाने की आवश्‍यकता नहीं है।

समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा ने कहा कि जब तक हम कचरा पैदा करने वाले विकास के रास्ते को नहीं, छोड़ेंगे, तब तक गंगा को प्रदूषण मु‍क्‍त नहीं किया जा सकता है। सारे विकास की दृष्टि को बदलने की जरुरत है। विज्ञान का इस्‍तेमाल कर प्रकृति पर नियंत्रण करने की कोशिश में हम गलत दिशा में जा रहे हैं। इससे प्रकृति का अधिक से अधिक दोहन हो रहा है और गंगा नष्‍ट हो रही है। उन्‍होंने कहा कि धार्मिक अंधता की वजह से भी गंगा प्रदूषित हो रही है।
उन्‍होंने कहा कि दिल्ली में यमुना गंदा नाला बन गया है। बड़े नगर के लिए गंगा से पानी निकाला जा रहा है। हिमालय से निकलने वाली पानी धीरे-धीरे कम हो रहा है। बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों का कचरा गंगा में डाला जा रहा है।

सेमिनार के संयोजक अनिल प्रकाश ने कहा कि ढ़ाई सौ साल से विकास की अवधारणा है कि प्रकृति को दास मानकर उसका अधिकतर दोहन किया जाए। इस गलत दृष्‍ट‍िकोण की वजह से महाप्रलय का खतरा है और यह दुनिया भर के वैज्ञानिकों की सर्वमान्‍य राय है। गंगा हम जब बोलते हैं तो उससे जुड़ी सभी नदियां हैं, हिमालय और पूरा इको सिस्‍टम भी है। एक फरक्‍का बराज बना और इससे आठ राज्‍यों में हिल्‍सा जैसी कई मछलियां गंगा से गायब हो गईं। बीस लाख मछुआरों की रोजी उजर गई।
उन्‍होंने कहा कि अब गंगा को छोटे छोटे तालाबों में तब्‍दील करने, पिकनिक स्‍पॉट बनाने, रिजॉट बनाने, गंगा के किनारे स्‍मार्ट सिटी बनाने, धर्म के नाम पर अनैतिक काम करने के मंसूबे पर को सफल नहीं होने देंगे। उन्‍होंने कहा कि यह राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्‍कृतिक और सामाजिक सेमिनार है।
जिस तरह से मां का दूध बच्‍चे के लिए संसाधन नहीं होता है, वैसे ही खेत और न‍दी हमारे लिए संसाधन नहीं हो सकती है। नदियां खत्‍म करेंगे तो मानव जाति और जीव जगत पर संकट आ जाएगा।

जल आंदोलनों से जुड़े पश्चिम बंगाल के विजय सरकार कहा कि विकास के बहाने हम महाप्रलय के रास्‍ते पर चल पड़े हैं। उन्‍होंने बताया कि कोलकाता से एक साइकिल यात्रा गंगोत्री से गंगासागर तक जाएगी। इसके माध्‍यम से गंगा के आस-पास बसी जिंदगी की युक्ति भी जानेंगे और गंगा पर बन रही गलत नीतियों के बारे में जागरूक किया जाएगा।
सामाजिक कार्यकर्ता रंजीव ने कहा कि उनका मानना है कि बिहार में गंगा नहीं है। गंगा को टिहरी डैम में बांध दिया गया है। बिहार में जो गंगा दिखती है वह इसकी सहायक नदियों का पानी है। उन्‍होंने कहा कि यही मौका है विचार करने का कि हमें कैसा विकास चाहिए।
रंजीव ने कहा कि वर्ष 2000 से बिहार लगातार क्‍लाइमेट चेंज से पीडि़त हैं। लेकिन आज तक बिहार सरकार ने इसे ध्‍यान में रखकर नीतियां नहीं बनाई है। जब उत्‍तराखंड में बादल फटा तो इससे हम पीडि़त हुए। यहां गंगा का पानी कई महीने तक उल्‍टी दिशा में जाती है। टिहरी और फरक्‍का बराज से गंगा को रोक दिया गया, यह अविरल नहीं है।  
एसएस कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. भुजनंदन प्रसाद ने कहा कि राष्‍ट्रीय सेमिनार ने गंगा पर आ रही चुनौतियों पर माकूल जवाब देने के लिए बौद्धिक रूप से धनी बनाया है।
कार्यक्रम के आयोजक व एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव ने कहा कि अतिथियों का स्‍वागत किया। उन्‍होंने कहा कि गंगा को लेकर इस तरह का मंथन इसके रखवालों को एक दिशा देगा। प्रथम सत्र का धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. नित्‍यानंद शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन विजय कुमार चौधरी ने किया।

द्वितीय सत्र

भागीरथ से गंगा ने कहा था – मैं संसार की सबसे अभिशप्‍त नदी बनने जा रही हूं
दूसरे सत्र में गंगा से आस-पास बीमारी व कृषि पर चर्चा
मुजफ्फरपुर। एलएसए कॉलेज में आयोजित राष्‍ट्रीय सेमिनार के दूसरे सत्र में पूर्व डीजीपी रामचंद्र खान ने कहा कि पुराणों में गंगा के प्रदूषित होने की आशंका भी जताई गई थी। जब भागीरथ, गंगा को पृथ्‍वी पर लाने की प्रार्थना कर रहे थे, तब गंगा ने कहा था- ‘ मैं संसार की सबसे दुखी, सबसे अभिशप्‍त रखने वाली नदी बनने वाली हूं। जिस देश में तुम मुझे लेकर आए हो, उसकी सारी गंदगी मुझ में गिराई जाएगी और फिर मेरा उद्धार करने वाला कोई नहीं होगा। जब तक मैं समुद्र में जाती रहूंगी तब तक अभिशप्‍त रहूंगी।‘
रामचंद्र खान ने कहा कि अब यह सच साबित हो रहा है। गंगा लगातार प्रदूषित होती जा रही है और इसके लिए बनने वाली योजना बेहद चिंताजनक हैं।
उन्‍होंने कहा कि अमेरिका में डैम को तोड़ा जा रहा है और भारत में नया बनाने की कोशिश चल रही है। अमेरिकी उदाहरण को भी समझना चाहिए।

चिकित्‍सक डॉ. प्रगति सिंह ने कहा कि गंगा से उनका व्‍यतिगत लगाव रहा है। उन्‍होंने कहा कि हम स्‍वयं दोषी हैं गंगा को प्रदूषित करने में। आस्‍था के नाम पर फूल मालाएं, मूर्तियां व अधजले शव प्रवाहित कर देते हैं। गंगा को बचाने पर लोगों का ध्‍यान ज्‍यादा नहीं जाता है। एक संकल्‍प लेना पड़ेगा कि हमें खुद भी प्रयास करें कि गंदा न करें।
उन्‍होंने कहा कि गंगा के प्रदूषण से बहुत सी बीमारियां फैल रही हैं और इसके इलाज में खर्च बेहद ज्‍यादा हो रहा है। इसलिए गंगा का ऐसा स्‍वरूप ऐसा बनाएं कि गंगा में प्रवाहित होने वाले कचरे को दूर हो सके।
कृषि वैज्ञानिक व राजेंद्र कृषि विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. गोपाल जी त्रिवेदी ने कहा कि प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। हमें प्रकृति के साथ रहने की आदत डालना पड़ेगा। हम चाहते हैं कि प्रकृति को मुट्ठी में बंद कर दें, यह नहीं होना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि भारतवर्ष में गंगा के आस-पास सबसे ज्‍यादा उत्‍पादकता थी। यहां की खेती नदियों की मिट्टी पर होती थी। फसल इतनी अच्‍छी होती थी। नदियों को जोड़ने का बांध बनाने का या अन्‍य योजना बनाकर इसे खत्‍म किया जा रहा है।
टिहरी में बांध बना दिया है। ऐसी आशंका है कि जैसे उत्‍तराखंड और जम्‍मू कश्‍मीर में बाढ़ आ गया, वैसे बारिश हुई तो पूरा बिहार और यूपी डूब जाएगा।
कार्यक्रम में खगडि़या से आए चंद्रशेखर ने भी विचार व्‍यक्‍त किए। 

22.9.14

Break your bad habits - The Hindu

Break your bad habits - The Hindu

बिहार की उच्च शिक्षा के श्राद्ध-कर्म में आप सादर आमंत्रित हैं-ब्रज की दुनिया

22 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों, मैं आपसे पहले भी अर्ज कर चुका हूं कि हमारे बिहार का कबाड़ा करने में जवाब नहीं। जब नेपाल की सरकार ने बिहार में बाढ़ लाने से मना कर दिया तो बिहार सरकार ने राजधानी पटना को ही जलमग्न करवा दिया। आखिर राहत के लिए तैयार सामग्री को कहीं-न-कहीं तो खपाना ही था। वो तो भला हो कश्मीर का वरना बिहार के कई अन्य ईलाकों को भी जलमग्न करना पड़ता।
मित्रों,अब बिहार की शिक्षा को ही लीजिए। बिहार की प्राथमिक शिक्षा का तो पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही गला घोंट चुके थे लेकिन बिहार की उच्च शिक्षा अभी तक साँस लिए जा रही थी। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अब बहुत कम शिक्षक बच गए थे लेकिन दुर्भाग्यवश जो शिक्षक अभी तक रिटायर होने से बचे हुए थे उनमें से कई वास्तव में ज्ञानी थे। अब बिहार सरकार कोई नरेंद्र मोदी तो है नहीं कि वो कहे कि डिग्री के लिए नहीं ज्ञान के लिए पढ़ो। बल्कि उसका तो साफ तौर पर मानना है कि पढ़ो ही नहीं। हम साईकिल दे रहे हैं उसकी सवारी गांठो,हम पैसे दे रहे हैं उससे सिनेमा देखो या इंटरनेट पैकेज भरवाओ,हम पोशाक राशि दे रहे हैं उससे अच्छी-अच्छी पोशाक बनवाओ लेकिन पढ़ो मत। परीक्षाओं में हमने कदाचार की पूरी छूट दे रखी है इसलिए ज्ञान के पीछे,पढ़ाई के पीछे नहीं भागो डिग्री के पीछे भागो। नौकरी झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी। दूसरे राज्यों में अगर प्रतियोगिता परीक्षा के कारण नौकरी नहीं मिली तो हम हैं न। हाँ,इंटर और मैट्रिक की परीक्षा में खूब कागज काले करो और हमारे दिए पैसों में से कुछ बचाकर भी रखो क्योंकि जो शिक्षक तुम्हारी कॉपियाँ देखेंगे उनको भी कहाँ कुछ अता-पता है। वे तो तराजू पर तुम्हारी कॉपियाँ तौल कर ही या फिर तुमसे पैसे लेकर ही तुमको नंबर देंगे। चाहे तुम आईआईटी और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं में पास भी कर जाओ मगर हमारे परीक्षक तो तुमको केमिस्ट्री में 8 और गणित में 5 नंबर ही देंगे। देखा नहीं इसलिए तो हमने मुहम्मद बिन तुगलक से प्रेरित होकर पहले प्राथमिक विद्यालयों में नंबर के आधार पर शिक्षकों को बहाल किया और अब महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की बहाली भी नंबर के आधार पर करने जा रहे हैं।
मित्रों,हमारे मुख्यमंत्री मांझी जी जो कुछ भी बोलते रहते हैं यह भी कह सकते हैं कि गुजरात में भी तो मोदी ने स्कूल टीचर इसी तरह से बहाल किए थे। मगर गुजरात में इस तरह से मस्ती की पाठशाला तो नहीं चलती,परीक्षाएँ ओपेन बुक सिस्टम के आधार पर तो नहीं ली जातीं? बल्कि वहाँ तो वास्तव में ज्ञान के लिए शिक्षा दी जाती है डिग्री के लिए नहीं। अब आप हमारे बैच को ही लीजिए। मैं अपने बैच में प्रतिभा खोज परीक्षा में पूरे जिले में प्रथम आया था। हमेशा ज्ञान के पीछे भागा। जबतक किसी प्रश्न का उत्तर नहीं पा जाता बेचैन रहा करता लेकिन जब मैट्रिक का रिजल्ट आया तो हमारी कक्षा का सबसे भोंदू विद्यार्थी जिसने वाकई विद्या की अर्थी ही निकाल दी थी और जिसको ए,बी,सी,डी और पहाड़ा तक का पता नहीं था उस रंजीत झा को सबसे ज्यादा अंक प्राप्त हुए थे क्योंकि उसकी बोर्ड में पैरवी थी। अब आप ही बताईए कि अगर मुझे और रंजीत को शिक्षक बना दिया जाए तो कौन अच्छा पढ़ाएगा? आप कहेंगे कि आप लेकिन बिहार सरकार तो कह रही है कि रंजीत झा छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए ज्यादा बेहतर साबित होगा भले ही रंजीत झा कभी कक्षा में जाए ही नहीं।  जिसने मैट्रिक,इंटर,बीए और पीजी की परीक्षाओं में जितना ज्यादा कदाचार किया उसके बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की संभावना उतनी ही ज्यादा है।
मित्रों,मेरे ममेरे भाई संतोष को भले ही कुछ नहीं आता हो,थीटा और बीटा के चिन्हों को भी वो पहचान नहीं पाए लेकिन हमारी बिहार सरकार को तो महाविद्यालय में गणित शिक्षक के तौर पर वही चाहिए भले ही सिर्फ कॉलेजों के स्टाफ रूम की शोभा बढ़ाने के लिए। लगता है कि बिहार सरकार इसलिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली नहीं करना चाहती क्योंकि उसको लगता है कि अगर आईए,बीए में ज्यादा-से-ज्यादा नंबर पानेवाले परीक्षा में असफल हो गए तो वह असफलता बिहार की शिक्षा,परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली की असफलता होगी। इससे बिहार की शिक्षा और परीक्षा-प्रणाली की पोल भी खुल जाने का खतरा है। फिर हमलोगों के जैसे ज्ञानी मानव अगर प्रोफेसर बन गए तो विद्यार्थियों में विद्रोह और सरकार के विरोध की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा और हमारे महाविद्यालय और विश्वविद्यालय वास्तव में मस्ती की पाठशाला बन पाने से वंचित रह जाएंगे। विद्यार्थियों को पढ़ना पड़ेगा जिससे उनकी दिमागी हालत पर बुरा असर भी पड़ सकता है।
मित्रों,कहने का मतलब यह है कि बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से बिहार सरकार ने बिहार में महाविद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षकों की बहाली के लिए जो अधिसूचना जारी की है और जो कार्यक्रम तय किए हैं वास्तव में वह बिहार की उच्च शिक्षा का श्राद्ध-कर्म कार्यक्रम है जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।-मान्यवर,बड़े ही हर्ष के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि बिहार की उच्च शिक्षा का डिग्री का दौरा पड़ने से दिनांक 13 सितंबर,2014 को आकस्मिक निधन हो गया है। श्राद्ध-कर्म के लिए कार्यक्रम इस प्रकार निर्धारित किए गए हैं जिसमें आप सभी येन-केन-प्रकारेण उच्च प्राप्तांकधारी आमंत्रित हैं-
क्षौर-कर्म-              दिनांक 20-11-2014 के पाँच बजे शाम तक
बाँकी के एकादशा,द्वादशा को पिंडदान और महाभोज के बारे में आपको जानकारी भविष्य में दी जाएगी।
दर्शनाभिलाषी-महाठगबंधन के सभी सदस्य,
आकांक्षी-जीतनराम मांझी,मुख्यमंत्री,बिहार।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

21.9.14

एक था पप्पू!-ब्रज की दुनिया

20 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,मैं वैसे तो कई पप्पुओं को जानता हूँ लेकिन इनमें से एक पप्पू ऐसा है जो इन दिनों पूरे बिहार को पप्पू बनाने की कोशिश कर रहा है। मैं बात कर रहा हूं श्रीमान राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव जी की। मैंने पहले पहल इन श्रीमान का नाम तब सुना जब पप्पू यादव जी निर्दलीय विधायक हुआ करते थे और किसी दारोगा जी की मूँछें इनको इतनी पसंद आ गई थीं कि इन्होंने उनको जड़ से उखाड़ ही लिया था। बाद में पप्पू जी लालू जी के द्वारा स्थापित यादव राज के प्रतीक बनकर उभरे और इस दौरान इनकी अदावत हुई एक और बाहुबली निर्दलीय विधायक आनंद मोहन के साथ। तब इन दोनों की मुठभेड़ की खबरों से बिहार के अखबार पटे रहते थे। यह वही समय था जब पूरा बिहार आरक्षण की जातीय आग में जल रहा था। यात्रियों को बसों से उतार-उतारकर उनकी जातियाँ पूछकर पीटा जा रहा था। एक बार फिर से पप्पू जी तब चर्चित हुए जेल में होते हुए भी सैर-सपाटा करते हुए पाए गए। इस बीच पप्पू यादव पूर्णिया से निर्दलीय सांसद बन बैठे और पूरा पूर्णिया जिला उनकी कृपा से राजपूत और यादव जातियों के बीच वर्चस्व का अखाड़ा बन गया। पूर्णिया के मरंगा गांव में एक धक्का सिंह नामक व्यक्ति का लाईन होटल था। एक दिन पप्पू जी के आदमी वहाँ चाय-पानी के लिए पहुँचे और उसका नाम पूछा। नाम सुनकर उनको लगा वो राजपूत होगा और बिना किसी दुश्मनी या बकझक के उन्होंने उसको राजपूत समझकर गोली मार दी। बाद में जब पता चला कि वह धक्का सिंह तो यादव है तब उसे लेकर पटना भागे और इस तरह बेचारे धक्का सिंह जी जान बच गई। उन दिनों इस जातीय झगड़े का मुख्य अखाड़ा था पूर्णिया बस स्टैंड।
मित्रों,तब तक एक बार मैं पप्पू यादव जी का 15 अगस्त,1993 के दिन पटना के सब्जीबाग में भाषण भी सुन चुका था। बड़ा बेकार-सा भाषण देते थे वे लेकिन तब तक मैं उनसे सीधे-सीधे प्रभावित नहीं था। वह गुंडा या अपराधी है तो मुझे क्या तब तक मेरे मन में पप्पू यादव को लेकर यही भाव रहता था लेकिन तब मैं यह नहीं जानता था कि इस व्यक्ति के कारण मेरी जिन्दगी तबाह हो जानेवाली है। हुआ यह कि वर्ष 1993 में पॉलिटेक्निक की प्रवेश परीक्षा में बैठा और पास हो गया लेकिन रैंक अच्छा नहीं आया। सो मेरा नामांकन दरभंगा पॉलिटेक्निक में सिविल इंजीनियरिंग में हो गया। दरभंगा पॉलिटेक्निक में जातीय तनाव जैसा कुछ नहीं था इसलिए वहाँ मेरा समय शांति से गुजरा। इसके कुछ महीने बाद ही इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में सीटें खाली हुईँ और तब मैं दरभंगा छोड़कर पूर्णिया पॉलिटेक्निक में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने पहुँचा लेकिन वहाँ का तो माहौल ही अलग था। वहाँ के अधिकतर विद्यार्थी यादव जाति से आते थे और वे सारे यादव विद्यार्थी कथित रूप से पप्पू यादव के आदमी थे। पहले दिन ही मुझसे वहाँ के छात्रसंघ के अध्यक्ष जयराम यादव ने मेरी जाति पूछी और राजपूत सुनते ही नाराज होकर गालियाँ देने लगा। मैं भौंचक्का था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है। हॉस्टल में रहना है तो ठीक वरना 500 रुपया वार्षिक रंगदारी टैक्स देना होगा।
मित्रों,मेरे साथ यादव जाति से आनेवाले विद्यार्थी लगातार काफी बुरा सलूक करते थे जो मेरे लिए नाकाबिले बर्दाश्त था। मैंने भी विरोध किया और अपने स्थानीय मित्र राजकुमार पासवान को साथ लेकर कॉलेज जाने लगा। कक्षा के दौरान ही जाति के आधार पर बंटे छात्रों के बीच अक्सर मारपीट होने लगती। यादव जाति के छात्र बहुधा प्रोफेसरों को भी अपमानित कर डालते थे। इस बीच पूर्णिया में रोजाना हत्याएँ होती थीं। उस समय पूर्णिया में दो आपराधिक गिरोह थे  जिनमें से एक का नेतृत्त्व पप्पू यादव कर रहे थे और दूसरे का नेतृत्त्व था वर्तमान बिहार सरकार में समाज कल्याण मंत्री लेशी सिंह के पति स्व. बूटन सिंह के हाथों में। कभी पप्पू यादव के लोग बूटन सिंह के लोगों को मार देते तो कभी बूटन सिंह के लोग पप्पू यादव के लोगों को। ज्यादातर हत्याएँ पूर्णिया कोर्ट के आसपास होती थीं। पूर्णिया पॉलिटेक्निक के पास ही मरंगा गांव था जो यादवों का गढ़ था इसलिए भी पूर्णिया पॉलिटेक्निक में यादवों का वर्चस्व था। एक बार तो मैंने खुद कचहरी के सामने से पप्पू यादव को अपने आदमी वीरो यादव की लाश के साथ जुलूस निकालते भी देखा था। धड़ाधड़ पूरे शहर की दुकानों के शटर बंद हो गए थे।
मित्रों,धीरे-धीरे स्थिति ऐसी बन गई कि या तो मैं हत्या करता या फिर पूर्णिया पॉलिटेक्निक में ही मेरी हत्या हो जाती। मैं सीधा-सच्चा आदमी था इसलिए मैंने पॉलिटेक्निक में दो सालों की पढ़ाई कर लेने के बाद भी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और इस तरह मेरी जिन्दगी तबाह हो गई। अगर मेरी पढ़ाई पूरी हो गई होती तो मैं आज इंजीनियर होता और आराम की जिन्दगी जी रहा होता लेकिन पप्पू यादव के रंगदारी राज के चलते मेरा कैरियर चौपट हो गया। बाद मेें पप्पू यादव के लोगों ने बूटन सिंह और पूर्णिया के विधायक अजीत सरकार की हत्या कर दी। बाद में पप्पू यादव विभिन्न जेलों में भी रहे मगर फिर कानून की कमजोरियों का लाभ उठाकर बरी भी हो गए।
मित्रों,वही पप्पू यादव आज फिर से सहरसा-मधेपुरा में गरीबों के मसीहा होने का ढोंग कर रहे हैं। मेरा सीधे-सीधे मानना है कि यह व्यक्ति कल भी एक रंगदार था,आज भी है और कल भी रहेगा। यह सिर्फ गरीबों के नाम पर उनको उल्लू बनाकर अपना उल्लू सीधा कर सकता है उनका भला नहीं कर सकता। यह आदमी जातीय वैमनस्यता फैलाकर समाज को पथभ्रष्ट कर सकता है समाज को सही दिशा नहीं दिखा सकता। यह हमारे बिहार की त्रासदी है कि इस तरह का गिरा हुआ आदमी बार-बार चुनाव जीत जा रहा है। चाहे अपराधी को प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति ही क्यों न बना दिया जाए वह मूलतः अपराधी ही रहेगा, देश और समाज को त्रास ही देगा। आपने इस छुटभैय्ये अपराधी को पहले विधायक बनाया फिर एमपी। आपने इस दौरान इसमें क्या परिवर्तन देखा? यह पहले छोटा अपराधी था बाद में बड़ा अपराधी बन गया। अब यह मंत्री-मुख्यमंत्री बनना चाहता है। अगर यह पप्पू यादव जनता को धोखे में रखने में कामयाब हो गया तो निश्चित रूप से इस बार एक-दो नहीं बल्कि सैंकड़ों-हजारों ब्रजकिशोर सिंह को अपनी पढ़ाई अधूरी ही छोड़नी पड़ेगी। इसलिए आपलोगों से मैें हाथ जोड़कर अनुरोध करता हूँ कि इस रंगे सियार की बातों में,झाँसे में आने की भूल कदापि नहीं कीजिएगा। क्या विडंबना है कि जिसको मरते दम तक जेल में होना चाहिए वह व्यक्ति संसद की शोभा बढ़ा रहा है? जिसके हाथ सैंकड़ों अपराधी-निरपराध लोगों के खून से रंगे हुए हैं वह देश के लिए कानून बना रहा है और गंभीर-से-गंभीर मुद्दों पर विचारों की नफासत दिखा रहा है?? यह प्रश्न-चिन्ह वास्तव में हमारे मतदाताओं के विवेक पर लगा प्रश्न-चिन्ह है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

क्या फलदायी होगी बिहार के सीएम की लंदन-यात्रा?-ब्रज की दुनिया

21-09-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर! सरफरोशी की गर तमन्ना है तो सर पैदा कर!! यहाँ कौन सी जगह है जहाँ जलवा-ए-माशूक नही! शौके दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर!!
मित्रों,अब हम बोलेंगे तो बिहार के मुख्यमंत्री कहेंगे कि बोलता है। मगर करें क्या इनका रवैया ही कुछ ऐसा है कि हमको बार-बार बोलना ही पड़ जाता है। अब जब देसी व्यवसायी बिहार में फूटी कौड़ी भी लगाने को तैयार नहीं हैं तब बिहार के मुख्यमंत्री आज लंदन जा रहे हैं विदेशी निवेशकों से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनको प्रत्यक्ष पूंजी निवेश के लिए तैयार करने के लिए। बिहार का दुर्भाग्य है कि यहाँ के नेता-मंत्री बहुत बार विदेशी दौरे कर चुके हैं लेकिन उसका लाभ अभी तक बिहार को चवन्नी का भी नहीं हुआ है। कोई जापान जाकर खेती करना सीखता है तो कोई अमेरिका जाकर जलापूर्ति के तरीके।
मित्रों,अभी पिछले महीने ही बिहार के नगर विकास मंत्री सम्राट चौधरी सीवेज सिस्टम देखने और सीखने के लिए लंदन जाना चाहते थे लेकिन तब इन्हीं जीतनराम मांझी ने उनको जाने नहीं दिया था क्योंकि उस समय पूरा पटना पानी में डूबा हुआ था। आज जबकि पटना में बरसात के पानी का जल-स्तर उस समय से और भी ज्यादा हो गया है तब मुख्यमंत्री खुद लंदन के लिए रवाना हो गए हैं पूँजी निवेश को आकर्षित करने।
मित्रों,जबसे बिहार में सुशासन की सरकार आई है तभी से नीतीश जी भी बिहार में पूंजी आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं और लगातार कर रहे हैं लेकिन बिहार में चंद चवन्नी-अठन्नी के अलावा कुछ आया नहीं। अब हम आते हैं उस शेर पर जिसको हमने आलेख की शुरुआत में ही लिखा था। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर बिहार में पूंजी निवेश चाहिए तो बिहार को ऐसा बनाईए कि लोग खुद ही चुंबक की तरह खिंचें चले आएँ। बिजली दीजिए,सड़कें दीजिए,जमीन दीजिए और सबसे जरूरी है कि अच्छी कानून-व्यवस्था दीजिए। जहाँ के अधिवासी अपने घरों तक में असुरक्षित हों,जहाँ की पुलिस डाका के दौरान फोन करने पर भी घटनास्थल पर हफ्तों तक नहीं पहुँचे और जहाँ अपने जान और माल की सुरक्षा स्वयं करें का नियम चलता हो वहाँ कोई होशमंद तो क्या कोई पागल भी अपनी पूंजी नहीं लगाएगा।
मित्रों,हमारे बिहार में बिजली का जाना नहीं बल्कि आना खबर बनती है। कई-कई दिनों तक लोगों को बिजली के दर्शन तक नहीं होते,सड़कों की हालत तो ऐसी है कि कई बार कुछ सड़कों से गुजरते हुए ऐसा महसूस होता है कि हम बाधा दौड़ में भाग ले रहे हैं। बरसात में अगर सड़कों पर पड़े गड्ढ़ों की गहराई का अंदाजा नहीं हो तो यकीनन आप अगले ही पल में छोटे-छोटे तालाब में मछली पकड़ते नजर आएंगे। उद्योग लगवाना है तो जमीन भी चाहिए और बिहार में कहाँ मिलेगी हजार-500 एकड़ जमीन ईकट्ठे? सड़क-रेल लाईन बनाने के लिए तो कोई किसान जमीन देना नहीं चाहता फिर बिहार सरकार उद्योगों के लिए जमीन कहाँ से लाएगी। कानून-व्यवस्था के बारे में हम थोड़ा-सा संकेत पहले भी दे चुके हैं। बिहार में आप दो-चार करोड़ के सड़क-निर्माण या दस-बीस लाख के स्कूल-भवन-निर्माण का भी ठेका अगर लेते हैं तो आपको दर्जनों छुटभैये रंगदारों का सामना करना पड़ेगा। कभी-कभी तो नक्सली भी पहुँच जाते हैं लेवी मांगने और नहीं देने पर जेसीबी-ट्रैक्टर आदि को फूँक डालते हैं और पुलिस उनकी कोई सहायता नहीं करती बल्कि उल्टे सलाह देती है कि साब! काहे को झंझट में पड़ रहे हो? दे दो न दो-चार लाख रुपया।
मित्रों,जाहिर है कि बिहार के पास अभी ऐसी नजर नहीं है कि उसको शौके दीदार का सौभाग्य मिले। हमारे बिहार में एक कहावत है कि बिन मांगे मोती मिले,मांगे मिले न भीख। मतलब कि किसी राज्य में पूंजी निवेश होगा या नहीं यह उस राज्य की परिस्थिति और योग्यता पर निर्भर करता है। अगर आपने वह योग्यता पैदा कर ली है तो आपको पैसों के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा लोग खुद ही पैसे लेकर आपके पीछे भागेंगे वरना आप लंदन-न्यूयार्क घूमते रहिए कोई आपके ईलाके में फूटी कौड़ी भी नहीं लगाएगा। पता नहीं हमारे मुख्यमंत्री इस हकीकत से वाकिफ हैं भी या नहीं। वैसे सरकारी खर्च पर विदेश-यात्रा पर जाने के लिए कोई-न-कोई बहाना तो चाहिए ही था। राज्य की जनता के दिल को बहलाने के लिए मांझी यह ख्याल अच्छा है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

18.9.14

ख़्वाबों की बातें । (गीत)


ख़्वाबों की  बातें । (गीत)

ख़्वाबों की  बातें, अकसर किया करते  हैं  वो..!
फिर  शब-ए- तन्हाई  में, रोया  करते  हैं  वो..!
 
शब-ए-तन्हाई= रात का अकेलापन;
१.
ज़िंदगी में  कई  हादसे,  आप ने  झेले मगर..!
टूटे ख़्वाबों का  शिकवा  किया  करते  हैं  वो..!
ख़्वाबों की  बातें, अकसर किया करते  हैं  वो..!
 
शिकवा=शिकायत,
२.
बिखरा सा  वो   ख़्वाब  और  अँधेरी  वो  रात..!
हाँ, मातम अब उनका, मनाया  करते  हैं  वो..!
ख़्वाबों की  बातें, अकसर किया करते  हैं  वो..!
३.
ख़्वाबों की  तसदीक़, हम  करें  भी  तो  कैसे..!
शब  होते  हमें, रुकसत  किया  करते  हैं  वो..!
ख़्वाबों की बातें, अकसर किया करते  हैं  वो..!
 
तसदीक़ = सच्चाई की परीक्षा; शब=रात,
४.
इस  ग़म में, हम भी जागे  हैं   कई  रात,  पर..!
अब  हमें, दूर से   सलाम  किया  करते  हैं  वो..!
ख़्वाबों की  बातें, अकसर किया  करते  हैं  वो..!

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१७-०९-२०१४.

17.9.14

नए भारत के विश्वकर्मा को जन्म दिन की शुभकामनाएँ-ब्रज की दुनिया

17 सिंतबंर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,यह कितना बड़ा संयोग है कि आज एक तरफ तो देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा के पूजन का दिन है तो वहीं दूसरी ओर आज भारत के प्रधानमंत्री जिन्होंने नवीन और ऊर्जावान भारत के निर्माण का बीड़ा उठाया है उन नरेंद्र मोदी का जन्म दिन भी है। यह सही है कि लोकतंत्र की अपनी मजबूरियाँ होती हैं लेकिन फिर भी नरेंद्र मोदी अबतक जिस तरह से सरकार का संचालन किया है वह भारत के उज्ज्वल भविष्य की ओर संकेत करने के लिए पर्याप्त है।
मित्रों,मैंने भी मोदी मंत्रिमंडल के गठन के समय कुछ मंत्रियों को मंत्री बनाए जाने को लेकर आपत्ति की थी लेकिन कल यूपी के लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों के जो परिणाम आए हैं उनसे पता चलता है कि कहीं-न-कहीं मोदी जी को भी वोटबैंक का ख्याल रखना पड़ता है। जब तक हमारे देश की जनता मूर्ख है तबतक मोदी जी जैसा देश का भला चाहनेवाला,सिर्फ देश के लिए जीने और मरनेवाला व्यक्ति भी लाचार रहेगा।
मित्रों,क्या कारण है कि कोई राजपूत दलितों का लाख हितैषी होने पर भी उनका नेता,उनके वोटों का ठेकेदार नहीं बन पाता? क्या कारण है कि कोई यादव राजपूत मतों पर अपना दावा नहीं कर पाता? क्या कारण है कि कोई ब्राह्मण बनियों को नेतृत्व नहीं दे पाता? कारण बस एक ही है और वह हमारे मतदाताओं की अपरिपक्वता जो आज भी अपनी जाति के लोगों को अपना नेता मानते हैं भले ही वह दशकों से उनको धोखा देता आ रहा हो। मैंने लोकसभा चुनावों के समय भाजपा के लोजपा के साथ जाने का विरोध किया था लेकिन भाजपा नहीं मानी क्योंकि उसके समक्ष और कोई चारा ही नहीं था। बिहार के दुसाधों के लिए रामविलास पासवान ही एकमात्र नेता हैं और दुसाधों का वोट चाहिए तो रामविलास पासवान को साथ में रखना ही होगा चाहे उनपर भ्रष्टाचार के कितने भी आरोप क्यों न हों।
मित्रों,इसलिए नरेंद्र मोदी को भी कई दागियों को मंत्रिमंडल में रखना पड़ा। लेकिन वाहवाही की बात तो यह है कि नरेंद्र मोदी ने उनलोगों को मनमानी करने की छूट नहीं दी है बल्कि पूरी तरह से शिकंजे में करके रखा है। वास्तविकता तो यह है यह सरकार पूरी तरह से एक ही व्यक्ति पर केंद्रित है और वह हैं नरेंद्र मोदी। मोदी जानते हैं कि अगर सरकार की वाहवाही होगी तो वह भी उनकी ही होगी और अगर बदनामी होगी तो वह भी केवल उनकी ही होगी।
मित्रों,इसलिए शपथ-ग्रहण से पहले कामकाज शुरू कर देनेवाले भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी। यह उनकी अच्छी नीतियों का ही परिणाम है कि इस समय महंगाई दर पाँच साल के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गई है,विकास-दर ने कुलांचे भरना शुरू कर दिया है,बिजली के उत्पादन में 22 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई है,पूँजी-निवेश के क्षेत्र में धन-वर्षा के आसार बनने लगे हैं,भारत के भिखारियों तक के अच्छे दिन आते हुए दिखाई देने लगे हैं,सरकार में गति आई है,कुशलता आई है और 5 सालों तक सरकारविहीन रहे भारत में एक काम करती हुई सरकार नजर आने लगी है।
मित्रों,वैश्विक स्तर पर भी पिछले 100 दिनों में भारत का सिर ऊँचा हुआ है। आज चीन के राष्ट्रपति भारत आ रहे हैं और 100 अरब डॉलर के निवेश के प्रस्ताव ला रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के राष्ट्रपति इस समय वियतनाम में हैं और उन्होंने तेल खोज से संबंधित ऐसे प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं जो निश्चित रूप से चीन को नागवार गुजरेगा लेकिन नरेंद्र मोदी की तो पॉलिसी ही है कि न हम सिर झुकाकर बात करेंगे और न ही सिर पर चढ़कर बल्कि हम आँखों में आँखें डालकर बराबरी के स्तर पर बातचीत करेंगे फिर चाहे सामने रूस हो,अमेरिका हो या चीन हो।
मित्रों,हमारे प्रधानमंत्री पुराने पिट चुके ढर्रे पर काम करने के बिल्कुल भी पक्षधर नहीं हैं तभी तो उन्होंने योजना आयोग नामक बेकार हो चुकी संस्था को समाप्त कर दिया,कई कैबिनेट समितियों का अंत कर दिया और कई ऐसे मंत्रालयों को मिलाकर एक-एक मंत्री ऱख दिया जिनके कामकाज एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। फाइलों को अब पैसे देकर चलवाना नहीं पड़ता बल्कि फाइलें खुद ही चलती हैं स्वचालित मोड में। हमारे प्रधानमंत्री चाहते हैं कि चाहे रक्षा-क्षेत्र हो या इलेक्ट्रॉनिक्स या फिर उपभोक्ता वस्तुएँ सबका उत्पादन भारत में हो और भारत में न केवल इनका निर्माण हो बल्कि पूरी दुनिया में भारत के बने सामान छा जाएँ। उनकी मेक इन इंडिया योजना अगर सफल रहती है तो इससे हमारी अर्थव्यवस्था को तो पर लगेंगे ही साथ ही बेरोजगारी की समस्या का भी स्वतः समाधान हो जाएगा।
मित्रों,कृषि,शिक्षा,पुलिसिंग,न्यायपालिका,खेल,शासन-प्रशासन,आधारभूत संरचना आदि हरेक क्षेत्र में देश में आमूल-चूल परिवर्तन करने की जरुरत है और हमारे प्रधानमंत्री भी यही चाहते हैं कि अब देश सही मायनों में बदले। हमारे बिहार में एक कहावत है कि रास्ता बताओ तो आगे चलो। उनका अभी तक का काम तो यही बताता है कि वे न केवल देश को रास्ता दिखा रहे हैं बल्कि खुद उस रास्ते पर चल भी रहे हैं। जब गांधीनगर से नई दिल्ली आने लगे तो मुख्यमंत्री के रूप में प्राप्त वेतन को अपने चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के बीच बाँट दिया और आज जब माँ ने जन्मदिन के आशीर्वाद के तौर पर 5001 रु. दिया तो उसे भी वतन पर न्योछावर कर दिया। वे सचमुच सबका साथ लेकर सबके विकास पर चल रहे हैं। उनकी संवेदनाओं के दायरे में भारत के युवा,किसान,हस्तशिल्पी,इंजीनियर,डॉक्टर यहां तक कि भिखारी भी हैं,जीव-जंतु भी हैं। न तो रोम एक दिन में बना था और न तो सौ दिनों में एक बर्बाद देश दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र बन सकता है। शीघ्रता तो की जा रही है लेकिन शीघ्रता को भी तो समय चाहिए। न तो हमारे चाहने से समय से पहले वृक्ष फल देने लगेगा और न ही रातों-रात हजारों फैक्ट्रियाँ खुल जाएंगी,चुटकियों में हजारों किमी सड़कें बन जाएंगी और न तो भारत में सरप्लस बिजली का उत्पादन होने लगेगा। इसलिए आईए हम सभी प्रार्थना करें परमपिता परमेश्वर से कि भगवान करें कि नए भारत के स्वप्नद्रष्टा को इतनी शक्ति मिले,इतनी लंबी आयु मिले कि वह अपने सपनों को अपने हाथों अपनी आँखों से साकार होता हुआ देख सके। आमीन!!!!

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

16.9.14

क्या अभी भी भारतीय सैनिकों पर पत्थर फेंकेंगे कश्मीरी?-ब्रज की दुनिया

16 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,रहीम कवि ने कहा है कि
रहिमन बिपदा हूँ भलि जो थोड़े दिन होय,
हित अनहित या जगत में जानि पड़े सब कोय।
कश्मीर के अधिकतर भागों में इन दिनों अचानक सांप्रदायिक सद्भाव कायम हो गया है। क्या मस्जिद,क्या मंदिर और क्या गुरूद्वारा हर जगह हिन्दू,मुसलमान और सिक्ख एकसाथ रह रहे हैं और एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। काश ऐसी एकता बिना आपदा के आए हुए हमेशा बनी रहती! कश्मीर के जलने का बस एक ही कारण है कि कश्मीर मुसलमानबहुल है और मुसलमानों को अपने पंथ के अलावे अन्य कोई पंथ स्वीकार्य ही नहीं है। बाँकी पूरे भारत में जहाँ हिन्दू बहुमत में हैं हिन्दुओं को मुस्लिम सहित दूसरे पंथ के लोगों से कोई परेशानी नहीं है लेकिन मुस्लिमबहुल होने के कारण कश्मीर में पिछले 3 दशकों से अलगाववाद की हवा चल रही है। इसी अलगाववाद ने और इसी विचारधारा ने एक सदी पहले कहा था कि हिन्दू और मुस्लिम दो पंथ नहीं दो राष्ट्र हैं और इसलिए एक देश में एकसाथ नहीं रह सकते  और 1947 में भारत का झूठा धार्मिक और राजनैतिक विभाजन करवाया था जबकि वास्तविकता यह है कि 1947 में मुसलमानों के लिए अलग बने देश पाकिस्तान में जितने मुसलमान हैं आज भी हिन्दूबहुल भारत में उससे कहीं अधिक मुसलमान हैं और अपेक्षाकृत अधिक शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं और सुखी और समृद्ध हैं। यह एक कटु सत्य है कि कुछ दिन पहले तक कश्मीरी लोग भारतीय सेना को देखते ही उन पर पत्थरबाजी करने लगते थे और 15 अगस्त और 26 जनवरी को भारत की शान तिरंगे को फहराने के बदले वे लोग जलाते हैं।
मित्रों,पिछले कई दिनों से कश्मीर में जबसे 109 सालों में सबसे भयानक प्राकृतिक आपदा आई है तभी से कश्मीर घाटी में न तो राज्य सरकार के तंत्र का कहीं अता-पता है और न ही उन अलगाववादियों का ही जो खुद के कश्मीर का वास्तविक रहनुमा होने का दावा करते हैं। इनमें दो पाकिस्तानपरस्तों यासीन मलिक और अहमद शाह गिलानी की तो जान भी उसी भारतीय सेना ने बचाई है जिस पर पत्थर फेंकने के लिए वे लोग कश्मीरियों को उकसाया करते हैं। आज अगर कश्मीरी इस भयंकर विपदा में भी महफूज हैं,जीवित हैं और स्वस्थ हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारे सैनिक बिना सोये,बिना थके दिन-रात उनकी जान बचा रहे हैं और दिन-रात उन तक खाने-पीने के सामान के अलावा दवाइयाँ पहुँचा रहे हैं। उस पर कहीं-कहीँ  कश्मीरियों ने सेना के हेलीकॉप्टर और जहाजों पर पत्थर फेंके हैं फिर भी कश्मीर में केंद्र सरकार और सेना की ओर से अभूतपूर्व तरीके से पूजा-भाव से राहत का काम किया जा रहा है। भारत सरकार के सारे वरिष्ठ अधिकारी इस समय दिल्ली छोड़कर कश्मीर में हैं और राहत-कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। यहाँ तक कि भारत के प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की है कि वे 17 सितंबर को उनका जन्मदिन नहीं मनायें बल्कि जम्मू-कश्मीर के लिए योगदान करें।
मित्रों,टेलीवीजन पर इन दिनों आपदा-पीड़ित कश्मीरियों के जो बयान आ रहे हैं वे इस बात की तस्दीक करते हैं कि कश्मीरियों की इन दिनों अगर कोई मदद कर रहा है वह भारतीय सेना है। शायद यही कारण है कि इन दिनों श्रीनगर में लोगों को हिन्दुस्तानी सेना जिंदाबाद के नारे लगाते हुए देखा जा रहा है। यह एक अद्भुत क्षण है क्योंकि यह सब उस श्रीनगर में देखने को मिल रहा है जहाँ के लोग कुछ दिन पहले तक ही भारतीय सैनिकों को देखते ही पत्थर चलाने लगते थे। कश्मीरी तो कश्मीरी आपदा के समय घाटी में मौजूद पाकिस्तानी सांसदों को भी मानना पड़ा कि इस समय जहाँ देखिए वहाँ देवदूत की तरह मानवता की सेवा में सतत तत्पर सिर्फ भारतीय सैनिक ही दिखाई देते हैं।
मित्रों,सवाल उठता है कि क्या अब कश्मीरी भारतीय सेना पर पत्थर नहीं फेंकेंगे? हमने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि गंगा स्नान करते वक्त एक साधू ने देखा कि एक बिच्छू पानी में डूब रहा है। साधू ने उसे अपनी हथेली पर उठा लिया लेकिन बिच्छू ने स्वभावतः डंक मारा। साधू दर्द से कराह उठा और बिच्छू उसके हाथ से छूटकर फिर से डूबने लगा। जब ऐसा कई बार हुआ तो लोगों ने साधू से कहा कि डूब जाने दीजिए इसे। तब साधू ने उत्तर दिया कि जब यह अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है तो मैं क्यों छोड़ूँ? हो सकता है कि इस कहानी के बिच्छू की तरह कश्मीरी आपदा के टल जाने के बाद फिर से भारतीय सैनिकों पर पत्थर से प्रहार करने लगें लेकिन तब वे इंसान नहीं बिच्छू कहे जाएंगे, इस कहानी के बिच्छू। इंसानियत तो यही कहती है कि एक इंसान को दिल के बदले दिल और जान के बदले जान देनी चाहिए। इंसानियत यह भी कहता है कि जो लोग अहसानफरामोश होते हैं वे इंसानियत के नाम पर कलंक होते हैं। तो क्या कश्मीरी सचमुच बिच्छू हैं,इंसान नहीं हैं। यह हम साबित नहीं कर सकते। यह उनको ही साबित करना होगा और ऐसा सिर्फ और सिर्फ वे ही साबित कर सकते हैं। हम भारतीय तो हमेशा से उनको गले और सीने से लगाने को तैयार हैं मगर क्या वे ऐसा करने के लिए तैयार हैं? 1947 से लेकर अबतक जब-जब कश्मीर को कष्ट हुआ है भारत ने हमेशा उनके जख्मों पर मरहम लगाया है,भाई की तरह जान देकर भी सहायता की है। आज भी जल-प्रलय के समय पूरा भारत कश्मीरियों के साथ खड़ा है मगर अब आगे शेष भारत के साथ हाथ-से-हाथ मिलाकर खड़े होने की बारी कश्मीरियों की है। कश्मीरियों को यह साबित करना ही होगा कि वे कृतघ्न नहीं हैं और वे भी दिल के बदले दिल और जान के बदले जान देना जानते हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मान ना मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज पर समन्वयक बने मुनमुन की बैठक में पार्षदों का ना आना सियासी हल्कों में हुआ चर्चित 
इन दिनों चाहे सोशल मीडिया की हो या मीडिया दोनों पर ही नगरपालिका की राजनीति गर्मायी हुयी है। पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी और उपाध्यक्ष राजिक अकील के बीच नवीन जलावर्धन योजना को लेकर द्वंद छिड़ा हुआ है। तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ ने अपने सिवनी प्रवास के दौरान जिले की नगरपालिका और नगर पंचायतों के लिये सौ करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी। पालिका के इस विवाद में “मान ना मान,मैं तेरा मेहमान ”की तर्ज में सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने इस विवाद को सुलझाने और नगर विकास को लेकर पार्षदों की एक बैठक बुला ली। लेकिन इस बैठक में पार्षद आये ही नहीं। घटिया निर्माण कार्य के कारण चालू होते ही शहर की वर्तमान भीमगढ़ जलावर्धन योजना विवादों के घेरे में रही है। यह योजना शुरू से ही दुगनी बिजली खपत के बाद भी आधा पानी देती रही है जिसके कारण पालिका पर अक्सर ही करोड़ों रुपयों का बिजली बिल बकाया रहता रहा है। शहर में प्रति व्यक्ति 135 लीटर पानी प्रतिदिन दिया जायेगा जिसमें 85 लीटर प्रति व्यक्ति नयी योजना से और 50 नीटर प्रति व्यक्ति पुरानी विवादित सफेद हाथी साबित हो चुकी योजना से प्रदाय किया जाना प्रस्तावित है। ऐसे हालात में नगरपालिका को इस योजना के भारी भरकम बिल के अलावा नयी जलावर्धन योजना का बिजली का बिल भी भरना होगा।
मुनमुन की बैठक में नहीं आये पार्षदंः-इन दिनों चाहे सोशल मीडिया की हो या मीडिया दोनों पर ही नगरपालिका की राजनीति गर्मायी हुयी है। पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी और उपाध्यक्ष राजिक अकील के बीच नवीन जलावर्धन योजना को लेकर द्वंद छिड़ा हुआ है। यहां यह विशेष् रूप से उल्लेखनीय है कि तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ ने अपने सिवनी प्रवास के दौरान जिले की नगरपालिका और नगर पंचायतों के लिये सौ करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी। इस संबंध में मुख्यनगरपालिका अधिकारी द्वारा जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि केन्द्रसरकार, राज्य सरकार और स्थानीय निकाय के द्वारा दिये जाने वाले अंशदान से कुलराशि 47 करोड़ 36 लाख रु. की राशि इस हेतु स्वीकृत की गयी है। साथ ही यह भी बताया गया है कि राज्य तकनीकी समिति द्वारा 62 करोड़ 55 लाख रु. की निविदा लागत स्वीकृत की गयी है। इसमें वर्तमान तथा नवीन जलावर्धन योजना के पांच साल के रख रखाव और संचालित करने का व्यय भी ठेकेदार द्वारा किया जाना प्रसतवित है। इस योजना हेतु स्वीकृत राशि और निविदा की राशि को लेकर ही विवाद प्रारंभ हुआ है। इससे यह सवाल उठना स्वभाविक ही है कि आखिर 15 करोड़ 19 लाख रु. की अतिरिक्त राशि निविदा में कैसे आयी और अंतर की यह राशि पालिका को मिलगी कहां से? आम तौर पर यह माना जा रहा है कि ये अंतर की राशि की बंदर बांट करनंे के लिये ही बढ़ायी गयी है। इसे लेकर पालिका के कांग्रेसी पार्षद लामबंद हो गयें हैं वहीं पालिका के भाजपा पार्षदों का भी अपने अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी को समर्थन नहीं है। बीते कई दिनों से दोनों पक्षों का यह विवाद सुर्खियों में बना हुआ है। यह भी सही है कि जब किन्हीं दो पक्षों के बीच विवाद हो जाता है तो उसे सुलझाने के लिये दोनों ही पक्ष अपने किसी विश्वास प्राप्त व्यक्ति को पंच बनाकर उसे सुलझाने का काम करते है। लेकिन पालिका के इस विवाद में “मान ना मान,मैं तेरा मेहमान  ”की तर्ज में सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने इस विवाद को सुलझाने और नगर विकास को लेकर पार्षदों की एक बैठक बुला ली। लेकिन इस बैठक में पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी के अलावा भाजपा पार्षद श्याम शोले के अलावा कोई भी पार्षद उसमें नहीं आया। कुछ अखबारों में यह भी छपा कि कांग्रेस पार्षद दल के नेता शफीक पार्षद भी उसमें उपस्थित थे। इसके बावजूद भी विधायक मुनमुन राय ने अपनी निधि से नगर विकास के लिये 25 लाख रु. की राशि देने की घोषणा की जो कि शायद इस बैठक का मुख्य उद्देश्य था। हालांकि यह कहना भी गलत होगा कि मुनमुन को नपा के मामलो से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि यह उनके विस क्षेत्र के मुख्यालय की पालिका है लेकिन नपा चुनाव के दो तीन महीने पहले ही नगर की सुध लेना कुछ और ही कहानी कहती नजर आ रही है। राजनैतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि नपा में चुनावों में भाजपा की जीत हार में मुनमुन की भूमिका ही निर्णायक रहने वाली है। इसमें उन्हें अपने चुनाव में नगर में मिली भारी बढ़त और मुस्लिम वार्डों में मिले वोटों को कारण बताया जा रहा है। इसमें उनकी क्या रणनीति होगी? यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा।
भाजपा राज में वेदसिंह और इंका राज में आशुतोष भी नही करा पाये थे जांचः- घटिया निर्माण कार्य के कारण चालू होते ही शहर की वर्तमान भीमगढ़ जलावर्धन योजना विवादों के घेरे में रही है। यह योजना शुरू से ही दुगनी बिजली खपत के बाद भी आधा पानी देती रही है जिसके कारण पालिका पर अक्सर ही करोड़ों रुपयों का बिजली बिल बकाया रहता रहा है।शहर के लिये सफेद हाथी साबित हो चुकी इस योजना की जांच के लिये कांग्रेस शासनकाल में सिवनी विस के इंका प्रत्याशी रहे आशुतोष वर्मा ने इस मुद्दे पर जांच की मांग तो कांग्रेस शासनकाल में जरूर उठायी लेकिन कोई कारगर जांच नहीं हो पायी। इसके बाद जब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ तो उमा भारती के शासनकाल में जिला भाजपा अध्यक्ष रहे वेदसिंह ठाकुर ने फिर एक बार इस मामले में शिकायत की लेकिन इस परियोजना की फिर भी जांच नहीं हो पायी। इसमें घपले करने वाले हाथ काफी ताकतवर थे। इस योजना के क्रियान्वयन के दौरान सिवनी में पदस्थ पी.एच.ई. के कार्यपालन यंत्री जोशी जबलपुर संभाग के संघ के प्रमुख स्तंभ रहे स्व. बाबूराव जी परांजपे के निकट रिश्तेदार थे और उस विभाग के मंत्री उस दौरान स्व. हरवंश सिंह थे। उस वक्त इस योजना के घटिया काम को लेकर एक दुर्गा मंड़प में झांकी भी लगायी गयी थी। तकनीकी लोगों का यह मानना है कि इस योजना में निर्धारिम मानदंड़ों के पाइप नहीं लगे है। जितनी रफ्तार और मात्रा में पानी फेंकने के लिये मोटर पंप लगाये लगाये हैं उसकी लगभग आधी क्षमता के पाइप का उपयोग किया गया है। इसीलिये टेस्टिंग के समय जब पूरी रफ्तार से पानी छोड़ा गया था तो छोटे मिशन स्कूल के पास एक जमीन से उखड़कर लगभग खड़ा हो गया था और एक बड़ी दुर्घटना होने से बच गयी थी क्योंकि कुछ समय पहले ही स्कूल की छुट्ठी हो चुकी थी। उसके बाद से मोटर पंपों से लगभग आधी मात्रा ममें नियंत्रित करके पानी छोड़ा जाता है जिसके कारण पंप अपनी क्षमता से दुगने समय तक चलने के बाद भी शहर की स्ीाी टंकियशें को दिन में एक बार भी पूरा नहीं भर पाते थे जबकि तकनीकी स्वीकृति के अनुसार दिन में दो बार में 12 एमएलडी पानी टंकियों में भरा जाना चाहिये था। दुगने समय तक पंपों को चलाने कारण प्राकल्लन में किया गया विद्युत खपत का आकलन फेल हो गया और लगभग दुगनी बिजली की खपत होने लगी जिसका बोझ नगरपालिका आज भी नहीं झेल पा रही है। हाल ही में जो प्रस्ताव जलावर्धन योजना को लेकर सामने आयें हैं उसके अनुसार शहर में प्रति व्यक्ति 135 लीटर पानी प्रतिदिन दिया जायेगा जिसमें 85 लीटर प्रति व्यक्ति नयी योजना से और 50 नीटर प्रति व्यक्ति पुरानी विवादित सफेद हाथी साबित हो चुकी योजना से प्रदाय किया जाना प्रस्तावित है। ऐसे हालात में नगरपालिका को इस योजना के भारी भरकम बिल के अलावा नयी जलावर्धन योजना का बिजली का बिल भी भरना होगा। ये कैसे संभव होगा? इसे लेकर नगर के सभी कर्णधार फिलहाल तो मौन ही है। “मुसाफिर”
साप्ता. दर्पण झूठ ना बोले, सिवनी
16 सितम्बर 2014 से साभार 

14.9.14

यह मेरा हिन्दी दिवस नहीं है दोस्त!-ब्रज की दुनिया

14 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,पिछले कई दशकों से जबसे मैंने होश संभाला है मैं देखता आ रहा हूँ कि भारत और दुनियाभर के हिन्दी जन आज 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं। पता नहीं क्यों मनाते हैं? न तो इस दिन भारत में पहली बार हिन्दी बोली गई और न ही इस दिन हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया। अलबत्ता 14 सितंबर,1949 को हिन्दी के साथ धोखा जरूर किया गया था जब यह कहा गया कि हिंदी भारतीय गणतंत्र की राजभाषा तो होगी लेकिन तबसे जब यह इसके लायक हो जाएगी। लायक तो भारत 1947 में प्रजातंत्र के लिए भी नहीं था फिर क्यों लागू किया वयस्क मतदान वाले प्रजातंत्र को? संविधान के अनुच्छेद 343 (2) के अनुसार इसे भारतीय संविधान लागू होने की तारीख़ अर्थात् 26 जनवरी, 1950 ई. से लागू नहीं किया जा सकता था, अनुच्छेद 343 (3) के द्वारा सरकार ने यह शक्ति प्राप्त कर ली कि वह इस 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रख सकती है। रही–सही क़सर, बाद में राजभाषा अधिनियम, 1963 ने पूरी कर दी, क्योंकि इस अधिनियम ने सरकार के इस उद्देश्य को साफ़ कर दिया कि अंग्रेजों के शासन के खात्मे के बाद भी अंग्रेज़ी की हुक़ूमत देश पर अनन्त काल तक बनी रहेगी। इस प्रकार, संविधान में की गई व्यवस्था 343 (1) हिन्दी के लिए वरदान थी परन्तु 343 (2) एवं 343 (3) की व्यवस्थाओं ने इस वरदान को अभिशाप में बदल दिया। वस्तुतः संविधान निर्माणकाल में संविधान निर्माताओं में जन साधारण की भावना के प्रतिकूल व्यवस्था करने का साहस नहीं था, इसलिये 343 (1) की व्यवस्था की गई। परन्तु अंग्रेज़ीयत का वर्चस्व बनाये रखने के लिए 343 (2) एवं 343 (3) से उसे प्रभावहीन कर देश पर मानसिक ग़ुलामी लाद दी गई।
मित्रों,मैं तो हिन्दी दिवस उस दिन की याद में मनाऊंगा जब हिन्दी को वास्तव में भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा घोषित कर दिया जाएगा। जब हमारा संविधान कहेगा कि आज से और अभी से हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा है न कि यह कि हिन्दी भारतीय गणतंत्र की राजभाषा तो होगी लेकिन कब पता नहीं। यह हम हिन्दीभाषियों और हिन्दी भाषा के लिए हर्ष का विषय है कि इस समय भारत की बागडोर एक ऐसे प्रधानमंत्री के हाथों में है जो देश तो क्या विदेश में भी हिन्दी ही बोलता है। इतना ही नहीं वर्तमान केंद्र सरकार हिन्दी को लेकर काफी संवेदनशील भी है जिसका प्रमाण हमें तब मिला जब सी-सैट में हिन्दी भाषा के पक्ष में सरकार ने निर्णय दिया। परन्तु सच्चाई यह भी है कि वर्तमान केंद्र सरकार अभी संसद में इतनी ताकतवर नहीं है कि वह बेझिझक होकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने का फैसला ले सके। इसलिए हम हिन्दी जनों को चाहिए कि आनेवाले विधानसभा चुनावों में एनडीए को भारी बहुमत से जिताकर राज्यसभा में भी उसका बहुमत स्थापित करें जिससे उसके पास यह बहाना नहीं रह जाए कि अगर हमारे पास दोनों सदनों में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने लायक बहुमत होता तो हम जरूर ऐसा करते। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह केंद्र सरकार हिन्दी की ताकत को बखूबी जानती है इसलिए यह जरूर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने की ताकत दे सकती है।
मित्रों, हिंदी बहती नदी है और लगातार नई होती रहती है इसलिए उसका विकास भी हो रहा है लेकिन हम देखते हैं कि अभी भी हिन्दी में विज्ञान और इंजीनियरिंग की पुस्तकें कम हैं और अगर हैं भी तो उनकी भाषा ऐसी है जो हमारी रोज की बोलचाल की भाषा से बिल्कुल ईतर है इसलिए इस ओर ध्यान देना पड़ेगा। यह भी कटु सत्य है कि हम अब अपने बच्चों को हिन्दी माध्यम से शिक्षा देना नहीं चाहते जिससे हिन्दी को भारी नुकसान हुआ है क्योंकि अपेक्षाकृत ज्यादा तेज दिमागवाले बहुमत युवा भले ही कामचलाऊ हिंदी जानते हों लेकिन वे हिंदी से प्रेम नहीं करते,अपने हिन्दी ज्ञान पर गर्व नहीं करते। ऐसे हालात में भला कैसे हिन्दी का कारवाँ आगे बढ़ेगा? यह भी सच है कि आजादी के पहले भी हिन्दी के लेखक और कवि गरीबी में दिन गुजारते थे और आज आजादी के 67 साल बाद भी मुफलिसी ही उनकी किस्मत है,जिंदगी है। बदलते परिवेश में हमें ऐसे प्रबंध करने होंगे जिससे इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य उपलब्ध हो और इस तरह से उपलब्ध हों कि पढ़नेवालों को पढ़ने से पहले कुछ आर्थिक योगदान जरूर करना पड़े। तभी हिन्दी साहित्य बचेगा और हिन्दी के साहित्यकार बचेंगे क्योंकि आज के युवा किताबों के पन्ने पलटने में यकीन नहीं रखते बल्कि वे तो सीधे गूगल बाबा की शरण लेते हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

अपनी भाषा अपनी माटी

अपनी भाषा अपनी माटी

 (हिंदी दिवस पर )

जब तक हम अपनी भाषा और माटी पर गर्व करना नहीं सीखेंगे तब तक बदलाव
कागज के फूल से मिलने वाली खुशबु की तरह झूठा है। जब देश स्वतन्त्र नहीं था
तब इस देश के लोग हिंदी या मातृभाषा का उपयोग करते थे और स्वतंत्रता के बाद
हम फिरंगी भाषा के गुलाम होते गये,आज गाँव से महानगर तक हर कोई अंग्रेजी
का आशिक होता जा रहा है ,आज कहीं भी किसी को अपनी भाषा को छोड़ने का
मलाल नहीं है और जानबूझ कर अनावश्यक होते हुए भी विदेशी भाषा बोलने पर
शर्म नहीं है। हिन्दी की समस्या वह पढ़ा लिखा समाज है जो अंग्रेजी की जी हजुरी
करता रहा है।

पिछले 65 वर्षों में हमारी सरकार ने हिंदी भाषा को कुछ नारे के अलावा क्या दिया।
इस देश के संत्री से मंत्री टूटी फूटी अंग्रेजी बोलने में गर्व महसूस करते हैं जबकि
सहज रूप से सभी को समझ में आने वाली हिंदी बोलने से भी कतराते हैं। देश के
भूतपूर्व प्रधान मंत्री जब सँसद में बोलते थे जो यदा कदा हिंदी में बोलते थे ,कुछ
राजनेता तो वोट लेने के खातिर हिंदी बोलने का दिखावा करते हैं ऐसे में हिंदी का
विकास कैसे हो ?

अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद क्लिष्ट हिंदी में जानबूझ कर किया जाने लगा ?सिर्फ
यह जताने के लिए कि अंग्रेजी सरल भाषा है। सरकारी काम काज में अंग्रेजी का
उपयोग हिंदी भाषा की दुर्दशा करता रहा है। आज विश्व में कितने जापानी,चीनी
अमेरिकी हिन्दी भाषा पर प्रभुत्व रखते हैं ?और कितने भारतीय अंग्रेजी भाषा
पर प्रभुत्व रखते हैं ? हर बार देशी अंग्रेजी पंडित फिजूल का तर्क रखते हैं कि
अंग्रेजी के बिना विश्व स्तर पर तरक्की करना असंभव है जबकि चीन जापान
अपनी भाषा में काम करके विश्व को उनके देश की भाषा सीखने की स्थिति बना
चुके हैं। एक अंग्रेज यात्री जब भारत आता है तो हिंदी के काफी शब्द सीख कर
आता है और वह जब किसी  हिन्दुस्तानी से "नमस्कार" के प्रत्युत्तर में "good
morning "सुनता है तो भौंचक्का रह जाता है।

हिंदी के गौरव के लिए देश के साँसद सँसद में हिंदी में अनिवार्य रूप से बोले,
हर साँसद को अपनी मातृभाषा के साथ सहज हिंदी में बोलने का अभ्यास
करना चाहिए,अंग्रेजी बोल कर काम निकालने का रास्ता बंद करना चाहिए।
हमें विश्व की भाषाएँ सीख कर ज्ञान की वृद्धि करनी है परन्तु अपनी भाषा का
अपमान नहीं करना चाहिए। किसी भी विदेशी के साथ उसकी भाषा में बात
करना अच्छी बात है पर अपने ही देश में एक दूसरे से अन्य देश की भाषा में
बात करना एक ओछी हरकत के अलावा विशेष कुछ नहीं है।

हिंदी सप्ताह नहीं ,हिंदी पखवाड़ा नहीं ,365 दिन हिंदी में काम यह लक्ष्य होना
चाहिये। हिन्दुस्थान को समझना है तो हिंदी जानना और उपयोग में लाना
जरुरी है।         

13.9.14

श्वेता बसु शिकार है या शिकारी?-ब्रज की दुनिया

13 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,पिछले दिनों मकड़ी,इकबाल जैसी प्रसिद्ध फिल्मों की हिरोइन श्वेता बसु को वेश्यावृत्ति करते हुए रंगेहाथों पकड़ा गया। तभी से बॉलीवुड में इस बात पर एकतरफा बहस छिड़ी हुई है कि श्वेता बसु ने जो कुछ भी किया है क्या वह सब भारत में और भारतीय लड़की के लिए करना सही है? यह बहस इसलिए एकतरफा है क्योंकि अभी तक किसी भी हिन्दी फिल्म या टेलीवीजन शख्सियत ने यह नहीं कहा कि श्वेता ने गलत किया बल्कि साक्षी तंवर और दीपिका पादुकोण ने उल्टे श्वेता को ही सही ठहराया है और कहा है कि उसके सामने और रास्ता ही क्या था?
मित्रों,तो क्या सचमुच श्वेता के सामने जिस्म बेचने के अलावा धनार्जन का और कोई रास्ता नहीं बचा था? क्या फिल्मी हीरोइनों के सामने हमेशा दो ही विकल्प होते हैं कि या तो वह फिल्मों में काम करे या फिर वेश्यावृत्ति करे? मैं नहीं मानता कि यह सच है। कोई भी अभिनेत्री अन्य महिलाओं की तरह ही बहुत सारे अन्य काम भी कर सकती हैं। अभिनय के लिए टीवी की विशाल दुनिया है तो वहीं फैशन,मॉडलिंग,ब्यूटी पार्लर,बूटिक,भोजनालय,रेस्टोरेंट,शिक्षण आदि बहुत सारे ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें अभिनेत्रियाँ हाथ आजमा सकती हैं और ईज्जत के साथ पैसे कमा सकती हैं। लेकिन यहाँ कठोर संघर्ष करना पड़ेगा और एटीएम मशीन की तरह झटपट हाथों में पैसा नहीं आएगा।
मित्रों,हमारी युवा पीढ़ी के साथ सबसे बड़ी समस्या भी यही है कि उनके पास धैर्य नहीं है। वे चाहते हैं कि पलक झपकते ही उनका बैंक अकाउंट पैसों से लबालब भर जाए। जबकि ऐसा कहानियों में तो संभव है लेकिन हकीकत में नहीं। मैंने वर्षों पहले अमेरिकन पॉप स्टार मैडोना जो हमारी कई हिन्दी फिल्म अभिनेत्रियों की घोषित आदर्श हैं का इंटरव्यू कहीं पढ़ा था जिसमें उन्होंने कहा था कि जब न्यूयार्क आने के बाद उनके पास पैसे नहीं थे तब उसने नौकरी नहीं खोजी थी बल्कि वासना के सौदागर को खोजा था और अपनी अस्मत बेचकर गुजारा किया था।
मित्रों,ऐसा यूरोप और अमेरिका की महिलाओं के लिए तो सही हो सकता है लेकिन भारत की स्त्रियों से हम ऐसी अपेक्षा नहीं रख सकते। बल्कि भारत की संस्कृति तो स्त्रियों से यह अपेक्षा रखती है कि उसे चाहे कितने भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े अपनी ईज्जत और अपने सम्मान को बचाए। मैडोना और सनी लियोन श्वेता बसु,साक्षी तंवर या दीपिका पादुकोण जैसी विदेशी मानसिकतावाली महिलाओं के लिए तो उनका आदर्श हो सकती हैं लेकिन भारत की एक आम औरत के लिए नहीं। हरगिज नहीं।। भारत में प्राचीन काल से ही कौमार्य की अंतर्राष्ट्रीय नीलामी करने की परंपरा नहीं रही है बल्कि जान देकर भी उसकी रक्षा करने वाली पद्मिनियों के जौहर की प्रथा रही है और यही भारतीयता है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

भक्तराज हनुमान को तो बक्श देते ठगों!?-ब्रज की दुनिया

13-09-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हमारे बिहार में एक कहावत अरसे से प्रचलित है कि कमानेवाला लहरें गिनकर भी पैसे कमा लेता है। फिर धर्म के नाम पर लोगों को ठगना तो काफी आसान होता है। लोगों की आस्था और विश्वास के नाम पर ठगी का धंधा इस धरती पर अनादि काल से ही चलता आ रहा है और कदाचित आगे भी चलता रहेगा लेकिन हनुमान जी के नाम पर ठगी? बेचनेवालों ने अपना ईमान तो बेचा ही भक्तराज हनुमान को भी सोने का पानी चढ़ाकर बेच दिया?
मित्रों,आजकल कई महीनों से दिन-रात विभिन्न टीवी चैनलों पर हनुमान चालीसा युक्त जन्तर का विज्ञापन प्रसारित किया जा रहा है। लोगों का विश्वास जीतने के लिए कई टीवी और फिल्मी कलाकारों से कहलवाया जाता है कि इस जन्तर (यंत्र) को पहनते ही उनके अच्छे दिन आ गए। यहाँ तक कि इस षड्यंत्र में भारत कुमार मनोज कुमार,भजन सम्राट अनूप जलोटा और मशहूर संगीतकार रवीन्द्र जैन को भी शामिल कर लिया गया है।
मित्रों,यह तो सही है कि हनुमान चालीसा इस दुनिया का सबसे शक्तिशाली मंत्र है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम उसका जन्तर बनाकर गले में धारण कर लें। हनुमान तो महाभक्त हैं। महात्यागी हैं। उनको तो लेना-देना है सिर्फ राम से और राम के नाम को जपने से। उनको क्या लेना-देना सोने और चांदी से? वास्तव में करणीय तो शुद्ध अंतर्मन से हनुमान जी और राम जी की भक्ति है। फिर भी आप दुःख का भागीदार होने से बच नहीं पाएंगे क्योंकि सुख और दुःख तो रथ के पहिये के दो हिस्सों के समान हैं जो बारी-बारी से हमारे सामने आते रहते हैं। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि कर्म करो भाग्य के पीछे मत भागो क्योंकि तुम्हारा कर्मफल तुम्हें प्राप्त होकर ही रहेगा और उसी से तुम्हारा भाग्य भी बनेगा फिर कैसे इस सोने का पानी चढ़ा यंत्र पहन लेने से जीवन में सिर्फ और सिर्फ अच्छे परिणाम ही आने लगेंगे?
मित्रों,यथार्थ तो यही है कि चाहे हम इस यंत्र को धारण करें या नहीं हमारे जीवन पर कोई फर्क नहीं आनेवाला लेकिन अगर हम इन ठगों जिसके मुखिया कोई बाबा मंगलनाथ हैं की बातों में आ जाते हैं तो ये ठग जरूर मालामाल हो जाएंगे और आपको बेवजह अपनी मेहनत की कमाई का एक मोटा हिस्सा खो देना पड़ेगा। हममें से बहुत-से लोग ऐसे होंगे जो कर्म के बदले भाग्य के पीछे भागकर अपना बहुत सारा धन और समय बर्बाद कर चुके हैं। मेरी ऐसे मित्रों को सलाह है कि वे जो कुछ भी काम कर रहे हैं उसमें अटूट विश्वास रखें और लगातार अथक परिश्रम करते रहें आपको आपके कर्म का फल जरूर मिलेगा। सुख भी मिलेगा और दुःख भी मिलेगा। कभी-कभी तो दुःख भी सुख में लिपटकर मिलता है जिसका हमें पता ही नहीं चल पाता है। इसी तरह कभी-कभी सुख भी दुःख में लिपटा रहता है और हम बेवजह परेशान हुए रहते हैं। भगवान पर विश्वास रखें और उससे कहीं ज्यादा खुद पर यकीन रखें और जीवन में जो कुछ भी मिलता है उसे सहर्ष स्वीकार करते चलें। मन को शुद्ध करें तो भगवान खुद ही आकर उसमें बस जाएंगे और फिर आपको परमसुख अर्थात् उनकी निर्बाध भक्ति पाप्त होगी वो भी जन्म-जन्मांतर तक।
मित्रों,ऐसा नहीं है कि मैं आपको कोरे उपदेश दिए जा रहा हूँ। सच्चाई तो यह है कि मैं खुद भी इन दिनों बेहद कठिन संघर्ष के दिनों का सामना कर रहा हूँ। मेरी शादी 12 जून,2011 को ही हो चुकी है लेकिन आज भी मैं अपनी पत्नी से अलग रह रहा हूँ और पिछले दो-ढाई सालों से खुद अपने हाथों से भोजन बनाने सहित घर के सारे काम कर रहा हूँ और अपनी वेबसाईट हाजीपुर टाईम्स का अकेले संचालन भी कर रहा हूँ जबकि विवाह से पहले मैंने कभी चाय तक नहीं बनाई थी। मैं अपने माता-पिता की शिव-पार्वती भाव से अपने हाथों से सेवा कर रहा हूँ और खुश हूँ। मेरा विवाह होते ही मेरे अधिकतर सगे-संबंधियों का मेरे प्रति व्यवहार बदल गया। यहाँ तक कि माँ भी बदल गई लेकिन मैं घबराया नहीं और पूरी दृढ़ता के साथ हालात का सामना कर रहा हूँ। मुझे खुद में और ईश्वर में अटूट विश्वास में विश्वास है इसलिए मैंने तो हनुमान चालीसा यंत्र नहीं मंगवाया। दोस्तों,हारिए न हिम्मत बिसारिए न हरिनाम।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

11.9.14

सेना के फरिश्तों को सलाम!

जम्मू कश्मीर में उपजे भयानक हालातों में सेना के फरिश्ते ही पूरी मेहनत से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।  मुसीबत में फंसे लोगों की यही जान बचा रहे हैं. आये दिन नौटंकी करने वालों को भी समझ आ रहा होगा कि उनके असली रहनुमा कौन हैं? हमें अपने सैनिकों पर गर्व है। जय हिन्द!

क्या एयरटेल मनी दूसरी जेवीजी बनने जा रही है?-ब्रज की दुनिया

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। दोस्तों आपको याद होगा कि आज से करीब 20 साल पहले बिहार में कारोबार करनेवाली कई नन बैंकिंग कंपनियाँ गरीब बिहारियों की अरबों रुपये की धनराशि लेकर कैसे फरार हो गई थी। कुछ ऐसा ही डर अब बिहार के लोगों के मन में एयरटेल मनी को लेकर बैठने लगा है। 27 अगस्त को हाजीपुर टाईम्स से टेलीफोनिक बातचीत में एयरटेल मनी के हाजीपुर और छपरा के प्रमुख राकेश कुमार ने बताया था कि अगले 4 दिनों में कंपनी उपभोक्ताओं के पैसों को रिटेलरों के अकाउंट में डाल देगी लेकिन दुर्भाग्यवश अबतक भी ऐसा नहीं किया गया है।

इस बारे में जब कंपनी के बिहार प्रभारी मनीष से 9631949898 पर संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि राकेश कुमार ने जो कुछ भी कहा है वह पूरी तरह से गलत है। दरअसल कंपनी ने एयरटेल मनी से बिजली बिल अदा करनेवाले उपभोक्ताओं का विवरण विद्युत बोर्ड को भेज दिया है। उन्होंने आज के बारे में आश्वासन दिया कि वे बिजली बोर्ड से बात करके बताएंगे कि इस बारे में कहाँ तक प्रगति हुई है लेकिन आज जब हमने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वे स्वयं हमसे थोड़ी देर में संपर्क करेंगे। कई घंटे तक जब उनका फोन नहीं आया तो हमने ही उनको फोन किया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राकेश की तरह मनीष भी झूठ बोल रहे हैं? क्या एयरटेल मनी उनके पैसे पचा जाएगी? विदित हो कि बिहार के जिन उपभोक्ताओं ने सरकार द्वारा एयरटेल मनी से बिजली बिल जमा करने की सुविधा का उपयोग किया है उनके बिजली बिल से वह राशि कई महीने बाद भी घटाई नहीं गई है जिससे वे खासे परेशान हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

9.9.14

अलगाववादी क्या अब भी सेना को कहेंगे GO BACK ?

अलगाववादी क्या अब भी सेना को कहेंगे GO BACK ?

हमारे कश्मीर पर आई विपदा से आज सेना झुंझ रही है और इस विपदा में अपने प्राण
न्योछावर करके भी कश्मीरी भाई बहनों का जीवन बचा रही है। कश्मीर की अलगाववादी
ताकतें की जबान से अभी सेना के प्रति GO BACK के शब्द नहीं निकल रहे हैं और
पाकिस्तान फिरस्त ये अलगाववादी ताकते भारत के कश्मीर और पाकिस्तान के हिस्से
के कश्मीर के राहत काम को देख भी रही है। आज पूरा भारत अपने कश्मीर के लिए
तन मन धन से सहयोग कर रहा है ,आज भारतीयों के मन में जातिवाद का जहर
नहीं है सबके मन में बची है तो विपदिग्रस्त भारतीयों की जिंदगी को पटरी पर लाने की
आशा। जो लोग धारा 370 का विरोध करते हैं क्या वो अब भी यही कहेंगे कि कश्मीर को
उसके हाल में मरने दो,नहीं ना। कश्मीर हमारा है और कश्मीरी भी हमारे हैं यह भाव
देश की सरकार में ह्रदय से बह रहा है,मोदी को सांप्रदायिक कहने वाली कांग्रेस और मिडिया
जमात और धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटने वाले वोट बैंक वाले नेता चुप हैं। क्या देश के
अल्पसंख्यक इस बात को समझेंगे की कौन पार्टियाँ देश में धर्म के नाम पर सत्ता का सुख
भोगना चाहती है ? क्या हिन्दुओं को सांप्रदायिक कहने वाले चैनल आज सच्चे धार्मिक समभाव
को देख कर अपने पिछले कुकर्मों पर अफ़सोस जाहिर करेंगे कि वे भी जाने अनजाने में
जाती और धर्म के आधार पर मक्कार नेताओं की बातों में आकर भारतीयों को अलग करने
के खेल में शामिल थे।

कश्मीर की जनता आज जो कुछ महसूस कर रही है वह सकारात्मक दृष्टिकोण लम्बे
समय तक बनाये रखें। ये भारतीय जवान आज अपने प्राणों का मोह त्यागकर आपकी
जिन्दगी को बचा रहे हैं ,क्यों ?क्योंकि आप भारतीय हैं। 125 करोड़ भारतीय अपने
कश्मीर को तबाह होते नहीं देखेंगे उसे स्वर्ग बने रहने देंगे और इसके लिए प्रयास भी
करेंगे। क्या कश्मीरी भाई बहन भी भारतीय फौजी भाई की सलामती के लिए भविष्य
में कुछ करेंगे ?हमारे फौजी जवानों का भी परिवार है वे भी किसी के भाई हैं ,पिता हैं ,
पुत्र हैं ,जब पाकिस्तानी आतंकी घाटी में घूम कर उन पर हमला करते हैं तो कश्मीरियों
का फर्ज बनता है उस समय उन आतंकियों को पनाह ना दे.पाकिस्तान जिंदाबाद के
नारे मत लगाये,हिन्दुस्तानी तिरंगे का अपमान ना करे और ना होने दे। अपने देश की
फौज का साथ दे ,उन्हें सही सुचना से अवगत कराते रहे।

कभी कभी विपत्तियाँ भी सौगात लेकर आती है। इस विपति में जो धन हानि हुयी है
उसकी भरपाई हो जायेगी ,यह समय चिंता का नहीं है ,आज सभी भारतीय और विशेष
कर वो अल्पसंख्यक समुदाय जो गुमराह में है प्रण करे कि हम भी भारतीय हैं,भारत
की रक्षा के लिए काम करेंगे, बहुसंख्यक की भावनाओं का आदर करेंगे उनकी बहु -
बेटियों की इज्जत करेंगे।

मोदीजी आपने गुजरात को हर प्राकृतिक आपदा से बचाया और खड़ा किया ,आज
धर्म का तकाजा है आप कश्मीर का नवसृजन करेंगे,आपके पास आज प्रकृति भी
भारतीय एकता की सौगात देने के लिए विपदा के रूप में आई है आप मुकाबला कर
रहे हैं ,जब तक विपति हार नहीं जाती तब तक लड़िये और कश्मीरियों की हर संभव
सहायता कीजिये,शायद नियति आपसे बहुत कुछ करवाना चाहती है जो भारत के
हित में है।          

तेज धार



हम में से अधिकांश व्यक्ति काफी मेहनत करते हैं और मेहनत के अनुपात में कम
फल प्राप्त करते हैं इसका मतलब यह नहीं होता है कि मेहनत करने से ऊर्जा ज्यादा
खत्म होती है और फल थोड़ी मात्रा में मिलता है और हम में से कुछ व्यक्ति कम
मेहनत करते दिखाई देते हैं तो ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। जब भी इस विषय पर
वाद प्रतिवाद होता है तो लोग "किस्मत" कह कर मन को तसल्ली दे देते हैं। क्या
आप भी इस बात को किस्मत में खपाना चाहते हैं ? या फिर आगे की कहानी पढ़
कर तय करना चाहेंगे !!

एक दिन एक बूढ़े लकड़हारे ने अपने जवान पुत्र को कुल्हाड़ी देकर जँगल में लकड़ी
काटने को भेजा। युवक कुल्हाड़ी लेकर जंगल में गया और एक मोटे तने के सूखे पेड़
को काटने में लग गया। लड़का कुल्हाड़ी चलाते -चलाते थक गया मगर वह तना
उससे कटा नहीं। अत्यधिक श्रम करने के कारण पूरा शरीर थक कर चूर हो गया था
मगर लकड़ी बटोर नही पाया। आखिर थक हार कर बैठ गया और पिता के आने का
इन्तजार करने लगा। कुछ समय बाद बूढ़ा लकड़हारा जँगल में आया ,उसने देखा
उसका पुत्र थक कर विश्राम कर रहा है।

लकड़हारे ने पूछा -पुत्र,काफी थके हुए लग रहे हो ,लगता है बड़ा परिश्रम किया है।

युवक बोला - मेने परिश्रम तो बहुत किया है ,मोटे तने के ठूँठ को काटने में पूरी
ताकत झोंक दी मगर वह कट नहीं पाया।

लकड़हारे ने कहा -पुत्र,तू कुछ समय तक विश्राम कर ले बाद में काट लेना,तब तक
मैं उस तने को काटने की कोशिश करता हूँ ।

 पुत्र विश्राम करने लगा और बूढ़ा लकड़हारा उस दरमियान कुल्हाड़ी को पत्थर पर
घिसता रहा। कुल्हाड़ी की धार चमकने लगी और काफी तेज हो गयी। लकड़हारे का
पुत्र विश्राम करके पेड़ के पास में आया तो देखा उसके पिता ने अभी तक पेड़ काटने
का प्रयास तक नहीं किया है इतने समय तक बैठे बैठे कुल्हाड़ी को पत्थर पर घिसते
जा रहे हैं।
युवक ने पिता को उलहाना देते कहा -आपने तो मेरी मदद करने की बात कही थी
मगर आपने तो कुछ काम किया ही नहीं। इतना कहकर उस युवक ने पिता के हाथ
से कुल्हाड़ी ले ली और पूरी ताकत से तने पर वार करने लगा,कुछ ही देर में तना
कट गया।

लकड़हारा अपने पुत्र के पास आया और बोला -पुत्र, अब समझ में आ गया होगा कि
मैं तेरे विश्राम के समय खाली नहीं बैठा था,तेरे काम में मदद कर रहा था। केवल
परिश्रम से ही काम नहीं बनता है अपनी धार को तेज बना कर काम हाथ में लेने से
व्यक्ति सफल बनता है।

हम विषय की उचित जानकारी लिए बिना ही काम करने में लग जाते हैं तब आंशिक
सफलता ही प्राप्त होती है या नहीं भी होती है,विषय वस्तु की सम्पूर्ण जानकारी से
सफलता सहज ही मिल जाती है।             

7.9.14

लव,इस्लाम और जेहाद!-ब्रज की दुनिया

7 सितंबर,2014,हाजीपुर टाईम्स,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जैसा कि आप जानते हैं कि सभी सामी धर्मों (मेरा मतलब यहूदी,इसाई और इस्लाम से है) में भगवान से प्रेम करने की सख्त मनाही है। उनके मतानुसार ईश्वर कड़क पिता की तरह जो अपनी संतानों पर दया और कृपा करता है उनसे प्रेम नहीं करता इसलिए उसकी ईबादत की जा सकती है,उससे विनती की जा सकती है लेकिन प्रेम नहीं किया जा सकता। इस्लामिक ईश्वर तो इतना ज्यादा कड़क है कि वह संगीत और चित्रकला को भी पसंद नहीं करता। वह खुदा कहता है कि सूअर,कुत्ते और बिल्लियों को छोड़कर सारे जानवर भक्षणीय हैं और महिलाओं को गुलामों की तरह रहना और रखना चाहिए। ससुर बहू के साथ बलात्कार करता है और खुदा कहता है बहू अब उसकी पत्नी और अपने ही पति की माँ हो गई यानि दरिंदे को सजा देने के बदले खुदा ईनाम देता है।
मित्रों,निश्चित रूप से यही कारण था कि मंसूर बिन हल्लाज नामक आरंभिक सूफी को सऊदी अरब में जिंदा आग में झोंक दिया गया था क्योंकि वो खुदा से प्रेम करने की बातें करता था। बाद में सूफी संतों का सिलसिला ही चल पड़ा जो खुदा से प्रेम भी करते थे लेकिन यह सूफी-मत कभी इस्लाम की मुख्यधारा नहीं बन पाया। इतना ही नहीं अभी भी कई सूफी संत अपने मुस्लिम समाज से डरते थे इसलिए सूफी कवियों ने अपने काव्यों-महाकाव्यों में नायिकाओं में खुदा के गुणों को आरोपति जरूर कर दिया और स्वयं नायक बनकर उससे प्रेम भी किया लेकिन वे सीधे-सीधे यह कहने का साहस नहीं जुटा पाए कि सीधे-सीधे खुदा से प्रेम करो। कुछ सूफी संत तो ऐसे भी थे जो कहलाते तो सूफी थे लेकिन थे कट्टरपंथी। नक्शबंदी और सुहरावर्दी जैसे कट्टरपंथी सिलसिलों के संत सल्तनत काल और मुगल काल में दरबारों के कृपापात्र भी बन बैठे और शासकों को हिन्दुओं पर कहर ढाने के लिए उकसाया।
मित्रों,आप ही बताईए कि जिस धर्म में ईश्वर से लव या प्रेम करने की ही मनाही हो उसके बंदे किस प्रकार आपस में या दूसरे धर्म के लोगों के साथ प्रेम कर सकते हैं? सदियों पहले अरब देश में लैला-मजनू ने प्रेम किया था लेकिन मुस्लिम समाज ने उनको गले से नहीं लगाया बल्कि उनके प्रेम को गुनाह मानते हुए उनको सजा दी,तंग किया और अंततः वे जीते-जी एक नहीं हो पाए।
मित्रों,प्रेम और युद्ध में सबकुछ जायज होता है यह कहावत सामी धर्मों में ही अनुकरणीय हो सकता है क्योंकि वे ही ऐसे हैं जो मानते हैं कि प्रेम भी युद्ध होता है और उसमें भी तमाम दाँव-पेंच आजमाए जा सकते हैं। प्रेम का असली मतलब पता हो तब न! प्रेम का असली मतलब तो भारत को पता है। भारत में तो कबीर और सूर कहते हैं कि ईश्वर से प्रेम करना ही चाहिए और प्रेम करना ही ईश्वर की ईबादत का सर्वश्रेष्ठ तरीका है। प्रेम ही ईश्वर है और प्रेम में ही ईश्वर का निवास होता है इसलिए जिसने प्रेम को जान लिया उसने ही ईश्वर को जाना। प्रेम में छल और धोखे का कोई स्थान नहीं होता। प्रेम सर्वदा शुद्ध होता है जहाँ उसमें छल की मिलावट हुई कि प्रेम प्रेम नहीं रह जाता लेकिन हम देख रहे हैं कि इन दिनों सनातन धर्मी भी प्रेम में धोखा करने लगे हैं। जबर्दस्ती एकतरफा प्रेम करने लगे हैं और अपनी प्रेमिकाओं को शारीरिक-मानसिक नुकसान पहुँचाने से भी गुरेज नहीं करते। कई बार तो लड़की को सुनसान स्थान पर बुलाकर अपने ईष्ट-मित्रों के साथ मिल कर सामूहिक बलात्कार भी कर डालते हैं। अब ऐसे प्रेम को प्रेम कैसे कहा जा सकता है वह तो शुद्ध वासना हुई।
मित्रों,इन दिनों भारत में कई मुस्लिम युवकों ने एक अजीबोगरीब जेहाद छेड़ रखा है-लव जेहाद। मीडिया के सामने कई मुस्लिम युवकों ने स्वीकार किया है कि वे हिन्दू नाम रखकर फेसबुक और ट्विटर पर या फिर सीधे-सीधे परिचय में हिन्दू लड़कियों के साथ फ्लर्ट करते हैं और अपने जाल में फँसाते हैं और उनको घरों से भगा ले जाते हैं। फिर उस पर धर्म-परिवर्तन के लिए दबाव डालते हैं और सामूहिक बलात्कार जैसा अमानुषिक अत्याचार करते हैं।
मित्रों,प्रेम तो सिर्फ त्याग करना जानता है फिर प्रेम जिहाद या धर्मयुद्ध का हिस्सा कैसे हो सकता है? एक वास्तविक प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ अनाचार-अत्याचार कैसे कर सकता है? जाहिर है कि कानून को ऐसे धोखेबाज वासनापूजकों के साथ सख्ती के साथ पेश आना चाहिए। साथ ही हिन्दुओं को चाहिए कि वे लव-जेहाद के प्रति अपनी बहन-बेटियों को सचेत करें जिससे कि वे गलत लोगों के प्रेमजाल में नहीं फँसे फिर वो चाहे लड़का हिंदू हो या मुसलमान। यह परम-पवित्र भारतभूमि है जहाँ सनातन काल से ही महिलाओं की पूजा होती रही है न कि अरब देश जहाँ पर सदियों से महिलाओं की मंडी लगती है जैसी मंडी अभी ISIS लगा रहा है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

6.9.14

य़ा खुदा अपने बंदों से यजीदियों की रक्षा कर!-ब्रज की दुनिया

 6 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कहते हैं कि इस्लाम शांति का मजहब है लेकिन विडंबना यह है कि जबसे धरती पर इस्लाम का आगमन हुआ है हिंसा बढ़ी ही है। तैमूरलंग,चंगेज खाँ,महमूद गजनबी,बलबन,अलाउद्दीन खिलजी,औरंगजेब,नादिरशाह,अहमद शाह अब्दाली,ओसामा बिन लादेन,सद्दाम हुसैन जैसे सैंकड़ों ऐसे इस्लाम के बंदे अब तक हो चुके हैं जिनके लिए इंसानी चीखों,मानवीय दर्द और वेदनाओं-संवेदनाओं का कोई मतलब नहीं था। इन लोगों ने एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में तलवार को धारण किया और गिरफ्त में आए निरीह मर्दों और औरतों से बस इतना ही पूछा कि यह चाहिए या वह और आज ISIS भी कुर्दों,शियाओं और यजीदियों से यही प्रश्न व उसी प्रकार से पूछ रहा है। मैं नहीं जानना चाहता कि कुरान और हदीस में दूसरे मजहबों के प्रति हिंसा और असहिष्णुता बरतने के बारे में क्या कहा गया है लेकिन मैं यह अच्छी तरह से जानता हूँ कि ISIS आज इस्लाम के नाम पर यजीदियों के साथ जो कुछ भी कर रहा है दरअसल शैतानियत वही है।
मित्रों,मेरे मतानुसार इंसानों साथ शैतानों जैसा व्यवहार करना ही शैतान को पूजना है। धर्म और विश्वास व्यक्तिगत बातें हैं और इस वर्तमान दुनिया में किसी को भी इस बात का हक नहीं है कि वो किसी और को अपना धर्म मानने के लिए बाध्य करे। पूरी दुनिया में मात्र ईराक और सीरिया में मात्र 5 लाख की संख्या में शेष बचे यजीदियों को अगर इस समय बचाया नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं जब वे इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे। ISIS आतंकी आज यजीदी पुरुषों की सामूहिक हत्या कर रहे हैं और ISIS चीफ बगदादी का आदेश है कि 35 वर्ष से कम उम्र की सारी यजीदी महिलाओं को बंदी बना लिया जाए। इन बंदी महिलाओं को ISIS आतंकी पहले तो इस्लाम कबूल को कहते हैं और कबूल लेने पर चंद डॉलर में अपने लड़ाकों के हाथों बेच देते हैं और जो यजीदी महिलाएँ ऐसा करने से मना कर दे रही हैं उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है और ऐसा करते हुए यह नहीं देखा जाता कि लड़की 5 साल की है या 7 साल की है या 14 साल की। क्या इस्लाम में महिलाओं को बेचने और उनके साथ सामूहिक बलात्कार करना धार्मिक कृत्य है? अगर नहीं तो फिर ISIS की क्रूरता के खिलाफ दुनियाभर के उन मुसलमानों का खून क्यों नहीं खौल रहा है जो एक कार्टून को लेकर पूरी दुनिया की सड़कों पर उतर आते हैं? क्या इस मामले में वे मौनम् स्वीकृति लक्षणम् पर अमल नहीं कर रहे हैं?
मित्रों,सामान्य लोक-व्यवहार यह कहता है कि हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए दूसरों से हम जिस तरह के व्यवहार की उम्मीद रखते हैं। आज ISIS के इस्लामिक लड़ाके दूसरे पंथों के अल्पसंख्यक अनुयायियों के साथ जैसा व्यवहार ईराक और सीरिया में कर रहे हैं अगर कल किसी ऐसे देश में जहाँ कि वे अल्पसंख्यक हैं उनके साथ भी वही सब हुआ तो क्या वे इसे ईराम और सीरिया की तरह सामान्य घटना मानकर स्वीकार कर लेंगे? धरती पर रहनेवाला कोई भी व्यक्ति कैसे ऐसा सोंच सकता है कि सिर्फ वही ठीक-ठीक सोंच सकता है और सोंचता है और बाँकी लोग गलत हैं इसलिए बाँकियों को या तो उसकी सोंच को मान लेना चाहिए यानि उसकी तरह ही सोंचना चाहिए या फिर मरने के लिए तैयार रहना चाहिए? महिलाएँ तो ब्रह्मा हैं,सृष्टि करती हैं फिर उनके साथ पशुओं से भी ज्यादा बुरा व्यवहार कोई कैसे कर सकता है? महिला के गर्भ से उत्पन्न होनेवाला कोई भी पुरूष कैसे महिलाओं के साथ शैतानों जैसा,नरपिशाचों जैसा व्यवहार कर सकता है फिर ISIS तो ऐसे नरपिशाचों की सेना ही है। या खुदा मैं जानता हूँ कि तू बहुत दयालु और इंसाफपसंद है। या अल्लाह अपने महाक्रूर बंदों को या तो सद्बुद्धि दे या फिर उनको किसी तरह से रोक नहीं तो वे धरती से इंसानियत का ही नामोनिशान मिटा देंगे और तब पूरी दुनिया पूँछ विहीन पशुओं की दुनिया रह जाएगी। जिस तरह एक बगीचे में तरह-तरह के फूल होते हैं उसी तरह से इस धरती पर तुझे माननेवाले भी तरह-तरह के हैं। हे ईश्वर,अपने बगीचे को तबाह होने से बचा। अब ऐसा केवल तू ही कर सकता है क्योंकि ISIS के आगे पूरी दुनिया के मानव तो लाचार हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

5.9.14

आचार्य और टीचर

आचार्य और टीचर

पण्डित विष्णु शर्मा और आचार्य चाणक्य को शिक्षक दिवस पर हिन्दुस्थान नमन
करता है। इनकी बात आज इसलिए क्योंकि हिन्दुस्थान में इनके जैसा शिक्षक
नहीं हुआ। बिना भारी भरकम किताबों के बोझ के इन्होने सम्राट बनाये। विष्णु
शर्मा की पंचतन्त्र की कहानियाँ मुर्ख राजकुमारों को बुद्धिमान और चतुर राजकुमार
बना देती है तो आचार्य चाणक्य की नीति साधारण बच्चे को सम्राट बना देती है। उस
समय भारतीय शिक्षा और शिक्षकों में ऐसा कौनसा गुण था जो नीडर ,साहसी ,देशभक्त
नीतिज्ञ,धर्मात्मा और पुरुषार्थी नागरिक देता था और आज की शिक्षा प्रणाली में कौनसे
ऐसे दोष पनप गए हैं कि राष्ट्र ऐसे नागरिकों के लिए तरस रहा है। आज के अंग्रेजी पढ़े
लिखे युवाओं से जब मैं सवाल करता हूँ कि "तुम आगे क्या करना चाहते हो "?इसका
90 %उत्तर मिलता है -अच्छी नौकरी। पहले हमारे देश के शिक्षक राजा बनाते थे और
आज के शिक्षक नौकरी करने वाले युवा तैयार कर रहे हैं। फिर भी हम गर्व करते हैं कि
हम पढ़ लिख गए हैं ! शिक्षा सर्वांगीण विकास के लिए दी जाती थी और अब मेकाले
आधारित शिक्षा पद्धति पेट भरने का झुगाड़ सिखाती है। शिक्षा जब व्यवसाय बन जाती
है तब शिक्षार्थी शिक्षक का आदर क्योंकर करेगा और शिक्षक को समय पर वेतन मिल
रहा है तो वह छात्रों की चिन्ता क्यों करेगा। शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चों को अनुभव पथ
पर चलना सीखा कर मंजिल तक पहुँचाना होना चाहिये और हमारी सरकार बच्चों को
केवल रट्टा तोता बना कर कर्तव्य पूरा कर रही है। आजाद भारत के युवकों को
स्वावलम्बी शिक्षा चाहिये वह कब मिलेगी   … क्या पता !!!   

4.9.14

क्या इमरान खान केजरीवाल के पाकिस्तानी संस्करण हैं?-ब्रज की दुनिया

क्या इमरान खान केजरीवाल के पाकिस्तानी संस्करण हैं?

4 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,यह हमारे लिए बड़े ही हर्ष का सबब है कि भारत भले ही अबतक विश्वगुरु नहीं बन पाया हो लेकिन भारत का ही एक लाल अरविंद केजरीवाल इस पद को पाने के अधिकारी बन गए हैं। भारत के पड़ोसी और पुराने पट्टीदार पाकिस्तान में उनको एक चेला मिल गया है जो उनकी तरह नालायक और धरनेबाज है। उनका चेला इन दिनों ठीक उसी तरह से पाकिस्तान में रायता फैला रहा है जिस तरह से कभी केजरीवाल जी भारतीयों के दिलो-दिमाग में फैलाया था।
मित्रों,केजरीवाल अमेरिका को परम प्रिय हैं तो इमरान भी अमेरिका के चहेते हैं,केजरीवाल को फोर्ड फाउंडेशन पैसा देता है तो इमरान को भी पश्चिमी देशों से धनालाभ होता है,केजरीवाल ने प्रतिबंधित क्षेत्र में धरना दिया था तो इमरान भी दे रहे हैं,केजरीवाल ने देशभक्ति के गीत बजाए थे और नारे लगाए थे तो इन दिनों इमरान खान भी लगा रहे हैं,केजरीवाल ने अपनी मांगों के पूरा हुए बगैर धरना समाप्त कर दिया था तो कल इमरान खान भी ऐसा ही करनेवाले हैं,केजरीवाल अराजकतावादी हैं तो इमरान भी हैं और कुछ ज्यादा ही हैं,केजरीवाल ने भारतीय संविधान की खिल्ली उड़ाई तो इमरान भी इन दिनों पाकिस्तानी संविधान (मैं नहीं जानता कि यह पाकिस्तान का दूसरा,तीसरा या कौन-सा संविधान है और इसलिए अपनी अल्पज्ञता पर शर्मिंदा भी हूँ) की ऐसी की तैसी कर रहे हैं,केजरीवाल ने इस्तीफा दिया था तो इमरान ने भी अभी-अभी दिया है,केजरीवाल भारत में कांग्रेस की बी टीम के रूप में देखे गए तो इमरान को भी इन दिनों पाकिस्तान में सेना की बी टीम के रूप में देखा जा रहा है।
मित्रों,इन दोनों महापुरुषों की करनी और कथनी में इतनी ज्यादा समानता है कि जितनी भाई-भाई में भी नहीं होती। अंतर इतना ही है कि केजरीवाल को राजनीति में आए जुम्मा-जुम्मा दो साल ही हुए हैं जबकि इमरान खान पिछले 18 सालों से राजनीति के क्रिकेट में नाकाम होते चले आ रहे हैं। अर्थात् गुरू बहुत जल्दी गुड़ से चीनी बन गया और चेले को डेढ़ दशक लग गए मगर दोनों ही बहुत जल्दी फिर से चीनी से गुड़ तो गुड़ सीधे मिट्टी बन गए। दोनों ने ही राजनीति को नौटंकी समझा,दोनों ने ही एक-एक प्रांत में सरकार बनाई लेकिन दोनों की कुछ खास नहीं कर सके। दोनों में अंतर बस इतना है कि केजरीवाल पाकिस्तान में लोकप्रिय थे और इमरान भारत में लोकप्रिय नहीं हैं क्योंकि हम तहेदिल से पाकिस्तान का बुरा नहीं चाहते बल्कि चाहते हैं कि पाकिस्तान समृद्ध और शांतिप्रिय बने। सच यह भी है कि जबतक पाकिस्तान शांतिप्रिय नहीं बनेगा समृद्ध भी नहीं हो सकेगा।
मित्रों,इमरान खान पठान हैं और पठान को समझाना हमने सुना है कि बड़ा कठिन होता है फिर भी हम यह हिमाकत करते हुए उनको कहना चाहते हैं कि नकल करनी है तो नरेन्द्र मोदी की करो,पहले प्रदेश में अच्छा काम करो फिर केंद्र पर दावा ठोंको और पाकिस्तान के पीएम बनो। नाकाम नटकिए की नकल करोगे तो फिर आपका भी वही अंजाम होगा जो उन साहेबान का हुआ है-नहीं समझे क्या? भैया उनको तालियों से कहीं ज्यादा तो अबतक थप्पड़ पड़ चुके हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)