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27.12.16

भिया इंदौरियों... चाय की 'नाट' कहीं मिले तो बताना... उसकी 'नाक' काटना है!

भियाओन नमस्ते, मैं क्या केरिया था कि... अभी वैसे ही अपन लोगों का दिमाग मोदी जी ने जबरन नोटबंदी करके खराब कर दिया, पर क्या करें अपने को देशभक्ति का भूत भी चड़ा है... और इधर नगर निगम वाली भाभी जी के साथ उनके अफसर लोगों ने मिलकर इंदौर को स्वच्छ करने की मगजमारी अलग चालू करवा दी... अब भिया ये जो बैंक के लफड़े में अपने मगज की मारामारी होती है ना, उससे गुस्सा तो बोत आती है... पर अपन तो साला गुस्सा थूक भी नी सकते रे... साला इंदौर को स्वच्छ और 'हेमा मालनी' के सरिका ब्यूटी वाला फूल जो बनाना है..! वैसे भी बोत दिन हो गए, जब एक भिया ने बोला भी था कि सड़कें जो हैं, वो हेमा मालनी के गाल की तरह चिकनी-चपाट कर देंगे... तो वोई में सोच रिया था कि उन्हीं की तरह अपना इंदौर भी कभी ब्यूटीफुल हो जाए तो मजे आ जाए बावा..!


फिर तो अपने भियाओन भी किसी धर्मेन्दर पाजी से कम नी लगेंगे... सई केरिया हूँ ना भिया... ये सब तो ठीक है... खैर, बैंकों की लाइन कभी तो खतम होगी ही... लेकिन ऐसा अपन इंदौर को स्वच्छ और ब्यूटी वाला फूल बन जाने के बारे में कुछ नी के सकते रे... ना तो अपन लोग सुधरने को तैयार और न इस स्वच्छता में लगे भियाओन के 'रंग' में घुली 'भ्रष्टाचार की भंग' का कभी कुछ हो सकता हो... बाकी जमीनी हकीकत तो इंदौर को स्वच्छता का 'तमका' मिलने या न मिलने का फैसला होने के बाद ही मालूम पड़ेगी... हाँ भिया... तो अब मैं मुद्दे की बात पे आरिया हूं... कहीं चाय की 'नाट' मिले तो बताना... साला अब तो मैं उसकी 'नाक' ही `सुर्पनखा की तरह' काट डालूंगा... हां यार, परेशान करके धर दिया..! चाय की नाट... चाय की नाट... हाँ नी तो... वो भिया हुआ यूं कि अपन गए थे एक साथी के बड्डे सेलिब्रेशन में... अब वहां हुआ यूं कि पेले तो कैक कटवाया... वहां भी साला केक कटा वो तो ठीक, लेकिन ये जो खाने वाला केक आज-कल थोबड़े पर लगाने का नया-नया सीजन जो चालू हुआ, वो अपने तो पल्ले ही नी पड़ता...

चलो फिर भी सबकी खुशी में अपना खुसा... (अब इसका मतलब मत पूछना!!) केक खाया, खिलाया और पोता-पुताई सब हो गई... बधाई-वदाई सब दे दी... फिर उसके बाद नम्बर आया नास्ते का... वो भी अपनने लपक्के किया... थोड़ी देर बैठा-बाठी के बाद बिदाई की बेला आ गई... अब अपन निकल ही रहे थे कि एक भिया ने चाय की 'चम्मच' पकड़ा दी... अपन ठेरे बीजी आदमी... और सई बात ये है कि मन भी नी था रे... अपन बोले नी भिया... फिर कभी बाद में पियेंगे चाय-वाय... उसी समय बीच में जबरन एक भिया छोटे भीम की तरह कूद पड़े... और बोले कि नी भिया अब तो चाय पी के ही जाना पड़ेगी... चाय की नाट लग गई है... मैंने फिर भी मना किया... नी भिया अभी मन नी है... फिर क्या था, दो-चार भियाओन एक साथ बोलने लगे - नी भिया अब पी ही जाओ... चाय की नाट लग गई... अच्छी नी रेती...

अब ये 'नाट की बिमारी' अपने इंदौर में ही ज्यादा पाई जाती है... उस वकत इतनी चीड़ छूटी ना वो साली 'नाट' पे, कि बस... अब तभी से अपनने पिरण मतलब पक्की ठान ली के ये 'नाट' जब भी कईं मिलेगी, उसकी 'नाक' ही काटना है... भियाओनों, तुमको भी कईं टकरा जाए तो बताना... उचित इनाम दूंगा... ना रहेगी 'नाट' और ना बचेगी उसकी 'नाक'... बस भिया अब चलते हैं... बोत देर हो गई... फिर मिलेंगे चलते-फिरते...

रोहित 'इंदौरी'
8827875444
rohitpachoriya1992@gmail.com

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