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2.9.20

जय लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था के घोटालों की जांच की जाए

 


महोदय,

सहकारिता विभाग का उद्देश्य सहकारी संस्थाओं को संगठित कर समाज के कमजोर वर्गों के लोगो की रहवासी समस्याओं के समाधान करने के लिये हुआ था किंतु इसके विपरीत सहकारिता विभाग प्रशासनिक तंत्र का एक ऐसा विभाग बन गया है । जो कमजोर लोगो का ही शोषण कर रहा है ।

सहकारिता की विक्षिप्त एवं भ्रष्ट कार्यप्रणाली के कारण वश वर्षो नहीं दशकों तक विभिन्न संस्थाओ के भूखंड धारको / सदस्यों को उनकी रहवासी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता । इसके बावजूद सहकारिता विभाग द्वारा न तो संस्था, न हीं संस्था के पदाधिकारिओं पर कोई उचित कार्यवाही की जाती है । जिस वजह से सदस्य / भूखंड धारक अपने अधिकारों से वंचित रह जाते है और दशकों तक न्याय नहीं मिल पाता ।

इसका जीवंत उदाहरण “जय लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था” है । 3 दशकों (30 वर्षों) से भी पहले से संस्था द्वारा भूखंड धारकों को भूखंड पर कब्जा नहीं दिया जा रहा है । विकास के नाम पर मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है विगत 30 वर्षों में दो बार विकास शुल्क एवं अन्य शुल्को के नाम पर लाखों रुपए संस्था पदाधिकारियों द्वारा भूखंड धारकों से लिए जा चुके हैं । जिसका कोई हिसाब किसी भी सरकारी विभाग में संस्था द्वारा नहीं दिया गया है और आज तक भी विकास कार्य पूर्ण नहीं किया गया है । पदाधिकारियों द्वारा संस्था को एक लाभ का व्यवसाय बना दिया गया है जबकि संस्था का गठन भूखंड धारकों की आवासीय समस्याओं को सुलझाने के लिए किया गया था । किन्तु संस्था पदाधिकारियों द्वारा सहकारिता विभाग के अधिकारियों के साथ साठगांठ कर वर्षो से संस्था को पुश्तैनी व्यवसाय की तरह आये का एक स्त्रोत बना लिया गया है । भूखंड धारको से शुल्कों के नाम पर संस्था द्वारा धन राशि वसूली जा रही है और फिर भूखंड हड़पने / धन एठने की नियत से भूखंड धारको से प्राप्त शुल्कों से ही विभिन्न न्यायलयो में फर्जी वाद प्रस्तुत कर वर्षो से उनको उलझा रखा है जिस शुल्कों का उपयोग विकास कार्य में करना चाहिए था । उस से भूखंड हड़प कर संस्था को व्यवसाय बना दिया । इसके विरुद्ध आज तक सहकारिता विभाग द्वारा क्यों कोई कार्यवाही नहीं की गयी ?

प्रशासन से पीड़ित भूखंड धारक निम्नलिखित तथ्यों के आधार निष्पक्ष जांच हेतु “सयुक्त संचालक कोष एवं लेखा विभाग” और “स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग” और "आर्थिक अपराध शाखा" जांच एजेंसियों से मामले की जांच करने की विनती करते है:


1.    विगत 20 वर्षों में 90% भूखंड मूल सदस्यों द्वारा विक्रय कर दिए गए और संस्था द्वारा नए भूखंड धारकों से सभी प्रकार के शुल्क प्राप्त किए गए किंतु नामांतरण एक भी भूखंड धारक का नहीं किया गया ऐसा क्यों ?

2.    यदि 90% भूखंडो के विक्रय मूल सदस्यों द्वारा कर दिया गया है और नए भूखंड धारको के नामांतरण संस्था द्वारा नहीं किया गया और न उन्हें मतदान के अधिकार नहीं मिला तो संस्था में चुनाव किस आधार पर हो रहे है । जब मूल सदस्य ही नहीं है तो ?

3.     पुनः विकास शुल्क की राशि का निर्धारण किन आधारों पर हुआ है ? वर्ष 2011 पश्चात संस्था की ऑडिट क्यों नहीं हुई ?

4.       वर्ष 2011 में जो पुनः विकास शुल्क राशि ₹80 प्रति वर्ग फीट निर्धारित हुई थी । उसे बढ़ाकर ₹150 प्रति वर्ग फीट और उसके पश्चात ₹170 प्रति वर्ग फीट और फिर पुनः ₹175 प्रति वर्ग फीट कर दी गई । किस आधार पर इससे संबंधित किसी भी प्रकार के दस्तावेज़ सहकारिता विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?

5.       संस्था द्वारा चुनाव की प्रक्रिया कब हुई और किन-किन सदस्यों ने मतदान किया । उसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है क्यों ?

6.       संस्था की आमसभा (जनरल मीटिंग) के रजिस्टर एवं अन्य जानकारियाँ उपलब्ध क्यों नहीं है ?

7.       संस्था द्वारा वर्ष 1997 में जब सभी भूखंडों का आवंटन सदस्यों को कर पंजीकरण करवा दिया गया था किंतु फिर भी विगत 25 वर्षों से संस्था सीधे रूप से भूखंडों का क्रय विक्रय बाजार में कर रही है यह कैसे संभव है ?

8.       विगत कुछ वर्षों में भी संस्था द्वारा कुछ भूखंडों का विक्रय सीधे तौर पर किया गया और यह विक्रय सन 1997 के निर्धारित राशि पर किया गया किंतु क्या नए भूखंड क्रेता से धनराशि भी पुराने मूल्य से ली गई या आज के बाजार भाव से ली गई इसकी भी जांच की जाए ?

9.       कितने भूखंड धारकों का पुनः विकास शुल्क जमा हो चुका है इसकी जानकारी सहकारिता एवं नगर निगम विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?

10.   अभी तक कॉलोनी में जो विकास कार्य हुआ है उसका खर्च का विवरण , प्रारंभ से आज तक किसी भी सरकारी विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?

11. संपत्ति पंजीकरण कानूनी रूप से सभी दस्तावेजों की रिकॉर्डिंग को संदर्भित करता है प्लॉट रजिस्ट्री एक अनुबंध पत्र नहीं है जिसे रद्द किया जा सकता है, यह एक संपत्ति का पंजीकृत विलेख है । जिसे स्वामी द्वारा हस्तांतरित किया जा सकता है तो फिर संस्था द्वारा सहकारिता एवं अन्य न्यायलयों से विक्रय पत्र को शुन्य / निरस्त करने हेतु आवेदन किसे दिया जा रहा है ।

इस तरह तो संस्था के पदाधिकारी सदियों तक संस्था का उपयोग व्यवसाय के रूप में करते रहेंगे । सहकारिता विभाग द्वारा भूखंड धारको के शिकायतों के बावजूद क्यों कोई उचित कार्यवाही कर भूखंड धारको का नामांतरण कर, भवन निर्माण अनुमति प्राप्त  कर उनकी रहवासी समस्याओं के समाधान करने हेतु उचित कदम नही उठाये गए ।

संस्था द्वारा की जा रही वित्तीय अनियमितताओं की जांच “सयुक्त संचालक कोष एवं लेखा विभाग” और “स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग” एवं संस्था और सहकारिता के अधिकारियों के संरक्षण में किया जा रहे घोटालो और अनियमितताओं की जांच उपरोक्त तथ्यों के आधार पर "आर्थिक अपराध शाखा" द्वारा कराये जाने के अनुरोध इस पत्र के माध्यम से भूखंड धारको द्वारा किया जा रहा है ।

अन्यथा असंवैधानिक रुप से कार्य कर एवं भूखंड धारकों के अधिकारों का हनन करने वाली संस्था को संरक्षण देने ने वाले विभागों की कार्यप्रणाली मे सुधार एवं पीड़ितों को न्याय पाने के लिए “जनहित याचिका” के तहत आवेदन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना पड़ेगा ।

पीड़ित भूखंड धारको द्वारा

deepkunjcolony@gmail.com
 

माननीय मुख्यमंत्री महोदय एवं कलेक्टर महोदय व अन्य प्रशासनिक अधिकारीगण,
 
निवेदन है कि जिस प्रकार बॉबी छाबड़ा द्वारा सहकारिता विभाग के जिन अफसरों के साथ सांठगांठ कर घोटाले किए गए और अब बॉबी छाबड़ा के साथ-साथ उन सभी सहकारिता अधिकारियों की भी जांच की जा रही है और उन पर भी कार्रवाई होगी । उसी तरह जय लक्ष्मी गृह निर्माण सहकारी संस्था द्वारा विगत 30 वर्षों से किए जा रहे घोटाले और संस्था को व्यवसाय की तरह चलाया जा रहा है । यह भी बिना सहकारिता विभाग की मिलीभगत के संभव नहीं है । पूर्व में भी चार बार अनियमितताओं और घोटालों की वजह से संस्था की समिति भंग की जा चुकी है और प्रशासक नियुक्त किए गए थे किंतु 30 वर्ष बीत जाने के बाद भी दीपकुंज कॉलोनी के 185 भूखंडों में से एक भी भूखंड पर भवन नहीं बन पाया है । संस्था के पदाधिकारी संस्था को व्यवसाय की तरह चला रहे हैं । जिसमें सहकारिता विभाग ही नहीं नगर निगम अधिकारी भी शामिल है ।

आज दिनांक को भी संस्था का संचालक मंडल भंग है । आदेश क्रमांक/गृहविधि/2020/08 दिनांक 01.01.2020 से संस्था के संचालक मंडल को म.प्र. सहकारी अधिनियम की धारा 1960 की धारा 53(1) के अन्तर्गत भंग किया गया है ।
 साथ ही कार्यालयीन पत्र क्रमांक/गृहविधि/2020/09 दिनांक 01.01.2020 से संस्था के संचालक मंडल के विरूद्ध अधिनियम की धारा 76(2) के अन्तर्गत आपराधिक प्रकरण दर्ज कर श्री पी. के. जैन को अधिकारी नियुक्त किया गया है ।
किंतु 3 महीने पूर्व संस्था की कॉलोनी दीपकुंज के 30 से भी ज्यादा भूखंड धारकों द्वारा  शिकायतें सहकारिता विभाग में की गई थी । जिनको संस्था द्वारा साठगांठ कर पुनः दबा / बंद कर दिया गया । बिना शिकायतकर्ता के पक्ष की संज्ञा लिए । एक भी भूखंड धारक को निराकरण नहीं मिल पाया ।

प्रशासनिक अधिकारियों से निवेदन है कि कृपया कर संस्था की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की जाए एवं 30 वर्षों से जो भूखंड धारक वैध भूखंड पर भवन निर्माण करना चाहते हैं उन्हें भवन निर्माण की अनुमति दी जाए ।
निष्पक्ष और पारदर्शी से तात्पर्य है कि वर्तमान भूखंड धारक को एवं संस्था के मूल सदस्यों को जांच में शामिल किया जाए जो अधिकार मूल सदस्यों को होते हैं पंजीकृत पत्र के बिंदु क्रमांक 4 - 5 के अनुसार वे सारे अधिकार भूखंड क्रेता को स्थानांतरित हो जाते हैं । तो उस अधिकार से मूल सदस्य द्वारा परेशान होकर जिन्हें भूखंडों को विक्रय किया गया है, नए / वर्तमान भूखंड मालिक को वे सारे अधिकार प्राप्त हो और उन्हें भी इस जांच में शामिल किया जाए ।

क्योंकि विगत 30 वर्षों में परेशान होकर लगभग 90% से ज्यादा मूल सदस्यों द्वारा भूखंड का विक्रय कर दिया जा चुका है तो कृपया कर नए क्रेता / वर्तमान भूखंड मालिक को जांच में शामिल करें जो कि न्याय पूर्वक होगा ।

कई ऐसे बिंदु हैं जो पूर्व में भी चार बार जब संस्था भंग हुई थी और अभी भी जब संस्था भंग है जिनके आधार पर जांच होना चाहिए और इन सभी दस्तावेजों की उपलब्धता सहकारिता एवं नगर निगम विभाग में होना चाहिए :

1. वर्ष 2011 पश्चात संस्था की ऑडिट क्यों नहीं हुई ?
2. यदि कॉलोनी में एक भी भवन निर्माण नहीं हो पाया तो धरोहर स्वरूप सुरक्षा निधि के रूप में सुरक्षित प्लॉट नगर निगम से किन आधारों पर संस्था द्वारा छुड़वा लिए गए ? नगर निगम की फाइलों में इससे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध क्यों नहीं है ?
3. विगत 20 वर्षों में 90% भूखंड मूल सदस्यों द्वारा विक्रय कर दिए गए और संस्था द्वारा नए भूखंड धारकों से सभी प्रकार के शुल्क प्राप्त किए गए किंतु नामांतरण एक भी भूखंड धारक का नहीं किया गया ऐसा क्यों ?
4. सन 1999 में नगर निगम से जय लक्ष्मी हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी  द्वारा सर्वप्रथम दीपकुंज कॉलोनी के विकास की अनुमति ली गई थी । उस समय विकास कार्य अपूर्ण एवं गुणवत्ताहीन होने पर नगर निगम द्वारा पत्र क्रमांक : 1667 / कॉलोनी सेल /07, इंदौर ने भवन निर्माण अनुज्ञा निरस्त कर दी गई । तो फिर धरोहर स्वरूप भूखंडों को कैसे नगर निगम द्वारा छोड़ दिया गया ?
5. ऐसी विषमता और न्याय प्राप्ति हेतु सदस्य नगर पालिका निगम के पूर्व आयुक्त महोदय श्री सीबी सिंह एवं उपायुक्त श्रीमती लता अग्रवाल व श्री केदार सिंह एवं सहकारिता के पूर्व उपायुक्त श्री काडमू पाटनकर, श्री जगदीश  कन्‍नौज,  निरीक्षक श्री संजय कुचन्‍कर, निरिक्षक श्री जगदीश जलोदिया एवं श्री जगदीश खिची से कई बार संपर्क करते रहें किंतु आज दिनांक तक भवन निर्माण अनुमति और संस्था पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई क्यों ?
6. वर्ष 2012 में संस्था द्वारा नगर निगम से पुनः विकास 1 वर्ष में पूर्ण करने के लिए अनुमति पत्र क्रमांक 2283/12 दिनांक 02/01/2012 को प्राप्त की किंतु विगत 8 वर्षों में भी विकास कार्य पूर्ण नहीं किया गया जबकि पुनः विकास अनुमति की शर्त के अनुसार 1 वर्ष में संस्था को विकास कार्य पूर्ण करना था इसके विरुद्ध नगर निगम ने कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं की ?
7. विभिन्न न्यायालयों द्वारा संस्था के पक्ष में और विरुद्ध कई बार आदेश पारित किए हर बार सिर्फ संस्था के पक्ष वाले आदेशों का ही पालन किया गया किंतु संस्था के विरुद्ध जो भी आदेश दिए गए उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई ऐसा क्यों ?
8. पुनः विकास शुल्क की राशि का निर्धारण किन आधारों पर हुआ है ? इससे संबंधित किसी भी प्रकार के दस्तावेज सहकारिता विभाग और नगर निगम दोनों कार्यालयों में क्यों उपलब्ध नहीं है ?
9. वर्ष 2011 में जो पुनः विकास शुल्क राशि ₹80 प्रति वर्ग फीट निर्धारित हुई थी । उसे बढ़ाकर ₹150 प्रति वर्ग फीट और उसके पश्चात ₹170 प्रति वर्ग फीट और फिर पुनः ₹175 प्रति वर्ग फीट कर दी गई । किस आधार पर इससे संबंधित किसी भी प्रकार के दस्तावेज सहकारिता एवं नगर निगम के किसी भी विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?
10.  संस्था द्वारा चुनाव की प्रक्रिया कब हुई और किन-किन सदस्यों ने मतदान किया । उसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है क्यों ?
11. संस्था की आमसभा (जनरल मीटिंग) के रजिस्टर एवं अन्य जानकारियां उपलब्ध क्यों नहीं है ?
12. संस्था द्वारा वर्ष 1997 में जब सभी भूखंडों का आवंटन सदस्यों को कर पंजीकरण करवा दिया गया था किंतु फिर भी विगत 30 वर्षों से संस्था सीधे रूप से भूखंडों का क्रय विक्रय बाजार में कर रही है यह कैसे संभव है ?
13. विगत कुछ वर्षों में भी संस्था द्वारा कुछ भूखंडों का विक्रय सीधे तौर पर किया गया और यह विक्रय सन 1997 के निर्धारित राशि पर किया गया किंतु क्या नए भूखंड क्रेता से धनराशि भी पुराने मूल्य से ली गई या आज के बाजार भाव से ली गई इसकी भी जांच की जाए ?
14. कितने भूखंड धारकों का पुनः विकास शुल्क जमा हो चुका है इसकी जानकारी सहकारिता एवं नगर निगम विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?
15. अभी तक कॉलोनी में जो विकास कार्य हुआ है उसका खर्च का विवरण , प्रारंभ से आज तक किसी भी सरकारी विभाग में उपलब्ध क्यों नहीं है ?
16. सहकारिता में नामांतरण की प्रक्रिया क्या है ? और संस्था द्वारा नामांतरण क्यों नहीं किए जा रहे हैं ?
17. विगत 30 सालों में भी कालोनी में एक भी मकान क्यों नहीं बन पाए ?
18. कॉलोनी का विकास कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है नगर निगम, सहकारिता एवं अन्य विभागों द्वारा सभी प्रकार के शुल्क भूखंड धारकों से वर्षों से प्राप्त किए जा रहे हैं तो फिर एक वैध कॉलोनी में भवन निर्माण अनुमति क्यों नहीं प्रदान की जा रही है जबकि प्रशासन द्वारा अवैध कॉलोनियों को भी वैध किया जा रहा है ?
19. सहकारिता की गृह निर्माण संस्थाओ की जांच "रेरा" के अंतर्गत होना चाहिए और सभी संस्थाओ को रेरा में पंजीकृत होना चाहिए जिसे से घोटालो को रोका जा सके ।
20. कॉलोनी की जिस एक छोटी सी सड़क जिस पर भूखंड क्रमांक 1 से 11 तक के भूखंड आते हैं जिसे बनाने का काम संस्था द्वारा नहीं किया जा रहा । उस पट्टी के भूखंड धारकों के साथ विवादों के चलते । उसके लिए अन्य सभी भूखंड धारकों द्वारा एवं संस्था द्वारा नगर निगम, कलेक्टर कार्यालय एवं अन्य विभागों में आवेदन दिया जा चुका है कि कृपया कर उस एक सड़क को छोड़कर बचे 170 से ज्यादा भूखंडों पर भवन निर्माण की अनुमति प्रदान की जाए । जिस प्रकार आंशिक अनुमति पूर्व में भी कई कॉलोनियां जैसे कि बृज मोहिनी में प्रशासन द्वारा दी गई तो फिर दीपकुंज कॉलोनी में 11 भूखंडों को छोड़कर बाकी के 170 से ज्यादा भूखंडों जहां पर संपूर्ण विकास कार्य हो चुका है संस्था एवं सभी सरकारी विभागों द्वारा विभिन्न प्रकार के शुल्क एक नहीं दो बार लिए जा चुके हैं वहां पर भवन निर्माण अनुमति क्यों नहीं दी जा रही ?

इन सभी बिंदुओं के आधार पर निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की जाए और पीड़ित भूखंड धारकों को न्याय दिलाया जाए.

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