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22.9.20

हरिवंश की गलती

 गुमराह राजनीति का चाौका छक्का से आम जनता हतप्रभ


किसानों का हित कहकर लोकसभा में पारित विधेयक राज्यसभा में पास होने आया। अवश्य आना चाहिए। सदन तो ऐसे विधेयक को पारित करने या लौटाने के लिए ही है। सुधार कर पुनः राज्यसभा से पारित करवाया जा सकता था। वोटिंग का अधिकार एवं मांग भी उचित ही है। क्योंकि केवल सत्ता पक्ष ही किसानों का हितकर है ऐसा तो संविधान में नहीं लिखा हुआ है। इसलिए विपक्ष की बातों को भी सुना जाना चाहिए। लेकिन उपसभापति हरिवंश की राजनीतिक चाल सबकों हतप्रभ कर दिया। जब उन्होंने चालाकी से विधेयक को पारित करने के लिए विपक्ष के मांग को तव्वजों नहीं दिया।


वोटिंग की मांग को खारिज कर दिया गया। विपक्ष ने भी अपने अधिकार का हनन होते देखा तो गुस्से में वह सब कर गया जो एक सदन की मर्यादा का हनन कहलाता है। यहाॅं तक जो हुआ सबने देखा और सबकी अपनी अपनी राय है। कोई सत्ता पक्ष को तो कोई विपक्ष को इसके लिए जिम्मेवार ठहरा गया।  हंगामा करने वाले सांसद राज्यसभा से सत्र के लिए निलंबित हुये। अपने अधिकार हनन एवं विधेयक में संशोधन की मांग पर अड़ने के लिए इन सांसदों के पास कोई चारा नहीं बचा तो इन लोगों ने संसद के सामने ही धरना पर बैठना आरम्भ कर दिया।

यहां तक न्यूज चैनल पर दिखा तो हमें लगा की दो चार दिनों में यह रासलीला राजनीति का समाप्त हो जायेगा और भला बुरा किसानों के लिए लाया गया विधेयक कानून बन गया होगा। लेकिन राजनीति का चैका छक्का होना अभी बांकी था। निलंबित सांसदों के पक्ष में विपक्ष की गोलबंदी जब आरम्भ हुई तो उपसभापति ने भी राजनीति का छक्का फेंक दिया। उन्होंने अपने जन्म दिन का हवाला देकर एक दिन का उपवास का लीला शुरू कर दिया। यह मुझे अच्छा भी लगा और बुरा भी । क्योंकि अपनी एक गलती छुपाने को हरिवंश जैसे अच्छे व परिपक्व स्वभाव वाले इंसान ने निलंबित सांसदों को चाय पिलाने की कोशिश की और जब यह कोशिश नाकाम रहा तो उन्होंने प्रतिकार स्वरूप स्वयं उपवास रख लिया। लेकिन यह छक्का उनका मेरे जैसे लोगों को हजम नहीं हुआ, क्योंकि हरिवंश ने सांसदों के अधिकार का हनन किया है और पक्षपात भी।

यदि सत्ता पक्ष का विधेयक किसान हित में था और विपक्ष वोटिंग की मांग कर रहा था तो उसे विपक्ष के इस मांग को स्वीकार करना चाहिए था। लेकिन उपसभापति के रूप में इसे अस्वीकार कर हरिवंश ने अपने स्वच्छ छवि पर एक दाग लगाकर स्वंय दागदार बनने और अपने नुमांईदों को खुश करने का एक प्रयास अवश्य किया है। ऐसा मेरा मानना है। वैसे राजनीति में स्वच्छ छवि कब दागदार हो जाय यह कह पाना कठिन है। हरिवंश ने जो राह अपनाई है वह उन्हें भले ही उच्चस्थ पद हासिल करवा दे, लेकिन एक संपादक होने के नाते में संजीव कुमार सिंह उनके इस कदम की निदां करना ही बेहतर समझ रहा हूं क्योंकि एक निर्णायक पद पर रहकर किसी के अधिकार का हनन नहीं होना चाहिए। क्योंकि हरिवंश एक अच्छे संपादक रह चुके है। वे जानकार भी है तो उन्होंने ऐसा क्योंकिया? सवाल गंभीर है परन्तु राजनीतिक जानकार मानते है कि हरिवंश के इस कदम से एनडीए ने एक बहुत बड़ा मुद्ा बिहार चुनाव के लिए मिल गया है। वह इसे चुनाव में भी भुनाना चाहेगा। खैर छोड़िए! किसको क्या मिला मुझे इससे क्या? मैं समझता हूॅं कि हरिवंश ने भी किसी के अधिकार का गला घोंटा है!

संजीव कुमार सिंह
संपादक आईन समस्तीपुर मासिक पत्रिका एवं संजीवनी बिहार समाचार पत्र, बिहार सम्पर्क सूत्र 9955644631
THANKS !
SANJEEV KUMAR SINGH
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