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16.9.20

जनता की नजरों में योगी सरकार की ‘रेटिंग’ अच्छी नहीं

अजय कुमार,लखनऊ

अफरशाही के सहारे उत्तर प्रदेश की ‘तकदीर और तस्वीर’ बदलने का सपना देख रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने ‘मिशन’ में कितना कामयाब या नाकामयाब रहे यह तो वह ही जानें, लेकिन आमजन की नजर में प्रदेश के विकास और कानून व्यवस्था को लेकर योगी सरकार की ‘रेटिंग’ बहुत अच्छी नहीं है। सड़कों और बिजली व्यवस्था का बुरा हाल है। कानून व्यवस्था के मामले में भी योगी सरकार विपक्ष के निशाने पर है।कोरोना महामारी जो पहले पहल यूपी में नियंत्रित दिख रही थी,वह बेकाबू होती जा रही है। कोरोना से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के सिस्टम में लोच ही लोच नजर आ रहा है।कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता होगा, जब समय पर इलाज नहीं मिल पाने के कारण कोरोना पीड़ितों को जान से हाथ नहीं छोना पड़ जाता हो। अस्पताल की चैखट पर पहुंचने के बाद भी मरीज को घंटों इलाज नहीं मिले तो इससे शर्मनाक स्थिति और कोई हो नहीं सकती है। जिनी अस्पताल लूट का अड्डा बन गए हैं।



योगी राज में तमाम मोर्चो पर हालात इतने खराब हैं कि पार्टी के भीतर से भी सरकार के खिलाफ आवाज उठना शुरू हो गई हैं। कई भाजपा सांसद और विधायक अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर चुके हैं। भाजपा नेता और कार्यकर्ता खुले आम अपनी सरकार पर आरोप लगाते हुए कह रहे हैं कि सपा-बसपा सरकार में उनका कोई काम इस लिए नहीं होता था क्यों कि उनके ऊपर भाजपा का ‘ठप्पा’ लगा था। अपनी सरकार बनी तो उम्मीद जागी कि हमारा समय बदलेगा, लेकिन आज भी हम जनता के किसी काम नहीं आ रहे हैं। न हमारी पुलिस-थानों और सरकारी दफ्तरों में सुनी जा रही है, न ही हमारे सीएम और मंत्रियों को हमारा ‘दर्द’ दिखाई दे रहा है। नाराज भाजपा नेताओं का आरोप है कि ‘हमारी सरकार’ होने की वजह से पुलिस उत्पीड़न और सरकारी सिस्टम के ढुलमुल रवैये से परेशान आम जनता उनके पास बहुत उम्मीद के साथ आती है,लेकिन हम अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याएं सुलझा ही नहीं पाते हैं, क्योंकि पुलिस से लेकर प्रत्येक सरकारी महकमें में योगी जी का फरमान गंूज रहा है कि किसी भी भाजपा नेता या कार्यकर्ता की सिफारिश नहीं सुनी जाए,जो उचित हो सरकारी नुमाइंदे वह ही करें। इसी की आड़ में ब्यूरोके्रट्स, पुलिस और अन्य तमाम विभागों के बड़े से लेकर से लेकर अदना कर्मचारी तक मनमानी करने में लगा हैं। अफसरशाही ‘सरकार’ को वैसी ही तस्वीर दिखाते हैं,जैसी वह देखना चाहती हैं। योगी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करते समय आदेश दिया था कि प्रदेश भर में भू-माफियाओं और बड़े अपराधियों के खिलाफ प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाए तो अफसरशाही ने दो-चार बाहुबली भूमाफिया नेताओं के अवैध कब्जे पर बुलडोजर और हथौड़े चलाकर ऐसा भ्रमजाल तैयार कर दिया, मानों पूरे प्रदेश में भू-माफियाओं के खिलाफ जंग छेड़ दी गई हो,जबकि ऐसा कुछ नहीं हो रहा था। आज भी लाखों की संख्या में सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों की फाइलें पी0डब्ल्यू0 डी0, नगर निगम, विकास प्राधिकरणों, आवास -विकास परिषद के यहां लम्बित पड़ी हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोर्टल पर भी ऐसी शिकायतों की लम्बी-चैड़ी फेरहिस्त मौजूद है। मगर सरकारी नुमांइदे इससे इतर वहां ही पहुंचते हैं,जहां रिस्क कम और और चर्चा  में आने का मौका ज्यादा रहता है।

दरइसल,योगी आदित्यनाथ ने जब से शपथ ग्रहण की है, तभी से यह सिलसिला जारी है, लेकिन लगता है कि साढ़े तीन वर्षो के बाद ही सही समय का पहिया घूमा जरूर हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लगातार की फजीहत के बाद ‘आंखें’ खुल गई हैं। इसी लिए विधान सभा चुनाव की तारीख निकट आते ही योगी जी को सरकारी की जगह जनता के चुने गए नुमांइदों की याद आने लगी है।

गौरतबलब हो, उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का समय धीरे-धीरे नजदीक आता जा रहा है। 17 वीं विधान सभा का डेढ़ वर्ष का कार्यकाल ही शेष बचा है। चुनाव की तारीख नजदीक आते ही तमाम दलों के नेतागणों ने मतदाताओं के इर्द-गिर्द मंडराना शुरू कर दिया हैं। भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी,बहुजन समाज पाटी और कांगे्रस सहित तमाम छोटे-छोटे दलों और नेताओं ने जनता पर डोरे डालने में लग गए हैं। विपक्ष योगी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। योगी राज की तुलना जंगलराज से हो रही है। कोरोना महामारी के खिलाफ योगी के अभियान को फेल बताया जा रहा है। प्रदेश में बढ़ती बेरोजगारों की संख्या विपक्ष को सियासत के लिए काफी सूट कर रही है। तो भाजपा के सामने 2022 के विधान सभा चुनाव से पूर्व होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत और विधान सभा की 08 रिक्त हो गईं सीटों के लिए हो रहे उप-चुनाव में जीत हासिल कर अपनी साख बचाने का दबाव है।

खैर, इस बीच मुख्यमंत्री खेमे से अच्छी खबर यह आ रही है कि मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ ने अब अफसरों के कामकाज का सटीक फीडबैक हासिल करने और इसकी क्रांस चैकिंग के लिए अफसरों के साथ होने वाली बैठकों में जनप्रतिनिधियों को भी बुलाना शुरू कर दिया है। अफसरों और जनता के नुमांइदों के आमने-सामने बैठने से  प्रदेश के विकास के कार्यों की दशा और दिशा दोनों का पता चल है। अफसरों के दावों की परख भी हो रही है। यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नया प्रयोग है। मुख्यमंत्री द्वारा मंडलवार बैठकों में अब अधिकारियों के सामने जनप्रतिनिधियों की राय ली जा रही है।  मुख्यमंत्री इन दिनों मंडलीय बैठकें कर रहे हैं। इसमें मंत्री, सांसद व विधायक भी आमंत्रित किए जाते हैं। अधिकारियों से कहा जा रहा है कि उन्हें(जनप्रतिनिधियों को) पूरी तवज्जो दें। मंडलीय समीक्षाओं के जरिए योगी विकास के कामों को रफ्तार देने में लगे हैं। हाल में पश्चिमी यूपी में आने वाले मंडलों की बैठक में विधायकों ने सड़क, पुल, चीनी मिल, स्टेडियम,  गंगा एक्सप्रेस-वे परियोजना से जुड़े मामले उठाए। जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री का ध्यान इस ओर भी दिलाया कि एजेंसियों की कार्य क्षमता देखे बगैर उन्हें सरकारी काम करने को दे दिए जाते हैं,जिस वजह से एजेंसियों के पास कार्यक्षमता या मैन पावर के अभाव में सरकारी प्रोजेक्ट लटके रहते हैं।

बता दें कि हाल में ही में जनप्रतिनिधियों ने अधिकारियों द्वारा विकास के काम में सलाह न लेने व तवज्जो न देने की बात कई स्तर पर उठाई थी। अब सीएम ने अधिकारियों से कहा है कि जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लें। यही नहीं सरकारी अधिकारियों को विकास योजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण खुद न कर जनप्रतिनिधियों से कराने की नसीहत भी दी गई है। क्योंकि कई जगह से यह शिकायत सुनने को मिल रही थी कि लोकार्पण के शिलापट में जनप्रतिनिधि का नाम नहीं दिया जाता है। अब तक हुए नौ मंडलों की बैठकों में जनप्रतिनिधि सलाह के साथ मुख्यमंत्री के कामों की तारीफ करते दिखे। साथ  ही जनप्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्र की समस्याओं से भी सीएम को अवगत कराया। मुख्यमंत्री इन बैठकों में जनप्रतिनिधियों से अफसरों के सामने फीडबैक लेते हैं और कमी दिखने पर उसे तत्काल दूर करने को कहते हैं। प्रभारी मंत्रियों से भी सीएम ने जिलों में जाने को कहा है। जनप्रतिनिधियों से प्रस्ताव मांगे जा रहे हैं। जिला प्रशासन व जन प्रतिनिधियों के बीच बेहतर  सामंजस्य पर मुख्यमंत्री का खास जोर है। अभी तक 9 मंडलों अलीगढ़, आजमगढ़, चित्रकूट, अयोध्या, मुरादाबाद, सहारनपुर, विन्ध्याचल, आगरा व बस्ती में समीक्षा बैठक हो चुकी है। इन मंडलों में आने वाले 34 जिलों के विकास के कामों की परख हो चुकी है। इन 34 जिलों में 150 से ज्यादा विधानसभा सीटें आती हैं।

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