Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

30.6.23

केपी सिंह-

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का फैसला भारत को भी झकझोरेगा
अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में काॅलेजों के एडमिशन में अश्वेतों को आरक्षण को गैरकानूनी बता दिया है। भारत में भी एक प्रभावशाली मुखर वर्ग आरक्षण के प्रावधानों के खिलाफ लंबे समय से मोर्चा खोले हुये है जिसे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का फैसला बहुत उत्साहित करेगा।

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में 9 सदस्यीय पीठ द्वारा बहुमत से दिये गये इस फैसले में कहा गया है कि भले ही एक समय अश्वेत छात्रों को काॅलेज में एडमिशन के लिये न्यायपूर्ण रहा हो लेकिन अब इसे जारी रखने की तुक नहीं है। भेदभाव समाप्त करने के नाम पर लागू की गयी इस व्यवस्था में खुद ही भेदभाव के तत्व हैं क्योंकि इसमें यह देखना पड़ता है कि एडमिशन लेने वाला छात्र किस नस्ल का है - श्वेत या अश्वेत। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट का अभिमत यह रहा कि आरक्षण की परिधि में श्वेत छात्र का प्रवेश विचारणीय नहीं होता जो उसके साथ अन्याय का द्योतक है। 

अमेरिका में विशेष अवसर के सिद्धांत को सकारात्मक कार्रवाई का नाम दिया गया था ताकि पहले नस्लीय भेदभाव के कारण अश्वेत हर अवसर में दरकिनार कर दिये जाते थे जिससे काॅलेजों, प्रशासन, प्राइवेट नौकरियों आदि में एक ही पक्ष को स्थान मिल पाता था उसमें एकरूपता आ सके। मतलब यह है कि इसके पीछे कोई नकारात्मक भावना न होकर समाज में विविधता को संजोने की सकारात्मक ललक निहित रही। यह टर्म बेहद सदभावपूर्ण था और अभी तक इस पर अमल जारी था। पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाॅल्ड ट्रम्प ने अपने अनुदारवादी रूझान के तहत कई फैसले किये जिनमें से एक में उन्होंने अमरीकी सुप्रीम कोर्ट मे 3 जड़वादी न्यायाधीशों की नियुक्ति कर दी। इसका प्रभाव यह हुआ कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से ऐसे फैसले आने शुरू हो गये जो उसकी प्रगतिशील दिशा को पलटने वाले थे। काॅलेजों के एडमिशन में आरक्षण को समाप्त करने वाली बैंच में भी 6 अनुदार जज शामिल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर वहां बटी हुयी प्रतिक्रिया सामने आयी है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाॅल्ड ट्रम्प ने जहां इसका स्वागत किया है वहीं वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस पर असहमति जताई है। 

लेकिन अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्थानीय प्रभाव तक सीमित नहीं है। समूचा विश्व समाज इससे आंदोलित होने वाला है। भारत में लोग यह समझते है कि आरक्षण के प्रावधान सिर्फ उनके यहां लाद दिये गये हैं जबकि अन्य देश इससे मुक्त हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। जब मानवता के पैमाने पर समूचे विश्व समाज को तौले जाने की प्रवृत्ति जाग्रत हुयी तो ग्लोबल आॅर्डर इसी अनुरूप व्यवस्थित हुआ। नस्ल, जाति, भाषा, क्षेत्र आदि के आधार पर वंचित बनाये गये वर्गों के साथ न्याय के लिये विशेष अवसर के सिद्धांत का प्रवर्तन हुआ जिसके तहत कई देशों में भेदभाव के शिकार वर्गों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया। भारत में वर्ण व्यवस्था के दुराग्रह सर्वाधिक कठोर थे इसलिये आजादी की लड़ाई के समय प्रबल हुयी नैतिक चेतना के चलते समाज के अगुआ वर्ग में भेदभाव से पीड़ितों के प्रति सहानुभूति का भाव उमड़ा और इन वर्गों द्वारा अपने अधिकारों के लिये किये जा रहे आंदोलनों के प्रति उन्होंने सकारात्मक दृष्टिकोंण अपनाया। जाहिर है कि यहां अफरमेटिव एक्शन अमेरिका की तरह सृजित न होकर स्वतः स्फूर्त था। यह अजीब विरोधाभास है कि भारत में रेनेेसां का उभार गुलामी के दौर के समय देखने में आया जबकि स्वदेशी शासन में उत्तरोत्तर पुनरूत्थान के भाव जोर मारने लगे। वैसे यह भी एक सच है कि आज सारी दुनिया रूढ़िवाद की लहर का सामना कर रही है। अमेरिका में डोनाॅल्ड ट्रम्प इसी के प्रतिबिम्ब थे। भारत में भी यह प्रवृत्ति आज चरमोत्कर्ष पर है।

2014 के बाद से ही भारत में वर्ण व्यवस्था की पैरवी का दौर शुरू हो गया था। जिसके तहत वंचितों को अपमान का पात्र ठहराये जाने को जायज माना जाने लगा था। भाजपा मुख्य धारा की पार्टी है इसलिये उसके सामने इसके कारण असमंजस की स्थिति बन गयी थी। जो तत्व उसकी वर्ग सत्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे भाजपा उनके खिलाफ भी नहीं जा सकती थी लेकिन दूसरी ओर खुलेआम हठधर्मियों के साथ भी खड़ी नहीं हो सकती थी। उसे एकतरफा माहौल बनने तक सब्र करने की जरूरत का एहसास था। इसलिये उसने पहले आरक्षण को खत्म करने वालों के दबाव के प्रतिकार का आभास कराया लेकिन व्यवहारिक स्तर पर वह उनके अनुकूल कार्य करती रही। लेटरल इंट्री जैसी व्यवस्थाओं से उसने आरक्षण को निष्प्रभावी करने के लिये चोर दरवाजा खोला। कई विभागों में भर्तियों में आरक्षण को चकमा दे दिया। इस बीच उसके समर्थक संत धर्मभीरूता के एहसास को गहराते रहे। उन्होंने वंचितों में यह भावना भरने की कुशलता दिखायी कि अच्छे अवसरों से वंचित रहना उनके लिये ईश्वरीय नियति है। नोबल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन ने प्रतिपादित किया था कि शोषण के चक्र के पुराने होने के साथ शोषित वर्ग यह अनुभव करने के लिये विवश हो जाता है कि उत्पीड़न और भेदभाव को सहना ही उसका जीवन है। उसके अंदर इसके प्रतिरोध तक की इच्छाशक्ति समाप्त हो जाती है, विद्रोह तो बहुत दूर की बात है। आज स्थिति कुछ इसी तरह की है।

आरक्षण विरोधी तबके ने 2014 के शुरूआती वर्ष में जो तेवर दिखाये थे रणनीति के तहत उसने इसे बदल दिया था। उसे विश्वास हो गया था कि सत्ता में बैठे उसके चंद्रगुप्त आरक्षण को ठिकाने लगाने के अपने कर्तव्य को निश्चित रूप से अंजाम तक पहुंचायेंगे। आरक्षण की व्यवस्था एक प्रतीक है जो स्थापित करती है कि देश के बहुसंख्यक वर्ग को लंबे समय तक अन्याय का शिकार बनाया गया वरना वंचितों के पास भी योग्यता और पुरूषार्थ कम नहीं है। विशेष अवसर के सिद्धांत से इसको प्रस्फुटित किया जा रहा है जिससे देश की पूरी आबादी की क्षमताओं का लाभ उसे मिलेगा और  यह देश के लिये अत्यंत फायदेमंद होगा। इस स्थिति के तार्किक परिणति पर पहुंचने के पहले आरक्षण की प्रतिबद्धता से मुकरने का मतलब वर्ण व्यवस्था के औचित्य को सिद्ध करना है और यही होने का अवसर आ गया है।

2024 के लोकसभा चुनाव के बाद विशेष अवसर के प्रावधानों को वापस लिये जाने की पूरी उम्मीद वर्ण व्यवस्था की समर्थक ताकतों की थी और तब तक वे सब्र करने के लिये अपने को मानसिक रूप से तैयार किये हुये थे लेकिन अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन्हें जैसे नया हांैसला दे डाला है। वैसे तो पूरे विश्व में इसका प्रभाव पड़ने की संभावना जतायी जा रही है लेकिन भारत में तो निर्णायक बदलाव का जोश ठाठें मार सकता है। हालांकि लोकसभा चुनाव के पहले तक सरकार के सामने इधर कुंआ उधर खाई की स्थिति बन सकती है क्योंकि वह न तो आरक्षण समर्थकों को नाराज करने का जोखिम मोल ले सकती है और न ही आरक्षण समर्थकों से एक सीमा से आगे दुराव कर सकती है। आखिर बहुसंख्यक जनता तो वंचित वर्ग से है। यह दूसरी बात है कि बहुसंख्यक होते हुये भी इस वर्ग में पर्याप्त चेतना नहीं है, धर्मभीरूता सर्वाधिक है और दूसरे वह दूसरे वर्ग का जितना मुखर भी न होने से बहुत प्रभावी नहीं है। सामाजिक न्याय के आंदोलनों की धार भी इस बीच बहुत भौथरी हो चुकी है। 

वैसे सरकार और जिस वर्ग सत्ता पर वह टिकी है दोनों ही बहुत हुनरमंद हैं। आंखों से अंजन चुरा ले जाने में उन्हें महारथ हांसिल है इसलिये 2024 तक आपदामोचन का कोई प्रबंध वे कर लें तो आश्चर्य न होगा। लेकिन अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ध्वनि इतनी असरदार है कि भारत में जल्द ही इसके तख्तापलट जैसे परिणाम घटित होंगे।
--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

इमरजेंसी की ज्यादतियों का सच और वर्तमान दौर

केपी सिंह-

भारतीय राजनीति में वर्तमान दौर गड़े मुर्दों के विमर्श का दौर है। इसी रिवाज के कारण इमरजेंसी की दफन हो चुकी चर्चा फिर सतह पर ला दी गयी है। जबकि आज की नयी पीढ़ी को इमरजेंसी में कोई रूचि नहीं होनी चाहिये थी। उसने न इमरजेंसी को देखा है न भोगा है। उसने जब होश संभाला था तब के बहुत पहले इमरजेंसी की चर्चा बंद हो चुकी थी। पर 2014 के बाद इमरजेंसी का प्रेत एकदम से जिंदा किया गया। इसकी चर्चा से आज कई मतलब साधे जा रहे हैं। कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व को भी इमरजेंसी का बहुत अनुभव नहीं है लेकिन फिर भी उसे इस चर्चा से अपराध बोध में धकेलने में सहूलियत देखी गयी है। दूसरे वर्तमान सत्ता पर लोकतंत्र को कुचलने का जो आरोप तीव्रता से उछाला जाता है उसकी भी काट इमरजेंसी का मुद्दा कर देता है।

Assamese newspaper trolled for using fake photograph






Guwahati: A city-based acclaimed Assamese newspaper has been trolled
in social media for using a fake photograph to narrate the horrible
story of Manipur in the front page of 19 June 2023 issue. The social
media users slammed the editor of Amar Asom for using a photograph,
which has been lifted from Myanmar’s influential Mizzima newspaper,
with a completely different content.

किसके इशारों पर फ़िल्म निर्माता हमारे प्रभु श्री राम और भगवान हनुमान की छवि को बिगाड़ने में लगे हैं ?

~ अभिषेक कुमार सिंह ~

हर तरफ आजकल रामायण पर आधारित फ़िल्म आदिपुरुष की ही चर्चा है । लोगों के बीच इस फ़िल्म को लेकर बहुत नाराज़गी है । लोग इस फ़िल्म के संवाद, किरदार को लेकर काफ़ी गुस्से में है । फ़िल्म के निर्माता ओम राउत और संवाद लेखक मनोज मुंतशिर  को लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है । हालांकि मनोज मुंतशिर ने सफाई देते हुए कहा है कि यह हमने रामायण  नहीं बनाई है, बल्कि हम रामायण से प्रेरित है । लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि फ़िल्म निर्माता क्यों इतिहास और धार्मिक ग्रंथों के कहानियों पर आधारित फिल्म बना कर लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं ।

प्रतिदिन एक करोड़ रुपये से अधिक की रेती तस्करी








 
छत्तीसगढ़ राज्य में बीजापुर ज़िले के अंतिम छोड़ में मौजूद है तारलागुड़ा गाँव , जो की तेलंगाना राज्य के सीमा से लगता है । हमारी टीम को खबर मिली थी की , तारलागुड़ा गाँव से लगे गोदावरी नदी पर रेत तस्करों की बुरी नजर लग चुकी है । जहां से प्रति दिन सैकडो ट्रक अवैध रेत उत्खनन हों रहा है । रेत माफियायो ने शासन - प्रशासन को अपनी मुट्ठी में कर , प्रतिदिन गोदावरी नदी के घाट लाखों टन रेत उत्खनन कर पड़ोसी राज्य तेलंगाना भेजा जा रहा है ।

ये है बस्ती का शशि शेखर, गिरा दिया एक और ब्यूरो चीफ का विकेट

 हिन्दुस्तान अखबार के गोरखपुर यूनिट अंतर्गत बस्ती जिला भी आता है। जागरण, उजाला, सहारा समेत अन्य प्रमुख अखबारों ने दशकों से यहां अपना ब्यूरो कार्यालय खोल रखा है। हिन्दुस्तान ने भी अपना ब्यूरो कार्यालय जिला मुख्यायल पर गांधीनगर पक्के बाजार पर अरबन कोआपरेटिव बैंक बिल्डिंग में खोल रखा है। इस जिले और ब्यूरो कार्यालय का इतिहास जितना पुराना है उतना ही रोचक यहां तैनात होने वाले ब्यूरो चीफ साहबों का कार्यकाल भी रहा है। कहने को तो यहां गोरखपुर यूनिट के सम्पादक महोदय की कृपा से अनुभव और कार्य में ज्यादा तर्जुबा रखने वाले रिपोर्टर को तैनात किया जाता है लेकिन इस कार्यालय में तैनात एक अदना सा स्ट्रिंगर/ संवाददाता सुरेंद्र पांडेय इतना ‘ताकतवर’ है कि लोग उससे पनाह मांगते हैं। मजाल है कि कोई उसके सामने पनप पाए या उसका विरोध कर टिक पाए। साम, दाम और दंड भेद का ऐसा मर्मज्ञ कि पूर्व में कार्यरत रहे ब्यूरो चीफ मारे दहशत के सुरेंद्र पांडेय को  बस्ती ब्यूरो का शशि शेखर कहते हैं। अभी हाल ही में उसने यहां तैनात रहे एक और ब्यूरो चीफ का विकेट गिराकर अपनी यह पदवी/ नाम चरितार्थ कर दिया है। 

Stop Manipur Violence Say NAJ, DUJ

The National Alliance of Journalists (NAJ) and the Delhi Union of Journalists (DUJ) in a joint statement today condemned the ongoing violence in Manipur including attacks on journalists covering the violence. We call for an immediate cessation of violence by armed groups belonging to all sides.

बढ़ती बेरोजगारी भारत के लिए नई चुनौती

-डॉ. अशोक कुमार गदिया

विश्व पटल पर नजर दौड़ाएं तो पायेंगे कि भारत विश्व का सबसे युवा देश है। भारत की कुल आबादी लगभग 140 करोड़ है। इसमें लगभग 80 करोड़ युवा हैं। जबकि भारत की जनसंख्या ढाई प्रतिशत की दर से हर साल बढ़ रही है और रोजगार की व्यवस्था लगभग शून्य है। आज भारत सरकार, भारतीय समाज एवं भारतीय परिवार के लिये सबसे बड़ी चुनौती अपने देश के युवाओं को ठीक से पढ़ा-लिखाकर अच्छा प्रशिक्षण देकर उसे रोजगार के काबिल बनाना है। हमारा प्रत्येक युवा ठीक से रोजगार से जुड़ा हो, उद्यमी हो या पेशेवर हो या व्यापारी हो। हर युवा भारत की मुख्यधारा का हिस्सा हो और हमारी सकल आय में थोड़ा या ज्यादा योगदान देता हुआ दिखे, यह हम सब लोगोें का सपना है। फिर वह देश में काम करे या विदेश में काम करे इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। इसी स्वप्न के पूरे होने पर ही हम विश्व की सबसे बड़़ी अर्थ व्यवस्था बन सकते हैं और हम विश्वगुरु बनने का लक्ष्य भी पुनः प्राप्त कर सकते हैं। इस स्वप्न को पूरा करने के लिये हमें सबसे पहले अपना ईमानदारी से आंकलन करना होगा।

ईसाई मशीनरी का प्रार्थना सभा बना मौत का अड्डा, इलाज कराने आए वृद्ध की मौत

 ----गंभीर बीमारी का इलाज करने के नाम पर किया जाता है धर्म परिवर्तन का खेल

----ग्रामीणों की माने तो अभी तक एक दर्जन से अधिक लोगों ने तोड़ चुका है दम
----इस भीषण गर्मी में हफ्ते में दो दिन लगती है दस हजार की भीड़, तेज धूप से बचने की नहीं है कोई व्यवस्था




कुशीनगर यूपी बिहार सीमा के बगहा पुलिस जिला के धनहा क्षेत्र के दहवा प्रखंड मुख्यालय से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर गोबरहिया गांव में ईसाई मिशनरियों के द्वारा गंभीर बिमारी ठीक करने के नाम पर प्रार्थना सभा में इलाज कराने आए एक वृद्ध की मौत हो गई है। जिसका पहचान गोपालगंज जिला निवासी बबन सिंह उम्र लगभग 65 वर्ष के रूप में हुई है। ईसाई मिशनरियों द्वारा आयोजित प्रार्थना सभा में यूपी के कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, गोरखपुर सहित बिहार के गोपालगंज, सिवान, छपरा, पश्चिमी चंपारण जिले के लोग शामिल होते है। जहां पर इलाज के अभाव में बिमारी से ग्रसित लोग झाड़ फुक के चक्कर में पड़कर अपनी जान गवा दे रहे हैं। ईलाज करवाने आए व्यक्ति की मौत होने के बाद तत्काल प्रार्थना सभा को बंद करते हुए मौके से पास्टर फरार हो गया। ग्रामीणों के अनुसार पिछले छह माह में लगभग एक दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है। पास्टर वैश्य राज राम उर्फ राजकुमार के द्वारा लगभग तीन वर्षो से प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है। प्रार्थना सभा में अपने लोगों के द्वारा गवाही दी जाती है उस गवाही में पास्टर के लोगों के द्वारा इस बात की गवाही दी जाती है कि हमें गंभीर बीमारी थी जोकि प्रार्थना सभा में शामिल होने के बाद ठीक हो गया। प्रार्थना सभा में मौत होने का सबसे बड़ा कारण इलाज के जगह पर लोगों को प्रार्थना सभा में शामिल होने का कारण बताया जा रहा है। ग्रामीण मनोज शाह, वीरेंद्र चौधरी, रमेश यादव, मनोज गुप्ता, अकाश कुमार के अनुसार उक्त गांव में ईसाई मिशनरियों के द्वारा गंभीर से गंभीर बीमारी ठीक करने का दावा किया जाता है। गंभीर बीमारी ठीक करने के नाम पर गरीब, अनपढ़, गवार लोगों का मतांतरण करने का खेल किया जाता है। मतांतरण में यूपी के कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, गोरखपुर सहित बिहार के गोपालगंज, सिवान, छपरा, पश्चिमी चंपारण जिले के लोग शामिल होते है। प्रार्थना सभा सप्ताह में दो दिन गुरुवार और रविवार को लगाया जाता है। भीषण गर्मी और तपती धूप से बचने की व्यवस्था नहीं होने के कारण उस व्यक्ति की मौत हुई है। अगर झाड़-फूंक की जगह पर समय से किसी डॉक्टर से इलाज कराया गया होता तो, उसकी जान बच सकती थी। अक्सर इस प्रार्थना सभा में समय से इलाज नहीं मिलने के जगह झाड़-फूंक के चक्कर में पड़ कर लोग अपनी जान गवा दे रहे हैं। प्रशासन भी करवाई के बदले इनको शह दे रहा है। जबकि ग्रामीणों का कहना है कि अन्य किसी समुदाय का पर्व व त्यौहार मनाने के लिए अनुमंडल से लेकर थाना स्तर तक लाइसेंस के साथ परमिशन लेना पड़ता है। जबकि दस हजार की संख्या में जुट रही भीड़ के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं है। अगर समय रहते स्थानीय प्रशासन के साथ जिला प्रशासन इस पर कानूनी कार्रवाई नहीं करती है तो समाज और देश के लिए घातक साबित होगा। गंभीर बीमारी से ग्रसित लोगों को तब तक प्रार्थना सभा में शामिल किया जाता है जब तक वह अपने धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म को मानने न लगे। इनका जाल थाना क्षेत्र के अन्य गांव से भी जुड़ा हुआ है। जहां पर इस तरह का आयोजन किया जाता है। लेकिन पुलिस प्रशासन इनके प्रति मौन धारण की हुई है। वही मृतक का बेटा पप्पू सिंह ने बताया कि अपने पिता को इलाज के लिए लाए थे। लेकिन उनकी मौत हो गई है।
 
Akhilesh Anjan  
akhileshanjan3@gmail.com

28.6.23

पब्लिक ऐप में रिपोर्टरो का जमकर शोषण

 पब्लिक ऐप में रिपोर्टरो का जमकर शोषण किया जा रहा है और धमका कर काम कराया जा रहा है और इतना ही नही जुर्माना भी रोज लगाया जाता है जिसमे रिपोर्टर के काम की धनराशि से 50 से लेकर 200 रुपये तक काट लिए जाते है। इसके लिए बाकायदा धमकी भरा मैसेज भी ग्रुप में दिया जाता है । पब्लिक ऐप में काम करने वाले रिपोर्टरों को बेइज्जत भी किया जाता है और उत्तर प्रदेश भर में काम करने वाले पत्रकारों पर जुर्माना लगाने के बाद उनकी सूची भी ग्रुप में सार्वजनिक की जाती है कि कितना किस पर देर से खबर लगाने का जुर्माना लगाया गया, कितना खबर न लगाने पर लगाया गया ,कितना दूसरे तहसील की खबर पर लगाया गया है और जब चेतावनी दी जाती है तो भी स्पष्ट धमकी दी जाती है कि कारण स्पष्ट करो नही तो आई डी बन्द कर दी जाएगी या तो आप पर जुर्माना लगा दिया जाएगा।

रिपब्लिक के एंकर पर 10 हजार रुपए का जुर्माना

 

अश्लील वीडियो बनाकर प्रसारित करने के मामले में 8 में से 7 पत्रकार न्यायालय में हुए पेश,आरोप तय पर बहस नहीं करने को लेकर कोर्ट ने लगाया रिपब्लिक के एंकर पर 10 हजार रुपए का जुर्माना

 

नाबालिका के वीडियो को अश्लील बनाकर प्रसारित करने के मामले में गत 31 मई को गुरुग्राम के पॉक्सो की अदालत में सुनवाई हुई,जिसमे 8 में से 7 आरोपी चित्रा त्रिपाठी,अजीत अंजुम, रिपब्लिक भारत के एंकर सैयद सोहेल,ललित सिंह, अभिनव राज,सुनील दत, राशिद सभी पेश हुए।  न्यायालय की कार्यवाही में आरोप तय पर बहस जारी है। चित्रा त्रिपाठी, राशिद, अभिनव राज,अजीत अंजुम के वकीलों ने गत 18 अप्रैल को ही दलील पूरी कर ली है,बचे चार आरोपियों (दीपक चौरसिया, सैयद सोहेल,सुनील दत,ललित बडगुर्जर) के विरुद्ध आरोप तय पर बहस होनी थी। जानकारी के मुताबिक पिछली तीन तारीख से केस स्टडी नही करने का कारण बताकर बहस हेतु समय की मांग की जा चुकी है।

लोकसभा चुनाव के लिये बिछने लगी बिसात, क्या खरगे बनेंगे विपक्ष की ट्रंप

केपी सिंह-
लोकसभा चुनाव वैसे तो अगले वर्ष होने हैं लेकिन राजनैतिक माहौल अभी से गर्माने लगा है। इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यू के नेता नीतिश कुमार ने कहा है कि चुनाव के लिये अगले वर्ष के इंतजार में बैठना ठीक नहीं है क्योंकि चुनाव का ऐलान कभी भी हो सकता है। कुछ और लोग भी लोकसभा चुनाव इसी वर्ष संपन्न करा लिये जाने की अटकलें व्यक्त कर रहे हैं लेकिन अभी रामजन्म भूमि मंदिर का उद्घाटन होना है जो अगले वर्ष जनवरी में प्रस्तावित है। इसके पहले तो चुनाव होने से रहा। उधर भाजपा के एजेंडे में शामिल रहे समान नागरिक संहिता को लागू करने के मसले पर एकाएक सरकार में तेजी आयी है और उसका यह उतावलापन जाहिर करता है कि भले ही चुनाव इस वर्ष न हों लेकिन रामजन्म भूमि मंदिर के लोकार्पण के बाद तत्काल निर्धारित समय से पहले चुनाव करा लेने की तैयारी कहीं न कहीं सरकार की ओर से है। ऐसा मानने वाले राजनैतिक प्रेक्षकों की धारणा यह है कि मोदी का करिश्मा फीका हो चला है इसलिये केन्द्र सशंकित है इसलिये समान नागरिक संहिता लागू करने के साथ रामजन्म भूमि मंदिर का उद्घाटन होते ही फिर उसके लिये मुफीद माहौल बनेगा जिसमें देरी न करके समय से पहले फरवरी मार्च में ही चुनाव करा लेने का फैंसला लिया जा सकता है। प्रतिपक्षी दल सरकार के इस संभावित पैतरे को लेकर सतर्क रूख अपना रहे हैं इसलिये उन्होंने किसी भी समय चुनावी युद्ध में कूंदने की मानसिकता बना ली है और इसके लिये अपनी रणनीति तय कर डाली है भले ही इसका खुलासा न किया जा रहा हो।
भाजपा को शिकस्त देने के लिये प्रतिपक्ष के सोचने की जो पहली बात है वह भाजपा विरोधी मतों को बंटने न देने या एकजुट करने की है इसके लिये सारे प्रतिपक्षी दलों का एक बड़ा मोर्चा बनाने की जो बात है वह बहुत आसान नहीं है। कांग्रेस ने जब से कर्नाटक विधानसभा का चुनाव मैदान जीता है तब से विपक्षी कुनबे में उसकी स्थिति मजबूत हुयी है। जदयू, राजद और द्रमुक जैसे दल तो पहले से ही नेतृत्व उसको सौंपने के लिये सहमत थे लेकिन ममता बनर्जी जैसे नेता भी पहले के रूख को बदलते नजर आने लगे हैं। अखिलेश यादव को अभी भी कांग्रेस से परहेज है और वे नीतिश की अगुवाई में मोर्चा गठित करने की ओर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। केसीआर की मानसिकता क्या रहेगी। स्वयं कांग्रेस नेतृत्व के सवाल पर क्या रूख अपनायेगी यह भी अभी स्पष्ट नहीं है। पश्चिम बंगाल में मोर्चा कैसे काम करेगा यह भी एक बड़ा सिर दर्द है। कांग्रेस, वाम मोर्चा और तृणमूल कांग्रेस तीनों का पश्चिम बंगाल में सीटों के बटवारे को लेकर तालमेल पर मंथन एक म्यान में तीन तलवारें डालने जैसा है। केरल को लेकर कांग्रेस और वाम मोर्चा के बीच भी टकराव रहेगा। मोदी द्वारा प्रतिपक्षी दलों के लिये अस्तित्व का सवाल बना दिये जाने को देखते हुये पहले उन्हें हटाने की जरूरत बड़ी होने को तो सभी दल स्वीकार कर रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि इस खातिर अन्य बातें भुलाने को कोई तैयार हो। खास तौर से कांग्रेस इस बात को झेल चुकी है कि गर्दिश के समय भाजपा के अलावा प्रतिपक्षी दलों ने भी उसे आप्रासंगिक करार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी इसलिये वह विपक्षी कुनबे को एहसास कराना चाहती है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के विकल्प के रूप में लोग उसी का वजूद मानते हैं और इस हकीकत को नकारना स्वीकार्य नहीं हो सकता।

राज्य सूचना आयोग ने कुलसचिव,कुलपति महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से किया जवाब तलब।

 वाराणसी:  राज्य सूचना आयोग के आयुक्त अजय कुमार उत्प्रेति ने सुधांशु कुमार सिंह के द्वारा दायर द्वितीय अपील को स्वीकार करते हुए जनसूचना अधिकारी/कुलसचिव एवम् प्रथम अपीलीय अधिकारी कुलपति महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से अपना लिखित अभिकथन दिनांक:17.07.23 को  प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया है।

सहारा मीडिया में महा छँटनी अभियान की गुप्त ब्लूप्रिंट तैयार

 

सहारा मीडिया में गुप्त तरीके से आधे से ज्यादा कर्मचारियों की छँटनी की योजना को अमली जामा पहनाया जा रहा है। सहारा मीडिया में छँटनी के इस अभियान की बागडोर परिवार सहित दुबई बसे सुब्रत रॉय के छोटे भाई जयब्रत रॉय ने संभाली है। जब सहारा के उच्चाधिकारियों पर ताबडतोड पुलिस केस और मुकदमे हो रहे थेतब जयब्रत रॉय ने दुबई का रुख किया था । अब जयब्रत रॉय वापस भारत आ पहुंचे हैं और आजकल छँटनी के एजेंडे से नोएडा कैंपस में कैंप किए हुए हैं। जयब्रत रॉय पहले इसी प्रकार के अभियान को मुंबई में सफलता पूर्वक अन्जाम दे चुके हैं और जॉब (Job) रद्द रॉय के नाम से प्रसिद्ध हैं।

जल्द होगा मुरादाबाद जर्नलिस्ट क्लब का पुनर्गठन

पदाधिकारियों में लगी अध्यक्ष बनने की होड़

मुरादाबाद: मुरादाबाद जनरलिस्ट क्लब के पुनर्गठन की मांग उठने लगी है। क्लब के ही कुछ सदस्यों द्वारा अध्यक्ष बनने की होड़ लगी हुई है। पिछले वर्ष हुए चुनाव में न्यूज़ नेशन के रिपोर्टर इमरान खान को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया था। उन्होंने अपने कार्यकाल में पत्रकार हेतु के लिए तमाम सारे कार्य किए। 

2024 चुनाव की डगर ....विपक्ष के लिए कितनी आसान कितनी मुश्किल?

 

Aman Anand-


जिस तरह 2024 का चुनाव पास आ रहा है, उसी तरह राजनीतिक हलचल तेज होने के साथ सियासी पारा भी बढ़ता जा रहा है | विपक्ष लगातार इस बात पर मंथन कर रहा है कि अगले साल होने वाले चुनाव में मोदी-योगी की जोड़ी को तोड़ा कैसे जाए | हाल ही में विपक्ष ने पटना में महाबैठक की जिसमें विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा विरोधी मोर्चे के गठन की रूपरेखा तैयार करने के लिए विचार-विमर्श किया। लगभग चार घंटे की लंबी बैठक के बाद, 17 विपक्षियों ने भाजपा को हराने के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव एकजुट होकर लड़ने और अपने मतभेदों को दूर करके एकजुट होकर काम करने का संकल्प लिया। हालांकि इस बैठक से केजरीवाल, अखिलेश, स्टालिन और मायावती जैसे विपक्ष बड़े चेहरे नदारद रहे | इस बैठक के बाद विपक्ष ने ऐलान किया कि अगली बैठक शिमला में होगी जिसकी अध्यक्षता कांग्रेस करेगी |  

बौद्धिक जागरण का उदगाता गीत प्रेस

 डाॅ मयंक मुरारी-


गीता प्रेस गोरखपुर को इस बार वर्ष 2021 के गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुना गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता के रूप में चुनने का फैसला किया गया। संस्कृति मंत्रालय ने इस चयन को लेकरघोषणा में बताया कि गीता प्रेस ने 100 साल में लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में काफी सराहनीय काम किया है। इस घोषण के साथ ही कांग्रेस की ओर से इस पर अनावश्यक विवाद खड़ा कर दिया गया, जो सर्वथा अनुचित था। गीता प्रेस गोरखपुर को लागत से कम मूल्य में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए जाना जाता है। गीता प्रेस सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए बौद्धिक जागरण का यह पुनीत कार्य पिछले 100 साल से करता आ रहा है। विरोध के बाद गीता प्रेस गोरखपुर की बोर्ड मीटिंग में तय हुआ है कि इस बार परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान स्वीकार किया जाएगा, लेकिन पुरस्कार के साथ मिलने वाली धनराशि नहीं ली जाएगी। जानकारी के मुताबिक, बोर्ड की बैठक में तय हुआ है कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि गीता प्रेस स्वीकार नहीं करेगा।
गीता प्रेस के कल्याण पत्रिका के संपादक रहे हनुमान प्रसाद पोद्दार उर्फ भाई जी को भारत रत्न देने का प्रस्ताव तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की ओर से रखा गया थाए तब तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत गोरखपुर में भाई जी से मिलकर भारत रत्न देने की बात कहीं थी, तब भी उसे ठुकरा दिया गया था। आज जब पुनः विरोध के स्वर उठ रहे है, तो यह स्मरण करना अनिवार्य हो जाता है कि गीता प्रेस भारतवर्ष में सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का पहरूआ संस्था रहा है। गीता प्रेस का गठन जयदयाल गोयनका, घनश्याम दास जालान और हनुमान पोद्दार ने गोरखपुर में सन 1923 में किया था। गीता प्रेस के गठन का एकमात्र लक्ष्य सनातन धर्म का संरक्षण, संवर्द्धन और संपोषण करना था। गीता प्रेस पिछले एक साल से सनातन एवं शांत बहती सरिता की तरह है, जिसने भारतीय समाज को बौद्धिक, आत्मिक और जैविक समाज के रूप में बदला है। गीता प्रेस नहीं होती, तो आज भारतीय समाज को अपने अतीत और अपने धरोधर को बचाने के लिए संघर्ष करना पडता। पिछले एक सदी से देश में संस्कृति और परंपरा की शाश्वत धारा प्रवाहित कर रही है, जिसमें सांस्कृतिक मूल्यों के साथ, अहिंसा, सदाचार, देशनिर्माण एवं आयुर्वेद, योग और अध्यात्म को सिंचित, पुष्पित और पल्लवित किया गया है। 

27.6.23

कर्नाटक के बाद तेलंगाना साधने की कांग्रेस की तैयारी

विजय सिंह, 27  जून

कांग्रेस के युवराज और भाजपा के पप्पू राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को अप्रत्याशित सफलता मिलने के बाद, कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की शानदार जीत अब तेलंगाना में के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ पार्टी  भारत राष्ट्र समिति ( बीआरएस पूर्व नाम - तेलंगाना राष्ट्र समिति ,टी आर एस ) और भाजपा  नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की सुगबुगाहट के साथ ही 2023 में दक्षिण भारत के आसन्न चुनावी राज्य तेलंगाना में कांग्रेस को पुनर्जीवन के लिए ऑक्सीजन की नई खेप मिलने के संकेत शुरू हो गए हैं।

टाइगर इन मेट्रो : ब्रशस्ट्रोक व जीवंत रंगों के माध्यम से बाघ को बचाने का संदेश

 





  • प्रदेश के वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल समेत सैकड़ों लोगों ने किया टाइगर इन मेट्रो का अवलोकन । 


     लखनऊ , 27 जून 2023, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हजरतगंज मेट्रो स्टेशन पर इन दिनों दस दिवसीय टाइगर इन मेट्रो अखिल भारतीय पेंटिंग एवं छायाचित्रों की प्रदर्शनी चल रही है। यह प्रदर्शनी मेट्रो स्टेशन पर आने वाले सभी यात्रियों के लिए सबके आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। सेव टाइगर प्रोजेक्ट पर आधारित इस प्रदर्शनी में देश के 13 राज्यों के 42 फोटोग्राफर एवं चित्रकारों की 76 कलाकृतियों को शामिल किया गया है। पिछले चार दिनों में हजारों की संख्या में लोगों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया। कलाकारों के सृजनात्मकता और छायाचित्रकारों की कुशल फोटोग्राफी को लोग काफी पसंद कर रहे हैं साथ इसके पीछे कलाकारों के भाव की भी सराहना हो रही है। टाइगर इन मेट्रो प्रदर्शनी के क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि यह देश की पहली कला प्रदर्शनी है जिसमें देश के समकालीन कलाकार और छायाकार इतनी बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं। यह टाइगर के जीवन के प्रति इनकी संवेदनशीलता और गहरी भावना का भी परिचय देता है। 

26.6.23

सुचेता कृपलानी की 115वीं जन्मतिथि पर संगोष्ठी




25 जून, नई दिल्ली। सुचेता कृपलानी भारतीय समाज, राजनीति, स्वतंत्रता आंदोलन और मानव सेवा का वह चमकता हुआ सितारा है जिसकी चमक कभी फीकी पड़ ही नहीं सकती। यह उद्गार वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता ने स्वर्गीय सुचेता कृपलानी की 115वीं जन्म तिथि पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए। संगोष्ठी का आयोजन आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया गया था।

18.6.23

फरमानो की नाफ़रमानी अफ़सरशाही का शग़ल रहा है !


सत्येंद्र कुमार

पहले के राजाओं महाराजाओं के राज्य और सल्तनतें भी काफी दूर दूर तक फैली होती थी । बड़े से बड़े और छोटे से छोटे सूरमाओं के सल्तनतों में हुक्म देने और हुक्म बजा लाने की फटाफट रवायत थी । हुक्म की नजरअंदाजी और नाफरमानी पर ऐसे कठोर दंड का प्रावधान था जिसे सोचकर रूह काँप जाती थी । शायद यही वजह थी कि हुक्म की नाफ़रमानी  करने की मजाल किसी अफसरशाही में नही थी । आज के समय में भी देखा जाए तो अफसरशाही की मुश्कें कसने में पूर्व सी एम  मायावती जितनी कामयाब रहीं शायद ही कोई और सी एम उतना कामयाब रहा हो । 

आज इस भीषण प्रचण्ड गर्मी में सूबे के मुखिया द्वारा बिजली विभाग को प्रदेश भर में निर्बाध तरीके से बिजली आपूर्ति का जो आदेश अभी कुछ दिन पहले ही दिया गया था, उस आदेश को भी बाकी आदेशों की तरह नाफ़रमान अफसरों के अहंकार और निकम्मेपन ने रद्दी में फेंक दिया है । जिलों में संचालित अवैध स्टैंड तथा अवैध शराब को लेकर जारी सी एम के आदेश का भी वैसा ही हश्र हुआ है, जैसा हश्र उन आदेशों का हुआ, जिसमे अधिकारियों को अपना सी यू जी नंबर खुद उठाने और 10 बजे सुबह कार्यालय पहुँच जाने के लिए आदेशित किया गया था। 

आज यूपी में बिजली सप्लाई की बुरी हालत है । लखनऊ में भी चौदह चौदह घंटे की कटौती जोरों पर है । यूपी के ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालत बदतर है । जिलों में भी चौदह से अट्ठारह घंटे की करामाती कटौती हो रही है । ग्रामीण क्षेत्रों में तो महज कुछ घंटे ही बमुश्किल बिजली मिल पा रही है । भीषण गर्मी में जनता गर्मी से चित्कार कर रही है और बिजली संकट का हाहाकार मचा हुआ है ।

स्थिति यह है कि हालात से उपजे बदहालियों औऱ मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद भी अफसर नहीं सुधर रहे हैं । आई. ए. एस. अफसरों ने बिजली विभाग का भट्ठा बैठा दिया है ।कहीं कोई कार्रवाई नहीं है और न ही किसी की कोई जबावदेही है । अफसरों के अहंकार और निकम्मेपन ने अन्य व्यवस्थाओं की तरह बिजली व्यवस्था को भी आज कितना पंगु बना दिया है इसका अहसास सबको हो चला है । बिजली विभाग में दर्जनभर से ज्यादा आई. ए. एस. तैनात हैं लेकिन फिर भी बिजली विभाग की मनमानी को नियंत्रित कर पाना टेढ़ी खीर बना हुआ है । बिजली व्यवस्था सुदृढ़ करने की बजाय काम में अड़ंगा लगाने और फाइलों से पैसा बनाने की अफ़सरशाही प्रवृत्ति और दिलचस्पी ने बिजली विभाग का बेड़ा गर्क कर दिया है। बिजली सप्लाई समान्य कैसे हो इसपर ध्यान नहीं है और मंत्री के एक्शन का भी अफसरों पर कोई असर नहीं है । भीषण गर्मी से पूर्व विभागीय तैयारियों का हाल ऐसा है कि गर्मी से पहले ट्रांसफार्मर्स के आयल तक नहीं बदले गए। 

आदेशों को अनसुना करने की प्रवृत्ति यदि ऐसी ही बनी रही तो मूसलाधार बरसात से पूर्व बन्धों की मरम्मत की तैयारियों का भी बंटाधार होना तय है । हालात यह हैं कि ओवरलोडिंग और प्रॉपर मेंटेनेन्स के आभाव में रोजाना लगभग हजार से ज्यादा ट्रांसफार्मर दग जा रहे हैं और अफसरान हैं कि आपसी गुटबाजी और अहंकार में भ्रष्टाचार के नए नए कीर्तिमान गढ़ रहे हैँ । हुक्म की नाफ़रमानी वाली प्रवृति आज अफ़सरशाही में इतना भयंकर रूख अख़्तियार कर चुकी है कि नाफरमान अफ़सरशाही को जिल्ले इलाही , सुल्तान, महाराज जी या मुख्यमंत्री के फ़रमान की नाफ़रमानी का कोई खौफ़ बाकी नही रह गया है ।

16.6.23

News18 Punjab/Haryana Presents Education Summit: Exploring the Future of Learning with Artificial Intelligence

News18 Punjab/Haryana Presents Education Summit: Exploring the Future of Learning with Artificial Intelligence

 

Chandigarh, 16th June, 2023 — News18 Punjab/Haryana, the No.1* news channel of the region, is thrilled to announce the Education Summit, a pioneering event aimed at fostering discussions on leveraging technology to revolutionize education. The summit will take place in Chandigarh on 17th June, serving as a platform for educators, experts, and thought leaders to delve into the transformative potential of Artificial Intelligence (AI) in the field of education.

The Education Summit will serve as a catalyst for exploring pioneering solutions and strategies that can revolutionize the quality of education. With a specific focus on the theme "Artificial Intelligence (AI) and the Future of Learning," the summit will delve into the potential of AI in reshaping the landscape of education, equipping students with the necessary skills for a rapidly evolving future.

With a strong focus on innovation and the enhancement of education quality, the Education Summit seeks to spark conversations and highlight the role of technology in shaping the future of learning. The event will showcase panel discussions featuring esteemed guests and representatives from renowned educational institutes in the region, including Dr. Ajay Batish, Deputy Director of Thapar Institute of Engineering & Technology; Dr. Lalit Awasthi, Director of NIT, Uttarakhand; Dr. Padmakumar Nair, Director of Thapar Institute of Engineering & Technology; Dr. Rajeev Ahuja, Director of IIT Ropar; Kanwardeep Kaur, Senior Superintendent of Police, Chandigarh; Group Captain (Retd.) Sangeeta Kathait; Kamal Wadhera, CEO of TCY Online; Dr. Manbir Singh, Pro Vice-Chancellor of C T University; Dr. VK Rattan, Vice-Chancellor of GNA University; and Lieutenant General (Retd.) Deependra Singh Hooda.

The Education Summit will delve into the myriad possibilities presented by AI and its impact on the future of education. Attendees can expect in-depth discussions on how AI can be harnessed to drive innovation, enhance teaching methodologies, and create a personalized learning experience for students. The summit will explore practical solutions and shed light on successful AI implementations in educational institutions.

Tune in to News18 Punjab/Haryana on 17th June at 5:30 PM to watch the Education Summit. This conclave is a testament to News18 Punjab/Haryana's commitment to promoting educational advancements and driving positive change in the region.

 

*Source: BARC, TG: 15+, Period: Wk 23'23, Market: Pun/Cha, AMA 000's, 5 Channels Considered


--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

जीवन रक्षक दवाओं के दाम 12%बढ़ाने का फैसला रद्द करो


सकल घरेलू उत्पाद का 05% स्वास्थ्य के लिए आवंटित करो

आज दिनांक 16 जून 2023 दिन शुक्रवार को उत्तर प्रदेश उत्तराखंड मेडिकल एन्ड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन (UPMSRA) के आवाहन पर ग़ाज़ीपुर इकाई ने अपनी 7 सूत्रीय मांगों को लेकर दवा प्रतिनिधियों की विशिष्ट आम सभा बड़ीबाग़ स्थित कार्यालय पर आहूत की।
    
बैठक को संबोधित करते हुए प्रदेश सचिव साथी आर0एम0 राय ने बताया कि कोरोना महामारी की मार झेल चुकी जनता पर दवा कंपनियों द्वारा  पहले 10.7% की बढ़त के साथ मंहगी जीवन रक्षक दवाओं का बोझ डाला गया है और फिर तुरंत बाद 12.12% की मनमानी वृद्धि करते हुए आम जन को मंहगी दवाओं का तोहफा दिया है।
     
दवा प्रतिनिधियों के संगठन युपीएमएसआरए और एफएमआरएआई द्वारा इसके विरोध में आगामी 19 और 20 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से प्रेषित करने और एक पत्रक के माध्यम अपनी मांग और जनता से जुड़ी तमाम परेशानियों जिनमें दवाओं के बढ़ते दाम और उन पर जीएसटी की दरों को संशोधित करने, मेडिकल उपकरणों पर से जीएसटी हटाने,  वार्षिक बजट में केन्द्रीय स्वास्थ्य बजट को 2.4%  से बढ़ाकर कम से कम 5% करने, जनता की स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि करने, स्वास्थ्य  क्षेत्रों की स्थिति सुधारने संबंधी बातों का जिक्र है को वितरित करने की योजना सुनिश्चित की गई है।
 
सभा का उद्घाटन करते हुए ईकाई अध्यक्ष चंदन कुमार राय ने दवा के बढ़ते दामों से हो रही दुश्वारियों का जिक्र किया। राज्य कार्यकारिणी सदस्य काम. अफजल ने दवा प्रतिनिधियों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हुए बताया कि नेशनल फार्मासीयूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) ने नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिन्स (NELM) में शामिल 800 से ज़्यादा जीवन रक्षक दवाओं के दाम 12.12% बढ़ाने का आदेश दिया है इससे एन्टी बायोटिक  व तमाम हृदय, डायबिटीज, कैंसर, HIV व किडनी रोग की दवाओं के दाम में बेतहाशा बढ़ोत्तरी होगी। पिछले साल NPPA ने NELM में शामिल 800 से ज़्यादा जीवन रक्षक दवाओं का दाम 10.7% बढ़ाने का आदेश दिया था, जिसमे हमारी मांग है कि दवाओं से GST शून्य की जाए व उनके डैम कम किये जाएं ताकि आम जनता को राहत मिल सके।
नैथक में साथी ए0के0 जैन ने  विभिन्न दवा कम्पनी के मालिकान द्वारा हम दवा प्रतिनिधियों के ऊपर हो रहे हमलों पर विस्तृत प्रकाश डाला। 
बैठक में ज़िला मंत्री मयंक श्रीवास्तव ने साथियों से 19 जुन के कार्यक्रम को सफल बनाने का आवाहन किया।
   
सभा में साथी ज्योति भुषण, बि.के. श्रीवास्तव, हरिशंकर गुप्ता, संजय विश्वकर्मा, ए.के. जैन, रईस आलम, दिग्विजय, विकास, शिवम, मोहित, विशाल, अमरनाथ श्रीवास्तव, राजु श्रीवास्तव, निकेत, अविनाश, हेमंत, रितेश , निज़ामुद्दीन, सर्वेश मिश्रा, अंकित वर्मा, आरपीएस यादव, एस0के0 राय, एम0पी0 राय, सौरभ राय, सूरज विश्वकर्मा, सुनील गुप्ता, रामाश्रय, अभिषेक तिवारी, रविकांत तिवारी, रितेश दत्त पांडेय, आशीर्वाद सिंह, हिम्मत राय, कमलेश, अम्बिकेश, प्रेमचंद प्रिंस मोदनवाल, अनिल यादव, अविनाश चौहान, अविनाश शर्मा, शेखर राय, विशाल जायसवाल, राकेश त्रिपाठी समेत सैकड़ों साथियों ने प्रतिभाग किया, अध्यक्षता साथी चंदन राय व संचालन साथी मयंक श्रीवास्तव ने किया।

द्वारा:- चंदन कुमार राय
जिलाध्यक्ष upmsra ग़ाज़ीपुर
--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

15.6.23

भास्कर को क्या हो गया

जिले भर में चर्चा : माफिया के आगे घुटने टेक गया दैनिक भास्कर

यमुनानगर : मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है लेकिन लगता है कि विज्ञापनों और नोटों के लालच में इसका मानवीय डावांडोल होने लगा है।

दरअसल यमुना नगर के ताजकपुर क्षेत्र में बड़ी संख्या में आज पकड़ी गई थी तथा बकायदा उसकी वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी लेकिन दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने इस खबर को बेहद हल्के अंदाज में प्रकाशित किया है जिसे लेकर जिले भर में चर्चा है लोगों का कहना है कि भ्रष्टाचार के मामले उजागर करने में माहिर माना जाने वाला यमुनानगर का प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक भास्कर लगता है इन दिनों इस पर काफी नरम रुख अपना रहा है। 

चर्चा है कि बड़ी संख्या में जिस क्षेत्र में खाद के कट्टे पकड़े गए वहां बकायदा पुलिस मौके पर पहुंची थी 112 के साथ-साथ थाना सदर की पुलिस भी वहां पहुंची और उसकी वीडियो भी वायरल हुई लेकिन भास्कर ने इस समाचार को चर्चा कहकर डालने का प्रयास किया और यह भी लिख दिया कि कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि इस मामले में खाकी ने मामला भी दर्ज कर लिया है इस खबर को लेकर काफी चर्चा इस संबंध में दैनिक भास्कर के ब्यूरो चीफ से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके उनके पक्ष का हमें इंतजार रहेगा।


--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

नहीं करने का मैं तक़रीर, अदब से बाहर…

पंकज चतुर्वेदी-


कवि केदारनाथ सिंह का कथन है कि मिर्ज़ा ग़ालिब अंग्रेज़ों के भारत में आने के बाद सबसे बड़े भारतीय कवि हैं। उन्होंने मुझसे एक बार कहा कि ग़ालिब ऐसे कवि हैं, जिनके दीवान को आप अपने तकिये के पास रखना चाहेंगे, जो उनकी शाइरी से हो जाने वाली एक अनिवार्य मुहब्बत का सुबूत है। बहुत कम कवियों को यह सौभाग्य हासिल होता है।

आज जिनका भारतीय संस्कृति पर दावा है, वे भले अपनी संस्कृति भूलकर अधिकाधिक अभद्र, उद्दंड और हिंस्र होते जा रहे हों; लेकिन ग़ालिब के लिए संस्कृति का एक साफ़ मतलब यह भी है कि 'अदब का उल्लंघन करके मैं अपनी बात नहीं कह सकता और मर्म को मैं भी जानता हूँ, मगर उसके इज़हार को लेकर मेरे भीतर एक संकोच रहता है।' कहने की ज़रूरत नहीं कि यह संकोच हमेशा एक बड़े रचनाकार की निशानी है :

'नहीं करने का मैं तक़रीर, अदब से बाहर 
मैं भी हूँ वाक़िफ़-ए-अस्रार, कहूँ या न कहूँ'
--
Yashwant Singh
Founder & Editor
www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal
Whatsapp 9999330099

पिटे-खिसके हुए, फूके हुए कारतूसों व रंग-रंगीली होगी मोदी की चुनावी टीम

*आचार्य विष्णु हरि सरस्वती* 
====================

दस दिन से बैठकें जारी, रफू-तुरपायी के बाद भी छेद ही छेद

केन्द्रीय सत्ता परेशान है, हताश है, निराश है, उसे रास्ता मिल नहीं रहा है, चुनावी कार्य योजना में दम नहीं मालूम हो रहा है। इसलिए लिस्ट बार बार फट रही है, कार्ययोजना की कागजें बार-बार फाडी जा रही है। रफू या तूरपायी चढ़ाने के बाद भी रास्तों व कार्ययोजनाओं में छेद ही छेद दिख रहे हैं।
            
इसी कारण केन्द्रीय मंत्रिमंडल का पुर्नगठन रूका है और पार्टी की केन्द्रीय कमिटी में फेरबदल रूका हुआ है। जब तक चुनावी रास्ता चाकचौबंद नहीं होगा, कार्ययोजना चाकचौबंद नहीं बनती तब तक बैठकें जारी रहेंगी।
        
 हिमाचल प्रदेश में हार के बाद जगत प्रसाद नड्डा से विश्वास उठ गया है, उनकी कार्यक्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। इसी तरह कर्नाटक में हार के बाद बीएल संतोष पर विश्वास उठ गया है। अध्यक्ष और संगठन मंत्री मिलकर ही चुनाव की कार्ययोजना बनाते हैं। ये पिटे हुए और सिसके हुए मोहरे हैं, फूके हुए कारतूस हैं। 
          
नड्डा और वीएल संतोष ने जो 2024 चुनाव के महाराथी तय कर रहे हैं, वे सबके सब बूझे हुए कारतूस हैं, दलबदलू हैं, या फिर रंग-रंगीला और छबीला हैं, विष कन्याएं हैं। ऐसी रंग-रंगीली लिस्ट देख कर नरेन्द्र मोदी का गुस्सा सातवें आसमान पर हैं। नड्डा और बीएल संतोष द्वारा बनायी गयी सूची को जब नरेन्द्र मोदी की लिस्ट जांचने बैठती है तो पता चलता है कि ये दलबदलू हैं, घिसे-पिटे हुए हैं और अति प्रोफेशनर हैं। मोदी की टीम लिस्ट और योजना को बार-बार खारिज कर रही हैं। कहने का अर्थ यह है कि कार्यकर्ता मिल नहीं रहे हैं।
           
दस साल के शासन काल में जिन लोगों को भी जिम्मेदारियां दी गयी, सत्ता दी गयी वे सभी लूटने और खाने में लग गये, अपने परिवार, अपनी जाति की भलाई करने में लग गये। इनके लिए हिन्दुत्व गयी भांड में। हर जगह कांग्रेसी वर्चस्व कायम रहा। मीडिया से लेकर एनजीओ ही नहीं बल्कि सरकार के हर क्षेत्र में कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों का कब्जा बना रहा। कार्यकर्ता घर बैठ गये। कार्यकर्ताओं का सिद्धांत ही बदल दिया गया।
            
मोदी चाहें जितना भी लिस्ट बदलवा लें, जितनी भी कार्ययोजनाएं तैयार करा लें लेकिन उन्हें अपने मन की टीम और योजना कहां से मिलेगी? नड्डा और बीएल संतोष आदि लड़ने वाले और हवा बनाने वाले बलिदानी जत्था खोज कर कहां से लायेगें? कार्यकर्ता बलिदानी क्यों बनेंगे जब नड्डा, बीएल संतोष सहित अन्य सभी रंग-रंगीली हैं।
       
मोदी की 2024 की चुनावी टीम रंग-रगीली ही होगी, फूके हुए कारतूसों, पिटे हुए और खिसके हुए तमाशबाज ही मोदी के चुनावी सेनानी होंगे।

आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
मोबाइल ... 9315206123
====================
--
Yashwant Singh
Founder & Editor
www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal
Whatsapp 9999330099

14.6.23

प्रो शशिकला के खिलाफ शिकायत पर उप राष्ट्रपति सचिवालय ने लिया संज्ञान

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्विद्यालय भोपाल

भोपाल । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्विद्यालय भोपाल के कुलसचिव को उप राष्ट्रपति सचिवालय से 20 अप्रैल 2023 को पत्र भेजकर प्रो शशिकला की विभागाध्यक्ष बनाए जाने व पदोन्नति के नियमों की अनदेखी किए जाने की शिकायत की गई थी जिसे संज्ञान में लिया गया है। 

मालूम हो कि चंडीगढ के डॉक्टर आशुतोष मिश्र ने इस संबंध में शिकायत की थी जिसमे यूजीसी द्वारा भी विश्विद्यालय को उचित कार्यवाही करने के लिए कहा गया था। 

डॉक्टर मिश्र ने बताया कि उप राष्ट्रपति सचिवालय से उन्हें भी ये पत्र मिला है जो विश्विद्यालय के कुल सचिव को प्रेषित है तथा उनके 19 अप्रैल को भेजे गए ईमेल पर अनुरोध का निराकरण करने की बात कही गई है।

Dr.  Ashutosh
--
Yashwant Singh
Founder & Editor
www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal
Whatsapp 9999330099

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट प्रकाशन की मनमानी

एकेडमिक से पत्रकारिता में आए रिपोर्टर देवेश पांडे ने 14 मार्च 2022 को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट वाराणसी जॉइनिंग किया ।यहां पर इनकी नियुक्ति बतौर रिपोर्टर हुई। 15 महीने से अधिक समय तक लगातार धमाकेदार, ताबड़तोड़ ,एक्सक्लूसिव, ब्रेकिंग खबरें देते रहे जिससे बनारस में आईनेक्सट की साख बनी रहे। 

इसी बीच आईनेक्सट प्रकाशन के द्वारा देवेश पांडे के अवकाश पर रहने पर टर्मिनेशन का मेल भेज दिया गया। जबकि पारिवारिक कार्यों को ध्यान में रखते हुए देवेश पांडे 1 जून को ही संपादक मनोज वार्ष्णेय को मेल करते हुए अवकाश लिए थे।

इसके बाद भी मैनेजमेंट और रीजनल हेड धर्मेंद्र सिंह अपनी मनमानी जारी रखें। इस दौरान मनोज वार्ष्णेय एवं धर्मेंद्र सिंह के द्वारा के 6 महीने पर प्रोबेशन से कंफर्मेशन होने का फॉर्म भरवा लिया गया इसके बाद भी इनका कंफर्मेशन नहीं किया गया। 

यहां तक की हद तब कर दी टर्मिनेशन मेल में उन्होंने बताया है कि हमने 2 बार लगातार 8 महीने तक प्रोबेशन पीरियड बढ़ाया और रिपोर्टिंग में सुधार नहीं है। जबकि यूनिट हेड मनोज वार्ष्णेय रीजनल हेड धर्मेंद्र सिंह के द्वारा कभी भी मेल या नोटिस देकर के कार्यों के बारे में नहीं बताया गया। या कार्य से संतुष्ट नहीं है ।इसके बारे में नहीं कहा गया। 

इसके बाद अचानक से अपनी गंदी राजनीति और मिलीभगत करते हुए आईनेक्सट मैनेजमेंट कानपुर को अपनी सांठगांठ में लेते हुए छुट्टी के दौरान 3 जून को 6:39 पर टर्मिनेशन मेल चला दिया।इसके बाद से 15 दिन बीत जाने के बाद भी ना ही टर्मिनेशन लेटर नाही एक्सपीरियंस लेटर नाही सैलरी स्लिप और ना ही मई माह की तनख्वाह जारी की। ऐसे में आई नेक्स्ट प्रकाशन मैनेजमेंट गंदी राजनीति के लिए सदैव जाना जाएगा। 
--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

वर्दी की लालच और ठसक ने योगी सिटी में ले ली एक और जान

सत्येंद्र कुमार-

गोरखपुर : जिस पुलिस को योगी राज में अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए फ्री हैंड किया गया था आज वही पुलिस अपने कारनामो से लोगों के बीच आतंक का पर्याय बनती जा रही है । सी एम सिटी के बांसगांव थानाक्षेत्र में आज उस वक्त एक व्यक्ति की मौत हो गयी जब पुलिस उस व्यक्ति के घर उसे पकड़ने पहुँची थी । 

बताया जा रहा है कि मृतक का अपने पाटीदारों से जमीनी विवाद चल रहा था । मृतक 308 आई पी सी के मुकदमे में वांछित था । प्रत्यक्षदर्शियों व परिजनों का कहना है कि बांसगांव थानेदार दीपक सिंह बार बार मृतक से एक लाख रुपये मांग रहे थे और कह रहे थे कि रुपये दे दो तो समझौता करा दूंगा । एक पार्टी ने रुपये दे दिए लेकिन मृतक रुपये नही दे पाया था । मुकदमे में वांछित होने के बहाने आज सुबह पुलिस मृतक के घर पहुँची और पुलिस ने दौड़ा कर उस व्यक्ति को पकड़ना चाहा। भागम भाग में जब मृतक जमीन पर गिरा तो पुलिस ने पहले उसकी वहीं पिटाई की। वहाँ की पिटाई से पुलिस का मन नही भरा तो फिर थाने ले जाकर उसकी आवभगत की गई । 

पुलिसिया क्रोध मुलजिम के भागने की वजह से बढ़ा हुआ था कि रुपये न देने की वजह से यह तो नही पता लेकिन पुलिसिया आवभगत इतनी ज्यादा कर दी गयी कि मृतक की तबियत बिगड़ गयी । तबियत बिगड़ने पर बांसगांव पुलिस ने मृतक को सरकारी अस्पताल भेजा जहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया । 
दूसरी तरफ बांसगांव सर्किल के पुलिस अधिकारी वही अपना पुराना पुलिसिया राग अलाप रहे हैं कि भागते वक्त मृतक की गिरने से मौत हो गयी है और पोस्टमार्टम कराया जा रहा है वगैरह..वगैरह । मतलब किसी जाँच से पहले ही बांसगांव पुलिस और थानेदार बांसगांव को क्लीन चिट दे दी गयी है । क्लीन चिट देने वाले यह भी भूल चुके हैं कि इन्ही बांसगांव थानेदार पर पहले भी एक क्षेत्रीय अपराधी को पैसे के लालच में संरक्षण देने का तथा उस अपराधी को बचाने के लिए अदालत के सामने गलत रिपोर्ट पेश करने का आरोप लगा था । इस मामले की जाँच वर्तमान एस पी सिटी गोरखपुर द्वारा की गई थी । उस जाँच का क्या हुआ किसी को कुछ नही पता । बस इतना पता है कि जाँच कराने वाले व्यक्ति से पलिस ने निजी खुन्नस पाल ली तथा जाँच अधिकारी एस पी सिटी ने जाँच कराने वाले व्यक्ति को उसके बयान की रिसविंग तक देना भी उचित नही समझा । नतीजतन जाँच ठंडे बस्ते में डाल दी गयी । अगर उस वक्त यह जाँच सही तरीके से हो जाती तो आज शायद मृतक का परिवार अनाथ होने से बच गया होता !

उपलब्ध तस्वीरें तथा स्थानीय सूत्र बताते हैं कि दीपक सिंह थानेदार का हौसला इसलिए इतना ज्यादा बुलंद होता गया क्योंकि यहां के एक बड़े स्थानीय समाचार पत्र के पत्रकार से उनकी बड़ी घनिष्टता रही है । अक्सर ये तमाम बड़के स्थानीय पत्रकार थानेदार दीपक सिंह की निजी पार्टियों में शरीक होते कैमरों में कैद हुए हैं । इसी घनिष्टता का असर रहा है कि तमाम थ्री स्टार लोग साहब के कार्यालय में फाइलें ढोते रहे और दीपक सिंह टू स्टार होते हुए भी आउट ऑफ टर्म जाकर थानेदारी की मलाई काटते रहे ।
--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

Gautam Gambhir's Exclusive Interview Uncovers the Intersection of Cricket, Politics, and Controversies

New Delhi, 13th June 2023 - News18 India, India's No.1* Hindi news channel, conducted an exclusive interview with Gautam Gambhir, a renowned cricketer turned politician. In a conversation with the channel's senior anchor and top journalist Amish Devgan, Gambhir delved into the realms of cricket and politics, addressing critical issues and controversies that have captured the public's attention.


During the interview, Gambhir expressed his unwavering dedication to the country, highlighting that he ventured into politics driven by a genuine desire to make a tangible difference, rather than seeking mere social media popularity. He emphasized the importance of action and ground-level work over empty tweets from air-conditioned rooms.

Shifting the focus to the Delhi government, Gambhir raised valid concerns about the promises made by the current administration and their lacklustre track record in fulfilling those promises. He questioned the lack of transparency surrounding the establishment of schools, colleges, and hospitals in the past eight years.

With a deep-rooted connection to Delhi, Gambhir highlighted his profound love for the city. He stressed the futility of engaging in self-praise, emphasizing that genuine achievements should be recognized by the public, not self-proclaimed.

Addressing the allegations against him, Gambhir dismissed them as baseless. He raised questions about the intentions behind the excise policy and the alleged diversion of funds for electoral purposes. Gambhir also voiced concerns about the government's failure to secure bail for its ministers, despite claims of innocence.

Reflecting on the transformative power of the Indian Premier League (IPL), Gambhir acknowledged its impact on shaping the future of cricket. He highlighted how the tournament has provided a platform for emerging talent and extended the careers of players.

Sharing his observations on Indian cricket, Gambhir expressed concern about the nation's individual-centric approach. He lamented the lack of team spirit and attributed India's failure to win an International Cricket Council (ICC) championship to this obsession with individual performances.

In an era dominated by social media, Gambhir cautioned against becoming consumed by virtual platforms and emphasized the need to maintain a healthy balance. He warned against relying on superficial validation from these platforms and highlighted the importance of avoiding addiction in any form.

Gambhir also revealed his principled stance on not succumbing to monetary incentives for creating biased narratives. He affirmed his commitment to utilizing funds for the betterment of the people, rather than indulging in self-serving storytelling.

Addressing the controversies surrounding the Ekana Stadium incident, Gambhir stood by his actions and expressed his support for Naveen ul Haq, emphasizing his unwavering commitment to righteousness and justice.

Setting aside personal differences, Gambhir expressed respect for his fellow cricketers, including Virat Kohli and MS Dhoni, emphasizing the importance of keeping on-field battles confined to the field and maintaining professionalism. He praised Yuvraj Singh as an underrated cricketer and voiced his opinion on the media's failure to adequately recognize Yuvraj's contributions to Indian cricket.

In conclusion, Gambhir highlighted how the media's obsession with individuals and marketing strategies has distorted the true essence of the game, overshadowing the accomplishments of deserving players.

*SOURCE: BARC | METRIC: AMA | TG: NCCS ALL 15+ | PERIOD: WK 22'23, 24 HOURS, ALL DAYS | MARKET: HSM

--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

सावधान: ऊपरवाला सब देख रहा है!

 
रजनीश कपूर-

देश की एक नामी सीसीटीवी कंपनी ने अपने विज्ञापन में एक लाइन को प्रमुखता दी 'ऊपरवाला सब देख रहा है'। इस कंपनी का उद्देश्य था कि उनके सीसीटीवी कैमरे की निगाह से कोई नहीं बच सकता। परंतु आज हम जिस संदर्भ में इस बात को कह रहे हैं वो सरकार द्वारा जनता पर नज़र रखने से संबंधित है। यह एक ऐसा विषय है जो आप सभी को सोचने पर मजबूर कर देगा।
 
आपने देश के कई शहरों यातायात पुलिस द्वारा लगाए गये स्पीड कैमरे देखे होंगे। जो भी वाहन चालक स्पीड का क़ानून तोड़ता है। लाल बत्ती पार करता है। लाल बत्ती पर वाहन को स्टॉप लाइन के आगे खड़ा करता है। बिना हेलमेट के दुपहिया वाहन चलाता है या ऐसा कोई अन्य उल्लंघन करता है जो ट्रैफ़िक पुलिस के कैमरों में क़ैद हो जाता है तो उसके घर पर एक चालान पहुँच जाता है। ऐसे चालान आजकल ऑनलाइन भी चेक किए जा सकते हैं जहां पर फ़ोटो द्वारा ट्रैफ़िक नियम तोड़ने का प्रमाण भी दिखाई देता है। ज़ाहिर सी बात है कि जब से ऐसे चालान काटने शुरू हुए हैं जनता काफ़ी सतर्क हो गई है। इससे ट्रैफ़िक नियम उल्लंघन में काफ़ी कमी भी आई है।
 
अब बात करें एक अन्य कैमरे की जो हम पर नज़र रखे हुए है। यह कैमरा पुलिस विभाग द्वारा नहीं लगाया गया है। बल्कि यह कैमरा है ही नहीं। बिना कैमरे की यह निगरानी आयकर विभाग द्वारा रखी जाएगी। इन दिनों ज़्यादातर लेन-देन जब ऑनलाइन हो रहे हैं तो हमें काफ़ी सतर्क रहने की ज़रूरत है। सतर्क केवल ऑनलाइन फ्रॉड करने वालों से नहीं बल्कि अपने द्वारा खर्च की जाने वाली रक़म पर भी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम जितनी भी ऑनलाइन ख़रीदारी करें वो हमारे खातों में दिखाई देगी। इसलिए आयकर विभाग की इन सब लेन-देन पर नज़र बनी रहेगी।
 
आजकल देश भर में एक से बढ़कर एक लक्ज़री गाड़ियों की भरमार है। पिछले कुछ वर्षों में सड़कों की स्थिति काफ़ी बेहतर हुई है। एक के बाद एक एक्सप्रेसवे जनता के लिए खोले जा रहे हैं। जब गाड़ियाँ और सड़कें बेहतर होंगी तो ज़ाहिर सी बात है कि लोग घूमने या अन्य कामों से अपने घरों से निकलेंगे भी। यहाँ प्रश्न उठता है कि इस सब से आयकर विभाग को क्या? इस सब से हमें सतर्क रहने की क्या ज़रूरत है? तो इसका जवाब है आपकी गाड़ी पर लगा 'फ़ास्ट टैग' जो आपके वाहन को किसी भी टोल नाके से बिना देर लगाए पार करवा देता है।
 
जब भी आप किसी टोल नाके को पार करते हैं तो आपकी गाड़ी पर लगे 'फ़ास्ट टैग' की मदद से टोल का भुगतान हो जाता है। हर वाहन चालक समय-समय पर अपने वाहन पर लगे 'फ़ास्ट टैग' को रिचार्ज भी करता रहता है जिससे कि कम बैलेंस के चलते वाहन को टोल पार करने में कोई दिक़्क़त न हो। परंतु क्या आपने इस बात पर ग़ौर किया है कि जैसे ही आपकी गाड़ी टोल से पार होती है और आपके खाते से टोल की रक़म कटती है तो उस लेन-देन का पूरा रिकॉर्ड रख लिया जाता है। इस रिकॉर्ड के कई फ़ायदे हैं। यदि आपका वाहन चोरी हो जाता है और किसी टोल नाके को पार करता है तो वाहन को पकड़ने में भी मदद मिल जाती है। यदि आपने टोल को पास नहीं किया और फिर भी आपका टोल कट गया है तो आप इसी रिकॉर्ड के माध्यम से काटे गए ग़लत टोल को चुनौती भी दे सकते हैं। पुलिस द्वारा कुख्यात अपराधियों को पकड़ने में भी टोल नाके पर लगे कैमरे अक्सर मददगार साबित होते हैं।
 
इसी श्रृंखला में अब 'फ़ास्ट टैग' आयकर विभाग की मदद भी करने लगेगा। मान लीजिए कि किसी ने छुट्टी मनाने की नियत से एक रोड ट्रिप प्लान किया। इस रोड ट्रिप में उनकी एक दिशा की यात्रा लगभग 700 किलोमीटर की है। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसी लंबी यात्रा में वे आरामदायक गाड़ी ही लेकर जाएँगे। मिसाल के तौर पर एक अच्छी एस.यू.वी गाड़ी। ऐसी गाड़ी की ईंधन की खपत आराम से निकाली जा सकती है। जैसे ही यह गाड़ी टोल नाके से पार होगी सो ही उसका पूरा डाटा टोल नाके के कंप्यूटर पर क़ैद हो जाएगा। पूरी यात्रा के टोल से ही अनुमान लग जाएगा कि गाड़ी कितने किलोमीटर चली। सवाल उठता है कि इस सबसे आयकर विभाग को क्या परेशानी?
 
जब तक आप इस यात्रा में इस्तेमाल की गई गाड़ी में ईंधन अपने कार्ड से ख़रीदेंगे तब तक आयकर विभाग को इस सबसे कोई परेशानी नहीं है। लेकिन आमतौर पर यह देखा गया है कि लोग ऐसी यात्राओं पर नक़द ख़र्च करते हैं। क्योंकि कभी-कभी पेट्रोल पम्प पर कार्ड की मशीन काम नहीं करती या अन्य कोई कारण हो। परंतु यदि ऐसी यात्रा कभी-कभी कि जाती है और नक़द ख़र्चे के समर्थन में आपके पास समुचित बैंक की एंट्री है, तो कोई परेशानी नहीं। परंतु यदि आपके द्वारा की गई ऐसी यात्राओं की संख्या अधिक है, जो केवल छुट्टी मनाने के लिए नहीं है और इन यात्राओं में आपने गाड़ी में ईंधन नक़द भुगतान करके डलवाया है तो आप आयकर विभाग की निगरानी में ज़रूर आ सकते हैं। कारण स्पष्ट है आयकर विभाग इस ख़र्चे को आपकी आय से तुलना करेगा। यदि कोई विसंगति पाई जाती है तो आपको उसका उत्तर देना होगा। इसलिए यदि आप ऐसा करते हैं तो आपको सतर्क रहने की ज़रूरत है। बेहतर तो यह हो कि 'डिजिटल' युग में आप नक़द भुगतान कम से कम करें और देश को उन्नति की ओर ले जाएँ। वरना ध्यान रहे 'ऊपर वाला सब देख रहा है!'                                    
 
लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं

Rajneesh Kapur
Mg. Editor
Kalchakra News Bureau

--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

13.6.23

उस बर्बरतम प्लान को दुनिया होलोकास्ट के नाम से जानती है!

अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-

हिटलर जब सत्ता में आया तो उसके समर्थक नाजीवादियों ने यहूदियों की अलग पहचान के लिए एक अनूठा तरीका अपनाया। इसके तहत, उस वक्त जर्मनी में यहूदियों के घरों और दुकानों पर क्रॉस लगाना शुरू कर दिया गया। यहूदियों को अपने हाथ पर एक अलग तरह का यहूदी स्टार बैंड भी बांधने का आदेश जारी कर दिया गया। जब इन तरीकों से हिटलर की सरकार ने यह जानकारी पुख्ता कर ली कि किस क्षेत्र में कहां, कितने यहूदी हैं तब शुरुआत हुई एक ऐसे बर्बर प्लान को अंजाम देने की, जिसे दुनिया होलोकास्ट के नाम से जानती है।  

होलोकास्ट इतिहास के सबसे बड़े नस्लीय नरसंहार में से एक माना जाता है। बहरहाल, सभी को पता है कि उस वक्त किस तरह पहले यहूदियों को जर्मनी से भगाने की कोशिश हुई। लेकिन पड़ोसी देशों ने जब उन्हें अपने यहां शरण देने से मना कर दिया तो हिटलर ने बाकायदा कैंप बनवा कर यहूदियों को वहां भेजना शुरू कर दिया। फिर गोलियों, जहर, चाकू, तलवार आदि हर सम्भव तरीकों से उनकी हत्याएं की जाने लगीं। 

इस तरह से लाखों हत्याएं करने के बावजूद कैंपों में यहूदियों की तादाद बढ़ती गई तो हिटलर ने जहरीली गैसों का इस्तेमाल करके एक साथ सैकड़ों- हजारों यहूदियों का नरसंहार शुरू कर दिया। बिना बेहोश किए उन यहूदियों पर उसी तरह मेडिकल प्रयोग होने लगे, जैसे लैब में चूहे और मेंढकों पर होते हैं। 

जर्मनी में जगह- जगह मौजूद कैंप में कैद यहूदियों को तब एक चोगे में रखा जाता था। उन्हें खाने और पीने के लिए भी न के बराबर सामग्री दी जाती थी। ऐसे कैंपों और पूरे जर्मनी में तब अंदाजन 60 लाख यहूदियों का नरसंहार हुआ। बाकी जर्मनी में बचे- खुचे यहूदियों को भी सड़कों पर हत्या, बलात्कार, लूटपाट आदि करके भगाने की घटनाएं होती रहीं। 

क्रॉस से शुरू हुई यहूदियों की पहचान के सिलसिले को हिटलर ऐसे बर्बर अंजाम तक पहुंचा कर भी नहीं रुका । उस होलोकास्ट के साथ साथ हिटलर ने अपनी बर्बर व नस्ल आधारित कबीलाई मानसिकता के चलते पूरी दुनिया को सेकंड वर्ल्ड वॉर में ढकेल दिया। 

नतीजा यह हुआ कि न सिर्फ 60 लाख यहूदी नरसंहार में मारे गए बल्कि वर्ल्ड वॉर में भी लगभग सात करोड़ लोग मारे गए। वर्ल्ड वॉर ने खत्म होने से पहले जापान में दो शहरों की पूरी आबादी को परमाणु बमों के विस्फोट में साफ कर दिया तो जर्मनी में भी लगभग पचास लाख लोग मारे गए। 

हिटलर ने हार और जर्मनी की तबाही के बाद अपने सिपहसालारों के साथ आत्महत्या कर ली और रूस व मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने जर्मनी पर कब्जा कर लिया।
--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal

रामेश्वर पांडेय : मुह में ब्राम्हण और बगल में लाल झंडा

आचार्य विष्णु हरि सरस्वती-

ब्राम्हणणवादी पत्रकारिता का बदबूदार उदाहरण थे रामेश्वर पांडेय  


मैंने घोर कम्युनिस्टों का जाति प्रेम साक्षात देखा है, ये किसी कर्मकांडी ब्राम्हण से भी घोर जातिवादी होते हैं। पत्रकारों और लेखकों में जो कम्युनिस्टों के बड़े नाम हैं वे भी घोर जातिवादी होते हैं, यह अलग बात है कि उनका असली चेहरा देखने और समझने की सबमें इच्छा ही नहीं होती है। जातिवादी चेहरे को बेनकाब कर कोई दुश्मनी मोल लेता नहीं। लेकिन मैं रामेश्वर पांडेय का जातिवादी चेहरे उजागर कर जातिवादी ब्राम्हणों के टोलीबाज-यूनियनबाज, गिरोहबाज पत्रकारों से दुश्मनी मोल ले रहा हूं। रामेश्वर पांडेय अपने आप को घोर कम्युनिस्ट ही नहीं बल्कि नक्सली स्थापित करते रहे थे पर नक्सलवाद के खोल में उनका जातिवादी चेहरा छिपा हुआ था। विचार शून्य, संवेदना शून्य इस व्यक्ति को जातिवादी ब्राम्हणों की टोली महान पत्रकार, लेखक और प्रेरणादायी शख्सियत घोषित करने में लगी हुई है।

         रामेश्वर पांडेय की अभी-अभी मृत्यु हुई है। मृत्यु एक सत्य है जो आया है वह जायेगा। भगवान का विधि विधान कहता है कि जो जिंदा में बुरा होता है वह मृत्यु के बाद भी बुरा ही होता है। इसीलिए पाप और पुण्य का विधि विधान भी है। लेकिन भडास नाम का एक मीडिया साइट और सोशल मीडिया पर जातिवादी ब्राम्हणों की टोली ने जिस प्रकार से रामेश्वर पांडेय की महिमा गायी है, झूठ का बीजारोपन किया है और जातिवाद तथा ब्राम्हणवाद का उदाहरण सामने लाया है उस पर चिंता करने की जरूरत है, व्याख्या करने की जरूरत है, मीडिया में आने वाली पीढी को यह बताने की जरूरत है कि कैसे मीडिया में ब्राम्हणवाद का खेल खेला जाता है, जाति के आधार पर किसी को कैसे महान पत्रकार बताया जाता है? रामेश्वर पांडेय का सच जानेंगे तो पायेंगे कि उनके मुंह में जाति बसी हुई है यानी कि ब्राम्हणवाद बसा हुआ है और हाथी की दांत की तरह कम्युनिस्ट बसा हुआ है।

            रामेश्वर पांडेय का ब्राम्हणवाद मैंने सरेआम देखा है, उनके ब्राम्हणवाद का सरेआम स्रोता रहा हूं। घटना आज के कोई 20 साल पूर्व की है। मैं अपने एक परिचित पत्रकार के निमंत्रण पर उनके घर पर भोजन करने पहुंचा था। सत्य प्रकाश नाम का पत्रकार उस समय दैनिक जागरण में काम करता था। मैं जब सत्य प्रकाश के घर पर पहुंचा तो पता चला कि रामेश्वर पांडेय उनके घर पर विराजमान हैं। दैनिक जागरण में काम करने वाले एक अन्य ओझा ने अचानक यह प्रोग्राम रख दिया था। बेचारा सत्य प्रकाश को मजबूरी में अपने वरिष्ठ ओझा का कहना मानना पडा और उन्हें रामेश्वर पांडेय का स्वागत करना पड़़ा।

           दारू और मांस का दौर चल रहा था। दारू जैसे-जैसे रामेश्वर पांडेय के कंठ से नीचे उतरती और मुर्गे की टांग और हड्डिया जैसे-जैसे उनके मुंह में जाती वैसे-वैसे उनका ब्राम्हणवाद जाग जाता, रामेश्वर पांडेय कहते कि मैंने जिंदगी भर ब्राम्हणों का कल्याण किया है, अमर उजाला ही नहीं बल्कि जिन-जिन अखबारों में काम किया उन-उन अखबारों में ब्राम्हणों को भरा, ब्राम्हणों की फौज खडी की, सिर्फ दिखावे के लिए एक-दो अन्य जातियों के लोगों को रखवाया और बाद में निकलवाया भी, अगर जगह नही ंतो फिर अन्य ब्राम्हणों की नियुक्ति भी कैसे कराता? जब दारू की नशा आसमान छूई और मुर्गे के मांस का स्वाद बढ़ा तो फिर उन्होंने अपने ब्राम्हणवाद की नयी-नयी जानकारियां देनी शुरू कर दी। उन्होंने कहना शुरू किया कि कैसे वे पत्रकारिता का उपयोग ब्राम्हणों को अच्छी जगह स्थानांतरण कराने, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के प्रकोप से बचाने के लिए काम किया। मैं तो हदप्रभ तब हुआ जब वे अखबारों के मालिकों के बारे में अपने ज्ञान का प्रसार करने लगे। रामेश्वर पांडेय ने ज्ञान दिया कि ये साले बनिया बहुत हरामी होते हैं, इन्हें ठीक तरह से हैंडिल करो, इन्हें भाई साहब बोलो फिर ये बनिये आपके गुलाम हो जायेंगे और पंडित जी कहकर आपकी चरणवंदना करेंगे। देश में प्रकाशित होने वाले 95 प्रतिशत बडे अखबार और बडे चैनल बनियों के, बनियों के पैसों पर रामेश्वर पांडेय जैसे ब्राम्हणों की जिंदगी चलती है, परिवार चलता है फिर भी बनियों के प्रति इस प्रकार की इनकी धृणित मानसिकता होती है, फिर आप समझ सकते हैं कि जातिवादी ब्राम्हण किस तरह के अनैतिक और मनुष्यता हीन होते हैं।

         ब्राम्हणों की पत्रकारिता की टोली ने प्रचारित किया कि रामेश्वर पांडेय अपने त्रिमूर्ति की अंतिम कड़ी थे। उनकी तिकडी या फिर त्रिमूर्ति क्या थी? रामेश्वर पांडेय, प्रमोद झा और उपेन्द्र मिश्र को त्रिमूर्ति कहा जाता था, तिकडी कहा जाता है। ये तीनों ब्राम्हण हैं। रामेश्वर पांडेय के तिकड़ी में कोई गैर ब्राम्हण नहीं था। इस ब्राम्हणों की तिकड़ी में उपेन्द्र मिश्र थोड़ा अलग थे और क्रांतिकारी जरूर थे, इसीलिए उपेन्द्र मिश्र मेरे मित्र भी थे। उपेन्द्र मिश्र का भी मत रामेश्वर पांडेय के पक्ष में नहीं होता था।

          मैंने पत्रकारिता में ब्राम्हणों की तिकड़ी, त्रिमूर्ति ही नहीं देखी है बल्कि पूरी गिरोहबंदी भी देखी है। राष्टीय सहारा में एक हस्तक्षेप डेस्क था, उस डेस्क पर कार्यरत सभी ब्राम्हण थे, जैसे अरूण पांडेय, दिलीप चौबे, विमल झा और कमलेश त्रिपाठी, इन सभी में गजब की कैमिस्टरी थी, अन्य किसी को फटकने का अवसर भी नहीं मिला। जबकि हस्तक्षेप डेस्क पर जातिवादी गिरोहबंदी बनाने वाले अरूण पांडेय, दिलीप चौबे, विमल झा और कमलेश त्रिपाठी इसके पहले किसी नामी अखबारों में काम भी नहीं किये थे।दैनिक जागरण का नेशनल चरित्र देखिये। विष्णु तिवारी के प्रिय टोली में ब्राम्हण है। प्रतीक मिश्र की टोली में ब्राम्हणों का भरमार है, सिर्फ हाथी के दांत की तरह एकाद अन्य हैं, बनिये तो इनके पास टीक ही नहीं सकते है, पिछडे और दलितों की क्या औकात। संघ के स्वयं सेवक माने जाने वाले अच्युतानंद मिश्र जब माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के चांसलर थे तो फिर ब्राम्हण होने के आधार पर कम्युनिस्टों की भी नियुक्ति करायी थी। फिर भी अच्युतानंद मिश्र संघ के विश्वास पात्र बने रहे थे और पत्रकारिता के पूज्यनीय बने रहे। 

          प्रभाष जोशी सरेआम कहते थे कि मैं ब्राम्हण हूं। प्रभाष जोशी ने सरेआम कहा था कि राहुल गांधी देश का युवराज है और वह भी एक टीवी चैनल बहस के दौरान। प्रभाष जोशी भी राहुल गांधी को ब्राम्हण मानते थे।  फिर भी किसी ने प्रभाष जोशी को इसके लिए कोसा नहीं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है, राजतंत्र नहीं। प्रभाष जोशी ने लेकर अभयधर दूबे से लेकर ओम थानवी तक जितनी भी नौकरियां दिलवायी उनमें 90 प्रतिशत लोग ब्राम्हण थे। रामशरण जोशी छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों का यौन शोषण करते थे, गुंडे और दलाल छोटी-छोटी बच्चियों को उठा कर लाते थे और रामशरण जोशी उन छोटी-छोटी बच्चियों को अपने हवश का शिकार बना कर यौन इच्छा की पूर्ति करते थे। इस यौन विकृत मानसिकता के व्यक्ति को कांग्रेेस के राज में अर्जुन सिंह ने बाल संरक्षण आयोग का अध्यक्ष भी बना दिया था। ब्राम्हण होने के कारण रामशरण जोशी के इस अपराध पर कहीं कोई हलचल तक नहीं हुई। अगर रामशरण जोशी ब्राम्हण नहीं होते तो फिर वे आईकॉन नहीं बने रहते, न ही बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष बनते, अर्जुन सिंह की भी छबि धूमिल होती। पर आज कोई ब्राम्हणवादी पत्रकार आदिवासी बच्चियों की इज्जत लूटने वाले घृणित मानसिकता के रामशरण जोशी की आलोचना भी नहीं करता है।

      रामेश्वर पांडेय की मृत्यु के बाद उन्हें महान कम्युनिस्ट बताने वाले, महान पत्रकार बताने वाले लोग कौन हैं, उनकी जाति देखेंगे तो खेल समझ में आ जायेगा। 99 प्रतिशत लोग ब्राम्हण है। जैसे निशीथ जोशी, अशोक मिश्र, प्रद्यूमन तिवारी, राजू मिश्र, विजय शंकर पांडेय,अमिताभ अग्निहोत्री आदि। अगर रामेश्वर पांडेय ब्राम्हण नहीं होते तो फिर ये सभी ब्राम्हण पत्रकार रामेश्वर पांडेय जैसे समूहबाज और जातिवाद के बदबूदार उदाहरण को महान बताने की कोशिश नहीं करते।

       ब्राम्हणों की टोली कहती है कि रामेश्वर पांडेय अच्छे संपादक और अच्छे पत्रकार थे। पर ये ब्राम्हणों की टोली अपने कथन के प्रति आधार भी नहीं देती है,अच्छे पत्रकार का कोई उदाहरण भी नहीं देती हैं। उनकी कोई कालजयी लेखनी का उल्लेख किसी ने नहीं किया है, समाचार लेखन और संपादकीय लेखन का भी कोई अता-पता नहीं है। अगर वे सर्वश्रेष्ठ पत्रकार थे तो फिर उनकी सर्वश्रेष्ठ लेखनी और संपादकीय लेखन क्या-क्या थे? 

          मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि रामेश्वर पांडेय अगर ब्राम्हण नहीं होते, उन्होंने ब्राम्हणों को चुन-चुन कर नौकरियां नहीं दिलवायी होती तो फिर उन्हें ब्राम्हण की टोली भी याद नहीं करती। अगर रामेश्वर पांडेय दलित, पिछडे और बनिया होते तो फिर उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने वाले भी सीमित होते, सोशल मीडिया पर महान बताने के लिए कोई आगे भी नहीं आता। रामेश्वर पांडेय कम्युनिस्ट भी नहीं थे, सिर्फ अवसरवादी थे। जैसे ही व्यक्ति जातिवाद के खोल में घूस जाता है, अनैतिकता का चादर ओढ़ लेता है वैसे ही वह कम्युनिस्ट होने या फिर मनुष्यता का सहचर होने का अधिकार खो देता है।

संपर्क
आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
नई दिल्ली 
मोबाइल .. 9315206123
--

www.bhadas4media.com 
No.1 Indian Media News Portal