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5.4.08

दिव्य-भव्य भड़ासी भाई

दिव्य-भव्य भड़ासी भाई
कोई गजल तो कोई रूबाई
अपनी गजल पर
आप सब की
टिप्पणी पढ़ी भाई
इधर अबरार अहमद
उधर मनीष राज
सम्मुख डॉ.रूपेशजी
और अनिल भारद्वाज
आप सबका देख ये दिलकश अंदाज
रूह में ऐसे बज उठा लफ्जों का साज
कि..
मन रविशंकर हो गया
और तन बिरजू महाराज।
पं. सुरेश नीरव

4 comments:

अबरार अहमद said...

मजा आ गया भाई साहब। दिल खुश हो गया।

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

Bade bhai
aapka aashirwad he hamari shakti hai.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

माता सरस्वती का आशीर्वाद है आशुकविता..........

Anonymous said...

bahut maja aayaa ho bhaai