ये मुहब्बत की इन्तहां नहीं तो और क्या है।
समंदर आज भी प्यासा है किसी की चाहत में।।
शोरगुल में जिंदगी को ढुढते हो ये दोस्त तुम भी।
कभी गौर से देखना इसे खामोशी की आहट में।।
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जी तो करता है कि आज फिर से चूम लूं तेरी पेशानी को।
पर अफसोश आज मैं तुझसे से कहीं छोटा हूं।
वक्त ने छीन लिए सारे कांधे मुझसे।
इसलिए अब दीवारों से लग के रो लेता हूं।।
जी तो करता है कि आज फिर से चूम लूं तेरी पेशानी को।
पर अफसोश...................
अबरार अहमद
24.4.08
ये मुहब्बत की इन्तहां नहीं तो
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5 comments:
bahut khub. dil ko chu gai ye laine. likhte raho
अबरार भाई, भाव तो वाकई दिल को छूने वाले हैं।
मगर शब्द चयन और भी स्तरीय हो सकता है।
काफ़ी साधारण और पूर्व प्रचलित शैली अपनाई है
आपने।
कुछ अलग तरीके से शब्द जाल बुनें
कविता और भी धारदार हो जायेगी।
धन्यवाद...
अंकित माथुर...
अच्छा है , लिखते रहिये
अंकित जी आपका बहुत धन्यवाद। ऐसे ही अपनी प्रतिक्रिया देते रहिए ताकि हम अपनी कलम को और धारदार बना सकें। रजनीश जी और अनिल सर हौसलाअफजाई के लिए आप दोनों का भी शुक्रिया। धन्यवाद।
हौसला!!!हौसला!!!हौसला!!!
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