सागर मंथन... क्षमादान भी कर सकते थे यदि सागर तुम पोखर होते
विष पी जाते चुचाप तुम में कभी नहीं लगाते गोते
पर ताकतवर से लड़जाना अपनी आदत अपना मन है
लहरो जागो देखो धाराओ हंसों जोर से पतवारो
अब मेरी क्षमताओं का संघर्षों द्वारा अभिनंदन होगासागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
होकर सवार लहरों के रथ पर सागर भाग रहे हो
ऐसा अभिनय कर लेते हो जैसे जाग रहे हो
अरे इतना नहीं अकड़ते सागर खाली सीपी के बल पर
और कर्ज नहीं रखता हूं प्यारे आनेवाले कल पर
लो शंख बगावत करते हैं अब मर्यादा भंजन होगा
सागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
भंवर पखारेगी पग मेरे हर नौका शीश झुकाएगी
जिन लहरों को छू दूंगा मैं जल पर कविता हो जाएगी
भले डूबना पड़ जाए सीने पर हस्ताक्षर कर दूंगा
आनेवाली सदियों तक हर लहर मुझे दोहराएगी
तब कवि की कविता का सचमुच पूजन-वंदन होगा
सागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
पं. सुरेश नीरव मो.९८१०२४३९६६
(मैं आभारी हूं डा. रूपेश श्रीवास्तव,अबरार अहमद,रजनीष के.झा,अरुणजी और अरविंद पथिक का जिन्होंने अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरी हौसला अफजाई की। ऐसे ही अग्निधर्मी चेतना के मित्रों के लिए एक और ताजा संकल्प गीत..डॉ.यशवंत के लिए विशेष...)
22.4.08
सागर मंथन...
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9 comments:
लो शंख बगावत करते हैं अब मर्यादा भंजन होगा
सागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
बडे भईया प्रणाम। बस इतना ही कह सकता हूं अदभूत।
पन्डित जी, आत्म विभोर हो गया,
पर ताकतवर से लड़ जाना अपनी आदत अपना मन है.
बस अब लड जाना है, चाहे कोइ भी हो.
हे काव्य ज्वालामुखी नीरव जी, इसी तरह शब्दों का लावा उगल-उगल कर हम जैसे निःचेष्ट प्रस्तरखण्डों को भी तपाते रहिये आपको पढ़ कर अमरशहीद रामप्रसाद बिस्मिल याद आते हैं उनकी शायरी की आग नजर आती है आपके शब्दों में.....
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पंडित जी,अनिल भारद्वाज की पंचगुणित सराहना स्वीकारिये और आप जो कि काव्य की चलती फिरती यूनिवर्सिटी हैं, ने यशवंत दादा को आखिर Ph.D.की मानद उपाधि दे ही डाली तो उन्हे भी शुभेच्छा स्वीकार हो; भड़ास का रचनाकार इस उपाधि को स्वीकारने की योग्यता रखता है तो आज से हम तो उन्हे यशवंत दादा की जगह डा.यशवंत ही कहेंगे आप सबका क्या ख्याल है?
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