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19.4.08

खेल का ये कैसा तमाशा...



बड़े दिनों से जिस की चर्चा थी उसकी शुरुआत कल हो हीगई. आई. पी. एल यानी इंडियन प्रिमिअर लीग का उद्घाटन और ट्वंटी २० क्रिकेट के नए रूप की शुरुआत,जिसका एक रूप हम पहले ही आई.सी.एल के रूप में देख चुके हैं. यही वो बहुचर्चितरूप था जिसकी सारी दुनिया में चर्चा थी,चर्चा क्रिकेट को लेकर नही थी कि इस से क्रिकेट का किसी तरह का भला होने वाला था,भला तो बस क्रिकेटर सहित उन लोगों का होने वाला था जिन्होंने इस तमाशे पर बेतहाषा पैसा बरसाया था,देखना तो बस ये था कि,पैसा बरसाने वाले उसे वसूलते कैसे हैं, बहेर्हाल कल उसे भी दुनिया ने लिया,एक रंगारंग तमाशे से ज़्यादा इसे कुछ भी कहना किसी भी खेल की तोहीन होगी ।

बंगलोर का चिन्नास्वामी stadium दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था,ये सभी लोग यहाँ क्रिकेट देखने नही आए थे ,क्रिकेट की आड़ में पैसों की रंगीनियाँ देखने आए थे,और हुआ भी यही,पूरे मैच में सिवाए newziland के ब्रेंडन मकुल्लम की लाजवाब आतिशी पारी के अलावा कुछ भी नही था,कोल्कता नाईट राइदर्स के २२२ रन के जवाब में बंगलोर रायल चैलेंजर्स की पूरी टीम मात्र ८० रनों पर सिमट गई,कोई संघर्ष तक देखने को नही मिला,विकेट गिरने पर कप्तान सोरव गांगुली का अपनी टीम के खिलाड़ियों से लिपट जाना कहीं से भी गर्मजोशी पैदा नही करता था.वो गर्जोशी और उमंग जो हमें टेस्ट क्रिकेट और एक दिवसिये क्रिकेट में दूसरे देशों के खिलाफ खेलते हुए महसूस होती है,कहीं से भी मन ये बात नही पा रही थी की हम किसी जीतते देखना चाहते हैं. मैं नही जानती कि दूसरे लोग इसके बरे में क्या सोचते हैं पर ये सिर्फ़ मेरा नजरिया है,थोडी देर देख कर ही मन उचाट हो गया.

बात जहाँ तक मकुल्लम की है,मैं उनकी पारी को लाजवाब मानती हूँ,वो सिर्फ़ एक लाख के इनाम के नही कई लाख के इनाम के हकदार थे,लेकिन फिर भी इतने चौके छक्के देख कर भी मन में कोई उत्साह नही जागा,ऐसा लगता है २०-२० क्रिकेट ने चौकों छक्कों का सारा जोश और सनसनी ही खत्म कर दी है,याद कीजिये, शाहिद आफरीदी ने अपना पहला आतिशी शतक जब मात्र ३५ गेंदों में ११ छक्कों के साथ बनाया था तो उसकी सनसनाहट कितने सालों तक हम भूल नही सके थे,श्रीलंका के सनथ जय सूरिया और सचिन तेंदुलकर कीआतिशी बल्लेबाजी कैसे दिल की धड़कनें बढ़ा दिया करती थी. क्या उसी जोश और उमंग की मात्र कल्पना भी हम यहाँ कर सकते हैं?

क्रिकेट का वो खूबसूरत रूप कभी ऐसा भी होगा,ये तो कभी कल्पना भी नही की थी मैंने.

इस सरे तमाशे में सब से ज़्यादा शर्मनाक रहा उसका उद्घाटन समारोह और उसके कार्यक्रम, ग्लैमर बढ़ाने के लिए विजय माल्या ने अमेरिका के पेशेवर चीयर लीडर तक को बुला लिया था,उसकी डांसर ने जो कपड़े पहेन रखे थे और जिस तरह से ख़ुद को दिखा रही थीं,उसे देख कर एक लड़की होने के नाते शर्म सी महसूस हो रही थी.कितनी अजीब बात है ,आधुनिक होते समाज में भी ओरत मात्र एक शो पीस बना कर रख दी गई है,आज से हजारों साल पहले राजा महाराजाओं के दरबार में उनकी और उनके दरबारियों की अय्याशी का साधन भी यही ओरत थी और आज इतने ज़माने गुज़र जाने के बाद भी वही आंखों कों ठंडक पहुँचने का जरिया है.

दौलत की इस जंग में भला ये सब सोचने की फुरसत किसे है वरना क्या यही हमारी सभ्यता है?

साउथ अफ्रीका में हुए २०-२० वर्ल्ड चम्पियाँशिप में इस तरह के कार्यक्रम हुए थे,लेकिन फिर भी इस के मुकाबले ज़्यादा शालीन थे. दूसरी बात वहां जो हुआ वो उनका culture था,लेकिन जो कल हम ने देखा,क्या ये भी हमारा culture था?

क्या लगाई हुयी लागत वसूलने के लिए हम इतना भी गिर सकते हैं?

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आपाजान,बस इतना ही कहना है कि आजकल जो भी हो रहा है क्या आप उससे नावाकिफ़ हैं ,क्रिकेट ही क्या अपने चारॊं तरफ हर चीज में देखिये न जनाना जिस्म की नुमाईश ही तो हो रही है साबुन,परफ़्यूम,मोटरसायकिल,कार और कई चीजें तो ऐसी कि समझ ही नहीं आता कि एड किस चीज की है??? अगर हम और आप जैसे कुछ लोग(सनकी माने जाने वाले) सभ्यता की बात करते हैं तो लोग कहते हैं कि इन लोगों को म्यूजियम में रखवा दो इन्हें ये सब बुरा लगता है ये दसवी सदी के लोग हैं। लेकिन न आप रुकिये न मैं रुकूंगा इस उम्मीद के साथ कि कभी तो लोग हमारी बात समझेंगे......
जय जय भड़ास