एक सपना
इंतज़ार है मुझे
सपनो के अपने खट्टे गुच्छो के पकने,
उस मुट्ठी भर धूप का,
जो कभी आयेगी मेरा पता पूछते
जब बस्ते मे छिपे निषिद्ध रहस्य की
काली कीलों को जोडकर
निकाल लूंगी एक लय
और घडी की सूईंयों के मेरी कानाफूंसी.........
और करते समय प्रस्थान
मां को हाथ हिलाऊंगी
इंतज़ार है मुझे...........
21.4.08
एक सपना
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3 comments:
जरूर आएगी....
थोड़े शब्दों में काफी कुछ कह दिया।
आलोक जी,कौन रोक सकता है उसे जब उम्मीद इतनी गहरी हो,बेहद सुन्दर और गहरी रचना के लिये साधुवाद स्वीकारिये....
भाई,
अतिसुन्दर, गहरी अभिव्यक्ति है।
बधाई।
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