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22.4.08

कुर्सी तोड़ मार्का लोकतंत्र

यह हमारा लोकतंत्र है
खालिस देशी
शुद्ध घी की तरह
कोई मिलावट नहीं
कुछ भी इम्पोर्टेड नहीं ।

बहुत खूबियाँ हैं इसमें
हैं इसके कई फायदे
चूल्हों को जलावन तक मयस्सर नहीं है
पर हैं चाँद सितारों के वायदे ।


कोई कुछ भी कहे
विश्व में अव्वल है
हमारा लोकतंत्र
वर्ना सदन में
कुर्सियाँ चलाने, तोड़ने को
कहाँ कौन है स्वतंत्र।


ये हमारा कुर्सीतोड़ मार्का
लोकतंत्र है
यहाँ सब स्वतंत्र हैं
चाहे तो सदन में गालियाँ दे लो
चप्पलें चप्पलें चप्पलें चप्पलें चला लो
कुर्सियाँ तोड़ दो
या किसी की बाँह मरोड़ दो
कोई कुछ नहीं कहेगा ।


ये हमारा तरीका है
लोकतंत्र में
आस्था व्यक्त करने का
कोई दूसरा मुल्क
ऐसा क्या कर पाता है
जो उँगलियाँ उठाते हैं
हमारे लोकतंत्र पर
उनके बाप का क्या जाता है।


आख़िर स्वतंत्रता है
अभिव्यक्ति की यहाँ
भावना की कद्र की जाती है
हर एक व्यक्ति की यहाँ
सिर्फ हमारे लोकतंत्र में
पाला बदलने की सुविधा है
नेताओं के मन में
पार्टियों को लेकर
नहीं तनिक भी दुविधा है।


यहाँ दाल नहीं गली तो
वहाँ गला लेंगे
नहीं तो अपनी खिचड़ी
अलग पका लेंगे
खंडित जनादेश की सूरत में'
छोटे बडों का
भेद सारा मिट जाता है
पिद्दियों और सूरमाओं के
बीच का
विभेद सारा मिट जाता है।


गठबंधन की राजनीति
समरसता का गीत गाती है
बाघ और बकरी को
एक ही मंच पर बिठाती है
बाघ मिमियाता है
बकरी दहाड़ती है
क्योंकि सियासी कुर्सी की
एक टांग
बकरी के हाथ में
जो आ जाती है।


सियासी कुर्सी की
इसी एक टांग की खातिर
टूटती है अक्सर सदन में
अन्य कुर्सियों की टाँगें
इसी से गौरवान्वित होता है
हमारा कुर्सी तोड़ मार्का लोकतंत्र
जहाँ कुर्सियाँ चलाने तोड़ने को
होता है हर कोई पूर्ण स्वतंत्र।
वरुण राय

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

वरुण भाई,भयंकर है; इतने बड़े जूते लगा रहे हैं आप लोग, देखिये कि कुछ जुम्बिश होती है या बस लोग इसे भी हास्य समझ लेंगे....

यशवंत सिंह yashwant singh said...

सही कहे भाई वरूण......भाव, शब्द और कथ्य...सब सुंदर से नियोजित हैं.....