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5.4.08

अफसरों के पद नहीं हम वंश देखेंगे

सभ्यता के सर्प का हम दंश देखेंगे
जिंदगी के कोण का हम अंश देखेंगे
रहने लगे वातानुकूलित फ्लैट में रावण
अब महानगरों में लंका ध्वंस देखेंगे
राधिका के जिस्म पर रेप के नीले निशान
कृष्णवाली आंख से हम कंस देखेंगे
बीवियां माध्यम बनी जिनकी तरक्की का
उन अफसरों के पद नहीं हम वंश देखेंगे
आज तिकड़म के हुनर से योग्यता देखी पराजित
पांव कौऔ के दबाते हम हंस देखेंगे
अपहरण धरती का आसमान करने को है
अणुधर्मी वातास का विध्वंस देखेंगे।

पं.सुरेश नीरव
मों-९८१०२४३९६६

2 comments:

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

Bade bhai,
After a long time read this poetry. I use to hear these lines in Kavi Samelan in 1985.These lines tells the real picture of Society.We can compare the movies of RajKapoor with the poetry of Suresh Neerav of Gwalior.(presently living in NCR since 80`s.)
Anil Bharadwaj
09417487280

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,दिन ब दिन खूंख्वार होते जा रहे हैं,अब आपके पैने शब्दों के नाखून और तेज काव्य दांत निकल कर सामने आ रहे हैं । विप्रवर,इन्हीं कुदरती हथियारों से आप मोटी चमड़ी भी उधेड़ पाते हैं ओअर हम सब तो बस चूं-चां-चीं करके चुप हो जाते हैं आप इसी तरह से हरामियों का डी.एन.ए.टैस्ट करते रहिए........