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17.4.08

उनकी यादों को चरागों की तरह

उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा।
कुछ इस तरह से हमने उन्हें अपना बनाए रखा।।


कडकती धूप में मेरा पांव न जल जाए कहीं।
मेरे महबूब ने इसलिए मुझे घंटों बिठाए रखा।।


और यह तुफान तो अब आया है अपने उरोज पर।
उस समंदर से पूछो जिसने इसे बरसों दबाए रखा।।


कुछ न छुपाने कि कसम तुमने तो दी थी मुझको।
मगर एक बात थी जिसे हमने ताउम्र तुमसे छुपाए रखा।।


उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा।
कुछ इस तरह से हमने उन्हें अपना बनाए रखा।।

4 comments:

KAMLABHANDARI said...

abraar ji kya khub gazal hai subhan allah .

yu hi likhte rahiye
charago se diye jalaaye rahiye .
gazalo ki barsaat karte rahiye.

mujhe bhi kisi gazal ki kuch line yaad aa rahi hai ......pese khidmat hai ......mana rukh pe mere nakaab nahi ,lekin me behijaab nahi ,saksh koi esha milta nahi ,jiske cehre pe ho nakaab nahi .

VARUN ROY said...

बहुत खूब अबरार भाई. बहुत अच्छा लगा .
वरुण राय

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाईजान,उनकी यादों को चरागों की तरह हर शाम जलाए रखा और हमारे हिस्से में बस चिराग के नीचे का अंधेरा ही आया.....

Deep Jagdeep said...

wah wah