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19.4.08

रकीबों ने लगवाई है रपट जा-जाके थाने में

एक लंबे अरसे से बीमारी, विवाह समारोहों और दुनियादारी की चिंताओं में फंसे रहने की वजह से भड़ास पर मैं अपना योगदान नहीं कर पाया। मगर दो-चार दिनों के अंतराल पर वक्त निकालकर भड़ास पर आनेवाली पोस्टें जरूर देख लेता...और कुछ कमी, कुछ भटकाव और बकौल यशवंत जी, तेज दिमाग, धारदार भाषा और तेवर वाले लोगों की अनुपस्थिति भड़ास को ऐसे लोगों के जमावड़े में तब्दील करता चला गया जिनका असल उद्देश्य आत्म-प्रशंसा और स्वंय के इश्तहार से ज्यादा और कुछ न था। उन पोस्टों को देखकर यह बात दिमाग में घुमड़ती कि भड़ास के मास्टहैड के नीचे लिखे इस वाक्य को..."अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा..." लोग भूल गए हैं या यशवंत जी ने रुचि लेना बंद कर दिया है? कुछ तो वजह रही होगी। पर गीत चतुर्वेदी वाले प्रकरण में हरे प्रकाश की सदाशयता को जिस गलाजत भरे अंदाज में एक फोहश मजाक में तब्दील कर दिया उसने मुझे मजबूर कर दिया है कि मैं नैतिकता के अलंबरदारों के सामने आईना रखूं। नैतिक क्या है, अनैतिक क्या है- इसके बारे में बाइबिल में एक जगह ईसा ने कहा कि पापी औरत को वही व्यक्ति पहला पत्थर मारे जिसने कभी कोई पाप न किया हो। कहना न होगा कि सबके हाथ एकाएक रुक गए। गीत चतुर्वेदी को चरित्र प्रमाण पत्र देनेवाले सज्जन को मैं नहीं जानता, मगर गीत को जितना जानता हूं उस आधार पर यह कह सकता हूं कि उन्हें किसी के समर्थन या चरित्र प्रमाण पत्र की कतई कोई जरूरत नहीं है। रही बात भड़ास के नीच लिखे इस वाक्य....अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा... की, तो मुझे लगता है उनका मन जरूर हल्का हो गया होगा और पाठकों का भी (गलत ही सही) मगर कुछ मनोरंजन जरूर हुआ होगा। मेरा ख्याल है कि भड़ास का यह न तो उद्देश्य था और न वह कविता ऐसी थी जिसकी ऐसी भयानक व्याख्या की जाए।
प्रिय यशवंत भाई, मैं बेहद दुख और उदासी के साथ आपसे यह अनुरोध कर रहा हूं कि मेरा नाम भड़ास के सलाहकारों से हटाने की कृपा करें। मेहरबानी होगी।

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंकज जी,सलाहकारों से नाम हटाने की बात तो तब मान लेना जमता जब आपकी सलाह को नजरअंदाज़ कर दिया जाता लेकिन ये तो आप ने स्वयं ही सोच लिया कि उस विषय में किसी बात की गुंजाईश नहीं है। सलाहकार की जब जरूरत है तब आप "टैं" बोल गये ये बड़े आश्चर्य की बात है। ये बात गीत जी और श्री सिंह के आपस की बात है क्योंकि ये एक निहायत ही निजी आक्षेप था लेकिन आप इसमें आपका विकेट बिना कोई सलाह-मशविरे के आपने खुद ही गिरा लिया और आउट होने की घोषणा कर रहे हैं, क्यों????? बता दें तो मेरी आत्मा को भी लगे हाथ शान्ति मिल जाएगी...
जय जय भड़ास

hridayendra said...

ummid hai....ye aarop-aarop ka khel band karkey hum apney aur apney saathiyon ke liye kuch behtar likhengey, padengey aur phir sey ladengey....waisey pankaj ji pahleywala thoda jyada talkh tha par woah bhi sach tha aur yeah bhi....finish it...baaki kuch kahna chaahen to mail ke jariye ya phone ke jariye bataiye.....main jawaab dunga...

Anonymous said...

pankaj jee, main to bas ye kahoonga ki aapne bhi maan liya ki is hamaam main sabhi nange hain, waisai bhadaas ek manch hai jahan sabhi bhadaasi apni bhadaas nikale or aap hamare in bhadaason pe apne salah dete rahen nahi to bechare kahan jayenge,
sabhi ki kisi na kisi ne li hai, sabhi thuke hue hain or ye bhi tay hai ki sabhi thokenge magar tab tak bhadaas hi sahi,

aapse anurodh hai ki apne amulya salaah dete rahiye

Jai Jai Bhadaas