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7.4.08

इंसानियत के बिना किसी भी मज़हब की कल्पना नही की जासकती...

सब से पहले तो इतना बता दूँ कि मैं ये पोस्ट लिखने के बजाए कमेंट करना चाहती थी लेकिन कमेंट इंग्लिश में हो रहा था इस लिए अच्छा नही लग रहा था..मुनवर आपी ने मेरे कमेंट के जवाब में जो पोस्ट लिखी है,पढ़ा मैंने कल ही था पर आजकल टाइम मिल पाने की वजह से कुछ नही हो पा रहा हैसब से पहले तो मैं मुन्नवर आपी को बता दूँ की उनकी पोस्ट पढने के बाद मैंने जो कमेंट की थी उसका मकसद किसी भी मज़हबी बहेस को दावत देना हरगिज़ नही था,बस उस समय नमाज पढ़कर आई थी और एक नशा सा था बस एक तारीफ निकल गई,लेकिन लगता है आपको वो पसंद नही आई और जवाब में आपको इतना कुछ लिखना पड़ा,सब से पहली बात ये कि आपने जो कुछ लिखा है मेरे ख्याल में उसका जवाब देने के लिए मैं अभी बहुत छोटी हूँ ,हाँ ,मेरे बाबा इन बातों का जवाब अच्छी तरह दे सकते हैं,दूसरी बात जो आपने लिखी है कि जानवरों कि कुर्बानी की तो मेरे ख्याल में अगर आपको या ख़ुद मुझे ये बातें पसंद नही तो इस्लाम आपको मजबूर नही करता की आप ऐसा करें ही...देखिये..मज़हब के जो rules हैं वो हालात पर depend करते हैं...तब हालात कुछ और थे, अब कुछ और.. अब ये हमारे और आप के ऊपर है कि हम क्या करें और क्या करें..वैसे गहराई में जायेंगे तो सवाल तो बहुत सारे हैं ,आप हिरन को देखिये कितना मासूम और खूबसूरत होता है लेकिन खुदा या भगवान् ने उसे दरिंदों का आहार क्यों बनाया? क्या वो कुछ और नही कर सकते थे? शेर चीता आख़िर घास भी तो खा सकते थे? यहाँ तो आप इस्लाम को इल्जाम नही दे सकतीं? लेकिन ये सब कुदरत के नियम हैं क्या किया जासकता है? रही बात पेर्फेक्शन की ,तो दुनिया का कोई धर्म परफेक्ट नही है , लेकिन हर धर्म रेस्पेक्ट के काबिल होता हैआपकी वो बात की इंसानियत सब से बड़ा धर्म है ,मुझे बहुत अच्छी लगी लेकिन इस्लाम इंसानियत का धर्म है ,इंसानियत के बगैर इस्लाम का तसव्वुर भी नही किया जासकतामेरा घराना भी कोई कट्टर मज़हबी नही है ,मेरे नजदीक हर धर्म हर मज़हब बहुत ही काबिले एह्तेरम है,ये मज़हब ही है जो हमें जीने का सलीका सिखाता है ,आज हम जो अपनी परम्पराओं से जुड़े हुए हैं उसका क्रेडिट हमारे मज़हब को ही जाता है जो हमें इंसानियत से जोड़े हुए है.वरना हमारा हाल भी पश्चिमी लोगों जैसा होता जो मज़हब से दिन परती दिन दूर होते जारहे हैं ,इंसानियत का खून देखना है तो ज़रा इराक में देखिये,फिलिस्तीन या अफगानिस्तान में देखिये,,बाकी सारी बातों के लिए मैं अभी बहुत छोटी हूँ,लेकिन इतना मुझे पता है की मैं ख़ुद को खुशनसीब मानती हूँ की मैं एक मुस्लिम लड़की हूँ और अपने मज़हब को लेकर मेरे दिल में कोई कॉम्प्लेक्स नही है.बाकी अगर आपको मेरी कमेंट बुरी लगी तो आगे से मैं अह्तियात करुँगी कोई भी कमेंट या पोस्ट करने से पहले,क्योंकि इस से पहले भी मेरी एक पोस्ट से मनीष भैया और बहुत से लोग मुझ से नाराज़ दिखाई दे रहे थे... यहाँ तक कि यशवंत दादा को भी उन्हें मनाने के लिए सफ़ाई देनी पड़ी ,मैं नही चाहती की मेरे कारण भड़ास के रेसपेक्टेड और सीनियर मेम्बेर्स को कोई कष्ट हो सो आगे मुझे careful रहना होगा...
वैसे अब एक बात और कह दूँ..आपके लिखने का अंदाज़ मुझे अच्छा लगा,रूपेश भैया ने जैसी आपकी तारीफ की थी आप वैसे ही हैं.उम्मीद है आगे भी आपको पढने का मौका मिलेगा.

3 comments:

Unknown said...

aapa careful rahne ki kya bat hai, aap to apni kahiye...sbko apna kahne ka adhikar hai...jise sunna hoga sunega hi...aapki yh tippni bhi trkpurn hai...

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

रक्षंदा आपा,आप ये क्या गजब करने जा रही हैं ? एहतियात रखना यानि कि दिल की बजाए दिमाग का इस्तेमाल करना और फिर हम उगलते वक्त भी सावधानी रखें मैं उसे उचित नहीं समझता। मुझे लग रहा है कि हमारी बहना गुस्स्स्स्स्स्स्स्सा जैसा कुछ है बड़े और सीनियर सदस्यों से। जब आप केअरलेस हो कर लिख सकें तभी भड़ास पर पोस्ट डालिये यहां कैसा सेंसर भला?

Anonymous said...

rakshanda jee,

bas bhadaas nikaliye,
satarkta ghayee bhad main,
waisai bhi hum sab bhadaasi yahan satarkta baratne nahi aayen hain.

waisai aapki is baat se kisi ko inkaar nahi hona chahiye ki insaaniyat se bada koi kaoum nahi hai.

Jai Bhadas
Jai Jai Bhadas