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6.1.11

कविताएँ रह गयी अधूरी

कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

कैसा शैशव और तरुणाई?

केवल सिसकी और रुलाई|

नियति नटी का नृत्य अनोखा

जब देखो आखें भर आयीं|

मस्त कोकिला भी रोती है जब पंचम स्वर में गाती है |

कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

मिटी नहीं हृदयों से दूरी,

कवितायें रह गयी अधूरी|
जाने कितना और है जाना?

यात्रा कब यह होगी पूरी?
संशयग्रस्त बना कर जीवन मृगतृष्णा छलती जाती है |

कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

पूरा दीपक, पूरी बाती,

तेल नहीं लेकिन किंचित भी |
बेकारी मजबूर बनाती,

अन्धकार का शाश्वत साथी |
तोड़ रहा दम इक दाने को पौरुष की चौड़ी छाती है |
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

तेरा तो प्रभु सोने का है,

मेरी तो माटी की मूरत|
वंदनीय है तेरा आनन,

मेरी बचकानी सी सूरत |
चिंदी में लिपटे लोगों की छाया भी मुंह बिचकाती है|
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

कहते हैं संघर्ष हमेशा

सत्य सदा विजयी होता है |
जिसमे साहस है वह जीता |
केवल कायर ही रोता है |
यम नियमों के बंधन वाली यह छलना छलती जाती है |
कभी न पूरी हो पाती है, मन की मन में रह जाती है |

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4 comments:

Dr Om Prakash Pandey said...

bahut hi sundar bhava aur prawahapoorna chhand!

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

आदरणीय डाँ॰ साहब
कविता पर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिये आपका कोटिशः धन्यवाद

vandana gupta said...

एक बेहतरीन और बहुत ही प्रभावशाली रचना।

Manoj Kumar Singh 'Mayank' said...

वन्दना जी
उत्साहजनक टिप्पणी का शुक्रिया। आपका कोटिशः आभार