Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

19.10.07

बाजार में सब नंगे हैं...

कई विषय हैं जिन पर भडा़स मन में भरी पड़ी है। आज सोच रहा हूं एकृ-एक कर सभी को निकाल ही दूं। सबसे पहले अशोक मलहोत्रा के बारे में।
हर्षद मेहता, तेलगी और अब अशोक मलहोत्रा... बाजार में सब नंगे हैं...
दिल्ली विधानसभा की कैंटीन का ठेकेदार जो कभी तिपहिया चलाता था, आज अरबपति बना बैठा है। उसके पास पचासों गाड़ियां मिला हैं जिसके नंबर वीवीआईपी मतलब एक या दो या तीन टाइप के नंबर हैं जो सीधे दिल्ली का परिवहन मंत्री हारून जारी करता है। यह तो साफ है कि हारून का यार है अशोक मलहोत्रा। दूसरे, भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं के अलावा अफसरों का भी दामाद है अशोक मलहोत्रा। भाई, क्या जमाना आ गया है। अगर तीन-पांच में आपकी रुचि है तो आप भी कभी भी बड़े आदमी बन सकते हो। कुछ मेरे पत्रकार मित्र मुझे फोन कर बताते हैं कि वो देखो, फलां पत्रकार ने ये गाड़ी ले ली, फलां पत्रकार ने वो वाला बंगला खरीद लिया, फलां पत्रकार ने बर्थडे पर क्या शानदार पार्टी दी है.....तो मैं यही कह सकता हूं भाई कि, अगर आप तीन-पांच नहीं कर रहे हो तो तीन-पांच करने वालों से जल क्यों रहे हो। अगर वो अफसरों और नेताओं को पटा कर खुद कमा रहा है और उनको लाभ दिला रहा है तो हम लोगों को जलने की जरूरत क्या है। लेकिन, सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि ऐसे हर्षद मेहता, तेलगी और अशोक मलहोत्रा अब इस देश में बिखरे पड़े हैं। ये सब बाजारवाद की देन हैं। बाजारवाद कहीं किसी को नैतिक नहीं रहने देता। अब ढिबरी लेकर खोजने पर लोग मिलेंगे जो कहेंगे कि मैं नैतिक हूं। जो जहां हैं वहां कमाने की फिराक में है। और, मजेदार तो ये है कि संस्थान, सत्ताएं और संगठन अब कमाई करने को कतई गलत नहीं मानते। बस, इनका ये मानना है कि अकेले ना कमाओ, हमें लाभ पहुंचाओं, अपने लिए भी माल बनाओ। पत्रकारिता में ही देखिए.....जिनके पास मिशन चलाने का काम था अब वो रेवेन्यू का काम देखने लगे हैं। जो इस काम को गलत कहेगा उसे पागल घोषित कर दिया जाएगा। मैं भी थोड़े खुले दिमाग का हो गया हूं। कम बोलता हूं इन विषयों पर वरना हाशिए पर जाने का खतरा पैदा हो जाएगा। हालांकि हाशिए पर जाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन बात वही है ना, जब क्रांति करने गए थे और न कर पाए तो अब जब नौकरी करने आए हैं तो कम से कम यही काम ठीक से कर लें। लेकिन बावजूद इसके.....इन तेलगियों, हर्षद मेहातओ और अशोक मलहोत्राओं के कारनामों के सुनकर झांटें सुलगती रहेंगी।

मैं तो कोदे के खिलाफ और संजय के साथ हूं
राहुल भाई बजार वाले ने संजय को सजा मिलने वाले दिन ही धांय से लिख मारा.....ठीक हुआ कुत्ते को सजा मिल गई....कुछ इसी टाइप में अपनी भड़ास निकाल ली लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूं। मुझे लगता है कि यह रेयरेस्ट मामला है। आरोपी अब पूरी तरह सुधर चुका है, जब उसने गलती की थी वो एक बेहद दहशत के दौर में की थी जब मुंबई में दंगे हो रहे थे और उसके सेकुलर पिता को मारने और घर को उड़ाने की धमकियां दी जा रही थीं। उसे लगा, जब मर ही जाएंगे तो उससे अच्छा है जीते जी न मरने का इंतजाम कर लिया जाए। भाई ने जहां से हो सका हथियार बटोरा और घर पर रखा। भई, ये तो हम लोग भी करते हैं। मैं तो अपनी गाड़ी में एक लंबा वाला छुरा लेकर हमेशा चलता हूं। पता नहीं, रात-बिरात कभी किसी शैतान से भिड़ंत हो जाए तो केवल हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता ही ना रहूं बल्कि मौका देखकर उसकी गांड़ में घुसेड़ दूं। तो यह आत्मरक्षा का अधिकार है। बाकी रही बड़े अपराधियों के साथ रिश्ते रखने की तो भई कौन नहीं रखता। चैनल वालों ने न जाने कितने वीडियो दिखाए हैं जिसमें विदेश में भाई लोगों की पार्टीज में बालीवुड वाले किस तरह नाचते गाते रहते हैं। लेकिन इनमें से किसी का कुछ नहीं हुआ। वैसे भी, संजय दत्त ने जो कुछ किया वो सहजता में किया और उसके पीछे मंशा देश और समाज को नुकसान पहुंचाने की कतई नहीं थी। दरअसल ये जो जज कोदे है ना, उसने जानबूझकर ऐसा फैसला दिया ताकि न्यायिक इतिहास में वो अमर हो जाए और उसे कहा जाए कि वह सेलेब्रिटी के आगे झुका नहीं। बात यहां झुकने की नहीं, बात यहां जेनुइन जस्टिस की है। जैसे जेसिका मर्डर केस में गवाह और साक्ष्य न होते हुए भी और फाइल बंद करने के फैसले के बावजूद लोगों के विरोध के बाद कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर मामले को फिर से खोला और लोगों को उकसाकर गवाही कराई और फिर दोषियों को सजा सुना दी। इसी तरह इस मामले में भी मुन्नाभाई के मन की मंशा को समझते हुए उसके व्यवहार को देखते हुए और उसके द्वारा किए गए कारनामे को एक आत्मरक्षार्थ कार्रवाई बताते हुए उसे दो वर्ष की काटी गई जेल के आधार पर रिहा कर दिया जाना चाहिए। मतलब दो साल की सजा होनी चाहिए थी और ये सजा काट चुके होने के कारण उसे रिहा कर दिया जाना चाहिए। भई, मैं तो दिल से कोदे के खिलाफ हूं और संजय के साथ हूं।

फिलहाल इतना ही
जय भड़ास

------------------
इस दौड धूप में क्या रक्खा....
यहां मैं दुष्यंत कुमार के कुछ कम परिचित शब्दों का गुच्छा प्रस्तुत कर रहा हूं....


इस दौड धूप में क्या रख्खा आराम करो आराम करो
आराम जिंदगी की कुंजी इससे न तपेदिक होती है
आराम सुधा की एक बूंद तन का दुबलापन खोती है
आराम शब्द में राम छुपा जो भव बंधन को खेता है
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है
इसलिए तुम्हें समझाता हूं मेरे अनुभव से काम करो
इस दौड धूप में क्या रख्खा आराम करो आराम करो.....

जय भडास
सचिन

No comments: