कल जब मैं इस पोस्ट को लिख रहा था तो अचानक एक काम पड़ा और मुझे निकलना पड़ा। आज अब इस पोस्ट को पूरा करने का मन नहीं कर रहा। वैसे भी डाक्टर ने थोड़े ही कहा है कि अधूरी पोस्ट नहीं पढ़ाई जा सकती। भई, भड़ासियों के लिए मन का गुबार निकालना मुख्य है इसलिए जितना उगल पाया है, उसे सबके सामने प्रकट कर देता हूं....
जय भड़ास
यशवंत
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उफ्फ...पूरे दिन किसिम-किसिम की खबरों से परेशान रहा...
अखबार की दुनिया में और निजी जीवन में, दोनों ही क्षेत्रों में कई बार कोई-कोई दिन खबरों से भरा होता है। एक खबर आई नहीं की दूसरे के आने की सूचना आ गई.....। इसी तरह जीवन में भी होता है। जैसे आज मेरे साथ हुआ। सुबह से फोन आ रहे हैं और फोन पर एक नई खबर। सोचा, चलो सबसे शेयर कर लूं, कुछ खट्टी तो कुछ मीठी खबरें..
पहली खबर- गांव से मां का फोन आया, अलसुबह। जाहिर सी बात है, मैं मुंह बाये सोया पड़ा था और पत्नी ने फोन रिसीव किया। सूचना मिली के मेरे नवजात भतीजे का नाम रख दिया गया है। क्या? पत्नी ने मुस्कराते हुए बताया- अलियार। कुछ देर बाद समझ में आया- अरे हां, वो जो झाड़ू से बुहारने के बाद डस्टबीन की तरफ कर दिया जाता है। एकदम से फ्लैशबैक में चला गया। रामा पांडे हुए करते थे। ठाकुर लोगों के गैंग के एकलौते होलटाइमर बाभन। यह गैंग रोजाना मुर्गा दारू सेवन करता और गोली मार भेजे के अंदाज में मस्त रहता। हर दूसरे दिन किसी को पीट देता, किसी पर गोली चला देता। इसके सदस्य या तो जेल में होते या फिर जेल के बाहर नशे में। इनमें मेरे परिजन भी थे। तो, रामा पांडे गरीब थे, खाने-पीने की दिक्कत के कारण ठाकुरों के गैंग में हो लिए। उनके चार बेटे थे। बताते हैं कि दो बेटे पैदा होने व कई महीनों तक जिंदा रहने के बाद मर गए। सो उन्होंने बाद में हुए बच्चों के नाम को बिगाड़ने का पुराना टोटका आजमाया। उन्होंने नाम रखा- अन्हरा, बहिरा, लंगड़ा और करियवा। वाकई, चारों बच्चों जिए और अब तक जी रहे हैं। उनमें से दो-तीन के साथ तो बचपन में मेरी भी गाढ़ी दोस्ती थी। एक ने तो मुझे सेक्स के गुप्त ज्ञानों के बारों में जो कुछ अवगत कराया था उसे सोचकर अब हंसता हूं। जैसे बताया था कि जब सेक्स के समय औरत आदमी के ऊपर होती है तो लड़की पैदा होती है और आदमी औरत के ऊपर होता है तो लड़का पैदा होता है। मैंने उसके बात को तब सच माना था और वर्षों तक इसे सच मानता रहा। जिस भी दंपति के साथ बेटी या बेटा देखता तो मन ही मन विजुवलाइज करने लगता कि यह औरत इस आदमी के ऊपर रही होगी तभी लड़की पैदा हो गई। दिक्कत तब होती जब कोई बेहद मोटी महिला दिखती और उसका सूख कर कांटा हुआ पति। तब मुझे यह सोच कर बड़ी परेशानी होती कि जब यह मोटी इस पर चढ़ी होगी तो यह चिल्लाया होगा---अरे बाप रे, नहीं करना सेक्स, नीचे उतरो, बहुत भारी हो....। उस समय मेरी बुद्धि में यह बात नहीं आई कि अगर ऐसे ही लड़का-लड़की पैदा होते तो सारे पुरुष उपर ही क्यों न रहते ताकि लड़का ही पैदा हों जैसा कि लड़के को लेकर समाज में जो चाहते है, उसे देखते हुए यह सभी लोग करते। मैंने यह सवाल उस पंडीजी से भी किया था तब उनका कहना था कि दरअसल सेक्स के समय में लास्ट में जब सब कुछ हो चुकने को होता है तब किसी की मर्जी नहीं चलती। अपने आप लोग उपर नीचे होते रहते हैं, इसी क्रम में जो कुछ होना होता होगा हो जाता होगा......अरे बाप रे,,,,काफी कुछ लिख मारा,,,,भाई लोगों ने सुभाष जी का ब्लाग बंद कराया है, इस पर भी नजर है......लेकिन इस खबर पर बाद में आते हैं, पहले पहली वाली खबर पूरी कर लूं....
तो...अलियार मेरे छोटे भाई के बेटे का नाम रखा गया है जो अभी एक महीने पहले ही इस दुनिय में आया है। अलियार की बड़ी बहन खुशी हैं जो चार साल की होने वाली हैं। खुशी को भाई मिल गया, साथ खेलने के लिए....। मां ने अलियार नाम इसलिए रखा होगा ताकि इस पर किसी की नजर ना लगे और पुराना टोटका एक बार फिर चल निकले।
अलियार की लंबी उम्र की दुआ के साथ मैंने आज दिन भर अपने बेटे को कूड़ा नाम रखकर पुकारा जिससे वह काफी विचलित हुआ लेकिन इस नाम की पृष्ठभूमि के बारे में बताया तो उसे कूड़ा कहलाने में कोई खास दिक्कत नहीं होई।
अब अगली खबर...
खबर नंबर दो - लखनऊ आई-नेक्स्ट के एक साथी से चैट के दौरान पता चला कि दिनेश श्रीनेत्र बंगलूर जाकर किसी कंपनी में ज्वाइन कर चुके हैं। उसने तारीफ करते हुए बताया कि जितना पाते थे उससे डबल पैकेज मे गए हैं और कंपनी ने एयर टिकट फ्री में अलग से भेजा था। मुझे सुनकर इसलिए कष्ट हुआ कि भड़ास के सचित्र साथियों में से एक हैं दिनेश और उन्होंने जाने के बाद भी अभी तक कोई खबर नहीं दी कि वे यहां आ गए हैं। कम से कम हम लोग एक सूचना ही छाप देते कि अपने भड़ासी भाई बेंगलूर चले गए हैं। यहां कहां मैं प्रिंट मीडिया के साथियों के लिए एक कामन प्लेटफार्म डेवलप करने के लिए गांड़ मरा रहा हूं और कहां अपने भाई लोग चुपचाप चले जा रहे हैं और जाने के बाद भी खबर नहीं दे रहे हैं। अगर ऐसे ही रहा तो मैं भड़ास से दे दूंगा इस्तीफा। वैसे ही इस ब्लागिंग ने इतना समय ले लिया है कि जिंदगी जीना मुहाल हो गया है।
खबर नंबर तीन - सुभाष भदौरिया का ब्लाग ब्लाक कर दिया गया है, ऐसी सूचना मिली। इससे दुख तो हुआ लेकिन फरक क्या पड़ता है, बहुत जल्द सुभाष जी ब्लागस्पाट पर अपना ब्लाग लेकर आ जाएंगे। वरना, भड़ास उनका अपना ब्लाग है ही, यहां लिखें या वहां, बात तो यह है कि कहीं लिखना चाहिए.....। ब्लाग बंद करने से आवाज नहीं बंद हो जाती। आज की ही तो खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने ए गनपत गाने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। जब इस देश में लोकतांत्रिक संस्थाएं इतनी मजबूती पाती जा रही हैं तो उसमें चंद हरामी टुच्चे टाइप के लोगों के भों भों करने से क्या होता है। मुझे चिंता
19.10.07
एक अधूरी पोस्ट
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