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19.10.07

पहली बार चखी तो बुरी लगी

का कह रह हो गुरु। हम भी दारूबाजी के किस्से बताएं. अब इसे आज्ञा मानें या विनती? विनती तो आजकल प्रेमिकाओं की भी नहीं सुन रहे इसलिए क्यों लिखें आपकी मानकर. लेकिन डर लग रहा है कहीं यह आज्ञा होगी तो दिल्ली विजिट पर एक अड्डा कम हो जाएगा. सत्या नौकरी छोडे बैठा है. और साले जेएनयू वाले बडे काईयां होते जा रहे हैं यानी सूखले सूखले रहने का खतरा है. गुरु आज्ञा मानकर लिख ही देता हूं.
तो अपने साथ तो ऐसा हुआ कि दुष्यंत कुमार बोले पहली बार चखी तो हमें भी बुरी लगी, कडवी तुम्हे लगेगी मगर जरा सी तो लीजिए। का करते बडे कवि का बडबोला आदेश. मामा के सानिध्य में रहते थे. देखते महसूसते थे कि मामा एक लाल पेय ठंडे पानी के साथ गटकते हैं, छककर खाते हैं और लंबी तान कर सो जाते हैं (कुंवारे थे उन दिनों). कभी कभी महकते हुए रात 11 बजे कुंडी खटखटाते तो हम दरवाजा खोलते मामू खुद सातवें आसमान में होते अंगूर की बेटी से सोहबत करने के बाद और हमें थमा देते वनीला का एक लार्ज पैक. दिन में हम घर में अकेले होते थे उन दिन लडके और लडकी में सही फर्क करने की तमीज नहीं थी नहीं तो यहां कोई और ही किस्सा सुना रहे होते. तो हुआ यूं कि कई दिनों फ्रिज में रखी उस बोतल को देखने के बाद एक दिन दोपहर में हम, बंटी, सुनील, श्याम, मोना, रूबी और शायद सपना या प्रतीक था, लूडो और आइस बाइस खेल कर जी बहला रहे थे. हम श्याम और बंटी को लाल पेय की जादूगरी बता चुके थे और साथ ही यह भी बता चुके थे कि अभी हम लोगों की पहुंच में है. श्याम स्वाद पहले ही चख चुका था सो उसने और गुणगान किये. गुरु बोतल से जिन्न को आजाद करने को हम तीनों उत्सुक थे, लेकिन अन्य चपडगंजुओं की मौजूदगी में यह संभव नहीं लगता था. सुनील को तो क्रिकेट टीम में जगह देने के नाम पर बहलाया जा सकता था, लेकिन असली खतरा रूबी से था, श्याम ने मोना की गारंटी ले ली कि वो किसी से नहीं कहेगी. पर हम खतरा नही लेना चाहते थे. सो श्याम को कहा कि उसे बाहर करे. श्याम बोला समझाकर आता हूं और वह मोना को लेकर दूसरे कमरे में चला गया तब तक हमने बाकी कमजोर कडियां ठीक कर लीं. तकरीबन एक घंटे बाद श्याम और मोना कमरे में आए तब श्याम बोला मामला ठीक हो गया है (अब समझ में आता है कि उसका मामला कैसे ठीक हुआ था).
फिर हमने वह जिन्न आजाद किया सबने थोडी शराब और ज्यादा पानी मिलाकर पैग तैयार किये और एक ही सांस में खींच गये। गले से पेट तक एक सन्नाटा खिंच गया. बाकी सब तो ठीक थे लेकिन बंटी को दर्द होने लगा और कहने लगा तुमने तेजाब पिला दिया है अब मैं मर जाउंगा. हम लोगों को भी लगा कि पेट में इतना दर्द क्यों हो रहा है. सब इसी पसोपेश में थे तब तक श्याम ने बोतल से जितनी शराब निकाली थी उतना पानी मिला दिया. सबको अपने अपने घर भेजकर मैंने बिस्तर पकड लिया. पहले सिर घूमा फिर नींद आई और जब जागा तो रात के आठ बज चुके थे. यह था मेरा पहला शराब से मिलाप.
आगे कैसे बना पेट ड्रम और अखिलेश ने मुझे कैसे बनाया दारूबाज यह फिर कभी।
जय भडास
सचिन
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बेटे का नाम स्कूल से कटवा दिया....

पांच साल का हो जाएगा, अगले महीने। 25 को उसकी बर्थडे है और 26 को मेरा जन्मदिन। ये बात अभी से तय कर रखी है मैंने और आयुष ने (वो क्या तय करेगा, मैं ही उसे सुनाता रहता हूं)कि जब आयुष बीयर-दारू पीने की वैधानिक उम्र हासिल कर लेगा तो मैं और वो 25 अगस्त की शाम को साथ बैठकर चीयर्स करेंगे और 26 की सुबह तक खाना-पीना-गाना करेंगे। मतलब बाप-बेटा दोनों अपने बर्थडे-जन्मदिन को एक रात में मना लेंगे। हालांकि जब वो पैदा होने को था तो मैंने बनारस में डाक्टर ऊषा गुप्ता से अनुरोध किया था कि जब सिजेरियन ही होना है तो प्लीज एक दिन और रुक जाओ, 26 को आपरेट करना, लड़का-लड़की जो भी होगा-होगी, बर्थडे तो एक साथ मनाएंगे और थोड़ा मामला रोचक भी रहेगा। लेकिन अपनी पत्नी को क्या कहूं, मारे दर्द के खामखा चिल्लाने लगीं और मुझे गरियाने लगीं...तोहार मुंह झऊंस जाए, तोहरे पेट पे होत तब ना..., चले आए भाषण देने....जइबा कि ना इहां से....। फिर डाक्टर की तरफ मुखातिब होकर उन्होंने कहा---डक्टराइन साहिब, प्लीज...आपरेशन अब कर दीजिए...। और मेरी रणनीति फेल रही। आयुष जी एक रोज पहले आ गए। जब पहले आ गए तो फिर नया प्लान बना दिया। 25-26 अगस्त की रात को पूरी रात हंगामा करने वाला। वैसे नहीं तो ऐसे, अपनी वाली कर ही ली। लो, बात कुछ और कहना चाह रहा था और कह कुछ और रहा हूं....।
हां, तो कह रहा था कि पिछले तीन महीने से आयुष जी स्कूल से जुड़े नहीं थे और जाने कहां-कहां की यात्रा की। ननिहाल और अपने गांव के अलावा तीन-चार और जगहों पर घूमने गए। खांटी देहात में रह के आए हैं। कानपुर से स्कूल छूटने के बाद से और मेरे नौकरी छोड़ने के बाद से सभी लोग गांव में ही रहे। जब नोएडा में नौकरी शुरू की तो सभी आए। इस महीने की शुरुआत में एडमीशन भी करा दिया। लेकिन आयुष नई ड्रेस और नई किताबों और नए स्कूल के लालच में कुछ दिन तो स्कूल गए लेकिन पांचवें दिन ही ऐलान कर दिया...नाम कटवा दो। नहीं पढ़ना मुझसे। गांव भेज दो, बाबा के साथ रहूंगा। या म्यूजिक में नाम लिखवा दो। या स्केटिंग करवाना सिखवा दो। लेकिन पढ़ना नहीं है मुझे। उनसे भांति-भांति तरीकों से पूछा गया...भइया, गलती क्या हो गई, कमी क्य रह गई?? जब पूछो तो वो एक नया बहाना मारते थे...स्कूल में मैडम अंग्रेजी बोलती है, नहीं पढ़ना। वहां लाइट जाने पर गरमी लगती है, नहीं पढ़ना। वहां बच्चे मुझसे दोस्ती नहीं कर रहे, नहीं पढ़ना। वहां मैडम गुस्से में रहती है, नहीं पढ़ना। वहां सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई होती रहती है, खेलने-कूदने के लिए टाइम नहीं दिया जाता, नहीं पढ़ना...। पहले तो मजाक माना। लेकिन सुबह स्कूल जाने के समय दंगा शुरू करता और जबरन भेजने के बाद स्कूल से लौटने पर जो हिचक-हिचक कर रोना शुरू करता तो हम लोगों का भी कलेजा पिघल गया। लगा, बच्चा स्कूल में कुछ संकठ में है। गए स्कूल और मैडम से मिले। मैडम काफी सुंदर थीं। नाक में नथुनी वगैरह पहने और धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते वो मुझे तो अच्छी लगीं। हालांकि बच्चे की शिकायत भी यही थी कि अंग्रेजी ज्यादा बोलती हैं और वो गांव से भोजपुरी सीखकर और पहले पढ़ी गई अंग्रेजी भूलकर लौटा है। मैडम ने मुझे आश्वस्त किया, उसे किसी तरह की परेशानी नहीं होने दी जाएगी। अगले दिन फिर पंगा। उसके रोने पर स्कूल नहीं भेजा। लेकिन स्कूल की किसी तरह की चर्चा छिड़ते ही वह बुरी तरह रोने लगता। बाद में उसे बुखार भी हो गया। खाना-पीना छोड़ दिया। मुंह ऐसा हो गया जैसा कभी खाना न मिला हो। अंत में मैंने पत्नी को विश्वास में लेकर उसके सामने ऐलान कर दिया कि बेटा, फोन से बात कर ली है, तुम्हारा नाम कटवा दिया है। अब तुम घर पर मौज करो। उसके बाद से वो इतना खुश है कि क्या बताऊं। बिटिया सुबह स्कूल चली जाती है तो वो घर पर ही अपना बैग लेकर पढ़ने बैठ जाता है और थोड़ी बहुत देर मुझे बेवकूफ बनाने के बाद कार्टून चैनल खोल लेता है। लेकिन है बिलकुल मस्त। मैने उससे कहा-- बेटा नहीं पढ़ोगे तो तुम्हें गोबर फेंकना होगा, गरीब बच्चों की तरह कूड़ा बीनना होगा...जाने कितने तरीकों से उसे डराता हूं लेकिन वह सबका जवाब एक-एक कर देता रहता है। जैसे वह कहता है कि गोबर क्यों फेंकूंगा..गांव में नौकर होते हैं न, वो काम करते हैं, मैं तो ठाकुर हूं। बाबा ने सब बता दिया है। मुझे कहना पड़ा-- भाई साहब, मैं तो चमार हूं। लेकिन पढ़ना तो शुरू करो। फिर वो कहता है....गरीब बच्चों की तरह कूड़ा नहीं बीनूंगा..तुम मुझे एक सर जी को घर पर लगा लो, वो रोज पढ़ाने घर पर ही आएँगे। लेकिन मैं स्कूल नहीं जाऊंगा.....।।

फिलहाल चार दिन हो गए। वो स्कूल नहीं जा रहा। उसे पता है कि उसका नाम कटवा दिया है लेकिन दरअसल कटवाया नहीं है। 30 तारीख की सुबह उसे जबरन स्कूल भेजने की तैयारी है। देखता हूं, क्या होता है। लेकिन उसकी दशा देखकर मेरी तो इच्छा उसे पढ़ाने की नहीं हो रही। सोच रहा हूं, म्यूजिक वाली क्लास में ही एडमीशन करा दूं। लेकिन पत्नी हैं कि दुर्गा बनी हुई हैं। आफिस से घर लौटने पर बताती हैं कि इसने घर में कितने बवाल काटे और कितने सामान तोड़े-फोड़े।

और अंत में....
एक दिन वीकली आफ के दिन कार पर आयुष आगे बैठ मेरे साथ निकले। बिटिया और उनकी मम्मी को घुमा-खिला कर घर छोड़ने के बाद निकले थे। आयुष और मैं ऐसा मानते हैं कि जब औरतें घर चली आएं तो पुरुषों को एक बार फिर निकलना चाहिए बाहर। यह तर्क अपने स्वार्थ में इजाद किया था। उनके सामने तो पीने से रहा। बाद में अकेले निकलता हूं तो कहीं क्वाटर या बच्चा लेकर गाड़ी में बैठे-बैठे ही मार लेता हूं। तो उस दिन जब देर तक घूमते रहे तो आयुष ने मन की बात तड़ ली। बोला--बहुत देर से इधर-उधर गाड़ी घुमा रहे हो। चलो मुझे पेप्सी दिलवा दो और अपने लिए दारू ले लो। फिर घूमेंगे। मैं भौचक....उसने मेरे दिल की बात कैसे जान ली?? फिर मुझे लगा...भई, ये नई पीढ़ी तो बहुत चतुर-सुजान है। हम लोग खामखा अपने को तुर्रम खां समझते हैं। ये सब तो अपन के सिर के सारे बाल बीन ले जाएंगे.....।
फिलहाल मुझे टेंशन उसकी कल की क्लास को लेकर है...। भगवान मुझे ताकत दे और भड़ासी अपनी सलाह दें....।

जय भड़ास...
यशवंत

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