जिन्दगी के कैनवास पर-
हम कभी- कभी-यूं ही लगने लगते हैं,
किसी ऐसे 'इलेक्ट्रोनिक डिवाइस' की तरह-
जिसे म्यूट कर दिया गया हो।
फंक्शन तो सारे के सारे-
ज्यों के त्यों चलते रहते हैं,
आवाज़ नहीं निकलती-
ना जागने की, ना सोने की,
ना कराहने की, ना मुस्कुराने की-
ना गुदगुदी करने से-
आने वाली हंसी की।
ना ही किसी ख़ुशी से -
बदन में होने वाली सनसनाहट की
.....यहाँ तक कि-जिंदा रहने की भी नहीं।
फिर भी हम -चलते रहते हैं,
लुढ़कते रहते हैं......
इस आस में कि -
कोई तो मिलेगा रास्ते में
जो समझेगा हमारे -
कुम्हले - छटपटाते हुए एहसासों को -
और.....
भंग कर सकेगा हमारी चुप्पी-
अपने अच्छे से " रिमोट कण्ट्रोल" से।
लुढ़कते रहते हैं......
इस आस में कि -
कोई तो मिलेगा रास्ते में
जो समझेगा हमारे -
कुम्हले - छटपटाते हुए एहसासों को -
और.....
भंग कर सकेगा हमारी चुप्पी-
अपने अच्छे से " रिमोट कण्ट्रोल" से।
----अभिषेक सत्य व्रतम्
19.10.07
एहसास...छटपटाते हुए
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