नेहरू प्लेस पर ब्लागरों की छोटी सी जुटान। जान-पहचान करने-कराने के बाद चाय-लड्डू फिर बतकही। बाद में पधारे सुप्रसिद्ध कन्हैयालाल नंदन जी। बोलना शुरू किया तो पूरी भड़ास निकाली। अच्छी बातें बताईं। एक पल को लगा, जैसे घर का मुखिया खानदान के रास्ता भटकते दिख रहे नए खून वालों को समझा-बुझा रहा है। नसीहतें दे रहा है। बिगड़ने न देने के लिए सावधानियां सिखा रहा है। अपने अनुभवों का निचोड़ रख रहा है। अपनी तो बीत गई, तुम सब सही रखना....के लिए मंत्र दे रहा है। पर जैसा कि ऐसे मौकों पर होता है, नए खून वाले गुरु गंभीर मुद्रा में सारी बातें सुनते रहे और आदरणीय-श्रद्धेय कन्हैयालाल जी सुनाते रहे। बड़े हैं--सुन लो, बातें सिर-माथे पर लगा लो। ये अनुभवों की अमृत है, परंपराओं की बूटी है--सहेजकर रखो, इस्तेमाल करो, हमेशा भला होगा। नंदन जी ने बातों-बातों में नेताओं को गरियाया, पत्रकारों को समझाया, नवयुवकों को अनुशासनहीन बताया....। सबका सार था कि चीजें बिगड़ रही हैं। पुरानी चीजें सब 'बिसूर' रही हैं। इन्हें संभालो, इन्हें बचाओ। जैसे कि ये जो ट्रैफिक है, कोई रुकना नहीं चाहता। लालबत्ती है भी तो मौका मिलते ही गाड़ी निकाल लेते हैं। ऐसे कैसे चलेगा सब। भाषा के प्रति कोई राग नहीं है। जैसे, देसज शब्दों और लोकधुनों से आज के लड़कों का वास्ता नहीं दिखता। इनकी मिठास-गहराई को कोई महसूस नहीं करता। कोई जानता नहीं। राजनीति ज्यादा हो रही है। देशहित की चिंता कम दिख रही है। बदले माहौल में बदले विजन के साथ काम नहीं हो रहा है। उनकी बातें सुनते हुए लगा, जैसे प्राइमरी और मिडिल स्कूल में गद्द की किताब का एक और पाठ पढ़ रहा हूं और पाठ की भूमिका में महान लेखक के बारे में लंबा-चौड़ा इतिहास लिखा गया है। नंदन जी साक्षात सामने थे। बोलते हुए सुनना मुझ जैसे देहाती के लिए एक ऐसा पल था जिसे बार-बार याद करना चाहूंगा। कभी नंदन जी का जिक्र आएगा तो मैं तुरंत उनके साथ अपने को जोड़ूंगा-कहूंगा....हां, मैं उनसे मिला था एक बार, ब्लागर मीटिंग में, मैथिली जी के यहां। लेकिन पूरी श्रद्धा और आदर देने के बावजूद उनकी बातों से मैं बिलकुल नहीं सहमत हुआ। ऐसा क्यों है कि एक खास उम्र तक पहुंचते-पहुंचते हमारे देश के साहित्यकारों, पत्रकारों, नेताओं और कलाकारों आदि को सब कुछ खराब, सड़ता हुआ, बिगड़ता हुआ, दिशाहीन होता हुआ, भटकता हुआ, हाथ से फिसलता हुआ, भयावह होता हुआ....दिखने लगता है। अरे भाई, जब आप भी नौजवान थे तो आपके समय के बुजुर्गों को ऐसा ही लगता रहा होगा, लेकिन आपने तो साबित किया कि आप उनकी उम्मीदों से कहीं ज्यादा आगे अच्छा कर सकते हैं और किया भी। इसी तरह, आदरणीय-श्रद्धेय नंदन जी, इस देश के लड़के उतने बेकार नहीं है जितना आपको लगता है। मैं आपको आज की पीढ़ी की ओर से आश्वस्त करना चाहूंगा कि देश बहुत सही दिशा में जा रह है, जो हो रहा है वो अच्छे के लिए हो रहा है। जो होगा, वो भी अच्छे के लिए। ये बातें सुभाषतानि नहीं, मौजू हैं। जैसे, आज की कुछ प्रमुख खबरें ले लीजिए....इनके आधार पर मैं कह सकता हूं कि अपन का इंडिया या अपन का भारत फुल स्पीड से या पूरी गति से अपनी महानता की वापसी जोर-शोर के साथ करने जा रहा है। ये खबरें है---हाकी मैच के फाइनल में दक्षिण कोरिया को बुरी तरह पीटकर भारत का एशिया कप जीतना। भारत के वैज्ञानिकों द्वारा ८२ वर्ष पहले दी गई अवधारणा के आधार पर पहली बार बोस-आइंस्टीन कंडेंसेसन (संघनन) निर्मित कर देना। एशिया की सबसे जोरदार रिजल्ट देने वाली कंपनियों में से १२ कंपनियों का भारतीय होना। ये सिर्फ आज की खबरें हैं। कोई कह सकता है, पार्टनर----इनसे क्या भुखमरी खत्म हो जाएगी, किसानों की आत्महत्याएं रुक जाएंगी, महिलाओं की दशा सुधर जाएगी, दलितों-पिछड़ों का हक मिल जाएगा, बेरोजगारों को नौकरी मिल जाएगी.......। ऐसे हजार सवाल लिख सकता हूं, खड़ा कर सकता हूं। पर एक बात विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इस लोकतंत्र में जिसने भी कुछ नया करने की ठानी, उसने कर दिखाया। इसी देश के नौजवान हैं जो पूरी दुनिया में अलग-अलग क्षेत्रों में झंडा गाड़े हुए हैं। इसी देश के नौजवान हैं जो गरीब-गुरबों की दशा सुधारने के लिए गांवों में जाकर कुछ नया कर रहे हैं। इसी देश की लड़कियां हैं जो पूरे दम-खम से मर्दों से टक्कर लेते हुए, उन्हें झेलते-सहते और उन्हें सिखाते-सुधारते हुए आगे बढ़ रही हैं। इसी देश के दलित-पिछड़े हैं जो हक न मिलने पर कभी आंदोलनों के जरिए तो कभी बंदूकों के जरिए अपनी आवाज गुजाते हैं। अब ये तो हमारा आपका काम है ना कि समाज में चल रहे अंडरकरेंट को समझें और उन्हें ठीक तरीके से सत्ता प्रतिष्ठानों तक पहुंचाएं। दिल्ली में रहने का मतलब केवल हम लोगों को हगना-मूतना या जीवन-चलाना ही नहीं होता, हम लोगों को दायित्व हैं कि देश की समस्याओं को बजाय सरलीकृत कर उन पर बात करने के उनकी माइक्रो स्टडी कर उनके हल के लिए प्रेशर ग्रुप बनाने चाहिए। पी साईंनाथ जो काम आजकल कर रहे हैं, संभवतः ऐसा कोई संपादक-पत्रकार नहीं होगा जो उनकी तारीफ न करता होगा। देसज शब्दों और सोहरों से बाहर निकल वह देसज दुनिया के नंगे सच को खाए-अघाए शहरियों तक पहुंचा रहे हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि भयानक तरीके से व्यावसायिक हो चुकी मीडिया के चौबीसों घंटों और दर्जनों पन्नों में इन आवाजों-कराहों के लिए जगह कहां हैं। लेकिन रास्ते बंद नहीं हो जाते। जिन जगहों पर सवाल हैं तो उन्हीं जगहों पर उन्हीं हालात में जवाब तलाशने और उसे तैयार करने वाले जवान भी हैं। अगर हमें सिर्फ शहर के अराजक नौजवान ही दिखते हैं तो जाहिर सी बात है कि दिक्कत हमारी नजर में है। नंदन जी को मैं आश्वस्त करना चाहूंगा, आप निश्चिंत रहें, ये जो नालायक बच्चे हैं ना, सुबह मम्मी-पापा के सामने घर के मंदिर में हनुमान जी के सामने हाथ जोड़कर व टीका लगाकर घर से आफिस या कालेज के लिए निकलने वाले और देर रात डिस्कोथे से दारू पीकर टुन्न होकर लौटने वाले.......ये नालायक नहीं हैं। बहुत समझदार हैं। दरअसल ये नए जमाने के हिसाब से एक नहीं, कई व्यक्तित्तव जीते हैं और इनमें संतुलन भी बनाए रखने की कोशिश करते हैं तो ये इनका दोष नहीं, गुण हैं। गाय की तरह सीधा बच्चा किसी परिजन को पसंद नहीं है। वो हर जगह पिटेगा, हर जगह मात खाएगा। बाजार ने जो दुनिया बनाया है, उसी हिसाब से हम सब अपने लौंडों को गढ़ने-ढालने में लगे हैं। तो, फिर इन लौंडों को काहें दोष दें?? अपवाद हर जगह होते हैं, ब्लैक शीप हर जगह होती हैं......लेकिन आज के नौजवानों का बहुमत बहुत काशस है, बहुत सचेत है। वह बहुत जिम्मेदार है। वह हर क्षण जीता है। वह हर क्षण को चुनौती के रूप में लेता है। वह हर जगह एक्सपेरीमेंट करता है। जब वो एक्सपेरीमेंट करेगा तो बुरा भी करेगा, अच्छा भी करेगा। बुरा होने पर हल्ला होगा....क्या कर डाला लेकिन विज्ञान भी यही कहता है.....अविष्कार एक दिन ही नहीं हो जाता। उसके लिए बहुत सहना-झेलना पड़ता है और बहुत पक्की नींव बनानी पड़ती है। नींव के जो पत्थर हो गए उन्हें कौन याद रखता है। इसी तरह बुरा करने वाले नौजवान बाकी नौजवानों को सबक दे देते हैं--ऐसा नहीं करना है, इस तरह नहीं मरना है।
मैं सहमत हूं। बदले दौर में नई तरह की कई समस्याएं हैं। ये समस्याएं बहुत गंभीर हैं। बहुत भयावह हैं। लेकिन उन पर रोते रहने से, उन्हीं के चलते अवसादग्रस्त होकर बैठ जाने से क्या हो सकता है। किसी भी चीज की हर वक्त दशा-दिशा खराब और सही होती है। देखना यह है कि क्या चीजें इतनी ज्यादा खराब हैं कि अच्छाई अल्पमत में दिखता जा नजर आ रहा है। अगर इस सरलीकृत सवाल का कोई मुझसे जवाब पूछे तो मैं कहूंगा.....नहीं, अच्छाई बहुत ज्यादा है। मुझे भरोसा है अपनी पीढ़ी पर, अपने बाद वाली पीढ़ी पर और तैयार हो रही पीढ़ी पर। हम पहले से ज्यादा खुले दिमाग के हुए हैं। संस्कार के नाम पर कूपमंडूकता को बिलकुल नहीं ओढ़े हैं। आधुनिकता के नाम पर पुरखों-बुजुर्गों की अनदेखी नहीं किए पड़े हैं। घर-परिवार में आस्था रखने वाले ये नौजवान आज भी अपने समाज और अपने देश को उसी तरह चाहते हैं जिस तरह नंदन जी या फिर नेहरू-गांधी की पीढ़ी चाहती थी।
दादा, ये भड़ासी और ये सारे ब्लागर आपको आश्वस्त करते हैं कि जो नया भारत तैयार हो रहा है, उसकी शक्ल पहले से बिलकुल बदशक्ल नहीं दिखेगी। इसकी शक्ल में एक अल्हड़ की-सी ताजगी दिखेगी जिसमें विवेक और धैर्य के साथ आगे बढ़ते जाने का विजन और जुनून धैर्यवान जुनून होगा। नंदन जी, आप शतायु हों, आप फिर हम सबको मिलने का मौका दें....यह प्रार्थना मैं करता हूं। आपसे मिलकर अपार खुशी हुई और यह खुशी नकली या दिखावटी नहीं बल्कि दिल से है क्योंकि भड़ासी मन में कुछ नहीं रखते। कुछ ब्लागर मीट में उगला, कुछ इस पोस्ट में उगल दे रहा हूं, ताकि मन हलका हो जाए। इसके बाद जो दिल में बचा है वह सिर्फ प्रेम, प्रसन्नता और अपार ऊर्जा। उम्मीद है, आपका आर्शीवाद हम सभी ब्लागरों पर बना रहेगा।
ब्लागर मीट के लिए अरुण जी, अनूप जी और मैथिली जी को खासकर धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन सभी ने भड़ासियों की तरफ से मुझे और सचिन मेरठी को आप सबसे रू-ब-रू होने का मौका दिया। ठग्गू के लड्डू और समोसे के मटर का स्वाद अब तक जेहन में है। इसे बनाए रखूंगा ताकि वो मिटे तभी जब मैथिली जी अपनी मेहमाननवाजी में कुछ और नए स्वाद हम लोगों की जबान पर चढ़ाएं।
आलोक पुराणिक जी तो भड़ास के लिए सेलेब्रिटी हैं क्योंकि उनके द्वारा लिखकर दिए गए मंत्रों से भड़ासियों ने काफी कुछ सीखा है। उम्मीद है, कभी भड़ासियों की गली में भी पधारेंगे। मैंने तो आलोक पुराणिक को गाजीपुर के अपने गांव में दुआर पर शाम ढलते हुए और सुबह सूरज चढ़ते हुए बार-बार पढ़ा है।
अविनाश जी के दर्शन होने से मेरे लिए अधूरी सी लग रही ब्लागर मीटिंग पूर्ण हो गई।
राजेश रोशन को आने-जाने के दौरान बतियाने व सही तरीके से रास्ता बतलाने के लिए धन्यवाद।
ब्लागर मीटिंग के बारे में और कुछ पढ़ने-जानने या तस्वीरें देखने के लिए यहां भी क्लिक करें....
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मेरी नजर से
चिट्ठाकार भी इंसान होता है
दिल्ली में ब्लागरों की बैठक
भड़ासी हैं बड़े प्यारे
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बाकी फिर कभी लिखेंगे..........
यशवंत
19.10.07
नंदन जी, ये 'नालायक' बच्चे बहुत नाम करेंगे
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