रोज़ की तरह ब्लॉग की सैर पर निकला और अपनी कुछ मनपसंद जगहों पर पहुंचा। कुछ पढा, कुछ लिखा, लगा की क्या हर बात का एक ही सूत्र होता है कि किसी भी स्थिति में अपनी ही बात की सत्यता साबित करना और किसी भी बात के लिए दूसरे के सर पर गलतियों का ठीकरा फोड़ देना? आपको लग रहा होगा कि पता नहीं क्या-क्या लिखा जाने लगा? बात ये नहीं है, अभी एक-दो दिन पहले ट्रेड यूनियन वालों ने बंद करवा रखा था. सारे देश में हवाई, रेल, सड़क यातायात पूरी तरह से ठप्प हो गया था. लाखों कर्मचारी, मजदूर काम बंद कर हड़ताल पर थे. मुख्य बात ये कि किसी ने भी इस बंद का विरोध नहीं किया. किसी से यहाँ तात्पर्य लेखक मंडली, ब्लॉग मंडली से है. इस हड़ताल से भी आम जनजीवन पर असर हुआ, लोग सड़कों पर परेशान रहे, स्कूल बंद रहे, ट्रेन रोक दी गईं या रद्द कर दी गईं, मरीज परेशान रहे पर किसी ने कुछ भी नहीं कहा.
अब इसी तरह की एक और घटना पर निगाह डालें जो कुछ सप्ताह पहले घटी थी और वो थी बीजेपी, विहिप आदि का बंद। तमाम सारी पोस्ट आग उगलने लगीं कि लोग परेशान हो गए. तमाम पोस्ट ने तो साबित ये तक कर दिया कि कुछ मरीज सड़क पर ही दम तोड़ गए. लेखनी सँभालने वालों ने भी तमाम पेपर के कोलम रंग मारे बुराई कर-कर के. क्या महज़ इसलिए कि वो भाजपा का बंद था? यहाँ कोई आहात तक नहीं क्योंकि ये लेफ्ट का, ट्रेड यूनियन का बंद था. मतलब ये कि भाजपा करे तो बुरा, दूजा कोई करे तो वो संघर्ष.
यहाँ याद आती हैं वो पंक्तियाँ
उनका खून, खून, हमारा खून पानी।
हम करें तो अपराध, वो करें तो नादानी॥
ठीक यही स्थिति नारी-सशक्तिकरण, स्त्री-विमर्श को लेकर है। नारी की स्थिति को एपी पुरूष दिखाओ तो वो उसको बदनाम करने की साजिश है और महिला दिखाए तो नारी सशक्तिकरण. नारी के बिना कोई उत्पाद नही बिक सकता.....यहाँ नारी को उत्पाद बनाने की बात हो रही है, उसको कम कपडों में उतारने की बात हो रही है तो ये क्या है, नारी-सशक्तिकरण या फ़िर नारी की गरिमा का पतन? यहाँ यदि उदहारण देकर नारी को उसकी सच्चाई बताई जाए तो........
कुछ ऐसा ही हुआ, जब नारी के कम कपडों में विज्ञापन करने को उसकी नग्नता बताया तो समझाया गया जैसे माँ अनुसुइया ने देवताओं को बालक बना कर उनको स्तनपान कराया था, अपना निर्वस्त्र स्वरुप दिखाया था, उसी तरह नारी को विज्ञापन में देखिये नारी में नग्नता नहीं दिखेगी। ये वही बात हो गई भाजपा बंद वाली. यदि पुरूष पौराणिक उदहारण दे तो कहा जायेगा कि नारी को गुलाम बनाये जाने की साजिश की जा रही है और यदि इसी बात को नारी कहे तो वो नारी की गरिमामयी छवि को दिखाना होगा. जहाँ तक पौराणिक बातें हैं उनका अपना एक आधार है, एक विश्वास है पर पिछली सदी की नायिकाओं की बात करें तो महारानी लक्ष्मी बाई को कोई भी नहीं भूला होगा. उस समय परदा-प्रथा आज से अधिक था, महिलाओं की शिक्षा आज से बदतर थी तब भी रानी ने कई राजाओं को संगठित कर अपने झंडे तले, अपने आधिपत्य में लड़वाया था. ये है नारी-सशक्तिकरण का उदहारण. रानी ने तो कम कपडों का सहारा नहीं लिया था, वे तो किसी फैशन शो का हिस्सा नहीं थीं.
फिलहाल समझाने से कुछ नहीं होगा क्योंकि समाज को चलाने वाले नहीं चाहते कि अब ये दो ध्रुव- स्त्री,पुरूष- एक होकर किसी समस्या का हल निकालें. दोनों में संघर्ष बना रहे, बाज़ार चमकता रहे, नारी अपनी झूठी शान में, पुरूष अपने झूठे अहंकार में भटकता रहे. इसी से बिकेंगे अंडरवीयर, शराब, ब्लेड और भी बहुत कुछ पर किसी कम कपडों में बलखाती नारी के साथ. यही तो है आज का नारी-सशक्तिकरण.
23.8.08
क्या सही, क्या ग़लत
Posted by राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
Labels: नारी-सशक्तिकरण, स्त्री-विमर्श
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4 comments:
नारी सशक्तिकरण की सारी बातें नारी के कपड़ों तक ही क्यों की जाती हैं। बात कम कपड़े पहनने की नहीं, अपने मनपसंद कपड़े पहनने की होती है। आप लोग नारी आज़ादी को कपड़ों के मीटर से ही क्यों नापते हैं।
जब औरत और मर्द के बीच के मुद्दों पर शांति समझौता हो जाए तब इस खोल से बाहर आकर मनीषा दीदी जैसे लैंगिक विकलांग लोगों के बारे में बात करियेगा अगर साहस जुटा पाएं तो.....
जय जय भड़ास
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