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24.8.08

चिरौरी छोड़ो, सवाल पूछो!

स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने अनगिनत बलिदानों से हमें आजादी दिलायी, हमें अपने देश का मालिक बनाया। लेकिन, दुर्भाग्यवश हम अभी भी अपनी गुलाम मानसिकता से उबर नहीं पाए हैं। जो नौकरशाही हमारी सेवा के लिए बनी है, उसे हम साहब बनाकर ढोए जा रहे हैं, उसकी जी हुजुरी में दिन-रात एक किए रहते हैं। इसे क्या आप विडंबना नहीं कहेंगे कि जनता, जो इस देश की मालिक है, अपने कर्मचारियों से पत्राचार करते समय 'सेवा में' लिखती है। यह छोटी सी बात हमारी मानसिकता को उजागर कर देती है। इससे साबित होता है कि मन के किसी कोने में हम खुद को नौकर और सरकारी कर्मचारियों को अपना मालिक माने बैठे हैं।
आज जरूरत इस बात की है कि हम अपने अधिकारों को पहचानें और मालिक की तरह व्यवहार करना सीखें। मालिक बनने की पहली शर्त है कि हम अपने कर्मचारियों के काम पर नजर रखें, उनसे पूछताछ करें। आज की तारीख में नौकरशाही की नकेल कसने के लिए 'सूचना का अधिकार' एक बहुत ही कारगर हथियार है। हमें इसे इस्तेमाल करने की कला अच्छी तरह से सीखनी होगी।
इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए आजमगढ़ जिले में सूचना के अधिकार को लेकर एक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान का पहला मकसद है जनता के बीच नौकरशाही के खौफ को कम करना। इसके लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है कि वे नौकरशाही के मुखिया यानि जिलाधिकारी से सीधे सवाल पूछें और उनसे काम का ब्यौरा मांगें। प्रथम चरण में अभियान की योजना इस प्रकार है:

सवाल पूछने का सिलसिला
दिनांक 13 अगस्त, 2008 को आजमगढ़ के कुछ प्रबुध्द नागरिकों और दिल्ली के कुछ पत्रकारों ने जिलाधिकारी से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सवाल पूछा है कि पिछले चार महीनों में जिलाधिकारी को जनता की ओर से कुल कितने आवेदन प्राप्त हुए? इसी के साथ पूछा गया है कि आवेदन किसकी ओर से और कब दिया गया? आवेदन में क्या मांग की गयी? आवेदन पर जांच करने की जिम्मेदारी किस अधिकारी को और कब दी गयी? अंत में जिलाधिकारी से प्रत्येक आवेदन पर की गयी कार्रवायी का संक्षिप्त विवरण मांगा गया है। इसी तरह जिलाधिकारी को प्राप्त शिकायती पत्रों के बारे में भी जानकारी मांगी गयी है। जिलाधिकारी से सवाल पूछने का यह सिलसिला 29 अगस्त, 2008 तक लगातार चलेगा।
आजमगढ़ के कोने-कोने से लोग सूचना के अधिकार के तहत यही सूचना जिलाधिकारी से मांग रहे हैं। सूचना के अधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे देश भर के कार्यकर्ताओं ने भी इस अभियान को अपना समर्थन दिया है। आप भी यही सूचना यदि जिलाधिकारी से मांगेंगे तो हमारे अभियान को बल मिलेगा। हम जिलाधिकारी को यह समझा पाएंगे कि अब उन्हें अपने उच्च अध्किारियों और राजनीतिक आकाओं के साथ-साथ जनता को भी काम का ब्यौरा देना पड़ेगा।

हम नहीं डरते
पिछले दिनों जिले के मार्टिनगंज ब्लाक स्थित ग्रामसभा देहदुआर कैथौली के दो लोगों को केवल इसलिए गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया क्योंकि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत अपने गांव में आने वाले सरकारी पैसे का हिसाब मांगा था। प्रशासन की यह कार्रवायी उसकी हताशा को दर्शाती है। प्रशासन में बैठे लोग नहीं चाहते कि जनता उनसे सवाल पूछे। लेकिन वो भूल जाते हैं कि वे जनता के अधिकार को जितना दबाएंगे, लोगों में उसका उपयोग करने की इच्छा उतनी ही बलवती होती जाएगी।

सूचना के अध्किार के लिए संघर्षरत मार्टिनगंज के कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए उन्हीं के क्षेत्र में एक जनसभा आयोजित की जा रही है। राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन, परिवर्तन और भारत रक्षा दल के तत्वावधान में आयोजित इस सभा में स्थानीय जनता को मैगसैसे पुरस्कार विजेता और सूचना के अधिकार को जन-जन तक पहुंचाने वाले श्री अरविन्द केजरीवाल तथा प्रख्यात पत्रकार एवं जे.पी. आदोलन के नायक श्री रामबहादुर राय संबोधित करेंगे।

सभास्थल : जूनियर हाईस्कूल सोहौली (बरदह-मार्टिनगंज रोड पर लल्लूगंज बाजार के पास स्थित)
समय : 28 अगस्त, 2008 सायं 3 बजे से सायं 6 बजे विषय : सूचना का अधिकार और आम आदमी

मुख्यालय में दस्तक
मार्टिनगंज में सभा करने के बाद अगला पड़ाव जिला मुख्यालय होगा। दिनांक 29 अगस्त, 2008 को प्रात: 11 बजे श्री अरविन्द केजरीवाल एवं रामबहादुर राय सहित जिले के कई गणमान्य नागरिक जिला मुख्यालय में जाकर जिलाधिकारी से वही सवाल पूछेंगे जो सवाल जिले की जनता जिलाधिकारी से इन दिनों पूछ रही है। उनका सवाल पूछना प्रशासन के लिए चेतावनी है कि वह जनता के सवाल को अनदेखा करने की भूल न करे, क्योंकि आज सूचना के अधिकार के क्षेत्र में काम कर रहा प्रत्येक कार्यकर्ता आजमगढ़ की जनता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।
पूरे अभियान की दिशा तय करने के लिए अपरान्ह में कलेक्ट्रेट स्थित नेहरू हाल में 'स्वतंत्राता सेनानियों के सपने और वर्तमान विधान' विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। इसी दौरान केशरीनरायन सिंह द्वारा अनूदित पुस्तक 'अगस्त-सितंबर 1942 में आजमगढ़ के कांग्रेसी विद्रोहियों की कहानी : निबलेट की जुबानी' का लोकार्पण किया जाएगा। ज्ञातव्य हो कि 1939 से लेकर 1942 तक निबलेट आजमगढ़ का डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट था और उस समय के स्वतंत्रता आंदोलन की घटनाओं को उसने अपनी डायरी में विस्तारपूर्वक लिखा है।

निवेदन

पूरे अभियान में आपके सहयोग की हमें हरपल जरूरत है। आपकी उपस्थिति हमारे संकल्प को दृढ़ता प्रदान करेगी। आपके साथ मिलकर हम आजमगढ़ को सूचना के अधिकार की लड़ाई का सबसे खास मोर्चा बनाना चाहते हैं। किसी भी प्रकार की और जानकारी के लिए संपर्क करें :

-निवेदक
भारत रक्षा दल, आजमगढ़
9415377222
9336461760
05462-224903

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

इंद्रसेन सिंह जी के ऊपर जो आरोपपत्र दाखिल करा गया था उसके भीतर क्या धाराएं थी जिसके कारण जुर्म सिद्ध होने पर उन्हें दो माह जेल में बिताने पड़े क्या केस समाप्त हो गया या फिर ये दो माह अंडरट्रायल के थे? जरा स्पष्ट करें। सिर्फ आजमगढ़ ही नहीं मैं और जस्टिस आनंद सिंह चाहते हैं कि न्यायपालिका का भ्रष्टाचार ही जनता के सामने आए।
जय जय भड़ास

Anonymous said...

मित्र,
देश के इस गलीज व्यवस्था का सिरा ही न्यायपालिका से शुरू होता है, और न्याय के मन्दिर में न्याय की मान बहन करने वालों के ख़िलाफ़ एकजुटता में हम सब मिल कर साथ चलें मैं भी इसका पक्षधर हूँ, न्याय हमारे लिए मगर कठपुतली कुर्सी पर बैठे चाँद उठाईगीरों की, प्रश् तो सिर्फ़ इतना है की हमें न्याय किस से चाहिए,
जय जय भड़ास