जहां मेरे परिचय की बात है तो मैं एक ऐसे छोटे शहर से हूं जहां हर किसी को सब से मतलब होता है, जहां की सड़के भी मुंबई की गलियों की सड़कों की तरह ही हैं। नाली न होने बरसाती पानी कई बार घरों में पानी भर जाता है। गंदगी की तुलना किसी ओर जगह से करने में हमारी तौहीन होगी। जहां पर झोपड़ियों में एकबत्ती कनेक्शन के नाम पर विलासिता की हर वस्तु का उपयोग किया जाता है। जहां आज भी लड़की रात को 9 बजे के बाद अकेले आने जाने में कतराती है। ऐसे शहर में मैंने भी कुछ नया करने का कदम उठाया। मैं सफल रही, पर पूरी तरह से नहीं। मैंने पहले प्रशासनिक परीक्षा में अपना भाग्य आजमाना चाहा, पर वहां हम नहीं चले। तीसरे पायदान से फिसल गये। पत्रकारिता से 15 वर्षों के जुड़ाव के बाद, पुन: इसी फील्ड में आना चाहा और फिर एक बार अपनी हसरत पूरी करने के लिए बेबसाइट www.narmadanchal.in के लिए काम किया और फिर रिपोर्टिंग की शुरूआत ये जानते हुए भी की के जहां में बढ़ना चाह रही हूं वहां पर हर बढ़ने वालों की टांग खिचीं जाती है, शहर पिछड़ा है जहां पर लोगों को हिलाहिलाकर हमने क्या किया ये बताना होता है। इन सब में मेरे अंदर बैठा कोई नाना पाटेकर जैसा बंदा कुछ लिखने, कुछ बोलने या आप सभी की भाषा में कहूं तो भड़ासी बनने के लिए एक अवसर का इंतजार करने लगा और जैसे ही मुझे ये मौका मिला, मैं भड़ासी बन गई।
26.8.08
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2 comments:
भड़ास पर आपका हार्दिक स्वागत है। सफलताएं तो समय आने पर ही आयेंगी, ईश्वर से प्रार्थना है कि आपके लिये वो समय जल्द आये।
जय जय भड़ास
मंजू जी,
अब जब आप भडासी हो ही गयी हैं तो बस सुरु हो जाइए, शुभकामना है,
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