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23.8.08

फिर कोई घात हो रही होगी.

तूने काजल लगाया आंखों में,
कहीं बरसात हो रही होगी।
चाँद जाकर छिपा घटाओं में,
तेरी ही बात हो रही होगी।
तूने जुल्फों को यूँ बखेरा है,
दिन में ही रात हो रही होगी।
उसने जलवों का ज़िक्र छेड़ा है,
तू कहीं साथ में रही होगी।
जष्न उसने मनाया यारी का,
फिर कोई घात हो रही होगी।
खेल मकबूल ने जो खेला हे,
शह पे यूँ मात हो रही होगी।
मकबूल.

1 comment:

ताऊ रामपुरिया said...

तूने जुल्फों को यूँ बखेरा है,
दिन में ही रात हो रही होगी।


अति सुन्दरतम ! बहुत धन्यवाद !