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11.7.09

साहित्य में आशावादी संकेत-स्वयं प्रकाश


उदयपुर। हिन्दी की रचनात्मकता अपने लिए बरसों बाद एक भिन्न शिल्प की तलाश कर रही है। जो संस्मरण होना चाहिए था वह संस्मरण नहीं है, समीक्षा भी है, जो कहानी होनी चाहिए वह बीज उपन्यास भी है, जो जीवनी होनी चाहिए वह बहस भी है। ये आशावादी संकेत हैं। सुप्रसिद्ध कथाकार और ‘प्रगतिशील वसुधा’ के सम्पादक स्वयं प्रकाश ने उक्त विचार ‘’बनास’ द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में व्यक्त किए। ‘नयी रचनाशीलता और हमारा समय’ पर स्वयं प्रकाश ने कहा कि लेखन में आ रही विविधता का पाठकों ने स्वागत किया है और ऐसी कोशिशों से संभव है कि भविष्य में कुछ मौलिक कला रूप उभरें।

गोष्ठी में वरिष्ठ आलोचक प्रो-नवल किशोर ने यात्रावृत्‍तान्त, डायरी और कथा रिपोर्ताजों के रूप में आ रही नयी रचनाशीलता पर विस्तृत टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि इन कलारूपों ने सर्वथा नये गद्य की सृष्टि भी संभव की है। उन्होंने ममता कालिया की कृति ‘’कितने शहरों में कितनी बार’ और स्वयं प्रकाश की कथा रिपोर्ताज शृंखला ‘’जो कहा नहीं गया’ का उल्लेख कर बताया कि इनमें यथार्थ के प्रचलित ढाँचे से हटकर रचना कर्म आया है। ‘’सम्बोधन’ के सम्पादक क़मर मेवाड़ी ने लघु पत्रिकाओं के समक्ष आ रही नयी चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा कि तुरन्त प्रसिद्धि के मोह से बचकर ही गंभीर रचनाशीलता संभव है।


सिरोही से आये समालोचक एवं मीडिया विश्लेषक डा. माधव हाड़ा ने नयी रचनाशीलता पर सूचना तकनीक के असर को निर्णायक बताते हुए कहा कि अस्मितावादी विमर्शों के प्रसार में नये प्रभावों की भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि मीडिया न केवल साहित्य की रचना प्रक्रिया को अपितु आस्वाद प्रक्रिया को भी भीतर-भीतर बदल रहा है। ‘’बनास’ के सम्पादक डा. पल्लव ने कहा कि नयी रचनाशीलता की सक्रियता आलोचना के लिए बड़ी चुनौती लाई है जहां परिदृश्य में एक साथ चार-पांच कथा पीढ़ियाँ एक साथ कहानी लिख रही है। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण व्यास ने विगत तीन-चार वर्षों में उभर कर आई नयी कथा पीढ़ी की चर्चा करते हुए कहा कि विचारधारा और प्रतिबद्धता की चालू जकड़बन्दी को इसने तोड़ा है।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि नन्द चतुर्वेदी ने कहा कि रचनाशीलता में नयापन स्वयमेव सम्मिलित है। उन्होंने सवाल किया कि रचनाशीलता के नयेपन की चर्चा मध्यवर्गीय आकर्षण से तो नहीं उपजी है क्योंकि इससे अन्देशा होता है कि यह आकर्षण साहित्य को सार्वभौमिक भावक्षेत्र से विरत न कर दे। नन्द बाबू ने कहा कि हमारे युवा रचनाकार पश्चिमी आग्रहों से आक्रान्त न हों यह चिन्ता जरूरी है, साथ ही रचनाशीलता के चरित्र को भी विश्लेषित किया जाना जरूरी है।
गोष्ठी के अन्त में क़मर मेवाड़ी ने उपरना और पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वयं प्रकाश का अभिनन्दन किया। संयोजन कर रहे गजेन्द्र मीणा ने सभी का आभार माना।
प्रस्‍तुति-गणेशलाल मीणा, सहयोगी संपादक, ’बनास’, 403, बी-3, वैशाली अपार्टमेंट, सेक्टर-4, उदयपुर- 313002

3 comments:

jamos jhalla said...

hue mehnge bahut chiraag chotaa chithaa likha karo.save power save water.
jhallevichar.blogspot.com

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

bahut Achha Laga,Kash Swayam Prakash Ji Udaipur ke baad Chittor Bhi aa jate..............Purani yaaden Taja ho jati...
सादर,

माणिक
manik

आकाशवाणी उद्घोषक,स्पिक मैके कार्यकर्ता, अध्यापक

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प्रताप नगर,चित्तौड़गढ़
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google speedy cash said...

hey you are good