ईमानदारी और शराफत, ये भारी भरकम शब्द आजकल केवल किताबों की शोभा के लिए ही ठीक हैं। ईमानदारी और शराफत के साथ कोई जी नहीं सकता। कदम कदम पर उसको प्रताड़ना और अभावों का सामना करना पड़ेगा। इनका बोझ ढोने वालों के बच्चे भी उनसे संतुष्ट नहीं होते। ईमानदार और शरीफ लोगों की तारीफ तो सभी करेंगें लेकिन कोई घास नहीं डालता। ईमानदार और शरीफ को कोई ऐसा तमगा भी नहीं मिलता जिसको बेच कर वह एक समय का भोजन कर सके। दुनियादारी टेढी हो गई, आँख टेढी करो,सब आपको सलाम करेंगें। वरना आँख चुरा कर निकल जायेंगें।
लो जी, एक कहानी कहता हूँ। एक निहायत ही ईमानदार और शरीफ आदमी को प्रजा ने राजा बना दिया। जन जन को लगा कि अब राम राज्य होगा। किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। राज के कर्मचारी,अफसर जनता की बात सुनेगें। दफ्तरों में उनका आदर मान होगा। पुलिस उनकी सुरक्षा करेगी। कोई जुल्मी होगा तो उसकी ख़बर लेगी। रिश्वत खोरी समाप्त नहीं तो कम से कम जरुर हो जायेगी। परन्तु, हे भगवन! ये क्या हो गया! यहाँ तो सब कुछ उलट-पलट गया। ईमानदार और शरीफ राजा की कोई परवाह ही नही करता। बिना बुलाए कोई कर्मचारी तक उस से मिलने नहीं जाता। राजा के आदेश निर्देश की किसी को कोई चिंता नहीं। अफसर पलट के बताते ही नहीं कि महाराज आपके आदेश निर्देश पर हमने ये किया। लूट का बाजार गर्म हो गया। कई इलाकों में तो जंगल राज के हालत हो गए। किसी की कोई सुनवाई नहीं। पुलिस और प्रशासन के अफसर,कर्मचारी हावी हो गए। जिसको चाहे पकड़ लिया,जिसको चाहे भीड़ के कहने पर अन्दर कर दिया।ख़ुद ही मुकदमा दर्ज कर लेते हैं और ख़ुद ही जाँच करके किसी को जेल भेज देते हैं। राजा को उनके शुभचिंतकों ने बार बार बताया। किंतु स्थिति में बदलाव नही आया। राजा शरीफ और निहायत ईमानदार है। वह किसी अफसर, कर्मचारी को ना तो आँख दिखाता है ना रोब। सालों से खेले खाए अफसर,कर्मचारी ऐसे शरीफ राजा को क्यों भाव देने लगे। उनकी तो मौज बनी है। राजा कुछ कहता नहीं,प्रजा गूंगी है, बोलेगी नहीं। ऐसे में डंडा चल रहा है,माल बन रहा है। उनका तो कुछ बिगड़ना नहीं। पद जाएगा तो राजा का, उनका तो केवल तबादला ही होगा। होता रहेगा,उस से क्या फर्क पड़ेगा। घर तो भर जाएगा।
बताओ,जनता ऐसे राजा का क्या करे? जनता के लिए तो राजा की ईमानदारी और शराफत एक आफत बन कर रह गई। उनकी आशाएं टूट गईं। उम्मीद जाती रही।राम राज्य की कल्पना, कल्पना ही है। राजा की ईमानदारी और शराफत पर उनके दुश्मनों को भी संदेह नहीं,लेकिन इस से काम तो नही चल रहा। राजा ईमानदार और शरीफ रहकर लगाम तो कस सकता है। लगाम का इस्तेमाल ना करने पर तो दुर्घटना होनी ही है
10.7.09
ईमानदारी और शराफत का क्या करें
Posted by गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर
Labels: ईमानदारी और शराफत का क्या करें
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लगाम ज़रुरी है
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