श्री कबीर जी ने कहा था---
चलती चक्की देख कर
दिया कबीरा रोए,
दो पाटन के बीच में
साबुत बचा न कोए।
आज के संदर्भ में ---
चलती चक्की देखकर
अब रोता नहीं कबीर,
दो पाटन के बीच में
अब केवल पिसे गरीब।
25.9.09
रोता नहीं कबीर
Posted by गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर
Labels: रोता नहीं कबीर
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