इन दिनों यह धारणा प्रचलन में है कि अच्छा लेखन वही है जिसका वाचन के साथ फर्क न किया जा सके। हिन्दी के साहित्यकार आए दिन बोलचाल की भाषा में साहित्य सृजन पर जोर देते हैं। समस्या यह है कि जब एक बार स्वचालित वाचन को अच्छे लेखन के रूप में स्वीकार कर लिया जाएगा तो इसमें यह भाव भी निहित है कि स्वचालित वाचन विश्वसनीय है। उसे पढ़ सकते हैं। किंतु पढ़ते धीमी गति से हैं और बोलते तेज गति से हैं। अथवा जहां पर हम धीमी गति से बोलते या सुनते हैं वहां पर भी धीमी गति से पढ़ते हैं। असल में हमारा दिमाग बोलने और सुनने के लिए तैयार हुआ था न कि पढ़ने और लिखने के लिए। भाषा की तुलना में हमारे लेखन की व्यवस्था ज्यादा जटिल है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि विपरीत है। भाषा के साथ आज भी भाषाशास्त्री संघर्ष कर रहे हैं। कम्प्यूटर भाषा का निश्चित व्याकरण अभी तक नहीं बन पाया है। लेखन और वाचन के बीच आज भी संघर्ष चल रहा है। हमें भूलना नहीं चाहिए कि ऑडियो रिकॉर्डिंग आने के पहले वक्तृता का कोई स्थायी प्रमाण नहीं था। सिर्फ सुनने या बोलने वाले के ऊपर कुछ देर तक असर रहता था।
इसके विपरीत कम्प्यूटर लेखन 'करो और फिर करो' की तरह है। इसके गर्भ से जो सामग्री निकलती है वह रूपान्तरित होकर सामने आती है। इसके प्रत्येक रूप को लंबी अवधि तक संरक्षित किया जा सकता है। लेखन का मर्म यह है कि उसे संरक्षित कर सकते हैं। मेनीपुलेट कर सकते हैं।इसमें बाद में सामग्री शामिल कर सकते हैं। यही कम्प्यूटर लेखन का कौशल है। लेखक अभ्यास, भूल और फीडवैक के जरिए सीखता है।वह सिर्फ जानने मात्र से नहीं सीखता।इसके विपरीत जब एकबार बोलने का हुनर आ जाता है तो बोलना जान जाते हैं।बोलने में जानना ही महत्वपूर्ण है। आज डिकटोफोन ने यह संभव कर दिया है कि आप अपना भाषण लिखित रूप में पढ़ सकते हैं।उसे संशोधित कर सकते हैं। कम्प्यूटर में कनवर्जन के कारण आप अपने भाषण को सुन सकते हैं, देख सकते हैं,पढ़ सकते हैं।जरूरत इस बात की है कि आपकी कम्प्यूटर पर मास्टरी हो।यह एक तरह से यूजर को मास्टर बनाने वाली बात है।
सभ्यता के इतिहास में यूजर मास्टर पहलीबार बना है। आज लेखन उच्च कोटि का हुनर है। भाषण उच्चकोटि का हुनर नहीं रहा। आज इन दोनों के ही प्रशिक्षण पर जोर दिया जा रहा है। किंतु तकनीकी विकास के क्रम में एक अन्तर्विरोध पैदा हुआ है।यह संभव है बच्चों को लेखन का अभ्यास ही न कराया जाए। तब शिक्षण का क्या होगा ? आर्थिक प्रयासों का क्या होगा ? क्या इसका परिणाम यह होगा कि बच्चे सिर्फ पढ़ेंगे ? अथवा शिक्षण में लेखन और रीडिंग दोनों पर जोर होगा ? यह भी संभावना है कि खिचड़ी भाषा आ जाए। खिचड़ी भाषा और ध्वनियों को ही पढ़ाया जाएगा। उसी के जरिए सिखाया जाएगा। ऐसे में हम पाठ के मेनीपुलेशन से दो-चार होंगे।यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि लेखन का प्रशिक्षण पुराना काम हो जाएगा। इसी तरह वक्तृता में परिवर्तन आने शुरू हो चुके हैं।वर्चुअल लेखन की तरह वर्चुअल भाषण के युग का श्रीगणेश हो गया है।वर्चुअल भाषण के कारण गद्य कला के लोप की संभावनाएं बढ़ गई हैं।हमने लेखन के कारण निबंध गद्य के विभिन्न रूपों को जन्म दिया। उसे लिखा। पढ़ा।किंतु वर्चुअल वाचन के युग में यह संभव नहीं होगा।आज हालात बदल गए हैं नयी तकनीक सांस्कृतिक संचय कर रही है। सूचना की खान तैयार कर रही है।ऐसे में सभ्यता की बुनियादी प्रकृति में भी परिवर्तन आया है। हम लेखन से 'स्काई लेखन' के युग में पहुँच गए हैं।यह तीव्रगति का लेखन है।इसमें मेनीपुलेशन की अनंत संभावनाएं हैं।यह ऑन लाइन लेखन है। डिजिटल पाठ है। वह वाचिक सामग्री को तेजी से रूपान्तरित कर रहा है। इसने लेखन के क्षेत्र में स्पीड, संभावना और अंतर-संपर्क को बुनियादी तत्व बना दिया है। लेखन के हुनर के अनेक तत्वों को कम्प्यूटर ने आत्मसात कर लिया है। स्मृति के बहुत सारे लक्षण अपने अंदर समाहित कर लिए हैं। इसने हमें 'फिजिकल पुस्तक' यानी 'पी-बुक' के युग से निकालकर 'वर्चुअल बुक' या 'वी बुक' के दौर में फेंक दिया है।यह वर्चुअल वर्ल्ड है।इसकी समस्याएं अलग हैं।
'वी बुक' में वह सब है जो 'पी-बुक' में था।इसके अलावा इसकी प्रतियां सहज ही बगैर किसी खास लागत के तैयार हो सकती हैं।'वी बुक ' को आप डाउनलोड कर सकते हैं।इसके पाठक सब जगह हैं।'वी बुक' के कारण लेखक-प्रकाशक संबंधों में बदलाव आया है।रॉयल्टी,प्रकाशन रायल्टी की अवधि, आदि नई समस्याएं सामने आ गई हैं। प्रकाशक को मुद्रित पुस्तक छापने का हक है।डिजिटल पुस्तक प्रकाशित करने का हक नहीं है। डिजिटल प्रकाशन की समस्याओं पर हमारे यहां अभी सोचना शुरू नहीं हुआ है। डिजिटल युग में लेखक के अधिकारों के बारे में हमे सोचना होगा। 'वी बुक' के कारण पुस्तकालय की भी प्रकृति बदलेगी।अभी हमारे पुस्तकालयों में पुस्तक होती है। किंतु 'वी बुक' के कारण इसकी प्रतिलिपि आसानी से हासिल कर सकते हैं। इसकी कीमत भी कम आएगी। असल में यह 'प्रिण्टिंग रीडिंग मोड' से 'राइटिंग रीडिंग मोड ' में रूपान्तरण है। पुस्तक का जन्म वस्तु के स्वामित्व के दौर में हुआ। जबकि 'वी बुक' का युग 'रेंटिंग' या भाड़े का युग है। 'वी बुक ' के दौर में यह संभव है कि 'वी बुक' खरीदकर पढ़ो या उसका पाठ खरीदकर पढ़ो ,या किराए पर पढ़ो।भविष्य में क्या होगा कोई कुछ नहीं जानता। सवाल यह उठता है कि इस परिवर्तन प्रक्रिया में जनमाध्यमों के पास क्या बचा रह जाएगा ?
No comments:
Post a Comment