रास्ते पर चलते हुए या फिर ट्रेन या बस में सफ़र करते हुए भिखारियों के मुह से या फिर किसी व्यक्ति के मुह से आपने सुना होगा "भगवान् तुम्हारा भला करे" लेकिन सच तो यह है की भगवान् किसीका भला नहीं करते वोह भी उसीका भला करते है जो सबसे ज्यादा चढावा देते है या देने की बात करते है, (चढावा का मतलब बिहार में दिए जाने वाली रिश्वत को कहेते है, जो भ्रष्ट अधिकारीयों को दी जाती है, ये भ्रष्ट अधिकारी अपने आप को भगवान् से कम नहीं समझते)
सबसे पहेले हम बात करते है शिर्डी के साईं बाबा की, जिनकी अपनी जिंदगी गरीबी में गरीबों के लिए, गरीबों के साथ व्यतीत की है, लेकिन वक़्त के साथ सब कुछ बदल जाता है, मैंने मुंबई में ऐसे बहोत से पालखी यात्रा देखे है जो मुंबई से शिर्डी तक पैदल चलकर जाते है, लेकिन उनमे से किसी का भी सामाजिक उत्थान होते नहीं देखा, समाधी के वक़्त तक एक पत्थर पे बैठ कर गरीबों की उत्थान की बात करने वाले बाबा को किसीने रजत सिंहासन देने का वादा किया, रजत सिंहासन दिया भी, कई वर्षो तक बाबा रजत सिंहासन पर ही बिराजमान रहे लेकिन उनसे गरीब दूर हो गए, आज उनके दरबार में कई तरह के पास चला करते है जो एक आम आदमी उसे पाने की सोच भी नहीं सकता, अचानक बाबा को जैसे ज्ञान की प्राप्ति हुई हो और उन्होंने खुदको गरीबों से अलग कर उस आभिजात्य वर्ग के साथ हो लिए जिसे आम लोग वी आई पी कहेते है और उस आभिजात्य वर्ग के लोगो को लगा की बाबा के लिए रजत सिंहासन आभिजात्य वर्ग का मजाक उडा रहा है, तो उन्होंने स्वर्ण सिंहासन देने का वादा किया, आज बाबा अरबों के सिंहासन पे बैठे है, ज़रा सोचिये कोई भी व्यक्ति अरबों का सिंहासन अरबों के फायदे के बाद ही दे सकते है, किसी एक व्यक्ति को अरबों का फायदा देने अच्छा है लाखों गरीबों को लाखों का फायदा देना, लेकिन लाखों का फायदा पाने वाले लोग बाबा को अरबों के स्वर्ण सिंहासन पर नहीं बिठाते,
दुसरे नम्बर पर मुंबई के गणपति जी, उनका भी येही हाल है जो ज्यादा चढावा देता है, गणपति जी उनके साथ होते है, उन्हें भी आभिजात्य वर्ग की संगती अछि लगती है, चाहे वोह सिद्धिविनायक हो, लाल बाग का राजा हो, या फिर कोई और गणपतिजी, जितना ज्यादा चढावा चढायेंगे गणपति जी आप पर उसी हिसाब से खुश होंगे,
तीसरे स्थान पे आते है तिरुपति बालाजी, वोह भी गरीबों से दूर ही रहेते है ऐसा नहीं होता अगर तो प्रजा राज्यम पार्टी को एक सीट भी जरूर मिल जाती, लेकिन अभिनेता से नेता बने चिरंजीवी को यह बात समझ में नहीं आयी, और वोह तिरुपति बालाजी के दरबार से खाली हाथ लौट गया,
गरीबों के भगवान् वही बसते है जहा सिर्फ गरीब जाते है, उस मंदिर में आभिजात्य वर्ग के लोग जाने से कतराते है, और अगर जाते भी है, तो उस मंदिर की सारी खुशियाँ जो गरीबों की होती है खुद ले जाते हैं और गरीबों के भगवान् और भगवान् और गरीब को उसी जिल्लत की जिंदगी में छोड़ जाते है,
अगर अब अगर कोई कहे की भगवान् भला करे तो सोचना ...........
15.9.09
भगवान् तुम्हारा भला करे:लेकिन करेंगे नहीं
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