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30.9.09


SLUM TO SUCCESS WITH DR.PRAVEEN TIWARI

प्रवीण क्या कर रहे हो पीछे चलो खड़े हो जाओ। मास्टर साहब की कड़क आवाज प्रवीण के कानों में गूंजी तो प्रवीण चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा हो गया। मैं उस वक्त की प्रवीण की बात कर रहा हूं जब डां तिवारी जी काफी छोटे थे। और वो इन्दौर में ही स्लम्स एरिए के स्कूल में पढ़ने जाया करते थे। मास्टर साहब जब प्रवीण से उनके नाम का मतलब पूछा तो प्रवीण ने जोर से कहा –प्रवीण का मतलब होता है जो मन में ठान ले उसे हर हाल में पूरा करे वही प्रवीण कहलाता है। मास्टर साहब उनके इस जवाब पे हंस दिया । मास्टर ने उस बच्चे के गलत जवाब पर नहीं हंसा बल्कि उस मास्टर को आभास हो गया था कि आने वाले वक्त में ये बच्चा जो अपने नाम का मतलब गलत बता रहा है उसी को ही सच बनाकर दिखाएगा।
अब मैं आपको बता दूं कि प्रवीण का मतलब होता है निपुण । मैं जिस बच्चे की बात कर रहा हूं वो बच्चा कोई औऱ नहीं बल्कि आज की तारीख में एक सक्सेस एंकर के तौर पर लाइव इंडिया न्यूज चैनल में कार्यरत हैं। डां. प्रवीण तिवारी आज भले ही जिस मकाम पर खड़े हो लेकिन आज भी वो अपने पुरानें दिनों के साथ जीना पसंद करतें हैं। स्लम्स एरिये के बारें में जब हम कोई बातें सुनतें है तो जाहिर तौर पर गंदी बस्तियों या फिर झुग्गी झोपड़ियों की तस्वीर हमारें जेहन में उभरती है औऱ उभरना भी लाजिमी है क्योंकि ऐसे ही इलाकों को स्लम्स एरिय भी कहा जाता है मैं स्लम्स के बारें में इसलिए जिक्र कर रहा हूं क्योंकि प्रवीण तिवारी आज उन हजारों लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं जो स्लम्स एरिये में रहकर पढ़ाई कर रहें है या फिर कुछ बनने की चाहत लिए अपने लाचारी को पीछे छोड़ जिंदगी को जीतने में लगे हुए हैं। स्लम्स एरिये से लेकर सक्सेस तक की कहानी डां. प्रवीण तिवारी जब सुनातें है तो वो मजाकिया लहजें में हर बात कह जातें है । इन्दौर के स्लम्स एरिये की गलियों में नंगे पांव दौड़ना या फिर मिथुन चक्रवर्ती की फिल्में देखना औऱ देखकर उनकी एक्टिंग की कॉपी करना शायद यही सब प्रवीण तिवारी की बचपन की पसंद थी। जब बचपन में मिथुन की फिल्में प्रवीण देखा करते थे तो शायद उस वक्त वो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वो एक दिन उसी एक्टर का इंटरव्यू ले रहा होगा। शायद इसी को किस्मत कहतें हैं। प्रवीण तिवारी से जब मैं पहली बार मिला तो मुझे लगा कि इनसे बात करना मुश्किल हैं क्योंकि वो उस वक्त किसी बात को लेकर गंभीर थे लेकिन कुछ ही दिनों के बाद जब बातें शुरू हुई तो फिर दोस्ती का सिलसिला भी आगे बढ़ता चला गया ।लेकिन एक सवाल हमेशा मेरे जेहन में गूंजता रहता है कि एक लड़के ने स्लम्स से सक्सेस तक का सफर तय जिस अंदाज में किया वो भले ही काबिलेतारीफ है लेकिन क्या आज के जमानें में ऐसा कर पाना कितना संभव है ? सवालों का पूलिंदा लिए मैं आज भी प्रवीण तिवारी के पास कभी कभी पहुंच जाता हूं मेरे हर सवाल का जवाब वो आसानी से दे देतें हैं लेकिन मुझे लगता है वो इस सवाल का जवाब शायद ही दे पाएंगे कि क्या वो अपने अतीत के साथ जीना पसंद करेंगे या फिर अगर उन्हें मौका मिले तो क्या वो अब एक भी दिन या फिर एक भी रातें स्लम्स में गुजार पाएंगे ?



लेखक- डां.प्रवीण तिवारी के करीबी दोस्त है

1 comment:

Anonymous said...

are sahab, ye article to prayojit lagata hai....