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19.9.09

हमें सकारात्मक सोच की जरूरत है :नकारात्मक नहीं

कहते है वक़्त के साथ साथ बहुत कुछ बदल जाता है. चाहे हमारी सभ्यता हो या हमारी संस्कृति सब कुछ बदल गया है . हमारे धर्म का स्वरुप भी बदल गया है . लेकिन इन सबके वावजूद अगर कुछ नहीं बदला तो वो है हमारी सोच. लेकिन आज के इस भोगवाद के दौर में हमारी सोच सकारात्मक से ज्यादा नकारात्मक हो चुकी है. ये नकारात्मक सोच वाले लोग अपने आप को एन कें प्रकारें चर्चा में बने रहने की कोशिश में लगे रहते हैं ,और आज के इस टी वी युग में उन्हें लोग फटाफट इतना ज्यादा कवरेज़ मिलता है की अच्छे काम करने वालों की जगह बुरे काम या फिर नकारात्मक सोच वाले लोगों की संख्या बढती जा रही है . इस धरा पर ऐसे कई लोग हुए जो सिस्टम संस्कृति और धर्म के खिलाफ बोले और फेमस हुए, कुछ ऐसे भी है जो लोगो के सोच के खिलाफ बोलते हैं और फेमस हो जाते है . आज के इस दौर में भी कई ऐसे लोग है, और जब भी उन्हें मौका मिलता है वो अपनी नकारात्मक सोच को लोगो के बीच लाते है और लोगो की नज़रों में आ जाते है . गांधीजी के जीवन का सारांस सत्य और अहिंसा का अहिंसा शब्द भी गांधीजी का साथ छोर गए और उन्हें हिंसा का शिकार होना पड़ा पर सछ तो यह है की हम हिंसक समाज में नहीं रह सकते हिन्दा को समाप्त करने के लिया भी हिंसा का सहारा लेना पड़ता है लेकिन वो तात्कालिक होती है हम उसे अपने में उतरकर उसका हिस्सा नहीं बनते फिर हममे और उनमे फर्क क्या रह जायेगा . भारतवर्ष में रहने वे कुछ ऐसे भी लोग हैं जोआने वाली पीढी को ये बताना चाहते हैं की गाँधीजी का हत्यारा नाथूराम गोडसे एक देशभक्त था , उसके सोच को सच साबित करने में लगे हैं .इतिहास साक्षी है की वो जिस मानसिकता को लेकर गांधीजी की हत्या को अंजाम दिया उसी सोच की राजनैतिक शाखा के सर्वमान्य नेतागण जिन्ना जैसे सांप्रदायिक नेता को सेकुलर साबित करने में जुटे है और इतिहास को झुठलाना चाहते है.और जिन्ना के कब्र पर फूल चढाकर अपने आप को क्या साबित करना चाहते हैं , उन्हें यह नहीं पता की वो भी उसी साम्प्रदायिकता के शिकार हुए थे , जहाँ हजारों लोगो की हत्या हुई और लाखों बेघर होकर अपनों से बिछुड़ कर अपनी पहचान खो बैठे ,जिसके पीछे सिर्फ एक व्यक्ति का सोच था और वो था जिन्ना , मेरी नज़र में २० वी सदी का सबसे बड़ा हत्यारा , शायद ब्रिटिश हुकूमत यह जानती थी की पहले भारत आजाद हो गया तो पकिस्तान नहीं बन पायेगा ,और सभी सांप्रदायिक नेताओं को जेल और फिर फांसी दे दी जायेगी दंगे करने और राष्ट्रद्रोह के जुर्म में .लेकिन सांप्रदायिक सोच वाले ये नेता अपनी जनता के दिमाग में बसी साम्प्रदायिकता को नहीं निकाल सके, उनके बिच भी एक लकीर खिंच चुकी थी इससे आजाद होने की और देर थी उसे अंजाम तक पहुंचाने की ,रस्ते बने सोच बदली और इस भूमंडल पर एक और सरहद की रेखा खिंची गयी और बन गया बांग्लादेश , भारत आज भी भारत है इसे बांटने की कोशिश मत करो.
आडवानी आर एस एस से जुड़े नेता हैं , गोडसे भी वोही से जुड़े थे, जसवंत सिंह सेना में थे ,लेकिन राजपरिवार से जुड़े है ,रजवाडों का विलय नहीं होता तो शायद अपने आपको कहीं के राजा कहलाते ,
पाकिस्तान में रजवाडों का विलय नहीं हुआ , कबीलों से सिर्फ समर्थन लेने के लिए रखा गया , और आज भी पाकिस्तान में जो हो रहा है वो उसी जिन्ना दौर की साम्प्रदायिकता की खिंची हुई रेखाओ का आपसी द्वंद है.
यह दोनों नेता अपने आपको उस दौर की राजनीती के शिकार समझते है ,यह जिस पार्टी से आतें है वहां गाँधी के लिए कोई जगह नहीं है ,वहां सत्य , अहिंसा , सेकुलर, जैसे शब्दों की जगह नहीं है, फिर अपने आपको भारत की आज़ादी से जोड़ने के लिए एक नेता की तलाश है ,जो गाँधी का मुकाबला कर सके क्योकि आज़ादी के समय के आर एस एस के नेताओं को भारत की ९९% जनता नाम तक नहीं जानती ,इसलिए जिन्नाह का सहारा लेना पद रहा है, लेकिन जसवंत सिंह गलत समय पर गलत नाम का सहारा लेने की गलती कर बैठे, सछ तो ये है की राम नाम का सहारा लेने वाली पार्टी राम को ही भूल गयी, जिस तरह बोफोर्स का सहारा लेकर वी पि सिंह प्रधानमंत्री तो बन गए लेकिन बोफोर्स का नाम उनकी जुबान पर नहीं आया , आया तो सत्ता से बाहर होने के बाद.
मुझे एक वाकया जो राहुल गाँधी का है , मैं जिक्र कर रहा हूँ , वो है किसी तलब की खुदाई के लिए मिटटी कटना , राहुल ने मिटटी क्या काटी सारे देश के नेताओं के पैरों के निचे से जमीं खिसकने लगी.सबने जो मन में आया बोला, उन्होंने संसद में एक महिला की कहानी क्या कह दी ,सबे संसद से लेकर संसद के बाहर तक हंगामा खरा कर दिया. ट्रेन से जाते समय उनपर पत्थर बरसाए जाते हैं, ये सब हो रहा उस डर की वजह से की कही राहुल की तरफ भारत की जनता झुक गयी तो बाकी लोगो की राजनैतिक दुकानदारी बंद हो जायेगी.
रिता बहुगुणा के साथ जो हुआ वो भी मायावती की मजबूरी थी , क्योंकि वो अच्छी तरह जानती है की उनकी भी राजनैतिक जीवन समाप्ति की ओर है,
हम शशि थरूर को कैसे भूल सकते हैं , जब प्लेन के यात्रियों को उन्होंने कैटल क्लास का कह दिया तो इतना हंगामा लेकिन ट्रेन या बस में सफ़र करने वाले यात्रियों के बारे में क्या कहेंगे ?
हम अपनी नकारात्मक सोच को बदले ,क्योकि नकारात्मक सोच क्षणिक भर के लिए सुखद एहसास कराती तो है लेकिन जीवन भर के लिए दुखदायी होती है ,हमारा देश युवा है ,हमें अपनी युवाशक्ति को सही दिशा देने की जरूरत है , उन्हें निखारने की जरूरत है उन्हें तभी हम आगे बढ़ेंगे ,इतिहास से सिखाने की जरूरत है ,गलत इतिहास लिखने की जरूरत नहीं, हमें हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होना तभी हम अपने आपको और इस देश को नै ऊँचाई दे सकते है .

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